राजस्थान की लोक देवियाँ

राजस्थान की लोक देवियाँ

करणी माता

● जन्म – 1387 ई. (वि.सं.1444)

● जन्म स्थान – सुआप गाँव, जोधपुर

● पिता- मेहाजी चारण

● माता- देवल

● बचपन का नाम- रिद्धु बाई या रिद्धि बाई

● कुलदेवी – बीकानेर के राठौड़ वंश की।

● प्रमुख मंदिर  – देशनोक

● मेला – चैत्र एवं आश्विन नवरात्र

● करणी माता की आराध्य देवी –  तेमड़ाराय माता

● प्रतीक –  चील

● इस मंदिर को चूहों वाला मंदिर कहते हैं और इन चूहों को काबा कहते हैं।

● करणी माता ने 12 मई, 1459 को मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव अपने हाथों से रखी।

● देशनोक की स्थापना 1419 ई. में करणी माता ने ही की।

● बीकानेर राज्य की स्थापना भी करणी माता के आशीर्वाद से की गई।

● करणी माता के निज मंदिर के सोने के द्वार अलवर नरेश बख्तावरसिंह ने भेंट किए

● महाराजा गंगासिंह ने सारा मंदिर संगमरमर का बनवाया तथा पूजन सामग्री के लिए सारे बर्तन सोने चांदी के बनवाकर दिए।

● यहाँ सावन-भादो नामक कड़ाईयाँ स्थित है।

तनोट माता

● उपनाम – थार की वैष्णो देवी, सैनिकों की देवी।

● प्रमुख स्थल – तनोट, जैसलमेर

● निर्माण – जैसलमेर के भाटी शासकों द्वारा 

● आराध्य देवी  – भाटी शासकों एवं भारतीय सैनिकों की।

● जैसलमेर के तनोट में तनोटिया माता का मंदिर युद्ध देवी के मंदिर के नाम से विख्यात है।

● तनोट माता को हिंगलाज माता का रूप माना जाता है। हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलुचिस्तान प्रांत में स्थित हैं।

● इनके मंदिर की आरती व देखरेख का कार्य बीएसएफ करती है।

जीण माता

● रेवासा, सीकर जिले में जीण माता का हर्ष की पहाड़ी पर तीन दिशाओं (उत्तर, दक्षिण व पश्चिम) से पर्वत शृंखलाओं से घिरा हुआ प्राचीन मंदिर स्थित है।

● जीण एवं हर्ष नामक भाई-बहन ने यहाँ कठोर तपस्या की।

● हर्ष पर्वत पर स्थित शिलालेख के अनुसार जीण माता मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासन काल में हट्‌टड़ ने करवाया।

● ईष्टदेवी  – चौहान वंश की।

● मेला – प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र

● इनके मंदिर के पास उनके भाई हर्षनाथ का मंदिर बना हुआ है।

● इस मंदिर के पास ‘जोगी तालाब’ स्थित है, जहाँ पर पाण्डवों की आदमकद मूर्तिया स्थापित है।

● राजस्थान के लोक साहित्य में जीण माता का गीत सबसे लम्बा लोकगीत है जो ‘कनफटे जोगी’ द्वारा डमरू एवं सारंगी के साथ गाया जाता हैं।

● ढाई प्याले शराब चढ़ाई जाती थी जिस पर अभी प्रतिबन्ध है।

आई माता

● बचपन का नाम – जीजी बाई

● कुलदेवी – सिरवी जाति की।

● शिष्या – रैदास की।

● मंदिर – बिलाड़ा, जोधपुर

● 11 डोरा पंथी  – आई पंथी, 11 नियमों का पालन करते हैं।

● इनके पिता बीका डाभी मालवा के सुल्तान द्वारा इन पर बुरी दृष्टि रखने के कारण मालवा छोड़कर मारवाड़ आ गये।

● इनके मंदिर में अखण्ड ज्योत से केसर टपकती है।

● इनके थान को बडेर या दरगाह कहा जाता हैं।

● प्रत्येक महीने की शुक्ल द्वितीया को इनकी विशेष पूजा होती है।

शीतला माता

● मुख्य मंदिर – शील की डूँगरी, चाकसू (जयपुर)

● माधोसिंह द्वितीय ने यहाँ स्थित मंदिर का पुन: निर्माण करवाया था।

● प्रतीक चिह्न – जलता हुआ मिट्टी का दीपक

● उपनाम – महामाई, बच्चों की संरक्षिका, सैढल माता, बास्योड़ा की देवी, चेचक निवारक माता

● वाहन –  गधा

● पुजारी –  कुम्हार

● प्रतीक चिह्न – खेजड़ी

● यह एकमात्र ऐसी लोकदेवी है, जिनकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है।

● मेला – चैत्र कृष्ण अष्टमी को चाकसू (जयपुर) तथा कागा क्षेत्र (जोधपुर)

● इनके मेले में सुसज्जित बैलगाड़ियों से आते हैं, इसलिए इस मेले को बैलगाड़ी मेले के नाम से भी जाना जाता है।

कैलादेवी

● उपनाम- जोगमाया या अंजनी माता।

● प्रमुख मंदिर – त्रिकूट पर्वत, कालीसिल नदी के किनारे, करौली

● करौली के महाराजा गोपालसिंह ने कैलादेवी के मंदिर का नया भवन बनवाया।

● कुलदेवी  – यादव वंश की

● मेला – चैत्र शुक्ल अष्टमी को।

● मुख्यमंदिर में महालक्ष्मी कैलादेवी एवं चामुण्डा माता की प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान है।

● भक्तगण लोक-धुनों में पिरोकर लांगुरिया गीत गाते हैं।

● इस मंदिर के सामने हनुमान मंदिर है, जिसे स्थानीय लोग लांगुरिया कहते हैं।

● इन्हें हनुमान जी की माता माना जाता है।

● कैलादेवी ‘गुर्जरों व मीणाओं की आराध्य देवी’ हैं।

● कैलादेवी मंदिर के सामने ही बोहरा भगत की छतरी है।

सारिका माता

● उपनाम – उष्ट्रवाहिनी देवी

● कुलदेवी – पुष्करणा ब्राह्मणों की

● प्रमुख मंदिर – बीकानेर

● राजस्थान की एकमात्र देवी जो ऊँट पर सवार है।

● मधुमेह रोग निवारक देवी निवारक देवी के रूप में पूजा जाता है।

नागणेची माता

● प्रमुख मंदिर – नागाणा गाँव, बाड़मेर

● कुलदेवी- राठौड़ वंश

● प्रतीक – बाज या चील

● इनको महिषासुरमर्दिनी कहा जाता है।

● राव धुहड़ के शासनकाल में (मारवाड़ का शासक 1291 ई. में राज्याभिषेक) लूम्ब नामक एक ब्राह्मण कन्नौज से राठौड़ों की कुलदेवी चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लेकर मारवाड़ आया, जिसे धूहड़ ने नगाणा गाँव में स्थापित किया।

● नागौर दुर्ग में भी नागणेची की प्रतिमा स्थापित है।

● राव बीका ने बीकानेर के निकट अठारह भुजाओं वाली नागणेची देवी की प्रतिमा स्थापित की।

बाण माता

● कुलदेवी- सिसोदिया वंश

● मंदिर – नागदा गाँव, उदयपुर, चित्तोड़गढ़ दुर्ग

सुगाली माता

● कुलदेवी – आऊवा के चम्पावत ठाकुरों की।

● 1857 की क्रांति की देवी।

● इनकी मूर्ति में 10 सिर और 54 हाथ है।

चामुण्डा माता

● आराध्य देवी – राठौड़ों

● कुलदेवी – प्रतिहारों

● मेला –  चैत्र एवं आश्विन नवरात्र

● चामुण्डा माता मंदिर का निर्माण राव जोधा ने दुर्ग निर्माण के समय करवाया था, जिसका महाराजा तख्तसिंह ने 1857 ई. में जीर्णोद्धार करवाया।

● दुर्ग के चामुण्डा माता मंदिर में 30 सितम्बर, 2008 को शरदीय नवरात्र के पहले दिन ही मची भगदड़ में 200 से अधिक श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई थी, इसकी जाँच हेतु जसराज चौपड़ा समिति का गठन किया गया।

शीला देवी

● मन्दिर – आमेर (जयपुर)

● आराध्य देवी – कच्छवाहा वंश

● शीला देवी की मूर्ति मिर्जाराजा मानसिंह प्रथम पूर्वी बंगाल (जैस्सोर) के राजा केदार से युद्ध में जीतकर लाए थे।

● शीला देवी की प्रतिमा महिषासुरमर्दिनी स्वरूप की पाल शैली में निर्मित काले संगमरमर की लगभग तीन फीट ऊँची है।

● मंदिर के कपाट चाँदी के बने हुए हैं, जिन पर विद्या देवियों व नव दुर्गा का चित्रण है।

कैवाय माता

● स्थान- किणसरिया गाँव, परबतसर (नागौर)

● कैवायमाता मन्दिर के सभामण्डप की बाहरी दीवार पर एक शिलालेख (विक्रम संवत् 1056 या 999 ई. का ) उत्कीर्ण है, जिससे ज्ञात होता है कि इस मंदिर का निर्माण सांभर के चौहान शासक दुर्लभराज के सामंत चच्चदेव ने करवाया।

जमुवाय माता

● स्थान – जमुवारामगढ़, जयपुर

● अन्य नाम – देवायमाता, अन्नपूर्णमाता।

● कुलदेवी – कच्छवाहा वंश।

● कच्छवाह शासक दूल्हेराय (तेजकरण) ने देवी माँ के आशीर्वाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और विजय प्राप्ति के बाद जमुवाय माता मन्दिर बनाया ।

आवड़ माता

● आवड़ माता को  ‘तेमड़ाताई’ भी कहा जाता हैं।

● सुगनचिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है।

● ये सात देवियों का मंदिर है, जिन्हें चारण देवियाँ कहा जाता हैं।

स्वांगिया माता

● प्रमुख मंदिर  – जैसलमेर

● कुलदेवी –  जैसलमेर के भाटी वंश

● जैसलमेर के भाटी राजवंश के राज्य चिह्न में सबसे ऊपर पालम चिड़िया (शगुन) तथा स्वांग (भाला) को मुड़ा हुआ देवी के हाथ में दिखाया गया है।

महोदरा माता या आशापुरी माता

●  स्थान – जालोर

● कुलदेवी – सोनगरा चौहान 

● चारण कुल में उत्पन्न बरबड़ी देवी का नाम भी आशापुरी है।

● प्रमुख मंदिर – जालोर जिले के मोदरां में आशापुरा माता का मंदिर स्थित है, जिसका निर्माण लक्ष्मण सिंह चौहान द्वारा करवाया गया था।

● पाली जिले के नाडोल में भी आशापुरा देवी का मंदिर स्थित है।

राणी सती

● स्थान – झुन्झुनूँ

● उपनाम – दादीजी

● वास्तविक नाम – नारायणी बाई

● राणी सती अपने पति तनधनदास की हिसार नवाब के सैनिकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद उन सैनिकों को मौत के घाट उतारने के बाद अपने पति की देह के साथ सती हो गई थी।

● मेला – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को।

शाकम्भरी या सकराय माता

● प्रमुख स्थान – मलयकेतु पर्वत, उदयपुरवाटी (झुंझुनूँ)

● कुलदेवी – खण्डेलवालों की।

● अन्य मन्दिर – सांभर (जयपुर) तथा सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)

● सकराय माता के मंदिर में दो देवियों शाकम्भरी और काली की मूर्तियाँ स्थापित हैं।

● अकाल पीड़ित लोगों को बचाने के लिए उन्होंने फल, सब्जियाँ, कन्दमूल उत्पन्न किए थे, इसी कारण यह देवी शाकम्भरी कहलाई।

सच्चियाय या सच्चिका माता

● स्थान – ओसियां (जोधपुर)

● कुलदेवी – ओसवालों की

● निर्माण – आठवीं सदी में परमार राजकुमार उपलदेव  

● इस मन्दिर में काले प्रस्तर की महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है।

ब्राह्मणी माता

● प्रमुख स्थान – सोरसन गाँव (बाराँ)

● मेला – माघ शुक्ल सप्तमी

● यह एकमात्र देवी जिसकी पीठ की पूजा होती है।

हर्षद माता

● प्रमुख मंदिर – आभानेरी, दौसा

● यह मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु का मंदिर था।

● 8वीं व 9वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा निर्माण करवाया गया था।

● इस मंदिर के गर्भगृह में देवी हर्षद माता की प्रतिमा प्रतिष्ठित होने के कारण इसका नामकरण हर्षद माता मंदिर किया गया परन्तु मूलत: यह मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है।

● इस मंदिर की प्रमुख ताकों (आलों) में वासुदेव विष्णु प्रद्युम्न और बलराम की प्रतिमाओं के प्रतिष्ठित होने से इसका मूलत: विष्णु मंदिर होना संभावित है।

त्रिपुरासुंदरी माता (तरतई माता)

● प्रमुख स्थान – तलवाड़ा, बाँसवाड़ा

● कुलदेवी – पांचाल जाति

● आराध्यदेवी –  वसुंधरा राजे सिंधिया

● तरतई शब्द त्रितयी का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है- त्रित्व (तीन) से युक्त है।

● इस मंदिर में माता की काले पत्थर की अष्टादश भुजा वाली भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है।

● शाक्त ग्रंथों में श्री महात्रिपुरसुन्दरी को जगत का बीज और परम शिव का दर्पण कहा गया है।

● कालिका पुराण के अनुसार त्रिपुरा शिव की भार्या होने के कारण इन्हें त्रिपुरा कहा गया।

नारायणी माता

● प्रमुख स्थान – राजगढ़ तहसील (अलवर)

● कुलदेवी – नाई जाति 

● मूलनाम – करमेति

● मंदिर – बरवा की डूँगरी (अलवर)

लटियाल माता

●  प्रमुख स्थान – फलोदी, जोधपुर

●  कुलदेवी – कल्ला ब्राह्मण

●  उपनाम – खेजड़ बेरी राय भवानी

घेवर माता

●  प्रमुख मंदिर – राजसमंद झील, रामसमंद

●  घेवर माता द्वारा राजसमंद झील की नींव रखी गई।

सुंधा माता

● प्रमुख मंदिर – जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ, जालोर

● यहाँ पर भालू संरक्षण के लिए सुंधा माता अभयारण्य स्थित है।

● यहाँ पर राजस्थान का ‘प्रथम रोप वे’ स्थापित किया गया।

अम्बिका माता

● प्रमुख मंदिर – जगत, उदयपुर

● जगत (उदयपुर) में इनके मंदिर का निर्माण 10वीं सदी में राजा अल्लट ने महामारु शैली में करवाया।

● इस मंदिर को ‘मेवाड़ का खजुराहो’ कहते हैं।

 Note – खजुराहो के मंदिर चन्देल वंश के राजाओं द्वारा मध्यप्रदेश में बनवाए गए थे।

● राजस्थान के खजुराहो किराडू के सोमेश्वर मंदिर, बाड़मेर में स्थित है।

● हाड़ौती के खजुराहो भण्डदेवरा मंदिर, अटरू (बाराँ) में स्थित है।

प्रमुख राजवंशों की कुलदेवियाँ

माताजिलाराजवंश
जमुवाय माताजयपुरकच्छवाहा राजवंश की कुलदेवी
बाण माताउदयपुरसिसोदिया राजवंश की कुलदेवी
शाकम्भरी मातासांभरशाकंभरी के चौहानों की कुलदेवी
अंजना या कैलामाताकरौलीयादव राजवंश की कुलदेवी
राजेश्वरी माताभरतपुरभरतपुर जाट वंश की कुलदेवी
नागणेची माताजोधपुरराठौड़ों की कुलदेवी
स्वांगिया माताजैसलमेरभाटी राजवंश की कुलदेवी
चामुंडा मातामंडोर (जोधपुर)गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की कुलदेवी
सुगाली मातापालीआऊवा के ठाकुरों की कुलदेवी
आई माताजोधपुरसिरवी जाति की कुलदेवी
ज्वाला माताजोबनेर, जयपुरखंगारातों की कुल देवी

प्रमुख आराध्य देवियाँ

शीला माताजयपुरकच्छवाहा राजवंश की आराध्य देवी
करणी माताबीकानेरबीकानेर के राठौड़ों की आराध्य देवी
जीण मातासीकरचौहानों की आराध्य देवी
आशापुरा माताजालोरजालोर के सोनगरा चौहानों की आराध्य देवी

राजस्थान की अन्य लोक देवियाँ

लोक देवियाँप्रमुख मंदिर
आवरी मातानिकुंभ, चित्तौड़गढ़
बड़ली माताआकोला, चित्तौड़गढ़
भटियाणी माताजसोल, बाड़मेर
अन्नपूर्णा देवीउदयपुर
विरात्रा माताचौहटन, बाड़मेर
भद्रकालीहनुमानगढ़
बीजासण माताइंद्रगढ़, बूँदी
दधिमति मातागोठ-मांगलोद, जायल,नागौर।
चारभुजा देवीखमनौर, हल्दीघाटी
छीछ माताबाँसवाड़ा
आसपुरी माताआसपुर, डूँगरपुर
अम्बा माताउदयपुर एवं अम्बानगर, आबूरोड़
क्षेमकरी माताभीनमाल, जालोर
नकटीमाताजय भवानीपुर, जयपुर
भदाणा माताभदाणा, कोटा
जोगणिया माताभीलवाड़ा
बिरवड़ी माताचित्तौड़गढ़ दुर्ग एवं उदयपुर
आमजा मातारींछड़ा गाँव, राजसमंद
पीपाड़ माताओसियाँ, जोधपुर
अर्बुदा या अधरदेवीमाउण्ट आबू, सिरोही
भांवल माताभांवल गाँव, मेड़ता, नागौर
चौथ माताचौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर
हिंगलाज मातालोद्रवा, जैसलमेर
कैवाय माताकिणसरिया, परबतसर (नागौर)
भद्रकाली माताहनुमानगढ़
त्रिपुरासुंदरी मातातलवाड़ा, बाँसवाड़ा

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