सभ्यताएँ – कालीबंगा एवं आहड़
कालीबंगा
– यह एक काँस्ययुगीन सभ्यता है।
– कालक्रम – 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. (कार्बन डेटिंग पद्धति के अनुसार)
– यह पुरास्थल हनुमानगढ़ जिले में प्राचीन सरस्वती/दृषद्वती नदी (वर्तमान में घग्घर) के बाएँ तट पर स्थित है।
– खोज – वर्ष 1952 में अमलानंद घोष द्वारा।
– उत्खनन – वर्ष 1961-1969 के मध्य बी. बी. लाल, बी.के. थापर, जे.वी. जोशी, एम.डी. खरे द्वारा।
– यहाँ उत्खनन के लिए दो टीलों को चुना गया। ये दोनों टीले सुरक्षात्मक दीवार से घिरे हुए थे।
– उत्खनन से प्राप्त काले रंग की चूड़ियों के कारण कालीबंगा नामकरण हुआ।
– यह नगरीय सभ्यता थी।
– इसका 5 स्तरों तक उत्खनन किया गया।
– प्रथम दो स्तर तो हड़प्पा सभ्यता से भी प्राचीन है, वहीं तीसरा, चौथा व पाँचवाँ स्तर हड़प्पा सभ्यता के समकालीन हैं।
– इस आधार पर इसे दो भागों में बाँटा गया है –
(1) प्राक् हड़प्पा सभ्यता
(2) हड़प्पा सभ्यता
– रक्षा प्राचीरों से दुर्ग व निचले नगर के घिरे होने का स्पष्ट साक्ष्य मिला है।
– समचतुर्भुजाकार मिट्टी की ‘रक्षा प्राचीर’ के अंदर आवासों का निर्माण।
– ‘सूर्यतपी ईंटों’ से दीवारें बनती थीं और इन्हें मिट्टी से जोड़ा जाता था।
– मकानों में दालान, चार-पाँच बड़े कमरे व कुछ छोटे कमरे और मकानों के आगे चबूतरे भी रहते थे।
– मकानों में चूल्हे के अवशेष भी मिले हैं।
– मकानों की नालियाँ, शौचालय, भटि्टयों व कुओं में पकी ईंटों का प्रयोग किया गया।
– कालीबंगा का एक फर्श, हड़प्पाकाल का एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहाँ अलंकृत ईंटों का प्रयोग हुआ है।
– जल निकास प्रणाली – लकड़ी की नाली के अवशेष प्राप्त।
– गंदे पानी को निकालने के लिए विशेष प्रकार के गोलाकार भांड होते थे।
– यहाँ से प्राप्त हड़प्पाकालीन मृद्भांडों को 6 उपभागों में विभाजित किया गया है। इनमें विभिन्न प्रकार के घड़े, तश्तरियाँ, लघु पात्र एवं कटोरे प्रमुख हैं।
– अलंकरण के लिए लाल धरातल पर काले रंग का ज्यामितीय, पशु-पक्षियों का चित्रण।
– बर्तनों का रंग लाल है, जिन पर काली व सफेद रंग की रेखाएँ खींची गई हैं।
– जुते हुए खेतों के अवशेष प्राप्त।
– संस्कृत साहित्य में उल्लिखित ‘बहुधान्यदायक क्षेत्र’ यही था।
– घग्घर नदी के बाएँ किनारे पर स्थित खेत तीसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के हैं, संसार भर में उत्खनन से प्राप्त खेतों में यह पहला है।
– दो तरह की फसलों (चना व सरसों) को एक साथ उगाया जाता था।
– सात अग्निवेदिकाएँ प्राप्त हुईं, जो आयताकार हैं।
– डॉ. दशरथ शर्मा ने कालीबंगा को ‘सैंधव सभ्यता की तीसरी राजधानी’ कहा है।
– लिपि – सैंधव लिपि। इसे पढ़ा नहीं जा सका है। यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी।
– मुहरें – यहाँ मिट्टी से बनी सर्वाधिक मुद्राएँ अथवा मुहरें मिली हैं।
– यहाँ से प्राप्त बेलनाकार मुहरें मेसोपोटामिया की मुहरों जैसी हैं।
– मूर्तिकला – मिट्टी से बना कुत्ता, भेड़िया, चूहे और हाथी की प्रतिमाएँ मिली हैं।
– अंत्येष्टि संस्कार की तीनों विधियाँ- पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण एवं दाह संस्कार के साक्ष्य मिले हैं।
– एक युगल शवाधान तथा अंडाकार कब्रें भी प्राप्त हुई हैं।
– एक बच्चे के कंकाल की खोपड़ी में 6 छिद्र मिले हैं, जिसे मस्तिष्क शोध बीमारी के ईलाज का प्रमाण माना जाता है। यह शल्य क्रिया का प्राचीनतम उदाहरण है।
– 2600 ईसा पूर्व भूकंप की जानकारी उत्खनन से प्राप्त हुई, जो ‘भूकंप का प्राचीनतम साक्ष्य’ है।
– संभवत: घग्घर नदी के सूखने से कालीबंगा का विनाश हुआ।
– कालीबंगा को ‘दीन-हीन बस्ती’ भी कहा जाता है।
– कालीबंगा में मातृसत्तात्मक परिवार की व्यवस्था विद्यमान थी।
– राज्य सरकार द्वारा कालीबंगा से प्राप्त पुरा अवशेषों के संरक्षण हेतु वर्ष 1985-86 में एक संग्रहालय की स्थापना की गई।
आहड़

– यह पुरास्थल उदयपुर जिले में आयड़ या बेड़च नदी के किनारे स्थित है।
– इसका समय लगभग 4 हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है।
– उपनाम –
1. आघाटपुर या आघट दुर्ग
2. ताम्रवती नगरी
3. धूलकोट
– उत्खनन –
1. सर्वप्रथम वर्ष 1953 में अक्षयकीर्ति व्यास
2. आर. सी. अग्रवाल द्वारा वर्ष 1953-56 में
3. वर्ष 1961-62 में एच. डी. सांकलिया एवं वी. एन. मिश्र
– डॉ. सांकलिया ने इसे ‘ताम्रकाल’ की संज्ञा दी है।
– यहाँ पर उत्खनन से बस्तियों के 8 स्तर मिले।
– यह एक ग्रामीण सभ्यता थी।
– मकान पत्थरों की नींव डालकर जबकि दीवारें मिट्टी से बनी ईंटों की होती थी।
– मकानों से गंदा पानी निकालने की नालियों का भी प्रमाण मिला है।
– एक मकान में 4 से 6 बड़े चूल्हों का होना संयुक्त परिवार की व्यवस्था का प्रमाण है।
– मृद्भांड – लाल, भूरी व काली मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग होता था।
– उत्खनन में सर्वाधिक मात्रा में मिट्टी के बर्तन मिलना, इसे लाल-काले मिट्टी के बर्तनों वाली संस्कृति का प्रमुख केन्द्र साबित करते हैं।
– पशुपालन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था और लोग कृषि से परिचित थे।
– ‘गोरे’ या ‘कोठे’ – अनाज रखने के मृद्भाण्डों का स्थानीय नाम थे।
– तृतीय ईसा पूर्व से प्रथम ईसा पूर्व की यूनानी ताँबे की 6 मुद्राएँ व 3 मुहरें प्राप्त हुई।
– एक मुद्रा पर एक ओर त्रिशूल तथा दूसरी ओर अपोलो देवता अंकित हैं जो तीर एवं तरकश से युक्त हैं।
– पत्थरों की उपलब्धता से अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ पत्थरों के शस्त्र बनाने का बहुत बड़ा केंद्र रहा होगा।
– प्रमुख व्यवसाय – ताँबा गलाना तथा उससे उपकरण बनाना।
– उत्खनन से प्राप्त ठप्पों से रंगाई-छपाई व्यवसाय के उन्नत होने का अनुमान।
– ताँबे की 6 कुल्हाड़ियाँ, अँगूठियाँ, चूड़ियाँ मिली हैं।
– आहड़वासी मृतकों को गहनों व आभूषणों के साथ दफनाते थे।
– टेराकोटा वृषभ आकृतियाँ मिली, जिन्हें ‘बनासियन बुल’ कहा गया है।
– गिलूण्ड (राजसमन्द) से आहड़ के समान-धर्म संस्कृति मिली है।