अम्लीय, क्षारीय व लवणीय मृदाएँ एवं इनका प्रबंधन (Acidic, alkaline and saline soils and their management)
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अम्लीय, क्षारीय व लवणीय मृदाएँ एवं इनका प्रबंधन
1. क्षारीय मृदा/ऊसर मृदा (Alkaline soil)/सोलोनेट्ज:-
· क्षारीय मृदा को “काली ऊसर मृदा” भी कहते हैं, क्योंकि इनका रंग काला हो जाता है।
· क्षारीय मृदा में अघुलनशील सोडियम कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट की अधिकता होती है।
· कार्बोनेट व बाइकार्बोनेट की वजह से मृदा में अपारगम्य परत का निर्माण हो जाता है जिससे पानी मृदा में प्रवेश नहीं कर पाता है।
· यह अर्द्धशुष्क एवं अर्द्ध आर्द्र क्षेत्रों में विकसित होती है।
· इसमें pH 8.5 से अधिक, EC 4ds/m से कम, ESP 15% से अधिक होती है।
क्षारीय मृदा बनने के मुख्य कारण:-
1. क्षारीय जल द्वारा सिंचाई करना
2. पैतृक पदार्थ की प्रकृति क्षारीय होना
3. क्षारीय उर्वरकों के अधिक प्रयोग से
4. अर्द्ध शुष्क व अर्द्ध आर्द्र जलवायु के कारण
क्षारीय मृदा का सुधार :-
· जिप्सम (CaSO4.2H2O):- क्षारीय मृदा को सुधारने के लिए मृदा सुधारक के रूप में मुख्यत: जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
· सोडियम आयनों को कैल्सियम आयनों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है।
· आयरन पायराइट (FeS2) व आयरन सल्फेट का प्रयोग
· हरी खाद एवं मोलासेज का प्रयोग करें।
· क्षारीय उर्वरकों का प्रयोग नहीं करें।
· क्षारीय प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।
· मृदा सुधारक के रूप में 8 क्विंटल/हेक्टेयर जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
2. लवणीय मृदा (Saline soil):-
· लवणीय मृदा में घुलनशील लवण सोडियम, कैल्सियम, पोटैशियम तथा मैग्नीशियम के क्लोराइड और सल्फेट की अधिकता होती है।
· लवणीय मृदा को “सफेद ऊसर” मृदा भी कहते हैं, क्योंकि इनकी सतह पर सफेद रंग की परत दिखाई देती है।
· लवणीय मृदाओं का निर्माण शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में होता है।
· लवणीय मृदाओं के अन्य नाम – रेह, लुणी व धूर आर्द्र
लवणीय मृदा बनने के कारण:-
1. भूमिगत जलस्तर ऊपर होने के कारण
2. समुद्री जल/खारे पानी में सिंचाई करने के कारण
3. पैतृक पदार्थ का लवणीय होने के कारण
· लवणीय भूमि – PH<8.5, EC>4ds/m, ESP<15%
लवणीय मृदा का सुधार :-
· निक्षालन (Leaching):- लवणीय मृदाओं के सुधारने का सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका है इसमें अच्छे गुणवत्ता वाले पानी से लवणों को घोलकर पौधों के जड़ क्षेत्र से नीचे पहुँचाया जाता है।
· लवणों को खुरचना
· बार-बार हल्की सिंचाई करना
· लवणों को पानी में घोलकर खेत से बाहर करना
· कार्बनिक खाद का प्रयोग करना
· कूँड से बुआई करना।
· मल्चिंग का प्रयोग – मल्चिंग से पानी का वाष्पीकरण नहीं होगा जिससे लवण सतह पर नहीं आएँगे।
· अम्लीय उर्वरकों का प्रयोग करे; जैसे – अमोनियम सल्फेट, कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट आदि।
· लवण सहिष्णु फसलों की बुआई करना; जैसे – जौ, चुकंदर, अनार, बेर, पालक, ढैंचा आदि।
लवण सहनशील फसलें
क्र.सं. | लवणीयता | फसलें |
1. | अधिक लवण सहनशील करने वाली फसलें | जौ, चुकंदर, ढैंचा, पालक, मूली, शलजम, दूब घास, कपास आदि |
2. | मध्यम लवण सहनशील फसलें | गेहूँ, जई, धान, सरसों, तारामीरा, मक्का, बाजरा, टमाटर, फूलगोभी, सूरजमुखी आदि। |
3. | निम्न लवण सहनशील करने वाली फसलें | मूँग, उड़द, चना, मोठ, मटर, भिंडी, लौकी, सेब, पपीता आदि |
नोट:- लवण असहनशील फसलें – चना, मूँग, मोठ, ग्वार, तिल।
3. लवणीय व क्षारीय मृदाएँ (Saline alkali soil):-
· लवणीय क्षारीय मृदाओं में विलय लवण और विनिमयशील सोडियम दोनों की मात्रा अधिक होती है।
· ये मृदाएँ “भूरी ऊसर” मृदाएँ कहलाती है।
· लवणीय क्षारीय मृदाओं के नीचे कैल्सियम कार्बोनेट की कड़ी परत जमा हो जाती है।
· इसकी वजह से जल निकास नहीं हो पाता और पानी भर जाता है।
· इस मृदाओं को रेहली ऊसर/रेहयुक्त ऊसर नाम से भी जाना जाता है।
· pH=8.5, EC>4ds/m, ESP>15%
लवणीय व क्षारीय मृदाओं का सुधार :-
1. अम्लीय उर्वरकों का 20-25% अधिक प्रयोग करना चाहिए।
2. गहरी जुताई
3. 15-20% अधिक बीज की मात्रा
4. हरी खाद का प्रयोग – ढैंचा, सनई
5. गोबर की खाद का प्रयोग
6. फसल के बीजों को बोने से पहले 0.1% नमक के घोल 3% सोडियम सल्फेट के घोल से उपचारित करते हैं।
4. अम्लीय मृदा (Acidic soil and their managment):-
· अम्लीय मृदाओं के हाइड्रोजन आयनों (H+) की सान्द्रता हाइड्रोक्सिल आयनों (OH) की अपेक्षा अधिक होती है।
· अम्लीय मृदाओं का pH मान (4-6.5) 7 से कम होता है।
· ये मृदाएँ अधिकतर आर्द्र/नम क्षेत्रों में पाई जाती है।
· अम्लीय मृदा की भौतिक दशा खराब नहीं होती है।
· अम्लीय मृदाओं में मुख्यत: Fe, Mn, Al व Cu की सान्द्रता अधिक पाई जाती है।
· नोट:- केट क्ले मृदा – इनका निर्माण सल्फाइडस के ऑक्सीकरण से होता है। इन्हें अम्लीय सल्फेट मृदा कहा जाता है इनका pH मान सदैव 4.0 से कम होता है।
· अम्लीय मृदाओं में Mo की कमी पाई जाती है।
मृदा अम्लीयता के प्रकार:-
1. सक्रिय अम्लता (Active acidity):-
· मृदा घोल में हाइड्रोजन आयनों के कारण उत्पन्न होने वाली अम्लीयता सक्रिय अम्लता कहलाती है।
2. संचित अम्लीयता (Reserve acidity):-
· संचित अम्लीयता मृदा कणों पर अवशोषित H+ के कारण होती है यह आयन स्वतंत्र भ्रमण नहीं कर सकते हैं।
3. अवशिष्ट अम्लीयता (Residual acidity):-
· यह अम्लीयता एल्युमिनियम और फेरस आयनों के कारण होती है।
अम्लीय मृदा निर्माण के मुख्य कारण:-
1. पैतृक पदार्थ ग्रेनाइट चट्टान/अम्लीय होने पर अम्लीय मृदा निर्मित होती है।
2. अम्लीय उर्वरकों के प्रयोग से अमोनियम आयन Ca++ आयन को विस्थापित कर देता है।
3. अम्लीय वर्षा के कारण सल्फेट तथा नाइट्रेट के आयन भूमि पर गिरने से मृदा अम्लीय हो जाती है।
4. कार्बनिक पदार्थों के सड़ने से मृदा अम्लीय हो जाती है।
5. आर्द्र क्षेत्रों की मृदाएँ अम्लीय होती हैं।
6. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अम्लीय मृदाएँ पाई जाती है।
अम्लीय मृदाओं का सुधार:-
1. चूने का प्रयोग:-
– चूना मिलाने पर इसमें उपस्थित कैल्सियम आयन हाइड्रोजन आयनों को विस्थापित कर देते हैं।
– उदाहरण – बिना बुझा हुआ चूना, बुझा हुआ चूना तथा लाइम स्टोन
2. प्रेसमड का भी प्रयोग किया जाता है।
3. लकड़ी की राख का प्रयोग करने से भी अम्लीयता को कम किया जा सकता है।
4. क्षारीय उर्वरकों के प्रयोग से-
– उदाहरण – कैल्सियम नाइट्रेट, सोडियम नाइट्रेट व रॉक फॉस्फेट आदि का प्रयोग किया जाता है।
– अधिक अम्लीय मृदा को सुधारने के लिए रोक फॉस्फेट का उपयोग किया जाता है।
5. जल निकास की उचित व्यवस्था –
– अतिरिक्त जल को खेत से निकालने पर अम्ल भी जल के साथ बाहर निकल जाएँगे और साथ ही वायु संचार भी बढ़ता है।
अम्लीयता सहनशील करने वाली फसलों का चुनाव
क्र.सं. | अम्लीयता | फसलें |
1. | अधिक अम्लीयता सहन करने वाली फसलें | घास, राई, चाय, धान |
2. | सामान्य अम्लीयता सहन करने वाली फसलें | गेहूँ, जौ, जई, मक्का, बाजरा, ज्वार, आलू |
3. | कम अम्लीयता सहन करने वाली फसलें | बरसीम, चुकंदर, रिजका, कपास, दलहन फसलें |
क्षारीय, लवणीय, लवणीय क्षारीय मृदा
क्र.सं. | मृदा | pH मान | विद्युत चालकता (EC) 25°C तापमान | विनिमयशील सोडियम प्रतिशत (ESP) |
1. | क्षारीय मृदा | > 8.5 | < 4 ds/m | > 15% |
2. | लवणीय मृदा | < 8.5 | > 4 ds/m | < 15% |
3. | लवणीय क्षारीय मृदा | > 4 ds/m | > 15% |
pH स्केल :-
· यह मृदा में H+ और OH- आयन की सांद्रता को मापता है।
· SPL सोरेंसन ने pH स्केल के बारे में बताया।
· pH का मान H+ आयनों की सांद्रता के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् pH मान बढ़ने पर H+ की सांद्रता घटती है।
· PF स्केल – वर्ष 1935 में PF स्केल को स्कोफिल्ड ने परिभाषित किया।
विभिन्न मृदा सुधारकों का जिप्सम तुल्यांक भार
क्र.सं. | मृदा सुधारक | जिप्सम तुल्यांक मान |
1. | जिप्सम (CaSO4.2H2O) | 1.00 |
2. | सल्फर | 0.19 |
3. | गंधक का अम्ल (H2SO4) | 0.57 |
4. | आयरन पायराइट्स | 0.63 |
5. | आयरन सल्फेट | 1.62 |
नोट:- सबसे अधिक प्रभावी/क्रियाशील मृदा सुधारक सल्फर है मृदा सुधारक के रूप में इसकी 0.19 टन मात्रा 1 टन जिप्सम के बराबर होती है।
भारत में लवण प्रभावित मृदा
· सर्वाधिक क्षारीय मृदाओं से प्रभावित राज्य – उत्तर प्रदेश
· सर्वाधिक लवणीय मृदाओं से प्रभावित राज्य – गुजरात
· सर्वाधिक अम्लीय मृदाओं से प्रभावित राज्य – केरल
· कुल समस्या (क्षारीय, लवणीय व अम्लीय) से प्रभावित क्षेत्र – केरल
· अम्लीय मृदा मुख्यत: केरल, पश्चिम बंगाल व असम में पाई जाती है।
· यह राजस्थान में कोटा, बूँदी, झालावाड़ एवं बाँसवाड़ा में पाई जाती है।
भारत में समस्याग्रस्त मृदाओं का विस्तार और वितरण
क्र. सं. | राज्य | लवणीय मृदा (हेक्टेयर) | क्षारीय मृदा (हेक्टेयर) | तटीय लवणीय मृदा (हेक्टेयर) | कुल (हेक्टेयर) |
1. | आंध्रप्रदेश | 0 | 196609 | 77598 | 274207 |
2. | अंडमान निकोबार | 0 | 0 | 77000 | 77000 |
3. | बिहार | 47301 | 105852 | 0 | 153153 |
4. | गुजरात | 1218255 | 541430 | 462315 | 2222000 |
5. | हरियाणा | 49157 | 183399 | 0 | 232556 |
6. | जम्मू-कश्मीर | 0 | 17500 | 0 | 17500 |
7. | कर्नाटक | 1307 | 148136 | 586 | 150029 |
8. | केरल | 0 | 0 | 20000 | 20000 |
9. | महाराष्ट्र | 177093 | 422670 | 6996 | 606759 |
10. | मध्यप्रदेश | 0 | 139720 | 0 | 139720 |
11. | ओडिशा | 0 | 0 | 147138 | 147138 |
12. | पंजाब | 0 | 151717 | 0 | 151717 |
13 | राजस्थान | 195571 | 179371 | 0 | 374942 |
14. | तमिलनाडु | 0 | 354784 | 13231 | 368015 |
15. | उत्तर प्रदेश | 21989 | 1346971 | 0 | 1368960 |
16. | पश्चिम बंगाल | 0 | 0 | 441272 | 441272 |
कुल | 1710673 | 3788159 | 1246136 | 6744968 |
मृदा परीक्षण:-
● मृदा में उपस्थित पोषक तत्त्वों की मात्रा के बारे में जानने के लिए मृदा नमूने का रासायनिक परीक्षण किया जाता है, इसे मृदा परीक्षण कहते हैं।
● भूमि की उर्वरा शक्ति की जाँच करके यह पता लगाया जाता है कि मृदा मे किस पोषक तत्त्व की कमी है व भूमी अम्लीय या क्षारीयता समस्याग्रस्त तो नहीं है।
● मृदा नमूने के लिए 500 ग्राम मिट्टी रखी जाती है।
● मृदा नमूना पूरे खेत की मिट्टी का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा 2 हेक्टेयर क्षेत्र से एक नमूना लिया जा सकता है।
● नमूना लेते समय 10-15 cm गहरा गढ्ढा बनाये व खेत में 10-15 जगहों से नमूना इकट्ठा कर लें।
महत्त्वपूर्ण बिंदु :-
1. चाय व धान की खेती अम्लीय मृदा (4-6 pH) में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
2. सत्यानाशी खरपतवार का प्रयोग लवणीय व क्षारीय मृदाओं को सुधारने में किया जाता है।
3. ढैंचे का रस अम्लीय प्रकृति का होता है जो लवणीय व क्षारीय मृदाओं को सुधारने में काम आता है।
4. ढैंचे के रस pH मान 4.0 होता है।
5. ढैंचे के पौधे का pH मान 5.2 होता है।
6. सोडियम अवशोषण अनुपात (SAR)–
लवणीय क्षारीय मृदाओं के प्रति सहनशील किस्में
क्र.सं. | फसलें | किस्में |
1. | गेहूँ | खारचिया – 65 (K-65) कल्याण सोना, RS-31, राज-3077 |
2. | जौ | BL-2, RD-37, RD-103, |
3. | धान/चावल | IR-8, पदमा, पूसा-2-21 लूणी श्री |
4. | तरबूज | शुगर बेबी |
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