उद्यान लगाने की विभिन्न रेखांकन

उद्यान लगाने की विभिन्न रेखांकन

– किसी भी उद्यान का अच्छा रेखांकन वह होता है जिसमें उद्यान की सम्पूर्ण भूमि का सदुपयोग हो सके। पौधे को फैलने के लिए एवं प्रकाश की समुचित व्यवस्था हो सके मुख्य पौधे की दूरी से आधार रेखा आधी दूरी पर होती है।

– उद्यान के रेखांकन की प्रमुख विधियाँ-

 1. वर्गाकार विधि स्क्वायर विधि

 2. आयताकार विधि रेक्टेन्गुलर

 3. त्रिभुजाकार विधि ट्राइएंगुलर विधि

 4. षट्कोणीय/षट्भुजाकार समत्रिबाहु विधि सप्तक विधि

 5. पंचकोणीय विधि/पंचभुजाकार/क्विनम्स विधि/पूरक विधि-

 6. समोच्च विधि/कंटूर विधि-

1. वर्गाकार विधि – बगीचा लगाने की सबसे सरल, सबसे प्रचलित, सबसे सस्ती विधि है।

– इस विधि में पौधे से पौधे की दूरी व पंक्ति से पंक्ति की दूरी बराबर होती है। चार पौधे मिलकर वर्ग का निर्माण करते हैं।

– इस विधि से पौधे लगाने हेतु विशेष ज्ञान की जरूरत नहीं।

– यह विधि उन क्षेत्रों में अधिक काम में ली जाती है। जहाँ पर भूमि की उपलब्धता आसानी से होती है।

– इस विधि में उद्यान के अन्तर्गत कृषण क्रियाएँ आसानी से की जा सकती हैं। खरपतवार नियंत्रण आसान।

– वर्गाकार विधि से पौधों की संख्या ज्ञात करना –

– 1 है = 10000 वर्गमीटर (100 मीटर लम्बाई×100 मीटर चौड़ाई)

 2 हेक्टेयर में कुल = 200 पौधों की जरूरत होगी।

2. आयताकार विधि –

– इस विधि में पौधे से पौधे की दूरी पंक्ति से पंक्ति की दूरी से कम होती है, जैसे – L×P=5×4 मीटर

– यह बगीचा लगाने की सरल विधि है।

– कृषण क्रियाएँ आसानी से की जा सकती हैं।

– यह विधि अगर बगीचे का सघन रोपण करना हो तो यह एक अच्छी विधि।

– आयताकार विधि से पौधों की संख्या ज्ञात करना ̵

– 1 है= 10000 वर्ग मीटर (100 मीटर लम्बाई×100 मीटर चौड़ाई)

– आयताकार विधि में वर्गाकार विधि की अपेक्षा अधिक पौधे लगाए जाते हैं।

3. त्रिभुजाकार विधि –

– इस विधि को टेडी-मेडी व भूमि का सम्पूर्ण भाग काम में लेने हेतु त्रिभुजाकर विधि काम में ली जाती है।

– विधि में पहली लाइन के पौधे व तीसरी लाइन के पौधे तथा दूसरी लाइन के पौधे व चौथी लाइन के पौधे बराबर दूरी पर होते हैं।

4. षट्भुजाकार/समत्रिबाहु विधि/सप्तक विधि-

– इस विधि में उद्यान का रेखांकन आयताकार विधि की तरह ही किया जाता है।

– षट्भुजाकार विधि में वर्गाकार विधि की अपेक्षा 15% अधिक पौधे लगाए जाते हैं।

– इस विधि में आयत के विकर्ण आपस में काटकर समत्रिबाहु त्रिभुज का निर्माण करते हैं जिसमें त्रिभुज के तीनों कोणों पर पौधों का रोपण किया जाता है।

– इस विधि द्वारा उद्यान का रोपण करने पर बगीचा सघन हो जाता है।

– ऐसी विधि प्राय: शहरों के आस-पास वाले क्षेत्रों में अधिक अपनाई जाती है क्योंकि इन क्षेत्रों में भूमि की कीमत अधिक होती है।

– इस विधि से रोपित उद्यान में कृषण क्रियाएँ करने में मुश्किलें उत्पन्न होती है।

– इस विधि में छह पौधों के मध्य में एक स्थाई सातवाँ पौधा लगाया जाता है। इस कारण इसे सप्तक (Septnal) भी कहा जाता है। (छह पौधे षट्भुजाकर आकृति का निर्माण करते हैं तथा 7वाँ पौधा मध्य में स्थित होता है।)

– इस विधि में सर्वाधिक स्थाई पौधे लगाए जाते हैं क्योंकि षट्भुजाकार के मध्य स्थित 7वाँ पौधा भी स्थाई है, जबकि सर्वाधिक पौधे पंचभुजाकार विधि से लगाए जाते हैं।

 षट्भुजाकार विधि से पौधों की संख्या ज्ञात करना-

 प्रश्न:- एक किसान षट्भुजाकार विधि से बगीचा लगाना चाहता है जिसके पौधे से पौधे की दूरी 10 मीटर है, तो कुल कितने पौधे लगाने होंगे?

 हल:-

5. पंचभुजाकार विधि/क्वीनक्स विधि/पूरक विधि-

– इस विधि का रेखांकन वर्गाकार विधि की तरह ही किया जाता है। लेकिन इसमें चार पौधों के मध्य एक पूरक पौधा और लगाया जाता है  जो कि एक अस्थाई फलन देने वाला पौधा होता है। जब मुख्य बगीचा फलन देने लग जाए व पौधे बड़े हो जाए तब पूरक पौधों को उखाड़ दिया जाता है। इसलिए इसे पूरक विधि के नाम से भी जाना जाता है।

– पूरक पौधा किसान की आमदनी का स्रोत होता तब तक कि मुख्य बगीचे से फलन ना मिले।

– पंचभुजाकार विधि में वर्गाकार विधि की अपेक्षा लगभग दुगुने अधिक पौधे लगाए जाते हैं।

– पूरक पौधों के रूप में पपीता/फालसा/केला/नीबू आदि लगाए जाते हैं।

– इस विधि द्वारा सर्वाधिक पौधे लगाए जाते हैं, जबकि स्थाई पौधे षट्भुजाकार विधि में लगाए जाते हैं।

– पंचभुजाकार विधि से पौधों संख्या ज्ञात करना–

 1. वर्गाकार से पौधों की संख्या ज्ञात करना–

 = 1 है = 10000 वर्ग मीटर (100 मीटर×100 मीटर चौड़ाई)

– अतिरिक्त पौधों की संख्या ज्ञात करना = (ल.में पंक्तियो की संख्या -1)× (चौ. में पंक्तियों की संख्या -1)= (16-1) (16-1)= 15×15=225 पौधे

– वर्गाकार विधि से पौधे की संख्या  + अतिरिक्त पौधों की संख्या

 278+225=503 पौधे।

6. समोच्च विधि/कंटूर विधि-

– यह विधि पहाड़ी क्षेत्रों में एवं ऊँचे-नीचे क्षेत्रों में बगीचा लगाने हेतु काम ली जाती है। इस विधि में कंटूर का निर्माण कर सीढ़ीनुमा आकृति बनाकर पौधे लगाए जाते हैं।

– सघन रोपण (HDP) फलोद्यान में पौधों व पंक्ति के मध्य की दूरी को कम करके प्रति हेक्टेयर अधिक पौधे लगाए जाते हैं। जिससे फलोद्यान अधिक सघन तथा अधिक फलन प्राप्त होता है।

– सघन रोपण में पौधे की आनुवंशिकी को परिवर्तित नहीं किया जाता है। बौनी किस्मों का प्रयोग, प्रूनिंग, पादप नियंत्रकों का प्रयोग करके पादप की वृद्धि को नियंत्रित किया जाता है।

– आम ® आम्रपाली, पपीता ® पूसा नन्हा

 आम ® दशहरी किस्म (5.0×5.0)

7. मिडो/तृण विधि –

– उद्यानिकी का सघन रोपण करने हेतु।

 यह विधि इजरायल से विकसित की गई है।

 इस विधि में L×P को कम किया जाता है।

गड्डों को तैयार करना:-

– फलोद्यान में पौधों को लगाने से पूर्व गड्डों को तैयार किया जाता है।

– गड्डों को पौधे लगाने से एक माह पूर्व ही तैयार कर लिया जाता है।

– वर्षा ऋतु (जुलाई-अगस्त) में पौधे रोपण करने वाले पौधों का गड्डा जून माह में ही तैयार कर लेते हैं।

– बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) के पौधों के लिए गड्डे जनवरी माह में तैयार करते हैं।

– गड्डों को खोदते समय उसकी ऊपरी मृदा (0-15 cm) को अलग कर लेना चाहिए (उर्वर मृदा) तथा इस मृदा में सड़ी हुई FYM (गोबर खाद) वर्मीकम्पोस्ट/कम्पोस्ट को बराबर में मिलाकर गड्डों को भरा जाता है।

– पौधों को दीमक व अन्य कीटों से बचाने के लिए प्रति गड्डा 50-100 ग्राम मिथाइल पैराथियान या क्लोरोपायरीफॉस का प्रयोग करना चाहिए।

गड्डों का आकार:-

–  गड्‌डों को (लं.×चौ.×गहराई) पौधों की आपसी दूरी व पौधों की कैनोपी पर निर्भर करती है। सामान्यत: गड्डों को छोटे/मध्यम/बड़े पौधों के आधार पर तैयार करते हैं।

 1. छोटे आकार के पौधे – पपीता, अँगूर, केला, फालसा = 50×50×50 सेमी.

 2. मध्यम आकार के पौधे – अनार, अमरूद, बेर, बेल, नीबू वर्गीय पौधे = 75×75×75 सेमी

 3. बड़े आकार के पौधे – खजूर, आँवला, लसोड़ा, आम = 1×1×1 मीटर

पौधे को गड्डों में लगाना:-

– पौधों को उनकी प्रकृति के अनुसार, मृदा, जलवायु, व आपसी दूरी को ध्यान में रखकर पौधों को लगाया जाता है।

क्र.सं.फलवृक्षआपसी दूरी (P×P)
1.आम, कटहल10×10 मीटर
2.आँवला, लीची, चीकू9×9 मीटर
3.अमरूद, बेर8×8 मीटर
4.खजूर, नीबू, माल्टा, नाशपती6×6 मीटर
5.केला, पपीता, अँगूर, फालसा3×3 मीटर

पौधों को लगाने का समय:-

– पौधों को सामान्यत: वर्षा ऋतु (जुलाई-अगस्त) व बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) तथा पतझड़ी पौधे (जनवरी-फरवरी) में लगाते हैं।

– ऐसे पौधे जो सदाबहारी होते हैं उन्हें वर्षा ऋतु में अर्थात् जुलाई-अगस्त माह में लगाया जाता है।

– ऐसे पौधे जो पतझड़ी प्रकृति के होते हैं उन्हें जनवरी-फरवरी माह में लगाया जाता है।

फलदार पौधों की देखभाल:-

– सिंचाई – गर्मियों में फलदार पौधों की सिंचाई 7-8 दिनों में की जाती है तथा सर्दियों में 15 दिनों में सिंचाई की जाती है।

 2. फलदार पौधों को समय पर खाद व उर्वरक की उपलब्धता तथा बगीचे में खरपतवार का नियंत्रण रखा जाए।

 3. पौधों को ठण्डी हवाओं व गर्मी से बचाया जाए।

 4. फलदार पौधों को रोग, कीट, व्याधियों से बचाया जाए।

उद्यान के प्रकार/शैलियाँ

अलंकृत बागवानी:-

– उद्यान विज्ञान वह विषय है जिसमें शोभायमान/सौन्दर्य वाले फूलों, वृक्षों, झाड़ियों आदि का अध्ययन किया जाता है।

उद्यान (Garden):-

– बाग/बगीचा/उद्यान वह स्थान होता है, जहाँ कीमती व आनंदमयी/शोभायमान पौधे लगे होते हैं।

– बढ़ते शहरीकरण, घर के आँगन में घटती जगह व बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण विशेष रूप में शहरों में भवन निर्माण, सड़क निर्माण व सार्वजनिक निर्माण के नियोजन में बाग/बगीचा/उद्यान का अपना एक विशेष महत्त्व है।

– भूदृश्य बागवानी स्थापत्य कला का आवश्यक अंग है।

– बाग के रेखांकनकर्ता को एक कलाकार, सौन्दर्यकर्ता, माली, शिल्पकार व वनस्पति का ज्ञान होना चाहिए।

– एक अच्छे बगीचे की यह विशेषता होती है कि उसमें सौन्दर्य एवं उपयोगिता का सम मिश्रण हो। उपयोगिता के आधार पर उद्यान तीन प्रकार के हाते हैं।

 1. निजी उद्यान (Private Garden)

 2. सार्वजनिक उद्यान (Public Garden)

 3. शाला/विद्यालय उद्यान (School Garden)

1.  निजी उद्यान (Private Garden):-

– इन उद्यानों का निर्माण कोठियों, बंगलों व व्यक्ति स्वयं के घर पर इन उद्यानों का निर्माण कर सकता है। उद्यान के सभी आवश्यक तत्त्व इनमें सम्मिलित होते हैं। निजी उद्यानों के रेखांकन (layout) में रेखाओं व कोणों का विशेष ध्यान रखा जाता है।

– इस उद्यानों के रास्तों के दोनों तरफ लगे पौधों व झाड़ियों में एकरूपता होती है।

– निजी उद्यान को बाहरी निवास (Outdoor living room) के नाम से भी जाना जाता है।

– निजी उद्यान भी हमारे घर के विभिन्न भागों (शयन कक्ष, रसोई घर, शौचालय, बैठक कक्ष आदि) की तरह विभिन्न भागों में बँटा होता है-

 1. व्यक्तिगत भाग (Private Area):- मकान के पीछे का भाग

 2. जनहित भाग (Public Area):- मित्र/रिश्तेदार/अन्य

 3. सेवा भाग (Service Area):- आवास/मकान के बगल में।

2.  सार्वजनिक उद्यान (Public Garden):-

– इन उद्यानों का निर्माण सार्वजनिक जगहों पर किया जाता है; जैसे- चिड़ियाघर, संग्रहालय, अस्पताल आदि स्थानों पर, इन उद्योगों का निर्माण व रख-रखाव नगर पालिका, नगर–निगम व विकास प्राधिकरणों द्वारा किया जाता है (सरकारी संस्थानों द्वारा निर्माण) ये उद्यान सभी लोगों/जन समूहों के लिए होते हैं इसलिए इन्हें सार्वजनिक उद्यान कहा जाता है।

सार्वजनिक उद्यानों को स्थापित करने की शैलियाँ:-

 1. औपचारिक उद्यान शैली (Formal style of gardening)

 2. अनौपचारिक उद्यान शैली (Informal style of gardening)

 3. स्वतंत्र शैली (Free style of gardening)

1.  औपचारिक उद्यान शैली:-

– यह उद्यान की कठोर शैली है।

– इस शैली के उद्यानों में ज्यामिति (वर्गाकार, आयताकार, गोलाकार) (Geometrical), सममित (Symmetrical) व एकरूपता (Uniformity) दिखाई देती है जो कि इस उद्यान की मुख्य विशेषता है।

– इस उद्यान में भवन, बगीचे/उद्यान के बीचों-बीच स्थित होता है जो कि सड़क (मार्ग) के द्वारा मुख्य द्वार से जुड़ा होता है। यह सड़क उद्यान को दो बराबर भागों में विभाजित करती है तथा इसमें दोहरी एकरूपता देखने को मिलती है।

– इन उद्यानों के मध्य में खड़ा होकर देखने पर पूरा उद्यान एक समान दिखाई देता है अर्थात् दर्पण का प्रतिबिम्ब नजर आता है।

– इन उद्यानों, स्थान/जगह/भूमि की उपलब्धता का विशेष महत्त्व है।

– इन उद्यानों में क्यारियाँ, फूल वाले पौधे, फव्वारा, चारदीवारी, तोरण आर, हेज (Headge), ऐज (Edge), टोपीयरी देखने को मिलती है।

मुख्य औपचारिक उद्यान:-

 1. मुगल गार्डन – दिल्ली

 2. राष्ट्रपति भवन गार्डन – दिल्ली फ्रेंच, अमेरिकी गार्डन

 3. शालीमार बाग – श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर)

 4 निशात बाग – श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर)

 5. आगरा का ताजमहल

 6. पिंजौर गार्डन – चंडीगढ़

 7. इटालियन, पर्शियन

 8. रामनिवास बाग – जयपुर (राजस्थान)

2.  अनौपचारिक शैली:-

– अनौपचारिक शैली में पौधों को प्राकृतिक रूप से उगाया जाता है।

– इस शैली के उद्यानों का निर्माण करते समय रेखांकन में कोई विशेष सख्त नियम नहीं होते हैं।

– इस शैली के उद्यानों को प्राकृतिक रूप प्रदान करने के लिए इनका निर्माण जल स्रोतों (नदी, झील, तालाब) एवं पहाड़ी के आस-पास ऐसे उद्यानों का निर्माण किया जाता है।

– इन उद्यानों में टेढ़े-मेढ़े रास्ते, कहीं गहरे गड्डे तो कहीं पर पहाड़ी जिस पर पौधे, घास आदि लगी हो, इस शैली के उद्यानों में आगे का आभास पूर्व में नहीं लगाया जा सकता है।

– इस शैली से निर्मित उद्यानों में प्राकृतिकता का अधिक आभास व लगाव होता है।

उदाहरण:-

– जापानी गार्डन, बुद्धा गार्डन (दिल्ली), रॉक गार्डन (चंडीगढ़), बिरला गार्डन (जयपुर)।

– अनौपचारिक शैली से निर्मित उद्यानों में बैठने के लिए कुर्सियों का निर्माण नहीं होता है।

3. स्वतंत्र शैली:-

– ये उद्यान औपचारिक व अनौपचारिक शैली का सम्मिश्रण होते हैं अर्थात् स्थान औपचारिक शैली में व प्राकृतिकता का आभास अनौपचारिक शैली में।

– स्वतंत्र शैली को अपूर्व चित्र शैली व कलात्मक शैली के नाम से भी जाना जाता है।

– वर्तमान समय में शहरों में निर्मित उद्यान स्वतंत्र शैली के होते हैं।

शाला उद्यान (School Garden)

– विद्यालय के आस-पास सुंदर व स्वच्छ वातावरण का निर्माण करने हेतु विद्यालयों में इस प्रकार के उद्यान तैयार किए जाते हैं।

– वनस्पति शास्त्र व उद्यान विज्ञान के वास्तविक ज्ञान अर्जन हेतु इस प्रकार के उद्यानों की आवश्यकता होती है।

– ये उद्यान अधिकांशत: औपचारिक शैली में निर्मित होते हैं।

मुगल उद्यान/गार्डन:-

– भारत में मुगल शासक बाबर के शासन काल में इस शैली/उद्यानों का निर्माण शुरू हो गया था।

– ये उद्यान औपचारिक शैली मे निर्मित होते थे।

मुगल शैली/उद्यान के प्रमुख अभिलक्षण:-

1. स्थिति एवं प्रारूप:- मुगल उद्यानों का निर्माण प्राकृतिक जल स्रोतों के (नदी, झील, तालाब) आस-पास निर्मित होते थे।

– ये उद्यान आयताकार एवं वर्गाकार रूप में निर्मित होते हैं।

चारदीवारी/दरवाजा:-

– सुरक्षा दृष्टिकोण से उद्यान/बाग के चारों तरफ चारदीवारी एवं एक मुख्य दरवाजा होता था।

चबूतरा:-

– मुगलों को ऊँचे स्थान से विशेष प्रकार का लगाव रहता था इसलिए इन उद्यानों में चबूतरे का निर्माण मिलता है।

– मुगलों की यह मान्यता थी कि स्वर्ग आठ प्रभागों में विभाजित है इसलिए मुगल उद्यान आठ भागों में विभाजित मिलते हैं एवं गार्डन में सात चबूतरों का निर्माण भी मिलता है जो कि सात ग्रहों को इंगित करते हैं।

बारादरी:-

– यह एक शिल्पकारी घटक है।

– जिसमें छत व फर्श (चबूतरा) पक्का होता है। जिसमें चारों तरफ बारह दरवाजे लगे होते हैं।

– जल स्रोत, बहता जल, लालटेन, फव्वारा आदि।

जापानी गार्डन:-

– ये अनौपचारिक शैली के उद्यान होते हैं।

– जापानी गार्डन प्राकृतिकता का अधिक आभास कराते हैं।

– ये उद्यान हमेशा अपरिवर्तनियता रखते हैं अर्थात् हमेशा ही एक जैसे होते हैं, इन उद्यानों में हरिता हमेशा बनी रहती है।

हरबेशियम बोर्डर (पुष्पीय परिबंध):-

– सड़क या उद्यान के मुख्य मार्ग के दोनों तरफ एकवर्षीय पुष्प वाले पौधों को छोटे से बड़े क्रम में लगाना।

टोपीयरी (Topiary):-

– उद्यान/बाग में पौधों को काँट-छाँट कर एक विशेष प्रकार की आकृति का रूप देना, जैसे- आलू/जिराफ/घोड़ा/खरगोश आदि।

बोनसाई:-

– यह एक जापानी कला है, जिसका जन्म चीन में माना जाता है।

– भारत में इसका श्रेय डॉ. अग्निहोत्री को जाता है।

– बोनसाई का तात्पर्य पौधे की जड़ व प्ररोह वृद्धि को काँट-छाँट कर उसकी वृद्धि को नियंत्रित किया जाता है जिसमें की पौधा बौना रहता है।

हरियाली (Lawn):-

– समतल क्षेत्र में हरी घास के रूप में फर्श का निर्माण कर कर्तन कार्य किया जाता है।

– हरियाली (Lawn) को उद्यान का हृदय कहा जाता है।

हैज (Hedge):-

– उद्यान के किनारों पर स्थित नियंत्रित पौधे।

ऐवेन्यू:-

– मुख्य मार्ग/सड़कों के दोनों किनारों पर क्रमिक रूप से लगे पौधों को ऐवेन्यू कहा जाता है।

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