जंतुओं में पोषण
पोषण–
जीवों में पोषक पदार्थों को प्राप्त करना ही पोषण कहलाता है।
पोषण जीवों को ऊर्जा प्रदान करने, शारीरिक वृद्धि एवं विकास में, रोगों से सुरक्षा में, शारीरिक मरम्मत में तथा उपापचयी क्रियाओं में सहायक है।
पोषण की विधि के आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं-
(1) स्वपोषी
(2) विषमपोषी
स्वपोषी:-
– ऐसे जीव, जो अपना भोजन स्वयं ही संश्लेषित करते हैं,जिसे स्वपोषी कहते है।
– हरे पेड-पौधे, प्रकाश संश्लेषी जीवाणु, रसायन संश्लेषी जीवाणु, स्वपोषी जीव है।
विषमपोषी:-
ऐसे जीव जो अपना भोजन किसी अन्य जीव से प्राप्त करते है।
जन्तु वर्ग के सदस्य, कवक, रोगजनक बैक्टीरिया विषमपोषी जीव है।
विषमपोषी तीन प्रकार के होते हैं-
(i) प्राणिसमभोजी
(ii) मृतोपजीवी
(iii) परजीवी
प्राणी समभोजी (Holozoic)-
ये जीव भोजन को अपने शरीर के अन्दर ग्रहण कर उसका अन्त:कोशिकीय पाचन करते हैं। जैसे- अधिकांश जन्तु
मृतोपजीवी (Saprophytes)-
– ये जीव मृत कार्बनिक पदार्थों से पोषण प्राप्त करते है तथा इनमें बाह्य कोशिकी पाचन पाया जाता है।
– कवक तथा बैक्टीरिया मृतोपजीवी जीव है।
परजीवी (Parasites)-
– ये जीव किसी दूसरे शरीर पर या शरीर में रहकर अपना पोषण प्राप्त करते है।
– जोंक, जूँ, प्लाज्मोडियम आदि परजीवी है।
कार्यों के आधार पर पोषक पदार्थ के प्रकार है–
(1) ऊर्जा प्रदान करने वाले-कार्बोहाइड्रेट, वसा।
(2) शारीरिक वृद्धि एवं विकास में सहायक – प्रोटीन।
(3) उपापचयी क्रियाओं में सहायक- विटामिन, खनिज लवण, जल, रेशे।
(4) वंशागति में सहायक- DNA, RNA
कार्बोहाइड्रेट्स
– ऊर्जा का मुख्य स्रोत
– प्रथम श्वनी पदार्थ
R.Q.=1[R.Q.=CO2O2]
– C, H, O के यौगिक जिनमें H तथा O का अनुपात 2 : 1 होता है अत: इन्हें ‘कार्बन के हाइड्रेट्स’ कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स का सामान्य सूत्र Cx (H2O) y होता है।
– सरल कार्बोहाइड्रेट्स जो जल में घुलनशील व स्वाद में मीठे होते हैं “शर्करा” कहलाते हैं।
– कार्बोहाइड्रेट्स शरीर में ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। एक सामान्य मनुष्य में 55-65% ऊर्जा भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्स से प्राप्त होती है।
कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण :
सैकेराइड्स की संख्या तथा जलअपघटन के आधार पर कार्बोहाइड्रेट्स को मोनो, ओलिगो व पॉलिसैकेराइड्स में वर्गीकृत किया जाता है।
A. मोनो सैकेराइड्स :-
– यह सरलतम कार्बोहाइड्रेट्स हैं जिनका जल अपघटन नहीं होता है।
– इनके सामान्य सूत्र में x = y होता है अर्थात् कार्बन व ऑक्सीजन परमाणुओं की संख्या बराबर होती है।
– कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण में प्रथम पद फॉस्फोरिलीकरण होता है।
– DHAP के अलावा सभी मोनोसैकेराइड्स d व l रूप में होते हैं।

Dihydroxy acetone
– इनकी संरचना वलय या सीधी शृंखला के रूप में होती है।
– एक छ: सदस्यीय वलय “पाईरेनोज” तथा एक पाँच सदस्यीय वलय फ्यूरेनोज कहलाती है।
– पाइरेनोज व फ्यूरेनोज नाम “Haworth” ने दिए हैं।
– Anomer – ग्लूकोज की Cyclic Structure में C1 कार्बन परमाणु पर H व OH समूह की भिन्नता के कारण Anomer बनते हैं।




फ्रक्टोज का हावर्थसूत्र
Epimer – समावयव जिनका निर्माण C2, C3 तथा C4 कार्बन परमाणु पर H- व OH समूह की भिन्नता के कारण होता है Epimer कहलाते हैं।
ग्लूकोज के Epimer –
Mannose (C2 पर भिन्नता के कारण)
Galactose (C4 पर भिन्नता के कारण)

गैलेक्टोज मैनोज
कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर मोनोसैकेराइड निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) Trioses – C3H6O3 उदाहरण:- ग्लिसरेल्डिहाइड व डाई-हाइड्रॉक्सी एसीटोन। PGAL तथा DHAP सभी कार्बोहाइड्रेट्स के पूर्व पदार्थ माने जाते हैं।
(ii) Tetroses – C4H8O4 उदाहरण:- इरिथ्रोज व इरिथ्रुलोज
(iii) Pentoses – C5H10O5 उदाहरण:- राइबोज, राइबुलोज, जाइलुलोज, अरेबीनोज, व डीऑक्सीराइबोज (C5H10O4)
(iv) Hexoses – C6H12O6 e.g. उदाहरण:- ग्लूकोज, फ्रक्टोज, गेलेक्टोज, मेनोज, रेहमनोज (C6H12O5)
(v) Heptose – C7 H14 O7 Ex सीडोहेप्टुलोज
– रासायनिक रूप से सभी कार्बोहाइड्रेट्स पॉलिहाइड्रोक्सी एल्डिहाइड या कीटोन होते हैं।
– मोनोसैकेराइड्स जिनमें स्वतंत्र ऐल्डिहाइड समूह होता है एल्डोज कहलाते हैं। उदाहरण:- PGAL, इरिथ्रोज, राईबोज, अरेबीनोज, डीऑक्सीराइबोज, ग्लूकोज, गेलेक्टोज, मेनोज
– मोनोसैकेराइड्स जिनमें स्वतंत्र कीटोन समूह होता है, कीटोज कहलाते हैं।
उदाहरण:- DHAP, इरिथ्रुलोज, राइबुलोज, जाइलुलोज, फ्रक्टोज, सीडोहेप्टुलोज
– सभी मोनोसैकेराइड्स अपचायक शर्करा (Reducing sugars) होते हैं क्योंकि इनके स्वतंत्र – CHO या C = O समूह Cu++ को cu+ में अपचयित करते हैं। मोनोसैकेराइडस का यह गुण Benedict’s test या Fehling test का आधार है। उपर्युक्त परीक्षणों द्वारा मूत्र में ग्लूकोज की उपस्थिति का पता लगाते हैं।
– RNA के अतिरिक्त राइबोज शर्करा ATP, NAD, NADP तथा FAD में भी पाई जाती है।
– डीऑक्सीराइबोज में द्वितीय कार्बन परमाणु पर ऑक्सीजन अनुपस्थित होती है।
– अरेबिनोज शर्करा “Gum arabic” में पाई जाती है।
– ग्लूकोज dextrorotatory होता है। अत: इसे “dextrose” कहते हैं।
– ग्लूकोज शरीर में एक मुख्य श्वसन पदार्थ है। दूसरी प्रकार के हेक्सोज भी यकृत में जाकर ग्लूकोज में बदल जाते हैं।
– फ्रक्टोज Laevorotatory होता है। अत: इसे “Laevulose” कहते हैं।
– शहद व मीठे फलों में फ्रक्टोज पाया जाता है, अत: इसे “Fruit sugar” कहते हैं।
– फ्रक्टोज सबसे मीठी शर्करा है।
– गेलेक्टोज स्वतंत्र रूप में नहीं पाया जाता है। स्तनधारियों में गेलेक्टोज दुग्ध शर्करा लेक्टोज के एक भाग के रूप में पाया जाता है। गेलेक्टोज अनेक अन्य पदार्थों के घटक के रूप में भी पाया जाता है। जैसे:- ग्लायकोलिपिड (सेरेब्रोसाईड) पेक्टिन, हेमीसेल्यूलोज़ आदि।
– मेनोज स्वतंत्र रूप में नहीं पाया जाता है। मेनोज अण्डे के एल्बुमिन में तथा काष्ठ में हेमीसेल्यूलोज़ के घटक के रूप में पाया जाता है।
– ग्लूकोज को Blood sugar भी कहते हैं।
– सर्वाधिक मीठा रासायनिक पदार्थ Thaumatine है, जो एक बैक्टीरिया Thaumatococcus danielli से प्राप्त होता है।
– गैलेक्टोज को Brain sugar भी कहते हैं।
B. Oligo – Saccharides
इनके जल अपघटन से 2 से 10 तक मोनोसैकेराइड इकाइयाँ (monomers) प्राप्त होती हैं। ओलिगो सैकेराइड्स में मोनोसैकेराइड इकाई आपस में ग्लायकोसाइडिक बन्ध से जुड़ी होती हैं। एक मोनोसैकेराइड का ऐल्डिहाइड या कीटोन समूह दूसरे मोनोसैकेराइड के ऐल्कोहोलिक समूह से क्रिया करके ग्लायकोसाइडिक बन्ध बनाता है। प्रत्येक बन्ध निर्माण में एक जल का अणु निष्कासित हो जाता है (dehydration synthesis)। ग्लायकोसाइडिक बन्ध की दिशा 1’→4″ होती है। जब दूसरी मोनोसैकेराइड इकाई फ्रक्टोज होती है तो बन्ध की दिशा 1’→2″ होती है (Noneducing sugars) जैसे:- सुक्रोज
ओलिगोसैकेराइड के प्रकार :-
(i) डाईसैकेराइड्स – दो मोनोसैकेराइड इकाइयों के बने होते हैं।
उदाहरण – माल्टोज, सुक्रोज, लेक्टोज, ट्रेलेहोज

माल्टोज का हावर्थ सूत्र

लेक्टोज का हावर्थ सूत्र

सुक्रोज का हावर्थ सूत्र
– सभी मोनोसैकेराइड जो जल में घुलनशील व स्वाद में मीठे होते हैं “Sugar” कहलाते हैं।
– माल्टोज सामान्यतया “माल्ट शर्करा” कहलाती है। यह स्टार्च के पाचन में एक मध्यवर्ती पदार्थ है। माल्टोज में 𝛼- D glucose के मध्य 1’—4” ग्लायकाइडिक लिंकेज होती है।
– लेक्टोज या Milk sugar में Glucose तथा Galactose के मध्य 𝛽-1’-4” लिंकेज पाई जाती है।
– लेक्टोज निम्नतम मीठी शर्करा होती है।
– मानव दूध में लेक्टोज की अधिकतम मात्रा 7% है।
– पादपों में शर्करा का परिवहन सुक्रोज के रूप में होता है।
– सुक्रोज को “प्रतीक शर्करा” भी कहते हैं।
– सुक्रोज “गन्ने की शर्करा” या “रसोईघर की शक्कर” या “व्यापारिक शर्करा” कहलाती है।
सुक्रोज 𝛼- D glucose तथा 𝛽– D fructose का बना होता है।
– Trehalose sugar कीटों के हीमोलिम्फ में पाई जाती है। इसमें दो anomeric carbon (𝛼and𝛽gulcose) के मध्य ग्लायकोसाइडिक लिंकेज पाई जाती है।
C. Polysaccharides:-
– पॉलिसैकेराइड्स अनेक मोनोसैकेराइड इकाइयों के बने होते हैं।
– इनके नाम में ‘-an’ suffix जोड़ा जाता है तथा इनको glycans कहते हैं।
– पेन्टोज पॉलिसैकेराइड्स पेन्टोसेन कहलाते हैं। उदाहरण-araban (form L-arabinose), xylan (from D-xylose)
– यह सभी कोशिका भित्ति में पाए जाते हैं।
– हेक्सोज पॉलिसैकेराइड “Hexans” कहलाते हैं जैसे cellulose, starch, mannan (from mannose)
– पॉलिसैकेराइड जल में अघुलनशील होते हैं तथा स्वाद में मीठे नहीं होते हैं।
– कार्य के आधार पर पॉलिसैकेराइड पोषक या संरचनात्मक होते हैं।
संरचना के आधार पर पॉलिसैकेराइड दो प्रकार के होते हैं:-
(I) होमोपॉलिसैकेराइड जो समान इकाइयों के बने होते हैं–
Cellulose – यह 𝛼-glucose इकाइयों (6000-10,000) का एक रेखीय बहुलक है। इसमें 𝛽1’ – 4” लिंकेज पाई जाती है। सेल्यूलोज के आंशिक पाचन से Cellobiose unit (disaccharide) प्राप्त होती है।
– सेल्यूलोज पादप कोशिका भित्ति का मुख्य घटक है। काष्ठ में 50% तथा कपास में 90% सेल्यूलोज उपस्थित होता है।
– पृथ्वी पर सर्वाधिक पाया जाने वाला कार्बनिक पदार्थ।
– यूरोकोर्डेट जन्तुओं में एक सेल्यूलोज समान पदार्थ पाया जाता है जिसे “Tunicine” कहते हैं। इसे “Animal cellulose” भी कहते हैं।
– इसका उपयोग कृत्रिम रेशम Rayon Fibre बनाने में भी करते हैं।
– स्टार्च – यह पादपों का मुख्य संचित भोजन है। स्टार्च 𝛼– D – glucose इकाइयों का बहुलक है। स्टार्च में दो प्रकार की शृंखलाएँ पाई जाती हैं।
(i) Amylose- 250-300 ग्लूकोज इकाइयाँ 𝛼1’-4” लिंकेज द्वारा एक अशाखित शृंखला में जुड़ी होती हैं।
(ii) Amylopectin- यह एक शाखित शृंखला अणु होता है जिसमें लगभग 30 ग्लूकोज इकाइयाँ 𝛼– 1’-4” तथा 1’-6” लिंकेज द्वारा जुड़ी होती है।
– Amylose – आयोडीन के साथ नीला रंग देता है।
– Amylopectin आयोडीन के साथ लाल रंग देता है।
– आलू के स्टार्च में 20% amylose तथा 80% amylopectin होता है।
– Glycogen – यह जन्तुओं में कार्बोहाइड्रेट का संचित रूप है। ग्लाइकोजन का संग्रह यकृत व पेशियों में होता है। ग्लाइकोजन जन्तु स्टार्च कहलाता है। ग्लाइकोजन 𝛼-D-glucose इकाइयों का एक अत्यधिक शाखित बहुलक है। ग्लाइकोजन की लम्बी शृंखला में 1’-4” लिंकेज तथा शाखन बिन्दु पर 1’-6” लिंकेज पाई जाती है। ग्लाइकोजन आयोडीन के साथ लाल रंग देता है।
– ग्लाइकोजन कवकों का भी संचित भोजन है।
– काइटिन – यह N-acetyl D-glucosamine units एक रेखीय बहुलक है जिसमें 𝛽-1’-4” लिंकेज पाई जाती है।
– N-acetyl D-glucosamine, 𝛽D-glucose का एक aminoacyl (-NH-CO-CH3) व्युत्पन्न है।
काइटिन आर्थोपोडा जन्तुओं के बाह्य कंकाल व कवक कोशिका भित्ति में पाया जाता है।
– पृथ्वी पर दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला कार्बनिक पदार्थ।
– इसे “Fungal cellulose” भी कहते हैं।
– इनुलिन – यह फ्रक्टोज इकाइयों का एक रेखीय बहुलक है। इसमें 𝛽-1’-2” लिंकेज पाई जाती है। इनुलिन संचित भोजन के रूप में डहेलिया व आर्टीचोक की जड़ों में पाया जाता है। इनुलिन जल में घुलनशील पॉलिसैकेराइड है जिसका उपयोग glomerular filteration rate ज्ञात करने में किया जाता है।
– सबसे छोटा संग्रही पॉलीसैकेराइड
– Dextrin – यह ग्लाइकोजन व स्टार्च के पाचन में एक मध्यवर्ती पदार्थ है। डेक्सट्रिन के पाचन से ग्लूकोस व माल्टोज प्राप्त होते हैं। डेक्सट्रिन यीस्ट व जीवाणुओं में संचित भोजन के रूप में भी पाया जाता है।
(II) Heteropolysaccharide:-
यह विभिन्न प्रकार की मोनोसैकेराइड इकाइयों के बने होते हैं।
– Hyaluronic acid – यह स्नेहक के रूप में कांचाभ तरल, नाभि रज्जू (umbilical cord), संधियों तथा योजी ऊतक में पाया जाता है। यह जन्तु कोशिका के आवरण (cell coat) में एक बन्धक पदार्थ के रूप में पाया जाता है। (जन्तु सीमेंट)
– Hyaluronic acid में एकान्तरित रूप से व्यवस्थित D-glucuronic acid तथा N-acetyl
D-glucosamine इकाइयाँ पाई जाती हैं। विभिन्न मोनोसैकेराइड के मध्य 𝛽-1’-3” बन्ध तथा इनसे बने डाईसैकेराइड के मध्य 𝛽-1’-4” बन्ध पाए जाते हैं।
– Chondriotin – D-glucuronic acid + N-acetyl-galactosamine इकाइयाँ कोन्ड्रियोटिन योजी ऊतक में पाई जाती है कोन्ड्रियोटिन का सल्फेट एस्टर उपास्थि, टेन्डन तथा अस्थियों का मुख्य संरचनात्मक घटक है।
– Heparin – यह रक्त में उपस्थित एक प्रतिस्कंदक पदार्थ है।
D-glucuronic acid + N-sulphate glucosamine.
– Pectin – Methylated galacturonic acid + galactose + arabinose
– पेक्टिन कोशिका भित्ति में पाया जाता है जहाँ यह सेल्यूलोज तन्तुओं को आपस में बाँटता है।
– पेक्टिन के लवण Ca तथा Mg पेक्टेट पादपों में मध्य पटलिका बनाते हैं। (पादप सीमेंट)
– Hemicellulose – Mannose + Galactose + Arabinose + Xylulose.
– Store material – Phytalophus (Ivory palm). Hemicellulose जो इस पादप से प्राप्त होता है उसका उपयोग ‘billiard ball’ and ‘artificial ivory’ बनाने में किया जाता है।
Mucopolysaccharides
लसलसे पॉलिसैकेराइड जिनमें जल व प्रोटीन को बाँधने की क्षमता होती है म्यूको पॉलिसैकेराइड कहलाते हैं।
Special Points:
1. Peptidoglycan – जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में उपस्थित होता है।
– Composed of N – Acetyl Glucosamine + N – acetyl muramic acid + peptide chain of 4-5 amino acids
2. Agar-Agar – यह Mucopolysaccharide कुछ लाल शैवाल – Gracilaria, Gelidium, Chondrus से प्राप्त किया जाता है। यह D-galactose और L-galactose unit से बना होता है और प्रत्येक 10th के बाद एक sulphate group उपस्थित होता है इसका उपयोग Culture medium बनाने में किया जाता है।
Lipids
– वसा व उसके व्युत्पन्न Lipid कहलाते हैं।
– Lipid शब्द Bloor ने दिया था।
– यह भी C, H, O के यौगिक होते हैं लेकिन इनमें हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का अनुपात 2 : 1 नहीं होता है। इसकी संरचना में ऑक्सीजन बहुत कम होती है।
– लिपिड्स जल में अघुलनशील होते हैं लेकिन कार्बनिक विलायकों जैसे एसीटोन, क्लोरोफॉर्म, बेन्जीन तथा गर्म एल्कोहल में घुल जाते हैं।
– लिपिड्स बहुलक नहीं बनाते हैं।
– Lipid कार्बोहाइड्रेट की तुलना में दुगुने से भी ज्यादा ऊर्जा प्रदान करते हैं।
– जन्तुओं में Lipid subcutaneous layer में उपस्थित होता है और संगृहीत भोजन व धक्का प्रतिरोधी (Shock absorber) का काम करता है।
– जन्तुओं में सर्वाधिक भोजन वसा के रूप में संगृहीत होता है।
– Lipid के ऑक्सीकरण से बहुत ज्यादा जल मुक्त होता है।
– लिपिड को सामान्यत: वृहदाणु नहीं माना जाता है।
(A) सरल लिपिड्स (Simple lipids of neutral fats)
यह लम्बी शृंखला वाले वसीय अम्ल एल्कोहल के एस्टर होते हैं। अधिकांश सरल लिपिड में एल्कोहल एक ट्राई-हाईड्रॉक्सी शर्करा एल्कोहल – ग्लिसरॉल – होता है। तीन अणु वसीय अम्ल एक अणु ग्लिसरॉल से बन्ध बनाते हैं। बन्ध “एस्टर बन्ध” कहलाता है तथा ऐसे लिपिड “Triglycerides” कहलाते हैं। इनके निर्माण में तीन जल के अणु निष्कासित हो जाते हैं। (dehydration synthesis)। simple lipids के निर्माण में समान या विभिन्न प्रकार के वसीय अम्ल भाग लेते हैं। लिपिड्स में वसीय अम्ल दो प्रकार के होते हैं:-
(i) संतृप्त वसीय अम्ल (Saturated Fatty Acids)
हाइड्रोकार्बन शृंखला के सभी कार्बन परमाणु हाइड्रोजन परमाणुओं से संतृप्त होते हैं।
Palmitic acid – CH3 (CH2)14 – COOH
Stearic acid – CH3 (CH2) 15 – COOH
(ii) असंतृप्त वसीय अम्ल (Unsaturated Fatty Acids)
कुछ कार्बन पूरी तरह से हाइड्रोजन द्वारा संतृप्त नहीं होते हैं।
Oleic acid – CH3 (CH2)7CH = CH (CH2)7-COOH
Linoleic acid – CH3(CH2)4– (CH = CH – CH2)6-COOH
Linolenic acid – CH3(CH2) – (CH=CH-CH2)3-(CH2)6-COOH
Polyunsaturates fatty acid- वसीय अम्ल जिनकी संरचना में एक से अधिक द्विबंध होते हैं।
Linolenic acid, CH3(CH2) – (CH=CH-CH2)3-(CH2)6-COOH
असंतृप्त वसीय अम्ल आवश्यक वसीय अम्ल (essential fatty acids) कहलाते हैं, क्योंकि इसका निर्माण जन्तुओं के शरीर में होता है।
– सरल लिपिड जिनकी संरचना में संतृप्त वसीय अम्ल होते हैं सामान्य ताप पर ठोस होते हैं। उदाहरण- Fats
– सरल लिपिड जिनकी संरचना में असंतृप्त वसीय अम्ल होते हैं सामान्य ताप पर तरल होते हैं। e.g. Oils
– संतृप्त वसीय अम्ल कम क्रियाशील होने के कारण शरीर में जमा होने की प्रवृत्ति दर्शाते है तथा मुटापा (obesity) पैदा करते हैं।
– असंतृप्त वसीय अम्ल अधिक क्रियाशील होने के कारण शरीर में जमा होने की प्रवृत्ति दर्शाते हैं तथा मुटापा (obesity) पैदा करते हैं।
– असंतृप्त वसीय अम्ल अधिक क्रियाशील होने के कारण उपापचय में काम आ जाते हैं तथा ऊर्जा प्रदान करते हैं।
– जो व्यक्ति उच्च रक्त कॉलेस्ट्रॉल तथा कार्डियोवेसकूलर रोग से ग्रस्त होते हैं डॉक्टर उनको भोजन में ऐसे तेल खाने की सलाह देता है जिसमें बहु असंतृप्त वसीय अम्ल होते हैं क्योंकि भोजन में वसा की मात्रा बढ़ाए बगैर बहु असंतृप्त वसीय अम्ल की मात्रा बढ़ाने से रक्त में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा नियत रहती है।
मोम (waxes)- यह भी सरल लिपिड होते हैं जिनमें एक अणु वसीय अम्ल एक लम्बी शृंखला के मोनोहाइड्रॉक्सी एल्कोहल से जुड़ा होता है। अत: मोम “Monoglycerides” होते हैं।
Triglycerides की तुलना में मोम जल अपघटन के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं। मोम की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। मोम बालों, त्वचा, तना, पत्तियाँ व फलों के ऊपर जल प्रतिरोधी आवरण बनाते हैं। मोम के उदाहरण-
मधुमक्खी मोम (hexacosyl palmitate)
Carnauba (Myricyl cerotate) यह तना, पत्तियों व फलों के ऊपर पाया जाता है।
स्पर्मेसिटी (Spermaceti) (Cetyl palmitate) – यह डॉल्फिन तथा व्हेल की करोटि में पाया जाता है।
सिरुमिन एवं कर्ण मोम (Cerumen or ear wax) – बाह्यकर्ण गुहा में पाया जाता है।
लिनोलिन या कॉलेस्ट्रॉल एस्टर – यह रक्त, सीबम तथा जनन नलिकाओं में एक स्नेहक के रूप में पाया जाता है। यह भेड़ के ऊन से भी प्राप्त किया जाता है।
(B) संयुग्मित या संयुक्त लिपिड:-
(1) Phospholipids or phosphatide phospholipins:-
– दो अणु वसीय अम्ल + ग्लिसरॉल + H3PO4 + नाइट्रोजनी यौगिक
– फोस्फोलिपिड जीवद्रव्य में सबसे अधिक पाए जाने वाले लिपिड हैं। फॉस्फोलिपिड्स में एक सिरा जलरागी (ध्रुवीय) (H3PO4 and nitrogenous compound) तथा दूसरा सिरा जल विरागी अध्रुवीय (fetty acid) होता है। ऐसे अणु amphipathic कहलाते हैं। इसी लक्षण के कारण फॉस्फोलिपिड्स कोशिका झिल्ली में द्विआण्विक परत बनाते हैं।
कुछ जैविक महत्त्व के फॉस्फोलिपिड निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
(a) लेसीथिन (Lecthin) or phosphatidyl choline – लेसीथिन में नाइट्रोजनी पदार्थ कोलीन होता है। लेसीथिन अण्डों के योक, तेलीय बीज तथा रक्त में पाई जाती है। रक्त में लेसीथिन एक वाहक अणु का कार्य करती है। यह अन्य लिपिड्स के स्थानान्तरण में सहायता करती है।
(b) सिफेलीन (Cephalin) – लेसीथिन के समान होती है लेकिन इसमें कोलीन के स्थान पर इथेनोलेमीन होता है। Cephslin तंत्रिका ऊतक, योक तथा रुधिर प्लेटलेट्स में पाई जाती है।
(c) स्फींगोलिपिड (Sphingoolipids) or sphingomlins – लेसीथिन के समान लेकिन इसमें ग्लिसरॉल के स्थान पर एक अमीनो एल्कोहॉल Sphingosine होता है।
Sphingolipids तंत्रिकाओं के मायलिन आवरण में पाए जाते हैं।
फॉस्फोलिपिड्स के अन्य उदाहरण:-
फॉस्फेटिडिल सेरिन (Phosphatidyl serine), फॉस्फेटिडिल इनोसिटोल (phosphatidyl inositol), प्लाज्मोजन (plasmologens)
(2) 2 अणु वसीय अम्ल + स्फींगोसीन + गेलेक्टोज
उदाहरण- Cerebrosides मस्तिष्क के श्वेत द्रव्य में पाया जाता है।
गेंगलियोसाइड (Gengliosides) – यह तंत्रिका गुच्छक व प्लीहा में पाए जाते हैं। इनकी संरचना में N-acetyl neurominic acid तथा glucose भी पाए जाते हैं।
(3) DERIVED LIPIDS (व्युत्पन्न लिपिड्स) – लिपिड्स जो सरल या संयुक्त लिपिड्स से उत्पन्न होते हैं। व्युत्पन्न लिपिड संरचना में जटिल होते हैं। यह जल में अघुलनशील तथा कार्बनिक विलायकों में घुलनशील होते हैं-
(1) Steroids – स्टेरॉइड्स एक चार वलय संरचना दर्शाते हैं जिसे “साइक्लोपेन्टेनोपरहाइड्रो फेनेन्थ्रीन न्यूक्लियस” –(cyclopentanoperhydro phenanthrene nucleus) कहते हैं।
क्रियात्मक समूह के आधार पर स्टेरॉइड्स दो प्रकार के होते हैं:-
(a) स्टेरॉल्स (Sterols) – ऐल्कोहोलिक स्टेरॉइड्स। उदाहरण-
कॉलेस्ट्रॉल – कॉलेस्ट्रॉल अधिकता से मस्तिष्क, तंत्रिका ऊतक, एड्रीनल ग्रन्थि तथा त्वचा में पाया जाता है। कॉलेस्ट्रॉल एक पैतृक स्टेरॉइड है। अन्य जैविक रूप से सक्रिय स्टेरॉइड्स कॉलेस्ट्रॉल से उत्पन्न होते हैं।
– 7-डिहाईड्रो कॉलेस्ट्रॉल जो त्वचा में पाया जाता है। एक प्रोविटामिन है। पराबैंगनी प्रकाश के सम्पर्क में आने पर यह विटामिन D (cholecalciferol) में बदल जाता है।
– कॉलेस्ट्रॉल को “जीवविज्ञान का सर्वाधिक सुसज्जित सूक्ष्म अणु” कहा जाता है।
– इरगोस्टेरोल – यह तेलीय बीजों, इरगट कवक तथा यीस्ट में पाया जाता है। इरगोस्टोरोल विटामिन D के एक अन्य रूप “Ergocalciferol” का पूर्व पदार्थ है।
-Coprosterol मल में पाया जाने वाला स्टेरॉल है। यह कोलन जीवाणुओं द्वारा कॉलेस्ट्रॉल के अपघटन से बनता है।
-Bile acids – पित्त रस में अनेक प्रकार के स्टेरॉइड अम्ल पाए जाते हैं। जैसे:- कोलिक अम्ल, लिथोकोलिक अम्ल। यह वसा के पायसीकरण में सहायता करते हैं।
(b) Sterones – कीटोनिक स्टेरॉइड्स उदाहरण- लिंग हार्मोन्स, एड्रीनोकोर्टिकोइड्स, कीटों का एकडायसन हार्मोन, डायोसजेनिन जिसे याम पादप (Discorea) से प्राप्त किया गया है।
Diosgenin गर्भ निरोधक गोलियाँ बनाने में काम आता है।
(2) Chromolipids = carotenoids, Vitamin A, E, K, प्राकृतिक रबर (Poly terpene)

(Isoprene)
– क्रोमोलिपिड्स बारम्बार ओइसोप्रीन इकाइयों के बने होते हैं।
– क्रोमोलिपिड्स को “टरपीन” भी कहते हैं।
Special Points:
प्रोस्टाग्लेंडिंस (Prostaglandins) – यह व्युत्पन्न लिपिड होते हैं। यह PUFA के व्युत्पन्न होते हैं। यह पेशीय संकुचन, रक्त का थक्का निर्माण, गर्भाशय व फेलोपियन नलिका के संकुचन में सहायक है।
प्रोटीन
प्रोटीन नाम की उत्पत्ति यूनानी भाषा के एक शब्द से हुई है जिसका अर्थ है-
“holding first place” (Berzelium and Mulder)
– प्रोटीन में आवश्यक तत्त्व C, H, O, N
– अधिकांश प्रोटीन में सल्फर भी पाया जाता है। कुछ प्रोटीन में आयोडीन, आयरन व फॉस्फोरस भी उपस्थित होता है।
– जल के बाद प्रोटीन जीवद्रव्य में सबसे अधिक पाए जाने वाले पदार्थ हैं (7-14%)
– प्रोटीन अमीनो अम्लों के बहुलक होते हैं।
– लगभग 300 प्रकार के अमीनो अम्ल पाए जाते हैं जिनमे से केवल 20 प्रकार के अमीनो अम्ल प्रोटीन निर्माण में काम आते हैं।

– प्रत्येक अमीनो अम्ल एक एम्फोटेरिक यौगिक होता है क्योंकि इसमें एक अम्लीय समूह –COOH तथा एक क्षारीय समूह – NH2 होता है।
– प्रोटोप्लाज्म में स्वतंत्र अमीनो अम्ल आयन्स के रूप में पाए जाते हैं (at isoelectric point)

Isoelectric point – pH का वह बिन्दु है जिस पर अमीनो अम्ल वैद्युत क्षेत्र में गति नहीं करते हैं।
20 अमीनो अम्लों में से 10 अमीनो अम्ल जन्तुओं के शरीर में सश्लेषित नहीं होते हैं। अत: इनका भोजन में होना आवश्यक है। इनको आवश्यक अमीनो अम्ल (essential amino acids) कहते हैं।
Eg. थ्रियोनीन (Threonine), वेलीन (Valine), ल्यूसीन (Leucine), आइसोल्यूसीन (Isoleucine), लाइसीन (Lysine), मेथियोनलाइन (Methionline), फेनिलएलनिन (Phenylalanine), ट्रिप्टोफेन (Tryptophan), आर्जिनीन (Ariginine) and हिस्टीडिन (Histidine). Arginine तथा Histidine अर्द्ध-आवश्यक (semiessential) होते हैं।
शेष 10 अमीनो अम्ल non essential होते हैं।
eg. ग्लाइसीन (Glycine), एलेनीन (Alanine), सेरीन (Serine), सिस्टीन (Cystein), एस्पार्टिक अम्ल (Aspartic acid), ग्लूटेमिक अम्ल (Glutamic acid), एस्पार्जिन (Asparagine), ग्लूटेमिन (Gultamine), टाइरोसीन (Tyrosine), प्रोलीन (Proline).
Classification of Amino Acids:-
(A) अमीनो अम्लों का उनके R – समूहों के आधार पर वर्गीकरण :
(1) अध्रुवीय (Non polar) R – समूह – Glycine, Alanine, Valine, Leucine, Isoleucine, Proline, Methionine, Phenyl alanine, Tryptophan.
(2) ध्रुवीय परन्तु अनावेशित R – समूह –Serine, Threonine, Cysteine, Tyrosine, Asparagine, Glutamine
(3) धनात्मक R – समूह – Lysine, Arginine, Histidine (क्षारीय अमीनो अम्ल)
(4) ध्रुवीय परन्तु ऋणावेशित R – समूह – Aspartic acid, Glutamic acid (अम्लीय अमीनो अम्ल) ग्लाइसीन को छोड़कर प्रत्येक अमीनो अम्ल के दो प्रतिबिम्बी समावयव (enatiomeric isomers) होते हैं।

– यूकैरियोटिक प्रोटीन में L – amino acids पाए जाते हैं। D-amino acids जीवाणु व एन्टीबॉडीज में पाए जाते हैं।
अमीनो अम्ल आपस में पेप्टाइड बंध से जुड़कर प्रोटीन बनाते हैं।

– Peptidyl transferase एन्जाइम पेप्टाइड बंध संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है।
– प्रोटीन के गुण अमीनो अम्लों के क्रम व प्रोटीन अणु के विन्यास पर निर्भर करते हैं।
अमीनो अम्लों से संबंधित विशेष बिन्दु :
– Glysin: सरलतम अमीनो अम्ल तथा Tryptophan – जटिलतम अमीनो अम्ल
– सल्फर युक्त अमीनो अम्ल – Cysteine, Cysteine, Cystine, Methionine
– एरोमैटिक अमीनो अम्ल – Phenyl alanine, Tyrosine, Tryptophan
– एल्कोहोलिक अमीनो अम्ल – Serine, Threonine
– विषमचक्रीय अमीनो अम्ल – Proline, Hydroxyproline, Histidine
– Glycine को छोड़कर सभी अमीनो अम्ल Laevo-rotatory होते हैं। Glycine – non rotatory होता है।
– protein amino acid – ऐसे अमीनो अम्ल जो प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेते हैं।
– Non protein amino acid – ऐसे अमीनो अम्ल जो संश्लेषण में भाग नहीं लेते हैं।
ex. Ornithine, Citrulline, GABA
– Proline, Hydroxyproline में –NH2 समूह के स्थान पर (imino) समूह पाया जाता है। अत: इनको imino acid कहा जाता है।
प्रोटीन अणु के विन्यास की संरचना:-
1. प्राथमिक विन्यास – पेप्टाइड बंधों से जुड़े अमीनो अम्लों की एक सीधी शृंखला प्रोटीन का प्राथमिक विन्यास बनाती है। प्रोटीन की यह संरचना सबसे ज्यादा अस्थायी होती है। राइबोसोम पर नवनिर्मित प्रोटीन अणु ही प्राथमिक संरचना दर्शाते हैं।
2. द्वितीयक विन्यास – द्वितीयक विन्यास के प्रोटीन अणु सर्पिलाकार कुंडलित होते हैं। पेप्टाइड बंध के अलावा इनमें हाइड्रोजन बन्ध भी पाए जाते हैं। हाइड्रोजन बंध एक एमाइड समूह के ऑक्सीजन तथा दूसरे एमाइड समूह के हाइड्रोजन के मध्य बनाता है। द्वितीयक विन्यास दो प्रकार का होता है।
(i) 𝛼– Helix – इसमें दायीं तरफ घुमाव वाली सर्पिलाकार कुंडलित शृंखला पाई जाती है। प्रत्येक घूम में लगभग 312अमीनो अम्ल होते हैं। इस संरचना में अमीनो अम्ल के मध्य अन्त: आण्विक हाइड्रोजन बन्ध पाए जाते हैं।
उदाहरण- केरेटिन, मायोसिन, ट्रोपोमायोसिन
(ii) 𝛽 – Helix or Pleated sheath structure
प्रोटीन अणु zig – zag होता है। दो या अधिक प्रोटीन अणु अन्तर आण्विक हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़े होते हैं।
उदाहरण- Fibroin (silk)
– द्वितीयक संरचना के प्रोटीन जल में अघुलनशील तथा देखने में रेशेदार होते हैं।
– केरेटिन एक रेशेदार, कठोर, पाचन के लिए प्रतिरोधी स्क्लेरोप्रोटीन है। केरेटिन की कठोरता इसमें उपस्थित सिस्टीन अमीनो अम्ल की अधिकता के कारण होती है।
3. तृतीयक विन्यास – तृतीयक संरचना के प्रोटीन अणु अत्यधिक वलित होकर गोलिकाकार रूप धारण कर लेते हैं। यह जल में घुलनशील होते हैं। प्रोटीन की इस संरचना में निम्नलिखित प्रकार के बन्ध पाए जाते हैं–
(i) पेप्टाइड बन्ध
(ii) हाइड्रोजन बन्ध
(iii) डाईसल्फाइड बन्ध – यह बन्ध अमीनो अम्लों के -SH (थायोलही) समूह के मध्य बनते हैं।
– यह बन्ध पेप्टाइड बन्ध के बाद दूसरे नम्बर के सबसे मजबूत बन्ध होते हैं तथा तृतीयक संरचना को स्थायित्व प्रदान करते हैं।
(iv) जल विरागी बन्ध – यह बन्ध उन अमीनो अम्लों के मध्य बनते हैं जिनमें जल विरागी side chains पाई जाती है। जैसे-ऐरोमेटिक अमीनो अम्ल।
(v) आयनिक बन्ध – प्रोटीन अणु के दो विपरीत सिरों के मध्य इलेक्ट्रोस्टेटिक आकर्षण के कारण आयनिक बन्ध बनते हैं।
– प्रोटोप्लाज्म में उपस्थित अधिकांश प्रोटीन व एन्जाइम तृतीयक विन्यास दर्शाते हैं।
4. चतुष्टीय संरचना – दो या अधिक तृतीयक संरचना की पॉलिपेप्टाइड शृंखलाएँ आपस में अनेक प्रकार के बन्धों द्वारा जुड़कर चतुष्टीय विन्यास बनाती हैं। विभिन्न पॉलिपेप्टाइड शृंखलाएँ समान प्रकार की (Lactic dehydrogenase) या असमान प्रकार की हो सकती है। (इन्सुलिन व हीमोग्लोबिन)
– चतुष्टीय संरचना प्रोटीन की सबसे अधिक स्थाई संरचना होती है।
प्रोटीन की संरचना का जैविक महत्त्व–
– प्रोटीन वैद्युत आवेशित होते हैं क्योंकि इनमें -NH3+ तथा –coo– आयनिक घटक होते हैं अम्लीय माध्यम में प्रोटीन का –COO– समूह –COOH समूह में बदल जाता है। तथा प्रोटीन धन आवेशित हो जाता है। इसके विपरीत क्षारीय माध्यम में प्रोटीन का NH3+ समूह -NH2+H2O में बदल जाता है। फलस्वरूप प्रोटीन ऋणावेशित हो जाता है। अतः एक विशिष्ट pH पर ही प्रोटीन में बराबर की संख्या में धन एवं ऋण आवेश होते हैं। तथा इसी विशिष्ट pH पर प्रोटीन घुलनशील होते हैं। यदि pH में अम्लीयता या क्षारीयता की तरफ कोई परिवर्तन होता है तो प्रोटीन अवक्षेपित होना आरम्भ कर देते हैं। प्रोटीन का यह गुण अत्यधिक जैविक महत्त्व का होता है। कोशिका द्रव्य की pH लगभग 7 होती है लेकिन इसमें उपस्थित प्रोटीन की pH लगभग 6 होती है। अतः प्रोटीन एक अपेक्षाकृत क्षारीय माध्यम में स्थित होते हैं। फलस्वरूप प्रोटीन कण आवेशित होते हैं तथा पूरी तरह से घुलनशील नहीं होते हैं। इसी अघुलनशीलता के कारण प्रोटीन कोशिकाओं का संरचनात्मक कंकाल बनाते हैं। इसी प्रकार केन्द्रक द्रव्य की pH भी लगभग 7 होती है लेकिन इसमें उपस्थित प्रोटीन (हिस्टोन व प्रोटेमीन्स) की pH अधिक होती है। अतः प्रोटीन एक आपेक्षिक अम्लीय माध्यम में स्थित होते हैं। फलस्वरूप केन्द्रक द्रव्य के प्रोटीन धन आवेशित होते हैं तथा अनेक संरचनाएँ बनाते हैं; जैसे – क्रोमेटिन व क्रोमोसोम।
– प्रोटीन एम्फोटेरिक व ज्वीटर आयन होते हैं तथा तीव्र अम्लों व क्षारों को उदासीन बनाकर बफर का काम करते हैं।
– pH के अतिरिक्त भी अनेक कारक; जैसे – ताप, लवण, भारी धातु, दाब आदि प्रोटीन में अवक्षेपण पैदा करते हैं। इन परिवर्तनों के कारण प्रोटीन की संरचना नष्ट हो जाती है। इसे प्रोटीन का विकृतीकरण (denaturation) कहते हैं यदि परिवर्तन मन्द व कम समय के लिए होता है तो विकृतीकरण अस्थायी होता है लेकिन यदि परिवर्तन तीव्र व अधिक समय तक होता है तो प्रोटीन का स्थायी विकृतीकरण हो जाता है इसे प्रोटीन का स्कंदन (coagulation) कहते हैं। इसी कारण वातावरण के अत्यधिक परिवर्तन को कोशिकाएँ सहन नहीं कर पाती हैं तथा उनकी मृत्यु हो जाती है।
प्रोटीन के प्रकार
1. सरल प्रोटीन – प्रोटीन जो केवल अमीनो अम्लों के बने होते हैं।
– रेशेदार प्रोटीन – उदाहरण – कोलाजन, इलास्टिन, केरेटिन
– ग्लोब्युलर प्रोटीन – उदाहरण – एल्बुमिन, हिस्टोन, ग्लोबिन, प्रोटेमीन्स, प्रोलेमीन्स (Glaidin, Gluten, Zein) ग्लूटेलिन्स = गेहूँ के ग्लूटेन का लसलसा अंश
2. संयुग्मित प्रोटीन – सरल प्रोटीन + अप्रोटीन भाग (प्रोस्थेटिक समूह)
– न्यूक्लियोप्रोटीन – उदाहरण – क्रोमेटिन, राइबोसोम
– क्रोमोप्रोटीन – इनमें प्रोस्थेटिक समूह एक पोरफायरिन वर्णक होता है। उदाहरण – हीमोग्लोबिन, हीमोसाएनिन, साइटोक्रोम
– लाईपो प्रोटीन – उदाहरण – कोशिका झिल्ली, पीतक में उपस्थित लाइपोवाइटेलिन
– फॉस्फो प्रोटीन – उदाहरण – केसीनोजन, पेप्सिन, ओवोवाइटेलिन, फोसवाइटिन
– लेसीथोप्रोटीन – उदाहरण – फाईब्रिनोजन
– मेटेलोप्रोटीन – Cu – Tyrosinase, Zn Carbonic anhydrase, Mn-Arginase, Mo-Zanthine oxidase, Mg-Kinase
– ग्लाइकोप्रोटीन व म्यूकोप्रोटीन – ग्लायकोप्रोटीन की संरचना में कार्बोहाइड्रेट् 4% से कम होते हैं। यह सबसे विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन होते हैं। उदाहरण – 𝛼,𝛽,𝛾 -globulins of blood, blood group proteins, Mucin, Erythropoetin etc. म्यूकोप्रोटीन की संरचना में कार्बोहाइड्रेट्स 4% से अधिक होते हैं। उदाहरण – श्लेष्मीय द्रव के म्यूकोइड्स (Mucoids of synovial fluid), अस्थियों के म्यूको तथा कोन्ड्रोम्यूकोप्रोटीन (Osteo-mucoproteins Chondromucoprotein of bones), टेंडन के टेंडोम्यूकोप्रोटीन (Tendomucoprotein of tendons), उपास्थि (cartilage).
3. व्युत्पन्न प्रोटीन – यह प्रोटीन के विकृतीकरण या जल अपघटन से बनते हैं।
– प्राथमिक व्युत्पन्न प्रोटीन सामान्य प्रोटीन के विकृतीकरण के उत्पाद होते हैं। उदाहरण Fibrin, Myosan
– द्वितीयक व्युत्पन्न प्रोटीन सामान्य प्रोटीन के पाचन के उत्पाद होते हैं। उदाहरण – Proteoses, eptones, Peptides
प्रोटीन के संदर्भ में विशेष तथ्य –
– Monomeric Protein – ऐसे प्रोटीन जिनमें केवल एक ही पॉलिपेप्टाइड शृंखला होती है।
– Oligomeric or Multimeric or Polymeric – ऐसी प्रोटीन जिसमें एक से ज्यादा पॉलिपेप्टाइड शृंखला पाई जाती है।
– Peptide – अमीनो अम्लों की छोटी शृंखला (Di, tri, tetra)
– Polypeptide – इसमें सामान्यतया 20 से ज्यादा अमीनो अम्ल पाए जाते हैं।
– Protein – इसमें न्यूनतम 50 अमीनो अम्ल या 50 से ज्यादा अमीनो अम्ल पाए जाते हैं।
विटामिन
– विटामिन वे कार्बनिक यौगिक होते हैं, जिनकी आवश्यकता हमारे भोजन में सूक्ष्म मात्रा में होती है।
– विटामिन की खोज एन.आई ल्यूनिन ने की थी तथा विटामिन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सी-फंक ने किया था।
– विटामिन सिद्धांत हॉपकिंस एवं फंक ने प्रस्तुत किया था।
– विटामिन सिद्धांत के अनुसार “विटामिन हमारी उपापचयी क्रियाओं को नियमित बनाए रखते है, ये हमें ऊर्जा तो प्रदान नहीं करते लेकिन विभिन्न रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं”।
– विलेयता के आधार पर विटामिन दो प्रकार के होते हैं-
1. वसा में घुलनशील विटामिन – विटामिन A, D, E व K
2. जल में घुलनशील विटामिन – विटामिन B-Complex,विटामिन c
नोट:–
– विटामिन–C जल में घुलनशील एकमात्र ऐसा विटामिन है, जो एंटीऑक्सीडेन्ट के रूप में कार्य करता है।
– विटामिन A व E दोनों वसा में घुलनशील विटामिन है, जो एंटीऑक्सीडेन्ट के रूप में कार्य करते हैं।
– ऊष्मा के लिए सबसे संवेदी विटामिन-C है।
– एविडीन कच्चे अण्डे में उपस्थित होता है, जो विटामिन B7 के अवशोषण को रोक देता है, अत: कच्चे अण्डे नहीं खाने चाहिए।
– विटामिन B17 एंटी-कैंसर गुणों से युक्त विटामिन है, जो गेहूँ की फसल की नई पत्तियों में पाया जाता है।
– विटामिन B17 को लेटेराइल विटामिन भी कहा जाता है।
– विटामिन मानव शरीर द्वारा संश्लेषित नहीं किए जा सकते है लेकिन विटामिन K तथा विटामिन D इसके अपवाद है।
वसा में घुलनशील विटामिन:-
विटामिन का नाम | स्रोत | कार्य | कमी से होने वाला रोग |
विटामिन A/रेटिनॉल/ एंटीजीरोफ्थेल्मिक | गाजर, आम, पपीता, कोड लीवर ऑयल, गोल्डर चावल | नेत्रों में दृष्टि रंजक का विकास करना, किरेटिन के जमाव को रोकना। | रतौंधी जीरोफ्थैल्मिया किरैटोमलेसिया, लिक्टालोपिया |
विटामिन D या कैल्सिफरॉल/ सनसाइन विटामिन, एंटीरिकेट्स विटामिन | कोड लीवर ऑयल, दूध, मक्खन,सूर्य के प्रकाश की उपस्थित में त्वचा में 7-हाइड्रॉक्सी कोलेस्ट्रॉल का निर्माण | आँतों में Ca तथा P के अवशोषण को बढ़ाकर अस्थियों को मजबूत करना | बच्चों में रिकेट्स वयस्कों में ऑस्टोमलेशिया |
विटामिन-E या टोकोफेरॉल/एन्टीर्स्टलिटी विटामिन | साबुत एवं अंकुरित अनाज हरी पत्तेदार सब्जियों, पनीर | RBC के विकास में सहायक, DNA संश्लेषण में सहायक, एंटी ऑक्सीडेंट | नपुसंकता, एनीमियामस्कुलर एट्रॉपी |
विटामिन K या नेफ्थॉक्विनोन/ फिल्लोक्विनोन/ एंटी हीमोरेजिक विटामिन | अंकुरित अनाज ताजी हरी सब्जी, बड़ी आँत में बैक्टीरिया द्वारा संश्लेषण | रक्त का थक्का बानाने के लिए प्रोथ्रॉम्बिन के निर्माण में सहायक | रक्तस्राव |
जल में घुलनशील विटामिन्स:-
विटामिन का नाम | स्रोत | कार्य | कमी से होने वाला रोग |
विटामिन B1 या थायमिन/एंटीबेरी-बेरी/एंटीन्यूराइटिक | साबुत अनाज, हरी सब्जी, Nuts । | कोशिकीय वृद्धि एवं विकास में सहायक, प्रोटीन संश्लेषण, कोशिकीय श्वसन में, (TCA) शरीर में जल की मात्रा का नियमन | बेरी-बेरी पॉलीन्यूराइटिस (जन्तुओं में)वर्निक-कोरसाकॉफ सिन्ड्रोम |
विटामिन B2/G या राइबोफ्लेविन/पीला विटामिन/लैक्टोफ्लेविन | दूध, पनीर, दही, मक्खन, हरी सब्जी, अण्डे, माँस | कोशिका वृद्धि हेतु आवश्यक, श्वसन के दौरान FMN तथा FAD के निर्माण में सहायक | कीलोसिस,ग्लोसाइटिस, किरेटाइटिस |
विटामिन B3 या निकोटिनिक अम्ल/ नियासिन/पेलाग्रा प्रिवेंटिंग फैक्टर | साबुत अनाज, काष्ठफल, फली, यीस्ट, यकृत, माँस मछली | TCA चक्र में NAD या NADP निर्माण में सहायक, विभिन्न प्रोटीन के अवशोषण में सहायक | पेलाग्रा, 4 D सिन्ड्रोम (डर्मेटाइटिस, डायरिया डिमेंशिया, डेथ) |
विटामिन B5 या पैन्टाथीनिक अम्ल | दूध, यीस्ट, मूंगफली, टमाटर, पनीर, मछली, पत्तेदार सब्जियाँ | TCA चक्र में एसीटाइल Co-A के रूप में कार्य करता है,त्वचा एवं तंत्रिकाओं के लिए आवश्यक | बर्निंग फीट, नर्व डिसऑर्डर |
विटामिन B7/Hया बायोटिन | सब्जी, यीस्ट अण्डा (पका हुआ) | कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा निर्माण में सहायक | डर्मेटाइटिस शारीरिक विकास में कमी, बालों का झड़ना |
विटामिन B6 या पाइरिडॉक्सिन | सोयाबीन, मूंगफली, फलीदार, अण्डा, माँस, मछली | प्रोटीन उपापचय में सहायक,टी.बी. की वृद्धि को रोकना, तंत्रिका तंत्र की क्रियाशीलता हेतु आवश्यक। | एनीमिया, डर्मेटाइटिस, डिमेंशिया |
विटामिन B12 या साइनोकोबाल्मीन/ कास्टल इन्ट्रीन्सिक फैक्टर | अण्डे, मीट, यकृत, मछली, स्पाइरुलीना शैवाल | RBC उत्पादन में सहायक, तंत्रिका तंत्र की वृद्धि DNA संश्लेषण में सहायक | पर्नीसियस/घातक एनीमिया |
Fantastic effort!
Thank you so much for your response