जैविक खेती व जैव उर्वरक (Organic Farming And Bio Fertilizers)

जैविक खेती व जैव उर्वरक

परिभाषा:-

• अंतर्राष्ट्रीय जैविक कृषि गतिविधि संघ (IFOAM) के अनुसार जैविक कृषि एक उत्पादन प्रणाली है, जो कि मृदा, पारिस्थितिकी परितंत्रों और लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखती है।

राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOF) के अनुसार:-

• जैविक खेती फार्म की रचना एवं प्रबंधन कर एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने की पद्धति है जिससे संश्लेषित बाह्य आदानों जैसे कि रासायनिक उर्वरकों एवं पेस्टिसाइड्स के उपयोग से बिना टिकाऊ उत्पादकता प्राप्त की जा सके।

अवधारणा:-

• ऋषि पाराशर के अनुसार – ‘जंतुनाम जीवनम् कृषि’ अर्थात् कृषि का आधार भूमि में रहने वाले सूक्ष्म जीवाणु हैं।

• आधुनिक जैविक खेती का सिद्धान्त सर्वप्रथम सर अल्बर्ट होवर्ड ने 1930 के दशक में इंग्लैण्ड में प्रतिपादित किया।

• ‘ऑर्गेनिक फार्मिंग’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लार्ड वाल्टर नार्थबोर्न ने 1940 में अपनी पुस्तक ‘लुक टु द लेण्ड’ में किया था।

• जैविक खेती की शुरुआत 1930 के दशक में यूरोप से हुई।

• बायोडाइनेमिक (जैवगतिकी) खेती का जनक– डॉ. रूडोल्फ स्टेनर

• प्राकृतिक खेती का जनक – मोसानोबू फुकुओका

• मृदा एवं स्वास्थ्य फाउन्डेशन नामक संगठन की स्थापना – 1947

• आर. कार्सन द्वारा लिखित पुस्तक का नाम – साइलेण्ट स्प्रिंग

• खाद्य एवं कृषि संगठन, रोम ने वर्ष 2015 को ‘मृदा स्वास्थ्य वर्ष’ घोषित किया है।

• राष्ट्रीय परम्परागत कृषि मिशन की शुरुआत – 2016

भारत में जैविक खेती का भविष्य :-

• अप्रैल, 2000 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम की शुरूआत की गई।

• सरकार द्वारा 1 जुलाई, 2001 से ऑर्गेनिक प्रोडक्ट प्रमाणीकरण के लिए चार संस्थाओं; स्पाइस बोर्ड, टी बोर्ड, कॉफी बोर्ड एवं एपीडा को अधिकृत एजेन्सी बनाया गया।

• दसवीं पंचवर्षीय योजना के तहत भारत सरकार ने जैविक खेती को राष्ट्रीय प्राथमिकता क्षेत्र घोषित किया।

• वर्ष 2004 में राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र, गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश) में स्थापित किया गया।

• 18 जनवरी, 2016 को सिक्किम को देश का प्रथम जैविक राज्य घोषित किया गया।

• राजस्थान में पूर्ण जैविक खेती वाला प्रथम जिला डूँगरपुर है।

परभक्षी कीट :-

(i) क्राइसोपिड्स:-

• क्राइसोपिड्स चैपा, थ्रिप्स, जैसिड्स, फुदका, मिलीबग, सफेद मक्खी एवं लेपिडोप्टेरा गण के कीटों के अण्डों व सूंडियों का भक्षण करते हैं।

• फसलों में 50,000 सूंडियाँ/हेक्टेयर एवं फलदार वृक्षों में 10-20 सूंडियाँ प्रति पेड़ छोड़ते हैं।

(ii) कोक्सीनेला स्पीशीज:-

• यह परभक्षी कीट सभी प्रकार माहू/चैपा का भक्षण करते हैं।

परजीवी कीट :-

(i) ट्राइकोग्रामा:-

• ट्राइकोग्रामा एक अण्ड परजीवी है।

• यह हानिकारक कीटों (लेपीडोप्टेरा गण) के कीटों के अन्दर अपने अण्डे देता है।

• ट्राइकोग्रामा के एक कार्ड पर लगभग 16000-20000 पोश्य कीटों के परजीवी अण्डे होते हैं।

(ii) इपीरिकेनिया:-

• इस परजीवी का उपयोग गन्ना में पायरिला के प्रभावी नियन्त्रण हेतु किया जाता है।

ट्राइकोडर्मा :-

• यह एक मित्र फफूँद है।

• बीजोपचार हेतु 6-8 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से प्रयोग करते हैं।

• इसका उपयोग चने में उखटा, मूँगफली में कॉलर रोट, सोयाबीन में जड़ सड़न आदि के नियन्त्रण हेतु किया जाता है।

जीवाणु :-

• बैसिलस थूरिन्जेन्सिस (B.T.) जीवाणु जो लेपीडोप्टेरा गण के कीटों को नष्ट करता है।

विषाणु :-

• N.P.V. (न्यूक्लियर पॉलीहेड्रोसिस वायरस) व G.V. (ग्रेनुलोसिस वायरस)

• चने में फली छेदक के नियन्त्रण हेतु हेलिकोवर्पा N.P.V. 250 L.E. का 750 मिली. प्रति हेक्टेयर छिड़काव किया जाता है।

प्रोटोजोआ :-

• नोजेमा जाति के प्रोटोजोआ को टिड्डे के नियन्त्रण में सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है।

नीम :-

• नीम की पत्तियों का प्रयोग अनाज भण्डारण में किया जाता है।

• नीम की खली का उपयोग करने से दीमक से फसल की सुरक्षा होती है।

• नीम में लिमोनोइड तत्त्वों का समूह (ट्राइटरपीनोइट्स) मुख्य है जिसमें अजाडेरोटिन, निम्बिन, निम्बिडिन, सेलानिन, सेलानोल, क्विरसेटिन आदि तत्त्व प्रमुख हैं।

• नीम के बीजों में अजाडेरोटिन मुख्य तत्त्व है।

• नीम की बीजों में उपलब्ध टिग्निक एसिड के कारण नीम के तेल में विशेष गन्ध आती है।

लहसुन :-

• लहसुन 2 प्रतिशत घोल के छिड़काव से फसलों में चूसक कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है।

प्रकाश प्रपंच का उपयोग:-

• रात में कीड़े दूधिया प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं एवं पानी में गिर जाते हैं।

• यह प्रकाश रात्रि को सिर्फ 7 बजे से 10 बजे तक ही करना चाहिए।

फैरोमोन ट्रेप का उपयोग:-

• फैरोमोन ट्रेप कार्बनिक रसायन (गंध) प्रपंच है।

• इसमें उपलब्ध रसायन नर पतंगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए एक विशेष प्रकार की गंध वातावरण में छोड़ता है।

• नर पतंगों के नियन्त्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 5-7 ट्रेप लगाना होता है।

• ट्रेप का ल्यूर 15 दिन में बदलते रहना चाहिए।

जैव उर्वरक

• जैव उर्वरक सुक्ष्म जीव वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में तथा मृदा में फॉस्फोरस की चालकता बढ़ाकर पौधे को उपलब्ध करवाते हैं।

• जैव उर्वरकों को बायो-इनओकुलेन्ट (Bio-inoculant) या सूक्ष्म जीवाणु कल्चर (Bio-culture) के नाम से भी जाना जाता हैं।

• प्रति ग्राम सूखे वाहक में जीवाणुओं की संख्या कम से कम 1 × 107 या प्रति मिलीलीटर होनी चाहिए।

• प्रति ग्राम द्रव्य वाहक में जीवाणुओं की संख्या 1 × 108 होनी चाहिए।

दलहनी फसलों के लिए प्रमुख राइजोबियम प्रजातियाँ :-

राइजोबियम प्रजातिफसल
राइजोबियम मेलीलोटीरिजका, मेथी, सैंजी
राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरममटर, मसूर, मूँग
राइजोबियम फेजियोलाईराजमा
राइजोबियम ट्राइफोलीबरसीम
राइजोबियम जापोनिकमसोयाबीन
ब्रेंडी राइजोबियममूँगफली
एजोराइजोबियमढेंचा (सेसबानिया रोसट्राटा)
राइजोबियम लुपीनीलुपीन

नील हरित शैवाल (Blue Green Algae):-

• इसे सायनोबैक्टीरिया (BGA) भी कहते हैं।

• इसका उपयोग धान के खेतों में किया जाता है।

• ऐसी नील हरित शैवाल जिनमें एक विशेष संरचना हिटरोसिस्ट पाई जाती है, नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने में सक्षम है।

• यह शैवाल 25-30 किग्रा. नाइट्रोजन का प्रति हेक्टेयर यौगिकीकरण करती है।

• इसकी कुछ मुख्य प्रजातियाँ हैं एनाबिना, नोस्टॉक, साइटोनिया, आसीलेटोरिया आदि।

• नील हरित शैवाल का उपयोग 10kg/hec. करते हैं।

एजोला:-

• एजोला एक जलीय फर्न है।

• नील हरित शैवाल ऐनाबिना के साथ सहजीवी संबंध द्वारा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है।

• एजोला 40 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन/हेक्टेयर स्थिरीकरण करती है।

• भारत में एजोला की  एजोला पिन्नेटा प्रजाति पाई जाती है।

माइकोराइजा:-

• कवक व उच्च पादपों की जड़ों के बीच सहजीवी संबंध को माइकोराइजा कहते हैं, जिससे कवक मृदा से जल एवं खनिज लवणों को अवशोषित कर पौधों को प्रदान करता है तथा पौधे कवक को कार्बनिक भोज्य पदार्थ प्रदान करते हैं।

उदाहरण- VAM (वेसीकुलर अरबोसकुलर माइकोराइजा)

• VAM की खोज फ्रेंक नामक वैज्ञानिक ने की।

• माइकोराइजा फास्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाता है।

राइजोबियम-बैक्टीरिया :-

• राइजोबियम सहजीवी व वायवीय जीवाणु है।

• पुराना नाम – बेसिलस रेडिसिकोला

• सर्वप्रथम इसकी खोज सोयाबीन फसल की जड़ों में बेजरीक नामक वैज्ञानिक ने की, जिन्हें ‘सहजीवी N- स्थिरीकरण का जनक’ कहते हैं।

नोट:– नाइट्रोजन स्थिरीकरण के जनक विनोग्राडस्की है।

• प्रमुख फसलों के लिए जैव उर्वरक :-

राइजोबियम – लेग्यूमिनेसी एजेटो बेक्टर – मक्का, धान, जौ, ज्वार, बाजरा, गेहूँ। ऐसेटोबेक्टर – गन्ना। ऐजोस्पारीलियम – ज्वार/घास BGA/एजोला – धान

• राइजोबियम के एक पैकेट (200 gm) से 10 kg बीजों को उपचारित किया जाता है।

• फसलों में बीज उपचार का क्रम – FIR

फफूंद नाशक – कीटनाशक – राइजोबियम कल्चर

• एक ग्राम राइजोबियम कल्चर में बैक्टीरिया की संख्या 1×108 होती है।

• एक ग्राम एजेक्टोबेक्टर कल्चर में बैक्टीरिया की संख्या 1×107 होती है।

एक्टीनोमाइसीटीज :-

• शुष्क क्षेत्रों में प्रभावी होता है।

• बारिश के दिनों में मृदाओं में गंध एक्टीनोमाइसिटिज के कारण आती है।

लाइकेन :-

• कवक + शैवाल के मध्य सहजीवी संबंध को लाइकेन कहा जाता है। कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में सर्वाधिक योगदान बैक्टीरिया, फफूद तथा अन्त में एक्टीनोमाइसीटिज सक्रिय होता है।

लेगहिमोग्लबिन :-

• यह दलहनी फसलों की जड़ों में पाया जाता है।

• यह गुलाबी रंग की द्रव्य प्रोटीन होती है।

• नाइट्रोजिनेज एंजाइम को वायु की अनुपस्थिति में रखता है तथा नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया को ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।

• इसमें नीफ (Nif) जीन पाया जाता है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक है।

• सभी दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण होता है।

अपवाद – राजमा

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