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पादप पोषक तत्त्व (Plant Nutrients)
पादप पोषक तत्त्व
पादप पोषक तत्त्व:-
• वे तत्त्व जो पौधों के पोषण में भाग लेते हैं, पादप पोषक तत्त्व कहलाते हैं। वैज्ञानिक ऑरनोन और स्टाउट ने पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व के मापदंड वर्ष 1939 में प्रस्तावित किए। इन मापदंडों को ऑरनोन ने पुन: 1954 में परिष्कृत किया।
• आवश्यक पोषक तत्त्वों की कसौटी–
1. किसी तत्त्व की कमी के कारण पौधे अपने जीवन चक्र की वानस्पतिक वृद्धि अथवा प्रजनन प्रक्रिया को पूर्ण नहीं पाते हैं।
2. किसी विशेष आवश्यक पोषक तत्त्व की कमी को केवल उसी तत्त्व द्वारा दूर किया जा सकता है।
3. ये तत्त्व पौधे की उपापचयी क्रियाओं में सीधा भाग लेते है तथा एंजाइम की क्रियाशीलता को नियंत्रित करता है।
• ऑरनान एवं स्टाउट (1939) के अनुसार पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की संख्या 16 थी।
• वर्तमान में आवश्यक पोषक तत्त्वों की संख्या 17 है। 17वाँ पोषक तत्त्व Ni है। ब्राउन व उसके सहयोगियों द्वारा इसे खोजा गया।
• 16वाँ पोषक तत्त्व Mo था, जिसकी खोज ऑरनोन व स्टाउट ने की।
• पौधे पोषक तत्त्व को जड़ों/जाइलम/निष्क्रिय रूप में ग्रहण करते हैं।
• भारतीय मृदाओं में Zn व Fe की सर्वाधिक कमी पाई जाती है। (Zn > Fe)
पादप पोषक तत्त्वों का वर्गीकरण:-
1. संरचनात्मक पोषक तत्त्व (Structural nutrients):- पौधों की संरचना के निर्माण में भाग लेने वाले पोषक तत्त्व, संरचनात्मक पोषक तत्त्व कहलाते हैं; जैसे – C, H, O
2. वृहद मुख्य पोषक तत्त्व:- पौधों को इन पोषक तत्त्वों की अधिक मात्रा में (>1ppm) आवश्यकता होती है।
(A) प्राथमिक पोषक तत्त्व:- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश, इन्हें उर्वरक पोषक तत्त्व भी कहा जाता है।
(B) द्वितीय पोषक तत्त्व:- कैल्सियम, मैग्नीशियम व सल्फर इन पोषक तत्त्वों की मात्रा प्राथमिक पोषक तत्त्वों की तुलना में कम आवश्यकता होती है।
3. सूक्ष्म पोषक तत्त्व:- पौधों को इन पोषक तत्त्वों की कम मात्रा (<1ppm) में आवश्यकता होती है।
धनायन सूक्ष्म पोषक तत्त्व – Fe, Zn, Cu, Mn व Ni
ऋणायन सूक्ष्म पोषक तत्त्व – B, Mo व Cl
कार्य के आधार पर पोषक तत्त्वों का वर्गीकरण:-
1. आधारभूत/संरचनात्मक पोषक तत्त्व – C,H,O
2. सहायक संरचनात्मक पोषक तत्त्व – N,P,S ये पोषक तत्त्व ऊर्जा भंडारण स्थानांतरण एवं ऊर्जा बंधन में सहायक होते हैं। ये जीवित ऊतकों के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।
3. वाहक/नियामक पोषक तत्त्व (Carrier and regulatory nutrients) – पोषक तत्त्व आयन संतुलन के लिए आवश्यक है।
4. उत्प्रेरक एवं क्रियावर्द्धक पोषक तत्त्व (Catalyser and activator nutrients):- Fe, Mn, Zn, Cu, B, Mo और Cl एंजाइम सक्रियण और इलेक्ट्रोन हस्तांतरण में सहायक तत्त्व है।
अति सूक्ष्म पोषक तत्त्व (Ultra micro nutrients):-
• Mo, Co की अति सूक्ष्म मात्रा में आवश्यकता होती है।
लाभदायक पोषक तत्त्व (Benificial nutrients):-
• सोडियम:- चुकंदर व CAM पौधों में परासरणी दाब नियमित करता है।
• वेनेडियम:- धान में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है।
• सिलिकॉन:- मक्का व धान में रोग व प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है।
• कोबाल्ट:- दलहनी फसलों में Vit.B12 का घटक है।
अर्द्ध आवश्यक तत्त्व (Quasi essential elements):-
• सिलिकॉन को अर्द्ध आवश्यक तत्त्व माना जाता है।
पौधों में गतिशीलता के आधार पर वर्गीकरण:-
• अत्यधिक गतिशील पोषक तत्त्वों की कमी के लक्षण पौधों के निचले भागों तथा पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
1. अत्यधिक गतिशील (Highly mobile):- N, P, K, Mg, Mo इनकी कमी के लक्षण पौधों की निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
2. मध्यम गतिशील (Moderately mobile):- जस्ता (Zn), इसकी कमी के लक्षण पौधों के मध्य भाग पर दिखाई देते हैं।
3. कम गतिशील (Less mobile):- Fe, Mn, Cu, S, Cl, व Mo, इनकी कमी के लक्षण ऊपर की पत्तियों या नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
4. अगतिशील (Immobile):- Ca, B इनकी कमी के लक्षण शीर्ष भाग पर या नई कलिकाओं पर दिखाई देते हैं।
नोट:- पौधों में गतिशीलता के आधार पर पोषक तत्त्वों की कमी के लक्षणों को पहचानने और उनके निराकरण में सहायता मिलती है।
क्रियात्मक पोषक तत्त्व (Functional nutrients):-
• आवश्यक पोषक तत्त्व + लाभदायक पोषक तत्त्व
• क्रियात्मक पोषक तत्त्व (Functional nutrients) का प्रतिपादन D.J निकोल्स द्वारा 1961 में किया गया।
मृदा में गतिशीलता के आधार पर वर्गीकरण:-
1. गतिशील पादप पोषक तत्त्व [Mobile nutrient] :- ये पोषक तत्त्व घुलनशील होते हैं। जड़ क्षेत्र से घुलकर नीचे के संस्तरों में चले जाते हैं जिससे इनका ह्रास अधिक होता है ये क्ले कणों पर नहीं चिपकते हैं;
2. कम गतिशील पादप पोषक तत्त्व (Less mobile):- ये क्ले कणों पर चिपके रहते हैं। गतिशील तत्त्वों की तुलना में कम गतिशील होते हैं;
3. अगतिशील/स्थिर (Immobile nutrient):- ये क्ले कणों पर चिपके रहते हैं। अत्यधिक प्रक्रियाशील व मृदा में शीघ्र स्थिर होने वाले होते हैं;
नोट:- पौधे की जड़ें जिस क्षेत्र से पोषक तत्त्वों को अवशोषित करती है वह जड़ क्षेत्र फोरेज क्षेत्र (Forage area) कहलाता है।
• अगतिशील पोषक तत्त्वों को जड़ें अधिक दूरी से अवशोषित नहीं कर पाती है। यही कारण है कि अगतिशील/स्थिर पोषक तत्त्व जड़ क्षेत्र में दिए जाते हैं जिससे कि पौधे इन्हें आसानी से ग्रहण कर सके।
महत्त्वपूर्ण बिंदु :-
• फॉस्फोरस एकमात्र ऐसा पादप पोषक है जो पौधों में अत्यधिक गतिशील जबकि मृदा में अगतिशील है।
• पौधों में अचालक व मृदा में चालक पोषक तत्त्व बोरॉन है।
• पौधे की अच्छी बढ़वार के लिए यह आवश्यक है कि भूमि में पोषक तत्त्व:-
1. पोषक तत्त्व घुलनशील एवं उपलब्ध अवस्था में है।
2. मृदा में पोषक तत्त्वों का संतुलन बना रहे।
3. मृदा घोल में पोषक तत्त्वों की सान्द्रता उचित हो।
पौधों में पोषक तत्त्वों की कमी के लक्षण:-
पोषक तत्त्वों की उपलब्ध अवस्था (Available forms)
क्र.सं. |
पोषक तत्त्व |
रासायनिक चिह्न |
आयनिक रूप |
1. |
कार्बन |
C |
CO2 |
2. |
हाइड्रोजन |
H |
H2O |
3. |
ऑक्सीजन |
O |
O2, H2O |
4. |
नाइट्रोजन |
N |
|
5. |
फॉस्फोरस |
P |
|
6. |
पोटैशियम |
K |
K+ |
7. |
कैल्सियम |
Ca |
Ca2+ |
8. |
मैग्नीशियम |
Mg |
Mg2+ |
9. |
सल्फर |
S |
SO |
10. |
लौहा |
Fe |
Fe2+, Fe3+ |
11. |
कॉपर |
Cu |
Cu2+ |
12. |
मैंगनीज |
Mn |
Mn2+ |
13. |
जिंक |
Zn |
Zn2+ |
14. |
बोरॉन |
B |
H3BO3 > H2BO |
15 |
क्लोरीन |
Cl |
Cl– |
16 |
मॉलीब्डेनम |
Mo |
MoO |
17. |
निकल |
Ni |
Ni2+ |
नोट:-
• कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन ऐसे पोषक तत्त्व हैं जो वातावरण से प्राप्त किए जाते हैं। कार्बन, वायु से, हाइड्रोजन जल से व ऑक्सीजन जल व वायु दोनों से प्राप्त किए जाते हैं। अन्य सभी पोषक तत्त्व मृदा (Soil) से प्राप्त किए जाते हैं।
विभिन्न पोषक तत्त्वों की कमी व उनसे होने वाले कायिकीय विकार:-
1. बोरॉन की कमी से होने वाले कायिक विकार:-
• टमाटर व अनार के फलों का फटना (Cracking in tomato & pome granate)
• अंगूर का हेन & चिकन विकार (Hen and chicken in grapes)
• आम का काला धब्बा रोग (Black spot of mango)
• आम व आँवले का आंतरिक ऊतक क्षय (Internal necrosis in mango & Gooseberry)
• अंगूर का मिलारांडेज विकार (Millarandage in grapes)
• मूली में आकासीन विकार (Akashin in radish)
• सूरजमुखी में विकार
• गाजर का फहाला (Splitting in carrot)
• आँवला का ऊतक क्षय (Fruit Necrosis of Aonla)
• नीबू वर्गीय फलों का कठोर होना (Hard fruit in citrus)
• गोभी का भूरा सड़न रोग (Browning in cole crops)
• मटर का काला धब्बा रोग (Black spot of pea)
• रिजके में पीलापन
2. जिंक की कमी से होने वाले विकार:-
• धान का खेरा रोग (Khaira disease of rise)
• मक्का का श्वेत कलिका रोग (White bud of maize)
• छोटी पत्ती विकार (little leaf)
• नीबू वर्गीय फलों में फ्रेंचिंग विकार (Frenching in citrus)
• अमरूद का ब्रॉन्जिग विकार (Bronzing in guava)
3. मैंगनीज की कमी से होने वाले विकार:-
• गन्ने का फाला ब्लाइट (Phala blight of sugarcane)
• मटर का मार्श स्पॉट (Marsh spot in pea)
• जौ एवं जई का ग्रे स्पाईक (Grey spike in barley and oat)
• चुकंदर का येलो स्पेकलेड (yellow Speckled of sugarbeet)
4. कैल्सियम की कमी से होने वाले विकार:-
• टमाटर का ब्लॉसम एंड रॉट (Blossom end rot in tomato)
• गाजर का कैविटी स्पॉट (Cavity spot in carrot)
• मूँगफली का पोपिंग (Popping in groundnut)
• अँगूर में क्लैक्स एंड रॉट (Clayx end rot in grapes)
5. कॉपर की कमी से होने वाले विकार:-
• नीबू का छोटी पत्ती रोग (Little leaf in citrus)
• रिक्लेमेशन रोग (Reclamation deseases)
• अनाज का श्वेत कलिका रोग (White bud of cereal)
6. मॉलिब्डेनम की कमी से होने वाले विकार:-
• गोभी का व्हिपटेल रोग (Whiptail in cauliflower)
• नीबू का पीला पत्ती रोग (Yellow leaf of citrus)
7. नाइट्रोजन की कमी से होने वाले विकार:-
• गोभी का बटनिंग रोग (Buttoning in cole crops)
• स्टारवेशन रोग (Starvation disease)
8. पोटैशियम की कमी से होने वाले विकार:-
• पत्ती झुलसा रोग (Leaf burnning)
• टमाटर का ब्लोची राइपनिंग (Blotchy ripening of tomato)
अन्य तत्त्वों की कमी से होने वाले विकार:-
• तंबाकू का सैंड ड्रोन – मैग्नीशियम की कमी से
• चाय का पीला रोग – सल्फर की कमी से
• सिकल लीफ रोग – फॉस्फोरस की कमी से
• धान का अकोची रोग – H2S की अधिकता से
• आलू का ब्लैक हर्ट – ऑक्सीजन (O2) की कमी से
पोषक तत्त्वों का महत्त्व एवं कमी के लक्षण व कमी को दूर करने के उपाय:-
1. नाइट्रोजन:-
• फॉस्फोरस व पोटैशियम के उपयोग को संतुलित करता है।
• पौधा नाइट्रोजन को No3-
कार्य:-
• नाइट्रोजन पौधों में पर्णहरित अमीनो अम्ल, प्रोटीन न्यूक्लिक अम्ल (RNA, DNA) व जीवद्रव्य की रचना में मुख्य संघटक तत्त्व है।
• नाइट्रोजन कोशिका के आकार को बढ़ाता है।
• पत्तिदार सब्जियों हेतु गुणवत्ता युक्त पोषक तत्त्व
• पौधों की वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ाता है।
• दाने व चारे वाली फसलों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है।
• कोशिका भित्ति पदार्थ बनाने में N2 सेल्यूलोज के रूप में काम आता है।
• कार्बनिक पदार्थों के शीघ्र अपघटन में सहायक है।
• गेहूँ, जौ, जई व गन्ने में कल्ले अधिक फूटते हैं।
• फसलों के दानों को कोमल बनाता है।
कमी के लक्षण (Deficiency symptoms):-
• सर्वप्रथम पौधे की निचली पत्तियों का पीला पड़ना शुरू होता है।
• नाइट्रोजन की कमी होने पर खाद्यानों “V” आकार का क्लोरोसिस (पीलापन) दिखाई पड़ता है।
• कल्ले वाली फसलों में कल्ले कम फूटते हैं।
• पौधों पर फूल नहीं बनते या बहुत कम बनते हैं।
• पौधों का वानस्पतिक विकास नहीं हो पाता है।
• नाइट्रोजन की कमी से स्ट्राइवेशन रोग हो जाता है।
• फूलगोभी में बटनिंग (Buttoning) रोग हो जाता है।
कमी को दूर करने के उपाय:-
• विभिन्न उर्वरकों का प्रयोग; जैसे – यूरिया, किसान, खाद, अमोनियम, सल्फेट तथा अन्य जैविक खादों का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के जैव उर्वरकों का प्रयोग करके कमी को दूर किया जा सकता है।
अधिकता से हानियाँ (Toxicity):-
• वानस्पतिक वृद्धि अधिक होने से पौधे गिरने लगते हैं।
• दाने की अपेक्षा भूसे की मात्रा अधिक होती है।
• फल व सब्जियों की भंडारण क्षमता कम हो जाती है।
2. फॉस्फोरस:-
• फॉस्फोरस को पौधे के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• फॉस्फोरस कोशिका की ऊर्जा मुद्रा (energy currency) कहलाती है क्योंकि यह कोशिकाओं में ऊर्जा भंडारण एवं ऊर्जा स्थानांतरण व कार्य करती है। फॉस्फोरस पौधों के जड़ों के निर्माण में सहायक है।
• पौधों में रोग व कीटों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाता है।
• फॉस्फोरस कोशिका विभाजन का कार्य करता है व नई कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है।
• दाने व भूसे का अनुपात नियंत्रित करता है।
• फॉस्फोरस की उपस्थिति से फसलों में परिपक्वता जल्दी आती है विशेषत: अनाज वाली फसलों में।
• दलहनी फसलों की जड़ों में उपस्थित ग्रंथियों का विकास करता है।
• फसलों में दाने की उपज बढ़ाने के लिए फॉस्फोरस का प्रयोग किया जाता है।
• फॉस्फोरस न्यूक्लिक अम्ल, न्यूक्लियोप्रोटीन, शर्करा फॉस्फेट आदि का अवयव होने के कारण आनुवंशिक गुणों को अगली पीढ़ी में पहुँचाता है।
• DNA व RNA के निमार्ण में सहायक होने के कारण जीवन की कुंजी (Key of life) भी कहते हैं।
• नाइट्रोजन की अधिकता से उत्पन्न प्रभावों को दूर करता है।
कमी के लक्षण:-
• पौधे की जड़ों की वृद्धि व विकास धीमी गति से होता है।
• पुरानी पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
• पत्तियों का रंग हल्का बैंगनी, गहरा हरा व भूरा हो जाता है।
• इसकी कमी से गेहूँ व गन्ने की फसलों में कल्ले कम फूटते हैं।
• पौधे की शाखाएँ पतली एवं कमजोर होती है।
• फूल व फल देरी से बनते हैं तथा फलों का आकार बहुत छोटा होता है।
कमी को दूर करने के उपाय:-
• मृदा परीक्षण के आधार पर फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें।
• समय-समय पर खेत में जैविक खाद का प्रयोग करें।
3. पोटाश:-
• पोटाश को पौधे आयनिक K+ के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है तथा सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है। तंबाकू की पत्तियों की गुणवत्ता सुधारता है।
• यह पत्तियों के पर्णरंध्रों के खुलने व बंद होने की क्रिया का नियमन करता है जिससे कि वाष्पोत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सकता है इसलिए इसे ट्रेफिक पुलिस मैन भी कहते हैं।
• फसलों में रोग व कीटों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाता है।
• फसलों को प्रतिकूल दशाओं में गिरने से रोकता है। पोटाश फसलों की दानों की गुणवत्ता बढ़ाता है व दानों के आकार में वृद्धि करता है।
• यह पौधों के शर्करा निर्माण व संवहन में सहायक होता है।
• इससे भूमि में नाइट्रोजन की अधिकता का कुप्रभाव दूर होता है।
• अधिक कार्बोहाइड्रेट रखने वाली फसलें; जैसे – आलू, चुकंदर, धान व गन्ने वाली फसलें इसकी कमी से अधिक प्रभावित होती है।
• छुपी भूख (Hidden hunger):- किसी पोषक तत्त्व की कमी के लक्षणों को पौधों द्वारा स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं किया जाता है, परंतु उत्पादन में भारी कमी देखने को मिलती है; जैसे – पोटैशियम
• पौटेशियम को आरामदायक खपत (luxuary Consumption) पोषक तत्त्व भी कहते हैं।
कमी के लक्षण:-
• इसकी कमी से फसलों में दानों का आकार छोटा व वजन हल्का हो जाता है। तंबाकू के पौधों में पत्तियों की नशों के बीच में सिरों व किनारों पर ऊतक निर्जीव हो जाने के कारण फल छोटे पड़ जाते हैं।
• पत्तियों के किनारे व सिरे झुलस जाते हैं।
• इसकी कमी के लक्षण खेत में पहले नम क्षेत्रों में दिखाई देते हैं।,
• मक्का के भूट्टे छोटे तथा सिरे पर दाने कम निकलते हैं।
• कपास के डोडे छोटे रह जाते हैं व ठीक प्रकार से नहीं खुलते हैं। कपास के फसल की उपज कम हो जाती है।
• पोटैशियम की कमी के लक्षण पहले पुरानी या निचली पत्तियों पर दिखाई देती है इसकी कमी से पत्तियाँ धब्बेदार व भूरी हो जाती है।
• आलू में पोटाश की कमी से पत्तियों का रंग गहरा हरा हो जाता है।
कमी को दूर करने के उपाय:-
• मृदा परीक्षण के द्वारा पोटाश की मात्रा का निर्धारण कर उचित समय पर खेत में इसका प्रयोग करें।
• सामान्यत: लंबी अवधि वाली फसलों, फलों के वृक्ष, दलहनी फसलों में इसकी कमी के लक्षण को आसानी से देखा जा सकता है।
4. कैल्सियम:-
• कैल्सियम को पौधे Ca2+ के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रंथियों का विकास करने में सहायक है।
• पौधों में कार्बोहाइड्रेट का संचालन कैल्सियम की सहायता से होता है।
• पौधों में कई किण्वकों; जैसे – एमाइलेज, फॉस्फोलाइपेज, काइनेज को नियमित करने में सहायक है।
• पौधों की जड़ों व वृद्धि कलिकाओं का विकास करता है।
• कोशिका के विभाजन एवं वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व है।
• कैल्सियम कोशिका भित्ति का मुख्य अवयव है।
• यह क्रोमोसोम (गुणसूत्र) का संघटक तत्त्व है। यह पौधों में आयन उदासीकरण द्वारा कई अम्लों के हानिकारक प्रभावों को दूर करता है।
• लोहा, एल्युमिनियम आदि की अधिकता के प्रभावों को दूर करता है।
कमी के लक्षण:-
• कैल्सियम की कमी से पौधे में अग्रिम कलिका सूख जाती है तथा हुकनुमा संरचना बन जाता है।
• पुष्पन एवं परिपक्वता में देरी हो जाती है तथा दाने कम बनते हैं।
• ऊपरी पत्तियों के किनारे झुक जाते हैं तथा नई पत्तियाँ सफेद हो जाती है।
• कलियों व फल अपरिपक्व अवस्था में मुरझा जाते हैं।
• अनाज वाली फसलों में पर्व संधियों के बीच की दूरी कम हो जाती है जिससें पौधा छोटा दिखाई देता है।
• कैल्सियम की कमी से पौधे की जड़ों का विकास नहीं हो पाता है।
• कैल्शियम की कमी से मूँगफली में दाना नहीं बनता है जिसे पोपिंग कहते हैं।
कमी को दूर करने के उपाय:-
• भूमि में कैल्सियम की पूर्ति करने के लिए चूना, बैसिक स्लेग, हड्डी का चूरा, जिप्सम (CaSO4, 2H2O), कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट, व सुपर फॉस्फेट का प्रयोग करें।
5. मैग्नीशियम:-
• मैग्नीशियम को पौधे Mg2+ के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• मैग्नीशियम क्लोरोफील की संरचना में मुख्य अवयव है।
• मैग्नीशियम राइबोसोम का अवयव है।
• यह पौधों में पोषक तत्त्वों के स्थानांतरण व उद्ग्रहण में सहायता करता है।
• यह पौधों में न्यूक्लिक अम्ल व शर्करा के उपापचय में सहायक है।
कमी के लक्षण:-
• निचली पत्तियों में अन्त:शिरा हरिमहीनता (Interveinal chlorosis of lower leaves) – पौधे की निचली पत्तियों का रंग शिराओं के बीच से नष्ट हो जाता है एवं शिराएँ हरी बनी रहती हैं।
• पत्तियाँ अपरिपक्व अवस्था में ही गिर जाती है।
• पत्तियाँ ऊपर की ओर मुड़ जाती है तथा इनका आकार छोटा रह जाता है।
• पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं व पत्तियों पर मृत ऊतक दिखाई देते हैं।
• मैग्निशियम एकमात्र ऐसा पोषक तत्त्व है जिसकी कमी पौधों में होती है परंतु रोग पशु में होता है। (ग्रास टिटेनी रोग)
कमी को दूर करने के उपाय:-
• मैग्नीशियम की आवश्यकता होने पर 25 से 50 किग्रा. मैग्नीशियम सल्फेट (MgSO4) बुआई के समय खेत में छिड़क दें।
6. सल्फर:-
• सल्फर पौधों द्वारा
कार्य:-
• तिलहनी फसलों मे तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए गंधक (S) आवश्यक पोषक तत्त्व है।
• सुगंधित तेल बनाने के लिए सल्फर जरूरी है।
• प्रोटीन की संरचना एवं स्थायित्व के लिए आवश्यक है।
• गंधक युक्त अमीनो अम्ल सिस्टीन, सिस्टाईन व मिथियोनीन (SMS) है इनकी संरचना के लिए सल्फर आवश्यक है।
• यह विटामिन-बी, को एंजाइम A, बायोटीन आदि अन्य मेटाबोलाइट के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
• यह दलहनी फसलों के जड़ों की ग्रंथियों को अधिक विकसित करता है अत: यह जड़ों के विकास में सहायक है।
• यह पत्तियों में पर्ण हरित के निर्माण में सहायक है।
कमी के लक्षण:-
• इसकी कमी से पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है।
• पौधे की नई पत्तियों की शिराएँ व इनके बीच का भाग हल्के हरे रंग का हो जाता है।
• पौधे में सल्फर की अधिक कमी होने से पौधा पीला पड़ जाता है।
कमी को दूर करने के उपाय:-
• सल्फर की कमी होने पर निम्नलिखित उर्वरक व खादों का प्रयोग करें– सिंगल सुपर फॉस्फेट (12.5% सल्फर), अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट (12.1% सल्फर), अमोनियम सल्फेट (23.7% सल्फर), जिप्सम (18.6% सल्फर)।
7. जस्ता:-
• जस्ता पौधों द्वारा Zn2+ के रूप में ग्रहण किया जाता है।
कार्य:-
• जिंक पौधे में न्यूक्लिक अम्ल व ऑक्जीन हार्मोन के निर्माण में सहायक है।
• पौधों में प्रकाश संश्लेषण व नत्रजन उपापचय में जस्ते का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
• विभिन्न किण्वकों; जैसे – कार्बोनिक एनहाइड्रेज, लेक्टेट डिहाइड्रोजिनेज, आर.एन.ए. पॉलीमरेज, डी.एन.ए. का मुख्य घटक है।
• वसा व प्रोटीन की ऑक्सीकरण से रक्षा करता है।
• जस्ता पौधों में जल उद्ग्रहण में सहायक है।
कमी के लक्षण:-
• जस्ते की कमी से पत्तियों का रंग धुँधला पीला हो जाता है तथा ऊतक मर जाते हैं।
• इसकी कमी के लक्षण पौधे की पुरानी व नई दोनों पत्तियों पर एक साथ दिखाई पड़ते हैं।
• पत्तियों में शिराओं के मध्य सफेद पीले और हल्के हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
• नीबू कुल में इसकी कमी के लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं (Rosette appearance)
• फलों में बीजों का उत्पादन कम हो जाता है व फलों का आकार घट जाता है।
कमी को दूर करने के उपाय:-
• जस्ते की कमी होने पर जिंक सल्फेट 10 से 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर फसल की बुआई से पूर्व खेत में प्रयोग करें।
• तुरंत उपचार करने के लिए 0.5% जिंक सल्फेट के साथ 0.2% चूने के घोल का छिड़काव खड़ी फसल में करें।
8. लोहा:-
• पौधे आयरन को Fe++ (फेरस) व Fe+++(फेरिक) के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• आयरन दलहनी पौधों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण तंत्र का मुख्य अंग है।
• यह विभिन्न किण्वकों का धात्विक संघटक है।
• यह पर्णहरित (क्लोरोफिल) के निर्माण की प्रक्रिया के लिए आवश्यक है।
• आयरन को मॉलिब्डेनम के प्रतिस्थापन के रूप में काम में लिया जा सकता है। यह न्यूक्लिक अम्ल व प्रोटीन के निर्माण तथा शर्करा के उपापचय में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
कमी के लक्षण:-
• इसकी कमी के लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
• तना छोटा व कलिकाएँ मुरझाई हुई दिखाई पड़ती हैं।
• पत्तियों के किनारे व शिराएँ लंबे समय तक हरी बनी रहती है।
• इसकी कमी से पत्तियाँ कागज जैसी पतली हो जाती है व सफेद रंग की हो जाती है।
9. ताँबा:-
• पौधे ताँबे को Cu2+ के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• ताँबा पौधे में विटामिन-ए की वृद्धि व निर्माण में सहायक है।
• यह अप्रत्यक्ष रूप से दलहनी फसलों पर जड़ ग्रंथियों के विकास में सम्मिलित रहता है।
• यह विभिन्न किण्वकों जो प्रकाश संश्लेषण, इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र (ETS) एवं अन्य प्रक्रमों भाग लेते हैं उनका मुख्य अवयव है।
• यह फसलों में फूल बनाने व दानों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
• लोहे के उपयोग में सहायक का कार्य करता है।
कमी के लक्षण:-
• ताँबे की कमी होने पर पौधे की पत्तियों के किनारे व शीर्ष पीले पड़ जाते हैं।
• इसकी कमी से नीबू कुल के फलों में लाल व भूरे अनियमित धब्बे बन जाते हैं।
• इसकी कमी से पौधा ऊपर से सूखना शुरू होता है जिसे डाइबैक कहते हैं।
• ताँबे की अत्यधिक कमी होने पर पौधे के पर्णशीर्ष व किनारे मृत दिखाई देते हैं।
• फलों के रस में अम्ल की मात्रा कम हो जाती है।
10. मैंगनीज:-
• पौधे मैंगनीज को Mn2+ के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• नाइट्रोजन के उपापचय और क्लोरोफिल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइम्स की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
• यह कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन डाईऑक्साइड व जल का निर्माण करता है।
• प्रकाश संश्लेषण की हिल अभिक्रिया में जल के अणुओं को तोड़कर O2 के निर्माण से संबंधित किण्वकों का मुख्य अवयव है।
• नाइट्रोजन के Assimilation में सहायक है।
कमी के लक्षण:-
• पौधे की पत्तियों पर मृत ऊतकों के धब्बे दिखाई देते हैं।
• इसकी कमी के लक्षण जई एवं सोयाबीन पर बहुत शीघ्र दिखाई देते हैं।
• नई पत्तियों की शिराओं के बीच पीलापन विकसित हो जाता है।
• पत्तियों की छोटी-छोटी शिराएँ हरी बनी रहती है।
11. बोरॉन:-
• पौधे बोरॉन को H3BO3, H2
कार्य:-
• बोरॉन परागकणों के निर्माण में सहायक है।
• यह पौधों में शर्करा के संचालन में सहायता करता है।
• कोशिका झिल्ली की पारगम्यता को बढ़ाता है।
• पर्णरंध्रों के खुलने को नियंत्रित करता है।
• दलहनी फसलों में राइजोबियम जीवाणु की ग्रंथियों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
• कैल्सियम के पौधों द्वारा अवशोषण में सहायक है।
• पौधों में अमीनो अम्ल एवं प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करता है।
• पौधों में Ca:K अनुपात को नियंत्रित करता है।
कमी के लक्षण:-
• बोरॉन की कमी से शीर्ष कलिकाओं की बढ़वार रुक जाती है तथा पत्तियों की मृत्यु हो जाती है। इसकी कमी से पत्तियाँ मोटी व मुड़ जाती है।
• कुछ पौधों के फल, तने व कंद फट जाते हैं।
• गोभी के फूल का आकार अनियमित व फल पर लाल धब्बे देखने को मिलते हैं। पुष्पन व फल विकास अवरुद्ध हो जाता है।
• सरसों एवं गेहूँ में खराब बीज जमाव एवं बाँझपन आ जाता है।
12. मॉलिब्डेनम:-
• पौधे मॉलिब्डेनम को MoO42- के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• पौधे में विटामिन-सी व शर्करा के संश्लेषण में सहायक है।
• यह पौधों में नाइट्रेट रिडक्टेज एवं नाइट्रोजिनेज का मुख्य भाग है।
• यह दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु के लिए आवश्यक है।
• पौधों में विटामिन-सी संश्लेषण में सहायक है।
• यह पौधों में लोहे के अवशोषण व स्थानांतरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पौधों में फॉस्फोरस के उपापचय को प्रभावित करता है।
कमी के लक्षण:-
• इसके लक्षण पौधे की पुरानी एवं मध्य भाग की पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इसकी कमी के लक्षण नाइट्रोजन की कमी के लक्षणों के समान होते हैं जैसे – पौधों का पीला पड़ना व वृद्धि नहीं करना।
• इस मॉलिब्डेनम की कमी के लक्षण दलहनी पौधों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं तथा इनकी जड़ों में बनने वाली ग्रंथियाँ कमजोर हो जाती है।
• टमाटर की पुरानी पत्तियों में ऊतक क्षय (Mottling Necrosis)की समस्या हो जाती है।
• मॉलिब्डेनम की कमी से जई की पत्तियाँ पीछे की ओर झुक जाती है।
13. क्लोरीन:-
• पौधे क्लोरीन को Cl– के रूप में ग्रहण करता है।
कार्य:-
• यह इन्डोल एसिटिक अम्ल (IAA) का संघटक होता है।
• यह कोशिका के स्फीती दाब को नियंत्रित करता है।
• पौधों को रोगों के प्रति सहनशील बनाता है।
• यह हिल अभिक्रिया के मैंगनीज किण्वन का अवयव होता है।
• यह कार्बोहाइड्रेट के उपापचय को प्रभावित करता है।
कमी के लक्षण:-
• नई विकसित पत्तियों पर पीलापन दिखाई देता है। गमले में उगे हुए पौधों में क्लोरीन की कमी से म्लानी रोग के लक्षण दिखाई देते हैं।
• बरसीम की पत्तियाँ अनियमित छोटी व मोटी हो जाती है।
• तने व जड़ की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है।
• क्लोरीन की कमी से ब्रोन्जिंग तथा नेक्रोसिस रचनाएँ देखने को मिलती हैं।
14. निकिल:-
• पौधे निकल को Ni2+ के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• यह पौधे में नाइट्रोजन उपापचय को नियमित करने वाले किण्वक (एंजाइम) जैसे – हाइड्रोजिनेज, मिथाईल रिडक्टेज एवं युरिएज को बढ़ाने में सहायक है।
• यह पौधों द्वारा लोहे के अवशोषण करने में सहायता करता है।
• यह युरिएज एंजाइम में पाया जाने वाला धात्विक अवयव है जो कि दलहनी फसलों के लिए लाभदायक होता है।
• यह बीज की जीवन क्षमता बढ़ाने व दाने भरने के लिए आवश्यक होता है।
कमी के लक्षण:-
• निकल की कमी से पौधे में
• इसकी कमी से पौधे की पत्तियों में यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है जो पौधों के लिए विषैली होती है।
15. कोबाल्ट:-
• पौधे कोबाल्ट को Co2+ के रूप में ग्रहण करता है।
कार्य:-
• यह दलहनी फसलों में राइजोबियम जीवाणु द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया में सहायता करता है।
• विटामिन B12 के निर्माण में सहायक होता है।
16. सोडियम:-
• पौधे सोडियम को Na+ के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:-
• यह पौधों में आयनिक संतुलन व परासरण नियमन में सहायक है।
• आलू के ट्यूबराइजेशन (कंद निर्माण) में सहायक है।
17. सिलिकॉन:-
• पौधे सिलिकॉन को Si(OH)4 के रूप में ग्रहण करता है।
कार्य:-
• यह पौधों को रोग व कीटों के प्रति प्रतिरोधक बनाता है।
• पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है।
18. वेनेडियम:–
• पौधे वेनेडियम को V+5 के रूप में ग्रहण करते हैं।
कार्य:–
• BGA में नाइट्रोजन में स्थिरीकरण में सहायक होता है।
सूचक पौधे (Indicator plant)
क्र.सं. |
पोषक तत्त्व |
सूचक पौधे |
1. |
नाइट्रोजन |
फूलगोभी, गाँठगोभी |
2. |
फॉस्फोरस |
सरसों |
3. |
पोटैशियम, मैग्नीशियम |
आलू |
4. |
कैल्सियम |
फूलगोभी, गाँठगोभी |
5. |
लोहा |
आलू, जई, गाँठगोभी, फूलगोभी |
6. |
मैंगनीज |
जई |
7. |
जिंक |
धान, मक्का, कपास, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, सोयाबीन व नीबू वर्गीय फल |
8. |
कॉपर (ताँबा) |
बेर, नीबू, लीची, सेब व प्याज |
9. |
बोरॉन |
सूरजमुखी |
10. |
मॉलिब्डेनम |
रिजका, गोभी, चुकंदर, लोबिया |
11. |
सोडियम |
चुकंदर |
12. |
सिलिकॉन |
धान व गन्ना |
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