
बीज
● पौधे का कोई भी भाग (फल, पत्ती, जड़, तना आदि।) जो अपने समान नए पौधे को जन्म देता है वह बीज कहलाता है। (शस्य विज्ञान के अनुसार)
● पुष्प का परिपक्व बीजाण्ड जिसमें की सूक्ष्म भ्रूण व भ्रूणपोष सुरक्षात्मक आवरण से ढके रहते हैं, वह बीज कहलाता है (तकनीकी दृष्टि से)
उत्तम बीज के गुण :-
● उत्तम बीज वह कहलाता है जो स्थानीय किस्म के मुकाबले 10-15 प्रतिशत अधिक उपज व विभिन्न प्रकार की जलवायु व मिट्टी के प्रति अनुकूल हो।
1. आनुवंशिक शुद्धता (Genetic purity)
● बीज आकार व रंग में एक समान व चमकीले होने चाहिए।
● आनुवंशिक शुद्धता 98 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए।
2. भौतिक शुद्धता (Physical Purity)
● बीज में खरपतवार, अन्य फसलों एवं अन्य किस्मों की मिलावट नहीं होनी चाहिए।
● बीज में उपस्थित अशुद्धियों (पत्थर, टूटे बीज) को डोकेज कहते हैं।
● भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत या अधिक होनी चाहिए।
● बीजों में अशुद्धियाँ 0.1 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
3. नमी की मात्रा (Moisture Content)
● अधिक नमी के कारण बीज में कवक/कीट आदि का प्रकोप हो जाता है।
● अनाज के बीजों में भण्डारण के समय नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
● दलहनी बीजों के भण्डारण के समय नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत होनी चाहिए।
● तिलहनी बीजों के भण्डारण के समय नमी की मात्रा 6 से 8 प्रतिशत होनी चाहिए।
4. उच्च अंकुरण क्षमता (High germinability)
● सामान्य अंकुरण 60 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए।
● यह विभिन्न फसलों के लिए अलग-अलग होता है।
5. बीज की ओज (Seed vigour)
● बीज की ओज उम्र के साथ घटती है।
● ओज से अभिप्राय है कि बीज की उम्र, आकारिकी व क्रियात्मक स्वास्थ्य अच्छा हो।
6. बीज रोगमुक्त हो (Seed Free from disease)
7. बीज की जीवन क्षमता (Seed longivity)
● उत्तम बीज में जीवित भ्रूण उपस्थित होना चाहिए।
● बीज की बुआई से पहले उसकी जीवन क्षमता जाँच लेनी चाहिए।
8. वास्तविक उपयोगिता मान (Real value)

● वास्तविक उपयोगिता मान 75% से कम नहीं होना चाहिए।
9. बीज परिपक्वता (Seed maturity)
● अपरिपक्व बीजों का अंकुरण कम होता है अत: बीज परिपक्व होने चाहिए।

बीजों की अंकुरण क्षमता
क्र.सं. | फसलें | न्यूनतम अंकुरण क्षमता |
1. | मक्का | 90 प्रतिशत |
2. | गेहूँ, जौ, एवं चना | 85 प्रतिशत |
3. | धान, ज्वार, बरसीम,रिजका, तिल | 80 प्रतिशत |
4. | मूंग, मोठ, उड़द, बाजरा, चवला, अरहर | 75 प्रतिशत |
5. | मूँगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, ग्वार | 70 प्रतिशत |
6. | कपास | 65 प्रतिशत |
बीजों की भौतिक शुद्धता
क्र.सं. | फसलें | भौतिक शुद्धता |
1. | भिंडी व कद्दुवर्गीय सब्जियाँ | 99 प्रतिशत |
2. | सरसों, तिल, सोयाबीन | 97 प्रतिशत |
3. | मूँगफली | 96 प्रतिशत |
4. | गाजर | 95 प्रतिशत |
5. | अन्य सभी फसलें | 98 प्रतिशत |
बीज अंकुरण के प्रकार :-
1. ऊपरी भूमिक अंकुरण (Epigeal Germination)– इसमें अंकुरण के समय बीज का बीजपत्र (Cotyledon) भूमि के ऊपर आ जाता है।
उदाहरण– सभी खरीफ दलहनी फसलें – मूँग, मोठ, उड़द आदि (अपवाद– अरहर)
2. अधोभूमिक अंकुरण (Hypogeal Germination) – इस प्रकार के अंकुरण में बीजपत्र मृदा के नीचे ही रहता है।
उदाहरण– सभी रबी दलहनी फसलें – मटर, मसूर, चना आदि (अपवाद– राजमा)
बीज अंकुरण को प्रभावित करने वाले कारक :-
1. मृदा में नमी (Soil Moisture) – बीज अंकुरण के लिए सबसे आवश्यक है कि मृदा में नमी का होना। बीज की भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं के संचालन के लिए नमी आवश्यक है।
2. तापमान – बीजों के अंकुरण के लिए एक तापमान की आवश्यकता होती है, जो सभी फसलों के बीजों के लिए अलग-अलग होता है।
3. ऑक्सीजन – बीज को श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
4. रोशनी (light) – रोशनी/प्रकाश की उपस्थिति भी अंकुरण को प्रभावित करती है।
5. ऑक्सिन की उपस्थिति (Presence of auxin)
6. आरक्षित भोजन (Reserved food)
7. सुषुप्तावस्था (Seed dormancy)
8. बीज की जीवितता (Seed viability)
● उपर्युक्त सभी कारक बीज के अंकुरण को प्रभावित करते हैं।
बीजों की जीवन क्षमता ज्ञात करने की विधियाँ :-
1. टेट्राजोलियम परीक्षण
● इसे जैविक परीक्षण विधि भी कहते हैं।
● तीव्र गति से परीक्षण किया जाता है।
● 2,3,5- ट्राई फिनाइल टेट्राजोलियम क्लोराइड
● 0.5 – 2 प्रतिशत रसायन में बीजों की अभिरंजित किया जाता है।
● जीवित बीजों का रंग लाल हो जाता है एवं मृत बीज अभिरंजित नहीं होते हैं।
2. पोटैशियम परमैंगनेट विधि
3. ग्रोडेक्स परीक्षण
4. इंडिगो कार्मीन विधि
नोट- ग्रो आउट टेस्ट बीजों की आनुवंशिक शुद्धता से ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
बीज सूचकांक (Seed index) :-
● 100 बीजों का भार
● मोटे आकार के बीजों का भार ज्ञात करने के लिए।
परीक्षण भार (Test Weight) :-
● 1000 बीजों का भार
● छोटे आकार के बीजों का भार ज्ञात करने के लिए।
क्र.सं. | फसल | परीक्षण भार (ग्राम) |
1. | चावल | 25 |
2. | बासमती चावल | 21 |
3. | गेहूँ | 40 |
4. | जौ | 37 |
5. | सरसों | 4-6 |
6. | बाजरा | 5-7 |
7. | तिल | 2.5-3 |
8. | ज्वार | 25-30 |
9. | कपास | 70-100 |
10. | मूँगफली | 200-250 |
11. | काबुली चना | 250 |
12. | देशी चना | 150-250 |
13. | मक्का | 200-250 |
14. | संकर मक्का | 250-300 |
15. | सोयाबीन | 55 |
16. | अरंडी | 100-150 |
17. | मूँग | 40-45 |
नोट- गेहूँसा का परीक्षण भार = 2.0 ग्राम होता है।
बीज वर्गीकरण :-
1. न्यूक्लियस बीज/मूल केन्द्रक बीज (Nucleous seed)
● आनुवंशिक व भौतिक शुद्धता – 100 प्रतिशत
● यह बीज बाजार में नहीं मिलता, पादप प्रजनक के पास होता है।
● इसे नाभिक बीज भी कहते हैं।
2. प्रजनक/ब्रीडर सीड (Breeder seed)
● आनुवंशिक व भौतिक शुद्धता 100 प्रतिशत।
● न्यूक्लियस सीड के गुणन द्वारा प्राप्त होता है।
● कृषि अनुसंधान केन्द्रों द्वारा पादप प्रजनक की देखरेख में उत्पन्न किया जाता है।
· टैग – सुनहरा पीला (Golden yellow)
3. आधार बीज (Foundation seed)
· यह प्रजनक बीज से तैयार किया जाता है।
· NSC/SSC (राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य बीज निगम) द्वारा तैयार किया जाता है।
· इसे मातृ बीज (Mother seed) भी कहते है।
· टैग – सफेद रंग (white)
· आनुवंशिक शुद्धता (Genetic purity) – >99%
· भौतिक शुद्धता (physical purity) – 98%
4. पंजीकृत बीज (Registered seed)
● पंजीकृत बीज का उत्पादन भारत में नहीं किया जाता है।
● टैग = बैंगनी
5. प्रमाणित बीज (Certified seed)
● प्रमाणित बीज आधार बीज से उत्पन्न किया जाता है।
● यह बीज किसानों को फसल उत्पादन के लिए बेचा जाता है।
● उत्पादन प्रमाणीकरण संस्था की देखरेख में किया जाता है।
● टैग = नीला
नोट-
● अभी किसानों को 12 प्रतिशत उन्नत बीज ही उपलब्ध हो रहा है।
● सत्य बीज (Truthfull lable seed)- यह बीज प्रमाणित नहीं होता है यह निजी कम्पनी या किसानों द्वारा उत्पादित किया जाता है। इस बीज की जिम्मेदारी उत्पादक की होती है और इस पर लेबल लगा होता है।
बीज | टैग रंग | G.P. व P.P. शुद्धता | उत्पादित संस्था |
मूल केन्द्रक बीज (Nucleous seed) | कोई टैग नहीं होता। | 100% | पादप प्रजनक |
प्रजनक बीज (Breeder seed) | सुनहरा पीला | 100% | अनुसंधान संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय |
आधार बीज (Foundation seed) | सफेद | P.P. -98% G.P.-> 99% | NSC, बीज प्रमाणीकरण संस्था |
प्रमाणित बीज (Certified seed) | नीला | > 98% | पंजीकृत बीज उत्पादक संस्था |
पंजीकृत बीज (Registered seed) | बैंगनी (purple) | भारत मे उत्पादित नहीं किया जाता है। |
बीज की सुषुप्तावस्था (Seed dormancy) :-
● बीजों के अंकुरण के लिए सभी दशाएँ अनुकूल होने पर भी समय पर अंकुरण नहीं हो पाता, इसे बीजों की सुषुप्तावस्था कहते हैं।
● यह तीन प्रकार की होती है–
1. प्राथमिक सुषुप्तावस्था (Primary dormancy)
● यह सुषुप्तावस्था बीज कवच की कठोरता, भ्रूण के अल्प विकास, प्रकाश आवश्यकता तथा रासायनिक कारणों से होती है।
● यह सुषुप्तावस्था प्राकृतिक है।
● इसे आनुवंशिक अथवा जन्मजात सुषुप्तावस्था भी कहते हैं।
2. द्वितीयक सुषुप्तावस्था (Secondary dormancy)
● यह सुषुप्तावस्था सामान्य परिस्थितियों के अभाव में जैसे अपर्याप्त नमी, प्रकाश व तापमान आदि से होती है।
● इसे प्रेरित सुषुप्तावस्था (Induced dormancy) भी कहते हैं।
3. बाध्य/बलकृत सुषुप्तावस्था (Enforced dormancy)
● जब बीजों की मृदा में अधिक गहराई में बोया जाता है तो ये अंकुरित नहीं हो पाते हैं।
● इस प्रकार की सुषुप्तावस्था सामान्यत: खरपतवार के बीजों में देखने की मिलती है।
नोट- जंगली जई में तीनों प्रकार की सुषुप्तावस्था पाई जाती है।
सुषुप्तावस्था को हटाने की विधियाँ:-
1. खुरचना (Scarification)
● बीज के बाहरी सख्त आवरण को खुरच कर तोड़ना जिससे कि पानी व गैसों का विनिमय हो सके।
उदाहरण- धनिया
2. सोलर द्वारा
● इसकी खोज लुथरा नामक वैज्ञानिक ने की।
● बुआई से पहले बीजों को 2-8° C पर 12-24 घण्टे रखते हैं।
3. गर्म जल विधि (Hot water treatment)
● इसकी खोज जेन्सन ने की।
● इसमें बीजों को 50-55°C पर 5 से 10 मिनट के लिए उपचारित किया जाता है।
● मुख्यत: गन्ना में लाल सड़न (रेड रॉट) के उपचार हेतु।
4. प्रकाश से उपचार (Light treatment)
● लाल रंग की किरणों से तंबाकू में बीज अंकुरण को बढ़ावा मिलता है।
रासायनिक विधियाँ :-
● KNO3 = 1-3 प्रतिशत मात्रा सुषुप्तावस्था जल्दी हटाने के काम आती है।
● H2SO4 (सल्फ्यूरिक अम्ल) की 0.1 प्रतिशत मात्रा का प्रयोग
● थायोयुरिया = आलू में प्रयोग (1%)
● जिब्बरेलिन हार्मोन द्वारा
पृथक्करण दूरी (Isolation distance) :-
● फसल की आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखने के लिए किन्हीं दो किस्मों के मध्य निश्चित दूरी रखना पृथक्करण दूरी कहलाती हैं।
पृथक्करण दूरी (मीटर में)
क्र. सं. | फसल | आधार बीज | प्रमाणीकृत बीज (M) |
स्वपरागित फसलें | |||
1. | धान, गेहूँ, जौ, जई, रागी, मूँगफली, मूँग, सोयाबीन | 3 | 3 |
2. | राजमा, चवला, सेम, | 50 | 10 |
3. | तिल | 100 | 50 |
4. | चना | 10 | 5 |
परपरागित फसलें | |||
1. | मक्का | 400 | 200 |
2. | संकर मक्का | 600 | 300 |
3. | बाजरा | 400 | 200 |
4. | संकर बाजरा | 1000 | 200 |
5. | सरसों | 400 | 200 |
6. | अरंडी | 300 | 150 |
7. | रिजका | 400 | 100 |
8. | सनई | 200 | 100 |
9. | सूरजमुखी | 1000 | 500 |
बहुधा परपरागित फसलें | |||
1. | ज्वार | 200 | 100 |
2. | कपास | 50 | 30 |
3. | अरहर | 100 | 50 |
महत्त्वपूर्ण बिंदु
● राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) की स्थापना 7 मार्च, 1963 में हुई (नई दिल्ली)
● राष्ट्रीय बीज अधिनियम (NSA) = 2 अक्टूबर, 1969
● राष्ट्रीय बीज अधिनियम पारित = 1966
● राजस्थान राज्य बीज निगम (RSSC) = 28 मार्च, 1978
● राष्ट्रीय बीज परीक्षण प्रयोगशाला = वाराणसी (1960)
● केन्द्रीय एगमार्क प्रयोगशाला = नागपुर में (1937)
● ISTA = अंतर्राष्ट्रीय बीज परीक्षण संघ = स्विट्जरलैण्ड (1924)
● APEDA = कृषि एवं प्रसंस्करण खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण = 1986
● सर्वाधिक अंकुरण क्षमता मक्का की होती है तथा सबसे कम अंकुरण क्षमता कपास की होती है।
● रोगिंग – मुख्य फसल से अन्य किस्म या फसल (Off type plant) के पौधों को अलग करना।
● बीज नमूना में ISTA के अनुसार 400 बीज लेते हैं तथा NSC व SSC के अनुसार 200 बीज लेते हैं।
● बीजों के भंडारण के लिए एल्युमिनियम फॉस्फेट की 2 टेबलेट/टन का प्रयोग करते हैं।
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