भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान का योगदान
– राजस्थान में क्रांति का आरम्भ 28 मई, 1857 को नसीराबाद छावनी में सैनिकों के विद्रोह से हुआ।
● क्रांति के समय राजपूताना :-
– ए.जी.जी. – जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स
– ए.जी.जी. का कार्यालय सर्दियों में अजमेर व गर्मियों में माउण्ट आबू था।
– अंग्रेजों का शस्त्रागार – अजमेर
– विभिन्न राज्यों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट –
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान का योगदान
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान का योगदान
रियासत | पॉलिटिकल एजेंट |
कोटा | मेजर बर्टन |
जोधपुर | मैक मोसन |
भरतपुर | मॉरीसन |
जयपुर | ईडन |
उदयपुर | शॉवर्स |
सिरोही | जे. डी. हॉल |
– राजस्थान में 6 अंग्रेज छावनियाँ थी –
क्र. सं. | छावनी | मुख्यालय | रेजीमेंट |
1. | खैरवाड़ा | उदयपुर | भील रेजीमेंट |
2. | नीमच | कोटा | कोटा बटालियन |
3. | एरिनपुरा | पाली | जोधपुर लीजियन |
4. | ब्यावर | अजमेर | मेर रेजीमेंट |
5. | नसीराबाद | अजमेर | 15वीं और 30वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री |
6. | देवली | टोंक | कोटा कन्टिन्जेंट |
– खैरवाड़ा व ब्यावर छावनियों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया।
– क्रांति के समय चार प्रमुख एजेंसियाँ कार्यरत थी-
क्र. सं. | नाम | केन्द्र | अंग्रेज अधिकारी |
1. | मेवाड़ राजपूताना स्टेट एजेंसी | उदयपुर | मेजर शॉवर्स |
2. | राजपूताना स्टेट एजेंसी | कोटा | मेजर बर्टन |
3. | पश्चिम राजपूताना स्टेट एजेंसी | जोधपुर | मैक मोसन |
4. | जयपुर राजपूताना स्टेट एजेंसी | जयपुर | कर्नल ईडन |
– कुशलराज सिंघवी के नेतृत्व में जोधपुर की अश्वारोही सेना को अजमेर की रक्षार्थ नियुक्त किया।
● नसीराबाद में विद्रोह :-
– विद्रोह – 28 मई, 1857 को दोपहर 3 बजे
– यहाँ विद्रोह 28 मई, 1857 को 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सैनिकों द्वारा किया गया।
– विद्रोहियों ने मेजर स्पोटिसवुड और कर्नल न्यूबरी की हत्या कर दी तथा लेफ्टिनेंट लॉक तथा कप्तान हार्डी घायल हो गए।
– अंग्रेज अधिकारियों ने ब्यावर में शरण ली।
– यहाँ से विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली के लिए कूच किया।
– मारवाड़ व मेवाड़ की सेना ने अंग्रेज अधिकारियों के नेतृत्व में विद्रोही सैनिकों का पीछा किया।
– 18 जून, 1857 को विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुँचे और अंग्रेजी सेना को परास्त किया।
● नीमच का विद्रोह:-
– विद्रोह – 3 जून, 1857 को रात्रि 11 बजे
– विद्रोहियों ने एक अंग्रेज सार्जेन्ट की पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी व छावनी को लूटा।
– विद्रोही सैनिकों के देवली से टोंक पहुँचने पर टोंक के सैनिक भी इनसे मिल गए।
– नीमच से क्रांतिकारियों के चले जाने के बाद ए.जी.जी. लॉरेन्स के निर्देश पर कैप्टन शॉवर्स ने कोटा, बूँदी और मेवाड़ की राजकीय सेना की सहायता से 8 जून को नीमच छावनी पर पुन: अधिकार कर लिया।
● भरतपुर में विद्रोह:-
– विद्रोह की शुरुआत – 31 मई, 1857
– शाहगंज में अंग्रेजी सेना की हार होने पर मॉरीसन को भरतपुर छोड़ने के आदेश मिले।
– भरतपुर की गुर्जर व मेवाती जनता ने खुलकर क्रांति में भाग लिया।
● धौलपुर में विद्रोह:-
– धौलपुर शासक ने मथुरा और करौली में विद्रोह के दमन हेतु सेना भेजी तथा अंग्रेजों को सुरक्षित आगरा पहुँचाया।
– गुर्जर नेता देवा ने 3000 सैनिकों के साथ राजकीय खजाने से 2 लाख रुपये लूटे।
– राव रामचन्द्र व हीरालाल के नेतृत्व में 1000 क्रांतिकारियों ने राज्य की तोपें लेकर आगरा पर आक्रमण कर दिया।
– दिसम्बर, 1857 तक धौलपुर शासक क्रांतिकारियों के अधीन रहा।
– धौलपुर राजस्थान की एकमात्र रियासत थी, जहाँ विद्रोह बाहर के क्रांतिकारियों (ग्वालियर, इंदौर) द्वारा किया गया तथा इस विद्रोह को बाहर के सैनिकों (पटियाला) के द्वारा दबाया गया।
● एरिनपुरा और आउवा का विद्रोह :-
– एरिनपुरा में जोधपुर लीजियन सैनिक टुकड़ी ने 21 अगस्त, 1857 को क्रांति का बिगुल बजा दिया।
– क्रांतिकारियों ने एरिनपुरा स्टेशन को लूटा और मारवाड़ के रास्ते दिल्ली की ओर रवाना हो गए।
– खैरवा गाँव में सैनिकों की मुलाकात आउवा ठाकुर कुशालसिंह से हुई। कुशालसिंह ने विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व स्वीकार किया।
– बिथौड़ा का युद्ध – 8 सितम्बर, 1857 को राजकीय सेना व विद्रोही सैनिकों के मध्य हुआ, जिसमें क्रांतिकारी विजयी हुए।
– चेलावास का युद्ध – 18 सितम्बर को अंग्रेजी सेना व क्रांतिकारियों में हुआ, जिसमें विद्रोही सैनिक जीत गए।
– क्रांतिकारियों ने मैक मोसन का सिर काटकर आउवा में घुमाया और किले के दरवाजे पर टाँग दिया।
– कर्नल होम्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने आउवा पर आक्रमण किया।
– किलेदार के विश्वासघात के कारण 24 जनवरी, 1858 को अंग्रेजी सेना ने किले पर अधिकार कर लिया।
– किले के मंदिर में स्थापित सुगाली माता की मूर्ति को होम्स अजमेर ले गया।
– 8 अगस्त, 1860 को ठाकुर कुशालसिंह ने नीमच में आत्मसमर्पण कर दिया।
– मेजर टेलर की अध्यक्षता में जाँच आयोग ने कुशालसिंह के खिलाफ जाँच की तथा निर्दोष करार दिया।
● कोटा का जनविद्रोह :-
– 15 अक्टूबर, 1857 को सैनिकों ने लाला जयदयाल और मेहराब खाँ के नेतृत्व में क्रांति का बिगुल बजा दिया।
– विद्रोहियों ने मेजर बर्टन, उसके दो पुत्रों और सर्जन डॉ. सेडलर की हत्या कर दी।
– क्रांतिकारियों ने राज्य की 127 तोपों, कोतवाली, राजकोष और रसद भण्डारों पर अधिकार कर लिया।
– कोटा महाराव को महल में नजरबंद कर दिया।
– राज्य पर लगभग 6 माह (5 माह – हिन्दी ग्रन्थ अकादमी) तक विद्रोहियों का नियंत्रण रहा।
– करौली शासक द्वारा भेजे गए 2000 सैनिक कोटा महाराव को मुक्त नहीं करा सके।
– 30 मार्च, 1858 को अंग्रेजी सेना ने कोटा को क्रांतिकारियों से मुक्त करवा दिया।
– मेजर बर्टन की हत्या के संबंध में लॉर्ड रॉबर्ट्स की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग गठित किया गया।
– जाँच आयोग ने महाराव को निरपराध, लेकिन उत्तरदायी बताया।
– कोटा महाराव की तोपों की सलामी 15 से घटाकर 11 कर दी गई।
● मेवाड़ का विद्रोह :-
– मेवाड़ की जनता व अधिकांश सामंत अंग्रेज विरोधी थे।
– महाराणा ने नीमच में दमन हेतु अपनी सेना भेजी।
– नसीराबाद से आए अंग्रेजों को पिछोला झील के जगमंदिर महल में सुरक्षित ठहराया।
– नीमच, निम्बाहेड़ा व जीरन में विद्रोह का दमन करने में महाराणा स्वरूपसिंह ने अंग्रेजों की मदद की।
● करौली में क्रांति :-
– मदनपाल ने अपनी पूरी सेना अंग्रेजों की मदद के लिए आगरा भेज दी।
– करौली शासक ने कोटा महाराव की सहायता हेतु 2000 सैनिक भेजे।
– मदनपाल को Grand Commander State of India की उपाधि दी गई तथा तोप सलामी की संख्या बढ़ाकर 17 कर दी गई।
● अलवर में विद्रोह :-
– बन्नेसिंह ने आगरा में अंग्रेजों की मदद हेतु अपनी सेना भेजी।
– दिल्ली के पतन के बाद क्रांतिकारियों ने अलवर में शरण ली। जहाँ उन्हें जनता का समर्थन मिला, लेकिन राज्य की पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंप दिया।
● टोंक में विद्रोह :-
– राज्य की सेना ने क्रांतिकारियों का साथ दिया।
– टोंक में नवाब की सेना ने मीर आलम खाँ के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
– नवाब ने सैनिकों को डराने-धमकाने का भरपूर प्रयास किया, किन्तु वह सफल नहीं हुआ।
– टोंक की सेना व जनता ने तात्या टोपे की सहायता की।
● बीकानेर में विद्रोह :-
– बीकानेर शासक ने क्रांतिकारियों के दमन हेतु स्वयं अभियान का नेतृत्व किया और सेना लेकर राज्य से बाहर गया।
– यह विद्रोहियों के दमन हेतु सेना लेकर पंजाब के हासी, सिरसा व हिसार गया।
– बीकानेर की सेना ने ‘वाडलू’ नामक स्थान पर क्रांतिकारियों को पराजित किया।
– क्रांति के समय महाराजा द्वारा किए गए सहयोग के कारण अंग्रेज सरकार ने बीकानेर को ‘टीबी परगने’ के 41 गाँव दिए।
● बाँसवाड़ा में विद्रोह :-
– कुशलगढ़ के राव हमीरसिंह ने विद्रोही सैनिकों को रोकने का असफल प्रयास किया। अत: अंग्रेज सरकार ने उसे ‘खिलअत’ देकर सम्मानित किया।
– 11 दिसम्बर, 1858 को तात्या टोपे ने बाँसवाड़ा पर अधिकार कर दिया लेकिन एक दिन बाद ही अंग्रेजी सेना के आने के कारण वह मेवाड़ की ओर चला गया।
● झालावाड़ में विद्रोह :-
– झालावाड़ शासक पृथ्वीसिंह ने क्रांतिकारियों को पकड़ने में मदद करने वालों को इनाम देने की घोषणा की।
– दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने पर पृथ्वीसिंह ने खुशियाँ मनाई और ए.जी.जी. को बधाई भेजी।
● राजस्थान और तात्या टोपे :-
– 22 जून, 1858 को अलीपुर में चार्ल्स नेपियर ने टोपे को पराजित किया।
– सैन्य सहायता की आशा में वह राजस्थान आया। टोंक नवाब द्वारा तात्या के विरुद्ध भेजी गई सेना विद्रोही सैनिकों के साथ मिल गई।
– 9 अगस्त, 1858 को सांगानेर के पास जनरल रॉबर्ट्स की सेना से पराजित होने के बाद कोठारिया चला गया।
– कोठारिया के रावत जोधसिंह ने तात्या की सहायता की।
– 13 अगस्त, 1858 को तात्या रूकमगढ़ के पास अंग्रेजी सेना से पुन: परास्त हुआ और आकोला होते हुए झालरापाटन पहुँचा।
– 11 दिसम्बर को तात्या ने बाँसवाड़ा पर अधिकार कर लिया।
– बाँसवाड़ा से वह सलूम्बर की ओर गया जहाँ रावत केसरीसिंह ने उसकी मदद की।
– तात्या भीण्डर से होता हुआ प्रतापगढ़ पहुँचा, जहाँ मेजर रॉक से हुए युद्ध में उसे भारी क्षति पहुँची।
– सीकर में तात्या कर्नल होम्स से पराजित हुआ।
– तात्या के 600 सैनिकों ने बीकानेर महाराजा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। अंतत: निराश होकर तात्या अपने मित्र नरवर के मानसिंह के पास चला गया।
– मानसिंह ने विश्वासघात करते हुए 7 अप्रैल, 1859 को तात्या को अंग्रेजों को सुपुर्द कर दिया।
– 18 अप्रैल, 1859 को उसे फाँसी दे दी गई।
● क्रांति की असफलता के कारण :-
– जयपुर, अलवर, धौलपुर, भरतपुर, करौली, टोंक, सिरोही, बीकानेर, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ के शासकों ने क्रांति का दमन करने में ब्रिटिश सत्ता का सहयोग दिया।
– कोटा, नसीराबाद, भरतपुर, धौलपुर, टोंक आदि स्थानों पर अलग-अलग समय पर क्रांति होने के कारण अंग्रेजों को विद्रोहियों से निपटने का अवसर मिल गया।
– क्रांतिकारियों का कोई केन्द्रीय संगठन नहीं था तथा उनमें नेतृत्व का सर्वथा अभाव था। उनमें आपसी सम्पर्क भी नहीं था।
– विद्रोह के पश्चात् सैनिकों का अजमेर की बजाय दिल्ली कूच करना।
– क्रांतिकारियों को धन, रसद और हथियारों की कमी का भी सामना करना पड़ा।
रियासत | क्रांति के समय शासक |
कोटा | महाराव रामसिंह द्वितीय |
जोधपुर | तख्तसिंह |
भरतपुर | जसवंतसिंह |
उदयपुर | स्वरूपसिंह |
जयपुर | सवाई रामसिंह द्वितीय |
सिरोही | शिवसिंह |
धौलपुर | भगवंतसिंह |
बीकानेर | सरदारसिंह |
करौली | मदनपाल |
टोंक | वजीरुद्दौला |
बूँदी | रामसिंह |
अलवर | विनयसिंह |
जैसलमेर | रणजीतसिंह |
झालावाड़ | पृथ्वीसिंह |
प्रतापगढ़ | दलपतसिंह |
बाँसवाड़ा | लक्ष्मणसिंह |
डूँगरपुर | उदयसिंह |
डूँगरपुर | उदयसिंह |
– क्रांति के प्रमुख व्यक्तित्व :-
● अमरचंद बाँठिया –
– जन्म – 1797, बीकानेर
– मूलत: बीकानेर निवासी।
– ये ग्वालियर में व्यापार करते थे।
– इन्हें ‘ग्वालियर का नगर सेठ’ और ‘कोषाध्यक्ष’ का सम्मान प्राप्त था।
– क्रांति के समय बाँठिया ने रानी लक्ष्मी बाई व तात्या टोपे की आर्थिक सहायता की थी।
– अत: इनको ग्वालियर में 22 जून, 1858 को फाँसी दे दी गई।
– ये 1857 की क्रांति में राजस्थान के प्रथम शहीद थे।
– उपनाम – 1. 1857 की क्रांति का भामाशाह
2. राजस्थान का मंगल पांडे
● मेहराब खान (कोटा) –
– जन्म – 11 मई, 1815 को करौली में।
– मेहराब खान कोटा स्टेट आर्मी में रिसालदार थे।
– कोटा में एजेंसी हाउस पर अक्टूबर, 1857 में आक्रमण किया।
– इस आक्रमण में मेजर बर्टन, उनके दो पुत्र और कई सारे लोग मारे गए।
– इन्होंने लाला जयदयाल भटनागर के साथ कोटा राज्य का शासन अपने हाथ में ले लिया।
– 1859 में अंग्रेजों के हाथों पकड़े गए और इन्हें मृत्युदंड दे दिया गया।
● रावत जोधसिंह (कोठारिया) –
– मेवाड़ के कोठारिया ठिकाने के ठिकानेदार।
– 1857 की क्रांति के समय क्रांतिकारियों का साथ दिया।
– आउवा के ठाकुर कुशालसिंह को अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता व शरण दी।
– अगस्त, 1858 में तात्या टोपे की रसद आदि से सहायता की।
– नाना साहब जब बिठुर से भागकर कोठारिया आए, तब जोधसिंह ने उन्हें शरण दी तथा सहायता की।
● रावत केसरीसिंह (सलूम्बर) –
– मेवाड़ राज्य के सलूम्बर ठिकाने के ठिकानेदार।
– विद्रोह में क्रांतिकारियों को शस्त्र, रसद व सैनिक सहायता दी।
– कई विद्रोहियों को अपने यहाँ शरण दी।
– नीमच में विद्रोह को दबाने के कारण मेवाड़ महाराणा को धमकी दी।
– केसरीसिंह ने आउवा ठाकुर कुशालसिंह व तात्या टोपे की सहायता की तथा उन्हें शरण दी।
● लाला जयदयाल भटनागर (कोटा) –
– जन्म – 4 अप्रैल, 1812 को कामां, भरतपुर
– ये कोटा महाराव के दरबार में वकील थे।
– इन्होंने 1857 के विद्रोह में कोटा के विद्रोह का नेतृत्व किया।
– मार्च, 1858 में जनरल रॉबर्ट्स ने कोटा में विद्रोहियों से युद्ध किया।
– 1860 में कोटा में फाँसी दी गई।
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