राजस्थान की लोक गायन शैलियाँ
(क) माण्ड गायिकी
● 10वीं सदी में जैसलमेर क्षेत्र को माण्ड कहा जाता था तथा इस क्षेत्र में विकसित गायन शैली को माण्ड गायन शैली कहा गया है।
● यह राजस्थान की एक शृंगार रसात्मक राग है।
प्रसिद्ध मांड गायिकाएँ
अल्लाह जिलाह बाई
● स्थान – बीकानेर
● केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश।
गवरी देवी – बीकानेर
गवरी देवी – पाली
मांगी बाई – उदयपुर
● राजस्थान का राज्य गीत प्रथम बार गाया।
जमीला बानो – जोधपुर
बन्नो बेगम – जयपुर
(ख) मांगणियार गायिकी
● बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर में मांगणियार जाति के लोगों द्वारा अपने यजमानों के यहाँ मांगलिक अवसरों पर गाई जाने वाली लोक गायन शैली है।
● मांगणियार मुस्लिम मूलत: सिंध प्रांत के हैं।
● गायन-वादन ही इनका प्रमुख पेशा है।
● प्रमुख वाद्य – कामायचा, खड़ताल
● प्रसिद्ध कलाकार – पद्मश्री लाखा खाँ (सिंधी सारंगी) साफर खाँ मांगणियार, गफूर खाँ मांगणियार, रमजान खाँ (ढोलक वादक), सद्दीक खाँ (खड़ताल वादक), साकर खाँ मांगणियार (कामायचा वादक)
● सद्दीक खाँ मांगणियार लोक कला अनुसंधान परिषद् – जयपुर
● इस संस्था की स्थापना वर्ष 2003 में की गई थी।
(ग) लंगा गायिकी
● बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर एवं जैसलमेर जिले के पश्चिमी क्षेत्रों में मांगलिक अवसरों एवं उत्सवों पर लंगा जाति के गायकों द्वारा गायी जाने वाली गायन शैली है।
● प्रमुख वाद्य – सारंगी, कामायचा
● प्रमुख कलाकार – फूसे खाँ, महरदीन लंगा, करीम खाँ लंगा
● प्रमुख गीत – नीबूड़ा-नीबूड़ा
(घ) तालबंदी गायिकी
● जब औरंगजेब ने संगीत पर रोक लगा दी थी तब ब्रजक्षेत्र के साधु पूर्वी राजस्थान में आकर रहने लगे तथा इन साधुओं द्वारा इस लोक गायन शैली का प्रचलन किया गया था।
● प्रमुख वाद्य – नगाड़ा, सारंगी, हारमोनियम, ढोलक, तबला व झाँझ
राजस्थान की संगीतजीवी जातियाँ
कलावन्त
● अबुल फजल के अनुसार कलावन्त ध्रुपद के पारंगत गायक हैं।
● मारवाड़ के कलावन्त सुन्नी मुसलमान है।
● ये ऐसे गायक होते हैं जो वाद्य यंत्र नहीं बजाते हैं तथा नृत्य से भी परहेज करते हैं।
● जयपुर का डागर घराना इसी जाति का है। ये तानसेन के वंशज माने जाते हैं।
कव्वाल
● सूफी परम्परा के गायक।
● कव्वाली इनकी गायन शैली है, जिसका आविष्कार अमीर खुसरो ने किया।
ढाढ़ी
● पश्चिमी राजस्थान की गायक – वादक जाति।
● सारंगी व रबाब इनका प्रमुख वाद्य हैं। ये ‘चिंकारा’ नामक वाद्य भी बजाते हैं।
मिरासी
● मुस्लिम गायक जाति जो लोककाव्य को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखती है।
● यह जाति मुख्यत: मारवाड़, जयपुर एवं अलवर क्षेत्र में विस्तृत है।
मांगणियार
● ‘मांगणियार’ शब्द का शाब्दिक अर्थ – माँगने वाला।
● ये जाति जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर में निवास करने वाली गायक वादक जाति है।
● लंगा एवं मांगणियार विशिष्ट प्रकार के गीत गाते हैं जो ‘जांगड़ा’ कहलाते हैं।
● ये मुसलमान है और इनकी खापें देधड़ा, बेद, बारणी, कालूंभा, जारया, सोनलिया, गुणसार, पौड़िया हैं।
● प्रमुख वाद्य
● कामायचा, खड़ताल।
भाट
● भाट अपने यजमानों की वंशावलियाँ लिखते हैं और उनका बखान करते हैं।
● उत्तर पश्चिम राजस्थान में भाट अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
डोम
● ये भाटों का ही उपवंश है जो हिन्दू धर्म को मानते हैं।
ढोली
● मांगलिक अवसरों पर ढोल बजाने वाली जाति। इन्हें दमामी, नक्कारची, जावड़ आदि भी कहा जाता है।
● जड़िया, गीला, देधड़ा, देसार, बगार, तेखा, डांगी आदि ढोली की प्रमुख खापें हैं।
लंगा
● पश्चिमी राजस्थान में निवास करने वाली गायक व वादक जाति लंगा मुस्लिम होते हुए भी हिन्दू त्योहार मनाते हैं व जोगमाया को मानते हैं। मांड गायन में इनको महारत हासिल हैं। ‘बड़वना’ (बाड़मेर) गाँव इस जाति का मुख्य स्थान है।
● प्रमुख वाद्य – सारंगी
भवाई
● नाचने-गाने वाली इस जाति की उत्पत्ति केकड़ी (अजमेर) से नागाजी जाट से मानी जाती है। मेवाड़ क्षेत्र में रहने वाली इस जाति का ‘भवाई’ नृत्य संसार में प्रसिद्ध है।
रावल
● मारवाड़ के सोजत-जैतारण क्षेत्र, बीकानेर तथा मेवाड़ के कुछ क्षेत्रों में पाई जाने वाली संगीत जीवी जाति जिसकी रम्मतें विख्यात हैं। रावल जाति चारणों को अपना यजमान मानती है।
कामड़
● इस जाति के लोग बाबा रामदेवजी के परमभक्त है।
● कामड़ जाति की स्त्रियाँ तेरहताली नृत्य में प्रवीण होती हैं।
भोपा
● कथावाचक, जो फड़ का श्रोताओं के सम्मुख ओजपूर्ण रूप से वर्णन करता है। देवरे का मुख्य भोपा पाटवी कहलाता है।
● कुछ देवी-देवताओं के भोपे भाव आने पर रूई की जलती बाती को जीभ पर रखकर मुँह बंद कर लेते हैं, इसे ‘केकड़ा खाना’ कहते हैं।
भोपे सम्बन्धित वाद्य
रामदेवजी के भोपे- तन्दूरा |
पाबूजी के भोपे- रावणहत्था |
भैरुजी के भोपे- मशक |
गोगाजी के भोपे -डेरू |
सरगड़ा – ढोल वादक जाति।
● कच्छी घोड़ी नृत्य में कुशल। ‘बर्गू’ वाद्ययंत्र का प्रयोग सरगड़ा जाति द्वारा किया जाता है।
● ‘बर्गू’ सुषिर वाद्य है।
कानगूजरी
● मारवाड़ की गायक जाति जो राधा-कृष्ण के भक्ति गीतों का गायन रावणहत्था के साथ करती है।
जोगी
● नाथ पंथ के अनुयायी, जो गाने बजाने का काम करते हैं।
● इनका मुख्य वाद्य यंत्र सारंगी व इकतारा है।
बैरागी, कालबेलिया, कठपुतली, अड़ भोपा, फंदाली, चारण, राव, मोतीसर आदि प्रमुख अन्य संगीतजीवी जातियाँ हैं।
प्रमुख संगीतज्ञ
अल्लाह जिलाह बाई
● राजस्थान की विख्यात मांड गायिका।
● राजस्थान के बीकानेर जिले की निवासी।
● वर्ष 1982 में ‘पद्मश्री’ अलंकरण से सम्मानित।
● प्रमुख गीत – “केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश……”
● मरणोपरान्त राजस्थान रत्न पुरस्कार से वर्ष 2012 में सम्मानित।
जगजीत सिंह
● जन्म – श्रीगंगानगर
● विख्यात गजल गायक
● उपनाम – गजल किंग।
● 2003 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित।
● मरणोपरान्त राजस्थान रत्न पुरस्कार – 2012 में सम्मानित।
करणा भील
● जैसलमेर का प्रसिद्ध नड़ वादक।
● पहले किसी समय कुख्यात डाकू था।
● वह अपनी छह फुट आठ इंच लम्बी मूँछों के लिए भी विख्यात था।
गवरी बाई
● डूँगरपुर निवासी।
● कृष्ण भक्ति के कारण ‘वागड़ की मीरां’ की उपमा।
● ग्रन्थ ‘कीर्तनमाला’ (801 पद)।
● 1818 ई. में उन्होंने यमुना नदी में जल समाधि ले ली।
बन्नो बेगम
● जयपुर की प्रसिद्ध मांड गायिका थी।
● यह जयपुर की प्रसिद्ध गायिका व नर्तकी गौहर जान की पुत्री हैं।
मेहंदी हसन
● मशहूर गजल गायक। झुंझुनूँ जिले से सम्बन्ध।
जमीला बानो
● जोधपुर निवासी मांड गायिका।
नारायण सिंह बैगनियां
● निवासी- धौलपुर
● राजस्थान का सबसे छोटा कलाकार (24 इंच)।
रुकमा मांगणियार
● बाड़मेर की ‘कागी’ गायिका। यह मांगणियार जाति की पहली महिला गायिका है।
पण्डित बाबूलाल
● जयपुर कत्थक घराने के मूर्धन्य कलाकार।
मधु भट्ट तैलंग
● ध्रुपद गायिका।
सद्दीक खाँ मांगणियार
● विश्व प्रसिद्ध मांगणियार गायक एवं खड़ताल वादक थे।
● स्व. श्री सद्दीक खाँ मांगणियार की स्मृति में 13 सितम्बर, 2002 को सद्दीक खाँ मांगणिक लोक कला एवं अनुसंधान परिषद् (लोकरंग) की स्थापना जयपुर में की गई।
अमीर खुसरो
● इनका जन्म उत्तर प्रदेश में 1253 ई. में हुआ था।
● खुसरों अलाउद्दीन खिजली के दरबारी संगीतज्ञ थे।
● उन्होंने ईरानी एवं भारतीय संगीत शैलियों के समन्वय से हिन्दुस्तानी संगीत प्रारंभ किया तथा गायन की एक नई शैली कव्वाली विकसित की।
● उन्होंने तराना, गजल व ख्याल गायिकी को भी ईजाद किया।
● कुछ ग्रन्थकार उन्हें तबला एवं सितार का आविष्कारक भी मानते हैं परन्तु इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई है।
मिर्जा गालिब
● प्रसिद्ध शायर व गजलकार जिनका पूरा नाम मौलाना असद अल्लाखाँ गालिब था।
● इनका जन्म 1786 ई. में तथा मृत्यु 1869 में हुई।
● इनकी मजार नई दिल्ली में है।
राजा मानसिंह तोमर
● ग्वालियर के शासक (1486-1516 ई.) जो पं. स्वयं भी एक अच्छे विद्वान व संगीतज्ञ थे।
● उन्होंने बैजू बावरा के सहयोग से ध्रुपद गायन को परिष्कृत रूप प्रदान कर उसका पुनरुद्धार किया।
तानसेन
● तानसेन का जन्म ग्वालियर राज्य के बेहट ग्राम में मकरन्द पाण्डे के घर हुआ था।
● उनके संगीत गुरु स्वामी हरिदास थे, जो उस समय के प्रकाण्ड संगीतज्ञ थे।
● ये रीवाँ (मध्य प्रदेश) के महाराजा रामचन्द्र देव के दरबारी थे।
● यह बाद में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे।
● तानसेन भारत के अब तक के सबसे विद्वान संगीतज्ञ हुए हैं।
● ये ध्रुपद की गौहरवाणी के सर्वाधिक ज्ञाता थे।
बैजू बावरा
● ग्वालियर के शासक मानसिंह तोमर के दरबारी संगीतज्ञ थे।
● तानसेन के समकालीन बैजू बावरा ध्रुपद के सिद्धहस्त गायक थे।
सवाई प्रताप सिंह
● जयपुर नरेश सवाई प्रताप सिंह संगीत एवं चित्रकला के प्रकाण्ड विद्वान एवं आश्रयदाता थे।
● ये स्वयं भी ‘ब्रजनिधि’ उपनाम से काव्य रचना करते थे।
● उन्होंने संगीत का विशाल सम्मेलन कराकर संगीत के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘राधागोविन्द संगीत सार’ की रचना करवाई, जिसके लेखन में उनके राज कवि देवर्षि ब्रजपाल भट्ट का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
● उनके दरबार में बाईस प्रसिद्ध संगीतज्ञों एवं विद्वानों की मंडली ‘गंधर्व बाईसी’ थी। देवर्षि द्वारकानाथ भट्ट, ब्रजपाल भट्ट, चाँद खाँ, गणपत भारती आदि उनके प्रसिद्ध दरबारी संगीतज्ञ थे।
पं. विष्णु नारायण भातखण्डे
● उनका जन्म महाराष्ट्र में सन् 1830 में हुआ।
● वे प्रसिद्ध संगीत सुधारक एवं प्रचारक थे
● वे सामान्य संगीत शिक्षा के सबसे पहले अन्वेषक थे।
● संगीत शिक्षण को जनप्रिय बनाने हेतु उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की तथा देश में कई स्थानों पर संगीत विद्यालयों की स्थापना की।
पं. उदयशंकर
● उनका जन्म उदयपुर में हुआ था।
● वे प्रख्यात कत्थक नर्तक रहे हैं।
पं. रविशंकर
● उनके गुरु मेहर के बाबा उस्ताद अलाउद्दीन खाँ (प्रसिद्ध सितार वादक) थे।
● वे पं. उदयशंकर के अनुज थे।
● वे विश्व के शीर्षस्थ सितारवादकों में से एक थे जिन्होंने भारतीय संगीत को विदेशों तक में लोकप्रिय बनाया है।
● उन्हें अमेरिका का प्रसिद्ध संगीत पुरस्कार ‘ग्रेमी पुरस्कार मिल चुका है।
पं. विश्वमोहन भट्ट
● जयपुर के विश्व प्रसिद्ध सितारवादक थे
● जिन्हें वर्ष 1994 में स्पेनिश गिटारवादक राईकूडर के साथ जुगलबंदी कर कॉम्पेक्ट डिस्क A meeting by the River’ पर प्रसिद्ध ग्रेमी पुरस्कार मिला।
● उन्हें 2002 में पद्मश्री सम्मान, ग्रेमी अवॉर्ड व 2012 राजस्थान रत्न से नवाजा गया। वर्ष 2017 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है।
● उन्होंने एक नई राग ‘गौरीम्मा’ का सृजन किया है।
● उन्होंने पश्चिमी गिटार में 14 तार जोड़कर इसे ‘मोहनवीणा’ का रूप दिया है जो वीणा, सरोद एवं सितार का सम्मिश्रण हैं।
श्रीराम नारायण शर्मा
● मेवाड़ (उदयपुर) के श्रीरामनारायण शर्मा प्रमुख सारंगी वादक है।
● सारंगी वादन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता दिलाई।
● उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा 1976 में पद्मश्री, 1991 में पद्मभूषण और 2005 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।
जहीरुद्दीन एवं फैयाजुद्दीन डागर
● डागर घराने के प्रसिद्ध ध्रुपद गायक, जिन्होंने ध्रुपद में जुगलबंदी की परम्परा स्थापित कर ध्रुपद को नया रूप दिया।
महाराजा अनूपसिंह
● बीकानेर के शासक, जो स्वयं एक विद्यानुरागी एवं विद्वान संगीतज्ञ थे।
● उनके दरबार में भाव भट्ट जैसे संगीतज्ञ और कई विद्वान आश्रय पाते थे।
हरिसिंह
● किंवदंती है कि इन्होंने एक राग से पत्थर को पिघला दिया था।
● इनको ‘राजस्थान का तानसेन’ कहते हैं।
जयसुख बाई
● अलवर रियासत की प्रमुख गायिका, जो मर्दाने ढंग से ख्याल गाती थी।
चाँद खाँ
● जयपुर नरेश सवाई प्रतापसिंह के समय में गंधर्व बाईसी के प्रधान।
मस्सू खाँ
● श्रेष्ठ ख्याल गायक, बेकस रत्नावली नामक बंदिशों का संग्रह।
नन्ही बाई
● तानसर खाँ की परम शिष्या, उच्च कोटी की गायिका।
घग्घे खुदाबख्श
● जयपुर नरेश रामसिंह के शासनकाल का सर्वश्रेष्ठ गायक।
सदरुद्दीन खाँ
● जयपुर के सवाई रामसिंह के गुणीजन खाने के श्रेष्ठ गायक।
वासुदेव भट्ट
● राजस्थानी फिल्मों के चरित्र अभिनेता एवं संगीत शास्त्री।
जमालसेन
● वन्दे मातरम गीत की धुन बनाई।
वाजिद अलीशाह
● वे अवध के नवाब और प्रसिद्ध संगीतकार थे।
● वे ललनपिया उपनाम से ठुमरियों की रचना करते थे।
पुण्डरीक विट्ठल
● जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह एवं सवाई मानसिंह द्वितीय के आश्रित कवि एवं संगीतज्ञ थे।
उस्ताद चाँद खाँ
● सवाई प्रतापसिंह के संगीत गुरु थे।
रमाबाई
● महाराणा कुम्भा की पुत्री जो प्रसिद्ध संगीतज्ञ थी।
● उनके लिए वागीश्वरी बहुमान का प्रयोग हुआ था।
संगीत घराने
● संगीत घराने का अर्थ किसी विशिष्ट गुरु परम्परा से होता है।
● घराना गुरु और उनके शिष्यों के सहयोग से बनता है जो एक विशिष्ट गायन या वादन शैली या नृत्य शैली का सूचक होता है।
गायन और वादन के प्रमुख संगीत घराने
जयपुर घराना
● प्रवर्तक – मनरंग (भूपत खाँ)
● मनरंग दिल्ली घराने के प्रवर्तक सदारंग के पुत्र थे।
● मुहम्मद अली खाँ कोठी वाले इस घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ हुए है।
● अन्य गायक कलाकार – केसर बाई केरगर, मोगूबाई, कुडीकर, मंजी खाँ, भूजी खाँ आदि।
पटियाला घराना
● प्रवर्तक – फतेह अली (आलिया फत्तू) एवं अली बख्श
● यह जयपुर घराने की उपशाखा है।
● उन दोनों ने राजस्थान की प्रसिद्ध गायिका गौकीबाई से संगीत शिक्षा ग्रहण की।
● पाकिस्तानी गजल गायक – गुलाम अली इसी घराने से संबंधित है।
जयपुर का बीनकार घराना
प्रवर्तक – रज्जब अली खाँ बीनकार
● श्रीरज्जब अली जयपुर के महाराजा रामसिंह के दरबार में प्रसिद्ध बीनकार थे।
● अन्य प्रसिद्ध गायक – साँवल खाँ, मुशर्रफ खाँ एवं सादिक अली खाँ आदि।
अतरौली घराना
● प्रवर्तक – साहब खाँ एवं अल्लादिया खाँ
● यह घराना भी जयपुर घराने की उपशाखा है।
● रुलाने वाले फकीर के नाम से प्रसिद्ध मानतोल खाँ इस घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे।
अल्लादिया घराना
● प्रवर्तक – अल्लादिया खाँ
● जयपुर के अल्लादिया खाँ ध्रुपद की गौहर वाणी एवं खण्डार वाणी के प्रसिद्ध गायक थे।
● किशोरी अमोणकर इस घराने की प्रसिद्ध गायिका हैं।
मेवाती घराना
● प्रवर्तक – उस्ताद घग्घे नजीर खाँ
● यह महाराजा जसवंत सिंह के दरबारी गायक थे।
● इस घराने की गायिकी में मोतीराम ज्योतिराम (मोती -ज्योति) ने विशेष ख्याति अर्जित की।
● वर्तमान में प्रसिद्ध संगीतज्ञ – पं. जसराज, पं. मणिराम, पं. प्रताप एवं श्री पूरण चंद आदि हैं।
डागर घराना
● प्रवर्तक – बहराम खाँ डागर
● यह महाराजा रामसिंह के दरबारी गायक थे।
● ध्रुपद की डागुर वाणी के लिए प्रसिद्ध इस घराने का आदिपुरुष बाबा गोपालदास (इमाम बख्श) को माना जाता है।
● अन्य प्रसिद्ध संगीतज्ञ – तानसेन, जाकिरुद्दीन खाँ, नसीर मुइनुद्दीन खाँ, अमीनुद्दीन खाँ, पाण्डेय आदि।
जयपुर का सेनिया घराना
● प्रवर्तक – सूरत सेन
● तानसेन के पुत्र थे।
● यह सितारियों का घराना है। अमृत सेन इस घराने के प्रसिद्ध सितारिये हुए हैं।
रंगीला घराना
प्रवर्तक – रमजान खाँ (मियाँ रंगीले)
● मियाँ रंगीले जोधपुर के गायक इमाम बख्श के शिष्य थे।
आगरा घराना
प्रवर्तक – हाजी सुजान खाँ,
● प्रसिद्ध संगीतज्ञ – घग्घे खुदा बख्श खाँ
ग्वालियर घराना
प्रवर्तक – अब्दुला खाँ एवं कादिर बख्श खाँ
● इसके प्रसिद्ध संगीतज्ञ हद्दू खाँ एवं हस्सू खाँ हैं।
किराना घराना
प्रवर्तक – बन्दे अली खाँ
– यह घराना महाराष्ट्र में अधिक प्रचलित है।
– उस्ताद रज्जब अली एवं पं. भीमसेन जोशी इस घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ हुए।
● अन्य प्रसिद्ध संगीतज्ञ – गंगू बाई हंगल, रोशन आरा बेगम आदि।
दिल्ली घराना
● प्रवर्तक – सदारंग (नियामत खाँ)
● सदारंग ख्याल गायन शैली के प्रवर्तक माने जाते हैं।
जयपुर का कत्थक घराना
प्रवर्तक – भानूजी
● उत्तर भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य कत्थक का उद्भव राजस्थान में 13 वीं सदी में हुआ माना जाता है।
● कत्थक नृत्य की हिन्दू शैली का प्रतिनिधित्व जयपुर घराना ही करता है।
● जयपुर घराना कत्थक नृत्य शैली का आदिम घराना माना जाता है।
● यहीं से यह शेष भारत में फैला।
प्रमुख आधुनिक वादक
सिंधी सारंगी वादक
● पद्मश्री लाखा खाँ
● जन्म – वर्ष 1945
● जन्म स्थान – राणेरी गाँव, बाप तहसील, जोधपुर
● जाति – मांगणियार
● उन्होंने परिणिति फिल्म में झिमी चाँद झिमी गाना गाया था।
● उन्होंने अमेरिका पेरिस, लन्दन मॉरिसिस, जर्मनी, जापान, फ्रांस सहित 15 देशों में परफार्म कर चुके है।
● उन्होंने वर्ष 2021 में केन्द्र सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से शामिल किया गया।
तबला वादक
● अल्लारक्खा खाँ, देवीलाल, भवानी शंकर, पं. प्रसाद मिश्र (गुदई महाराज), किशन महाराज, उस्ताद जाकिर हुसैन ।
सरोद वादक
● उस्ताद अली अकबर खाँ, उस्ताद अमजद अली खाँ, शरण राणी, जरीना दारूवाला शर्मा।
सुरबहार वादक
● अन्नपूर्णा देवी (पं. रविशंकर की पत्नी)
सितार वादक
● भारत रत्न पं. रविशंकर, कु. अनुष्का (रविशंकर की पुत्री), उस्ताद विलायत खाँ।
वायलिन वादक
● श्रीमती एन. राजन, सत्यदेव पँवार
बाँसुरी वादक
● बाबूलाल शर्मा, भास्कर गोस्वामी, जमुना प्रसाद वर्मन, जगदीश प्रसाद वर्मन आदि।
● भारत के हरिप्रसाद चौरसिया, स्व. श्री पन्ना लाल घोष ।
सारंगी वादक
● पद्मभूषण रामनारायण, उस्ताद सुल्तान खाँ।
संतूर वादक
● पं. शिव कुमार शर्मा। संतूर जम्मू एवं कश्मीर का लोक वाद्य है।
मृदंग वादक
● मथुरालाल, नूतन प्रकाश पारीक, गोपाल शर्मा, रतनलाल वर्मा, मूलचन्द कुमावत।
शहनाई वादक
● भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ।
● दो महान ऐतिहासिक सम्राट वीणाकार हुए
1. समुद्रगुप्त
2. औरंगजेब
राजस्थान के प्रमुख लोकगीत
गोरबन्द
● रेगिस्तानी क्षेत्र में ऊँट का शृंगार करते समय गाया जाने वाला गीत है।
● गोरबन्द ऊँट के गले का आभूषण है।
“म्हारो गोरबन्द नखरालो,
लागी लूमाँ झूमाँ ए
म्हारो गोरबन्द नखरालो”
मूमल
● शृंगारिक लोकगीत जिसमें लोद्रवा की राजकुमारी मूमल का नखशिख वर्णन किया गया है।
“काली तो काली काजलिया री रेख सा
काली तो बादल में चमके बीजळी
ढोला री मूमल हाले तो ले चाळू मुरधर देस”
पपैयो
● इस लोकगीत में प्रेमिका अपने प्रेमी को बाग में आकर मिलने को कहती है।
● दाम्पत्य प्रेम का परिचायक।
ढोलामारु
● सिरोही का लोकप्रिय गीत है।
● इस लोकगीत में ढोला-मरवण की प्रेम- कथा का वर्णन किया जाता है।
सूवटियां
● मेवाड़ क्षेत्र में गाया जाने वाला विरह गीत है।
● इस गीत में भील स्त्री परदेस गए पति को संदेश भेजती है।
घूमर
● राजस्थान के राज्य नृत्य घूमर के साथ गाए जाने वाला गीत।
● यह गणगौर के त्योहार एवं विशेष पर्वों-उत्सवों पर गाया जाता है।
“म्हारी घूमर छै नखराली ए माँ, घूमर रमवा म्हैं जास्याँ………।”
ओल्यूँ
● बेटी की विदाई पर घर की स्त्रियों के द्वारा गाया जाने वाला लोकगीत।
“कँवर बाई री ओल्यूँ आवै ओ राज………..।”
कुरजाँ
● विरहिणी द्वारा कुरजाँ पक्षी के माध्यम से अपने प्रियतम को संदेश भेजती हुई अपने विरह में गीत गाती है।
“कूजाँ ए म्हारो भँवर मिलाद्यो ए ……………।”
पणिहारी
● इस लोकगीत में स्त्री के पतिव्रत धर्म पर अटल रहना बताया गया है।
● पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहते हैं।
कांगसियो
● इस गीत में पति द्वारा उपहार में दिया गया कांगसियो पड़ोसन द्वारा ले जाने पर पत्नी द्वारा बताया जाता है।
“म्हारै छैल भँवर रो कांगसियो पणिहारियाँ ले गई रे………।”
हिचकी
● अलवर-मेवात का प्रसिद्ध गीत है।
● ऐसी धारणा है कि किसी के द्वारा याद किए जाने पर हिचकी आती है।
“म्हारा पियाजी बुलाई म्हानै आई हिचकी ………।”
चिरमी
● इस लोकगीत में चिरमी के पौधे को संबोधित कर नई-नवेली वधू द्वारा अपने भाई व पिता की प्रतीक्षा के समय की मनोदशा को दर्शाती है।
काजलियो
● एक शृंगारिक गीत है, जो विशेषकर होली के अवसर पर चंग पर गाया-बजाया जाता है।
झोरावा
● जैसलमेर जिले में पति के परदेस जाने पर उसके वियोग में गाए जाने वाले गीत।
कामण
● विवाह में वर को जादू-टोने से बचाने हेतु गाए जाने वाले गीत।
दुपट्टा
● शादी के अवसर पर दूल्हे की सालियों द्वारा गाए जाने वाला गीत।
जला और जलाल
● वधू के घर से स्त्रियाँ जब वर की बरात का डेरा देखने जाती है, तब यह गीत गाया जाता है।
“म्हैं तो थारा डेरा निरखण आई ओ, म्हारी जोड़ी रा जळा……………।”
बन्ना-बन्नी
● विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले गीत।
पीठी
● विवाह के अवसर पर दोनों पक्ष के यहाँ वर-वधू को नहलाने से पूर्व पीठी या उबटन लगाते हैं, जिससे उनमें रूप निखार आए, उस समय ‘पीठी गीत’ गाया जाता है।
कुकड़लू
● शादी के अवसर पर जब दूल्हा तोरण पर पहुँचता है तो महिलाएँ ये गीत गाती है।
पावणा
● नए दामाद के ससुराल में आने पर स्त्रियों द्वारा ‘पावणा’ गीत गाए जाते हैं। ये गीत भोजन कराते समय व उसके बाद गाए जाते हैं।
बीरा गीत
● बीरा नामक लोकगीत ढूँढाड़ अंचल में भात सम्पन्न होने के समय गाया जाता है।
रातीजगा
● विवाह, पुत्र जन्मोत्सव, मुंडन आदि शुभ अवसरों पर अथवा मनौती मनाने पर रात-भर जाग कर गाए जाने वाले किसी देवता के गीत ‘रातीजगा’ कहलाते हैं।
पीपली
● शेखावाटी तथा मारवाड़ के क्षेत्र में प्रचलित है।
● यह तीज के त्योहार से कुछ दिन पूर्व से गाया जाता है।
● यह गीत एक विरहिणी के प्रेमोद्गारों को अभिव्यक्त करता है, जिसमें प्रेयसी अपने परदेसी पति को बुलाती है।
गणगौर गीत
● गणगौर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत “खेलन दो गणगौर, भँवर म्हानै खेलन दो गणगौर………….।”
सीठणे
● इन्हें ‘गाली’ गीत भी कहते हैं। ये विवाह समारोहों में हँसी-ठिठोली से भरे इन गाली गीतों से तनमन सराबोर हो उठता है।
हींडो या हिंडोल्या
● श्रावण मास में राजस्थानी महिलाएँ झूला झूलते समय यह लालित्यपूर्ण गीत गाती हैं।
“सावणियै रो हींडो रे बाँधन जाय………..।”
घुड़ला
● मारवाड़ क्षेत्र में गाया जाने वाला लोकगीत है।
● यह शीतलाष्टमी से गणगौर तक कन्याओं द्वारा गाया जाने वाला लोकगीत है।
“घुड़ळो घूमेला जी घूमेला, घुड़ले रे बाँध्यो सूत …………..।”
बीछूड़ो
● हाड़ौती क्षेत्र का एक लोकप्रिय गीत है।
● जिसमें एक पत्नी, जिसे बिच्छू ने डस लिया है और मरने वाली है, अपने पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है।
“मैं तो मरी होती राज, खा गयो बैरी बीछूड़ो …..।”
कागा
● इसमें विरहिणी नायिका कौए को संबोधित करके अपने प्रियतम के आने का शुगन मनाती है और कौए को प्रलोभन देकर उड़ने को कहती है।
“उड़-उड़ रे म्हारा काळा रे कागला,
जद म्हारा पिवजी घर आवै…………।”
सुपणा
● विरहिणी के स्वप्न से सम्बन्धित गीत।
“सूती थी रंगमहल में, सूताँ में आयो रे जंजाळ,
सुपणा में म्हारा भँवर न मिलायो जी……….।”
पंछीड़ा
● हाड़ौती व ढूँढाड़ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर अलगोजे, ढोलक व मंजीरे के साथ गाया जाने वाला लोकगीत।
तेजा गीत
● खेती शुरू करते समय तेजाजी की भक्ति में किसानों द्वारा गाया जाता है।
जीरो
● इस गीत में वधू अपने पति से जीरा नहीं बोने की विनती करती है।
“यो जीरो जीव रो बैरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो……….।”
इंडोणी
● इंडोणी सिर बोझा रखने हेतु सूत, मूंज, नारियल की जट या कपड़े की बनाई गई गोल चकरी है।
● इंडोणी पर स्त्रियों द्वारा पानी भरने जाते समय यह गीत गाया जाता है।
लांगुरिया
● करौली क्षेत्र की कुल देवी ‘कैला देवी’ की आराधना में गाए जाने वाले गीत। करौली क्षेत्र में शीतला माता के पूजन के साथ ही लांगुरिया पूजन होता है।
रसिया
● ब्रज, भरतपुर, धौलपुर आदि क्षेत्रों में गाए जाने वाले गीत।
हरजस
● राजस्थानी महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले वे सगुणभक्ति के लोकगीत, जिनमें मुख्यत: राम और लक्ष्मण दोनों की लीलाओं का वर्णन होता है।
जकड़ियां
● यह पीर ओलियां की प्रशंसा में गाया जाने वाला धार्मिक गीत है।
लावणी
● लावणी का अर्थ ‘बुलाने’ से है। नायक के द्वारा नायिका को बुलाने के अर्थ में लावणी गाई जाती है। शृंगारिक व भक्ति संबंधी लावणियाँ प्रसिद्ध हैं। मोरध्वज, सेऊसंमन, भरथरी आदि प्रमुख लावणियाँ हैं।
घोड़ी
● लड़के के विवाह पर निकासी पर गाए जाने वाले गीत।
“घोड़ी म्हारी चंद्रमुखी सी, इंद्रलोक सुँ आई ओ राज…………।”
बीणजारा
● यह एक प्रश्नोत्तर परक गीत है। इस गीत में पत्नी पति को व्यापार हेतु प्रदेश जाने की प्रेरणा देती है।
पड़वलियो
● बालक के जन्म होने के पश्चात् बाल मनुहार के लिए गाए जाने वाला गीत है।
● पड़वलियो का अर्थ घास से छाया हुआ छोटा मकान होता है।
लालर
● यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है।
कोयलड़ी
● परिवार की स्त्रियाँ वधू को विदा करते समय विदाई गीत कोयलड़ी गाती है।
हरणी
● यह गीत दीपावली के त्योहार पर 10-15 दिन पहले मेवाड़ क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों की टोलियों द्वारा घर-घर जाकर गाया जाता है। इसे लोवड़ी गीत भी कहते हैं।
दारूड़ी
● यह गीत रजवाड़ों में शराब पीते समय गाया जाता है।
धुंसो/धुंसा :- यह मारवाड़ का राज्य गीत था। इस गीत में अजीत सिंह की धाय-माता गोरा धाय का वर्णन है।
आल्हा
● यह गीत सहरिया जनजाति के द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाता है।
हमसीढ़ो
● मेवाड़ क्षेत्र में श्रावण या फाल्गुन मास में भील स्त्री-पुरुषों द्वारा साथ में मिलकर गाया जाने वाला युगल गीत है।
● पटेल्या, लालर, बिछियो आदि आदिवासी क्षेत्र में गाए जाने वाले लोकगीत हैं।
घोड़ी, जला, कामण, काजलियो व ओल्यूं आदि लोकगीत विवाह से सम्बन्धित हैं।
जच्चा
● पुत्र जन्मोत्सव पर गाया जाने वाला सामूहिक मंगल गीत।
● इसे ‘होलर’ भी कहा जाता है।
मोरिया
● विवाह की प्रतीक्षा में बालिका द्वारा गाया जाने वाला गीत।
लोटिया
● स्त्रियों द्वारा चैत्र मास में त्योहार के दौरान तालाबों और कुओं से पानी से भरे लौटे और कलश लाए जाने के दौरान गाया जाता है।
● ‘चोक च्यानणी’ गीत गणेश चतुर्थी महोत्सव में गाए जाते हैं।
हालरिया
● जैसलमेर क्षेत्र में बच्चे के जन्म के अवसर पर गाई जाने वाली लोकगीत शृंखला जिसमें दाई, हारलोगोरा, धतूरी, खाँखलो व खटोडली आदि प्रमुख है।
हवेली संगीत
● मंदिरों में विकसित संगीत धारा। नाथद्वारा, कांकरोली, जयपुर, कोटा, भरतपुर आदि के मंदिरों में हवेली संगीत की परम्परा आज भी जीवित है।