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हस्तकला एवं लोककलाएँ
● हाथ से वस्तुएँ बनाने की कला।
● राजस्थान सम्पूर्ण देश में हस्तकलाओं के आगार के रूप में जाना जाता है।
● हस्तकला, एक लघु उद्योग है।
● लघु उद्योग का विकास एवं संरक्षण, राजसीको (राजस्थान लघु उद्योग विकास निगम) द्वारा किया जाता है।
● राजस्थान में हस्तकला का प्रमुख केन्द्र- बोरानाडा (जोधपुर)
ब्लू पॉटरी- जयपुर
● राजस्थान में ब्लू पॉटरी निर्माण की शुरुआत जयपुर में सवाई रामसिंह-द्वितीय (1835-1880 ई.) के काल में हुई।
● ब्लू पॉटरी – चीनी मिट्टी के बर्तनों पर नीले रंग की चित्रकारी।
● यह कला मूल रूप से चीन और फारस की है, जो मुगलकाल में भारत आई।
● दिल्ली के भोला नामक कलाकार से जयपुर निवासी चूड़ामन और कालू कुम्हार ने यह कला सीखकर राजस्थान में इसकी शुरुआत की।
● पद्मश्री से सम्मानित कृपाल सिंह शेखावत ने इस कला को देश-विदेश में पहचान दिलाई।
● सन् 1976 में जयपुर के कृपाल सिंह शेखावत को ब्लू पॉटरी के लिए सम्मानित किया गया। स्वर्गीय नाथी बाई इस काल की प्रसिद्ध महिला कलाकार थी।
● बर्तनों पर हरा काँच, कथीरा, सागी, क्वार्ट्ज पाउडर और मुल्तानी मिट्टी का घोल चढ़ाया जाता है।
● बर्तनों पर फूल-पत्तियों, देवी-देवताओं व अन्य दृश्यों के चित्र बनाए जाते हैं।
● तैयार पॉटरी को 800° सेन्टीग्रेड तापमान में पकाया जाता है।
● वर्तमान में ब्लू पॉटरी के प्रमुख कलाकार– त्रिलोकचन्द, दुर्गालाल, गिरिराज हनुमान सहाय, भगवान सहाय व भैरू खारवाड़ आदि हैं।
ब्लैक पॉटरी – कोटा
● चीनी मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग की चित्रकारी।
● ब्लैक पॉटरी, राजस्थान की सबसे सस्ती पॉटरी है।
● ब्लैक पॉटरी का कार्य कप, प्लेटे, गमलेदान, कूड़ेदान आदि पर किया जाता है।
कागजी पॉटरी – अलवर
● कागज से निर्मित बर्तनों पर चित्रकारी।
● कागज से बर्तन या मूर्ति बनाने की कला पेपरमेशी कहलाती है।
● इस पॉटरी से निर्मित बर्तनों में तरल पदार्थों का प्रयोग नहीं होता है।
सुनहरी पॉटरी- बीकानेर
● सुनहरी पॉटरी(गोल्डन पॉटरी)बीकानेर की प्रसिद्ध है।
● जोधपुर की चूनड़ी प्रसिद्ध है।
● चूनड़ी के बंधेज सबसे प्रसिद्ध है।
● बारीक बंधेज की चूनड़ी शेखावाटी की प्रसिद्ध है।
● मामा की ओर से अपनी भांजी को विवाह के अवसर पर दी जाने वाली चूनड़ी को मामा चूनड़ी कहते हैं।
● वर पक्ष की ओर से वधू के लिए भेजी जाने वाली चूनड़ी बडूली कहलाती है।
मलयगिरि
● भूरे रंग के इस रंग को कई मिश्रणों से तैयार किया जाता था।
● इस रंग में रंगा हुआ वस्त्र वर्षों तक सुगंधित रहता था।
● जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय की अंगरखिया अभी तक सुगंधित है।
अमोवा
● एक रंग की रंगतों में खाकी से मिलती जुलती रंगत अमोवा कहलाती है।
● इसका प्रयोग शिकारी लोग करते थे।
जसोल की जट पट्टी
● प्रमुख केन्द्र – जसोल गाँव, बाड़मेर
● जट पट्टी उद्योग को जिरोही, भाकला गंदहा के नाम से जाना जाता है।
गलीचे व दरियाँ
● प्रमुख केंद्र – जयपुर व अजमेर
● जयपुर और टोंक का गलीचा उद्योग प्रसिद्ध है।
● जयपुर के गलीचे गहरे रंग, डिजाइन और शिल्प कौशल की दृष्टि प्रसिद्ध है।
● जयपुर व बीकानेर की जेलों में दरियाँ बनाई जाती है।
● राजस्थान में दरियाँ बनाने के प्रमुख केंद्र –
– सालावास गाँव (जोधपुर)।
– टांकला गाँव (नागौर)।
– लवाण गाँव (दौसा)
● टांकला गाँव सुन्दर, आकर्षण एवं मजबूत दरी निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
● जोधपुर, नागौर, टोंक, बाड़मेर, भीलवाड़ा, शाहपुरा, केकड़ी और मालपुरा दरी निर्माण के मुख्य केन्द्र है।
पट्टु, बरड़ी, शॉल, लोइयां
● जैसलमेर में बनने वाले कलात्मक ऊनी वस्त्र।
● यह ‘चौकला भेड़ (मेरिनो) की ऊन’ से तैयार की जाती है।
● यहाँ के पुरुषों के लिए हीरावल शॉल प्रसिद्ध है।
● जालोर के लेटा गाँव गुढ़ा बालोतान गाँव ‘खेसले’ की बुनाई के लिए प्रसिद्ध है।
रंगाई-छपाई का कार्य :-
रेवड़ी या खड्ढी की छपाई
● लाल रंग की ओढ़नियों पर गोंद मिश्रित मिट्टी की छपाई की जाती है, इसके बाद लकड़ी के छापों द्वारा सोने-चाँदी के तलक की छपाई की जाती है।
● खड्ढी की छपाई के लिए जयपुर एवं उदयपुर प्रसिद्ध है।
टुकड़ी छपाई
● जालोर, मारोठ और नागौर टुकड़ी छपाई के लिए प्रसिद्ध है।
रंगरेज
● वस्त्रों की रंगाई-छपाई करने वाला मुस्लिम कारीगर।
छीपा या छींपा
● कपड़ों पर छपाई व रंगाई का कार्य करने वाले को ‘छींपा’ कहा जाता है।
● वैदिक काल में भी वस्त्रों को रंगना जानते थे, नील के रंग से वस्त्र रंगकर छपाई का काम करने वाले कारीगर नीलघर के नाम से प्रसिद्ध थे।
● सवाई जयसिंह द्वारा स्थापित कारखानों में सीवन खाना (कपड़े सिलना), रंग खाना, (कपड़े रंगना) व छापाखाना (कपड़े छापना) आदि प्रमुख कारखाने थे।
कढ़ाई :-
मुकेश
● सूती या रेशम कपड़े पर बादले से छोटी-छोटी बिंदकी की कढ़ाई ‘मुकेश’ कहलाती है।
जरदोजी
● सुनहरे धागो से जो कढ़ाई का कार्य किया जाता है उसे ‘जरदोजी’ कहते हैं।
● इसमें सुनहरे तार का प्रयोग होता है उसे ‘कलाबत्तू’ कहते हैं।
कशीदाकारी
● कशीदाकारी कार्य, बाड़मेर-जैसलमेर जिलों की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
● इसके लिए बाड़मेर जिले की ‘रमा देवी’ को राज्य स्तरीय पुरस्कार दिया गया।
पेचवर्क
● कपड़ों को तरह-तरह से काटकर, कपड़ों पर सिल दिया जाता है, जिसे पेचवर्क कहा जाता है।
गोटा
● सोने और चाँदी के परतदार तारों से वस्त्रों पर जो कढ़ाई का काम किया जाता है उसे गोटा कहते हैं।
● गोटे का काम जयपुर व बातिक का काम खण्ड़ेला में होता है।
● लप्पा, लप्पी, किरण, बाँकड़ी, गोखरू, बिजिया, मुकेश, नक्शी आदि गोटे के प्रमुख प्रकार हैं।
● जयपुर का गुलाल गोटा देशभर में प्रसिद्ध है।
● खण्डेला, सीकर अपने गोटा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
काष्ठ कलाकृतियाँ :-
● इस कला में लकड़ी से विविध प्रकार की कलात्मक वस्तुएँ बनाई जाती है।
● इस कला के प्रधान केन्द्र बस्सी, चित्तौड़गढ़ है। जहाँ पर लकड़ी के बेवाण, कावड़ तथा रंगाई-छपाई के ठप्पे तैयार किए जाते हैं।
● लकड़ी से निर्मित खिलौनों एवं कठपुतली निर्माण के लिए उदयपुर प्रसिद्ध है।
● लकड़ी की मूर्तियों के लिए जेठाना, डूँगरपुर तथा फर्नीचर के लिए शेखावाटी एवं बीकानेर प्रसिद्ध है।
कठपुतली
● उद्भव स्थल– राजस्थान
● नर्तक जाति – नट या भाट।
● कठपुतली निर्माण के केन्द्र – उदयपुर, चित्तौड़गढ़ व कठपुतली नगर (जयपुर)।
● कठपुतली के क्षतिग्रस्त होने पर इसे फेंका न जाकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
● वर्षा काल में कठपुतली का प्रदर्शन नहीं होता है।
● कठपुतलियाँ अरडू की लकड़ी की बनाई जाती हैं।
● स्व. श्री देवीलाल सामर के नेतृत्व में लोक कला मंडल, उदयपुर ने कठपुतली कला को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
● इस कला के विकास के लिए सन् 1968 में स्व. श्रीदेवीलाल सामर को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
● प्रसिद्ध कठपुतली विषय
● राजा विक्रमादित्य की सिंहासन बत्तीसी
● पृथ्वीराज संयोगिता।
● नागौर के अमरसिंह राठौड़ का खेल।
● चार प्रकार की कठपुतलियाँ हैं –
1. दस्ताना पुतली 2. छड़ पुतली
3. छाया पुतली 4. धागा या सूत्र पुतली
● कठपुतली कला का जनक देवीलाल सामर को माना जाता है।
कावड़
● मन्दिरनुमा काष्ठ कलाकृति, जिसमें कई कपाट (द्वार) होते हैं।
● इन कपाटों पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक एवं पौराणिक कथाओं से संबंधित देवी-देवताओं के मुख्य प्रसंग चित्रित होते हैं।
● कावड़ के चित्रों में राम जीवन की बहुलता के कारण इसे राम जी की कावड़ भी कहते हैं।
● यह एक चलता-फिरता देवघर है।
● कावड़ निर्माण के लिए चित्तौड़गढ़ का बस्सी गाँव प्रसिद्ध है।
● कावड़ पूरी लाल रंग से रंगी जाती है व उसके ऊपर काले रंग से पौराणिक कथाओं का चित्रांकन किया जाता है।
● कावड़ निर्माण खेरादी जाति द्वारा किया जाता है।
● मांगीलाल मिस्त्री कावड़ चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।
बेवाण
● यह लकड़ी का छोटा-सा मंदिर होता है जिसे मिनिएचर वुड टेम्पल कहा जाता है।
● अनंत चतुर्दशी एवं देवझूलनी एकादशी को बेवाण निकालने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।
खाण्डा (खांडे)
● होली के अवसर पर लकड़ी से निर्मित तलवारनुमा आकृति। राजस्थान में विवाह के बाद दुल्हन द्वारा दुल्हे के घर खांडे भेजने की परम्परा है।
चौपड़े
● विवाह एवं मांगलिक अवसरों पर कुंकुम, अक्षत, चावल आदि रखने हेतु प्रयुक्त लकड़ी का पात्र।
पातरे-तिपरणी
● श्वेताम्बर जैन साधु-सन्तों के प्रयोग में आने वाले लकड़ी के पात्र।
● पीपाड़ (जोधपुर) में विशेष रूप से खैरादी लोगों द्वारा बनाए जाते हैं।
तोरण
● विवाह के अवसर पर वधू के घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर लटकाई जाने वाली लकड़ी की कलाकृति जिसके शीर्ष पर मोर या तोता बना होता है।
● तोरण जाल, बेर या खेजड़ी की लकड़ी का बना होता है।
● वर वधू के घर में प्रवेश करने से पहले हरी डाली, तलवार, खांडे या गोटा लगी डंडी से स्पर्श करता है।
● तोरण शक्ति परीक्षण का प्रतीक माना जाता है। जयपुर का (त्रिपोलिया बाजार) में तोरण निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं।
छापे
● कपड़े पर हाथ से छपाई करने में प्रयुक्त लकड़ी के छापे खेरादी जाति के लोग बनाते हैं।
बाजोट
● लकड़ी की चौकी जिसे भोजन या पूजा के समय प्रयुक्त करते हैं।
बादले – जोधपुर
● बादले, पानी भरने के बर्तन जो जिंक से बने होते हैं और इन पर कपड़े या चमड़े की परत चढ़ाई जाती है।
● बादले, जोधपुर के प्रसिद्ध हैं।
● बादले में पानी लम्बे समय तक ठण्डा रहता है।
लाख का काम
● लाख का कार्य करने वाले व्यक्ति को ‘मणिहार’ कहा जाता है।
● लाख के आभूषणों के लिए जयपुर एवं जोधपुर प्रसिद्ध है।
● लाख से चूड़ियाँ, पशु-पक्षी अन्य सजावटी उपकरण बनाए जाते हैं।
● जयपुर निवासी अयाज अहमद का लाख का कार्य लोकप्रिय हैं।
● सवाई माधोपुर, लक्ष्मणगढ़ (सीकर) व इन्द्रगढ (बूँदी) लकड़ी के खिलौने व अन्य वस्त्तुओं पर लाख के काम के लिए प्रसिद्ध है।
● लाख से चूड़ियाँ, चूड़े पशु-पक्षी, पेंसिलें, पेन, काँच जड़े लाख के खिलौने, बिछियाँ आदि तैयार किए जाते हैं।
कुट्टी/पेपरमेशी का काम
● कुट्टी के काम के लिए जयपुर प्रसिद्ध है। सवाई रामसिंह द्वितीय (1835 – 1880 ई.) के शासनकाल सें जयपुर में कुट्टी का कार्य हो रहा है।
● कागज, चाक, फेवीकोल, गोंद व मिट्टी के घोल से निर्मित लुगदी को ‘कुट्टी’ कहा जाता है।
● जाजम की छपाई के लिए चित्तौड़गढ़ प्रसिद्ध है।
मृण्य शिल्प या टेराकोटा
● मिट्टी से मूर्तियाँ, विभिन्न सजावटी व उपयोगी वस्तुएँ तैयार कर पकाना, टेराकोटा कहलाता है।
● इस कला से मिट्टी की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।
● मिट्टी के बर्तन, खिलौने, ईंटें खेलू आदि बनाने का कार्य करने वाला व्यक्ति कुंभार या कुम्हार कहलाता है।
● मोलेला, राजसमंद के कुम्हार अपने टेराकोटा कार्य के लिए देश-विदेश में जाने जाते हैं।
● मोलेला तथा हरजी दोनों ही स्थानों में कुम्हार सिरेमिक जैसी मिट्टी में गधे की लीद मिलाकर मूर्तियाँ बनाते हैं व उन्हें उच्च ताप पर पकाते हैं।
● तीव्र लाल, सिन्दूरी, पीला, हरा नीला और कहीं-कहीं फिरोजी रंग इन मूर्तियों का आकर्षक और रहस्यमय रूप प्रदान करता है।
● जालोर के हरजी गाँव के कुम्हार मामाजी एवं गोगाजी के घोड़े बनाते हैं।
● बू-नरावता गाँव, नागौर में मिट्टी के खिलौने, गुलदस्ते, गमले, पक्षियों की कलाकृतियों के काम के लिए प्रसिद्ध हैं।
● बसवा गाँव, दौसा का अपने मिट्टी के विविध प्रकार, आकार एवं चित्राकर्षण अलंकरण वाले बर्तनों के लिए जाना जाता है।
● यहाँ के मिट्टी के बर्तनों में पानी ठण्डा रखने के लिए कुंजा बड़ा प्रसिद्ध है।
● भरतपुर का मेहटोली गाँव अपनी मृत्तिका शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के प्रेमसिंह प्रसिद्ध मृत्तिका शिल्पकार है।
● सवाईमाधोपुर के श्यामोता गाँव में कुम्हारों द्वारा बनाए जाने वाले मिट्टी के खिलौने एवं बर्तन बड़े प्रसिद्ध है।
जेवर बनाने वाले शिल्प :-
जड़ाई
● सोने अथवा चाँदी के आभूषणों में नग/नगीना को जमाने की क्रिया।
● जड़ाऊ गहनों के लिए जयपुर, जोधपुर, बीकानेर एवं उदयपुर प्रसिद्ध है।
● नग/नगीना – आभूषणों पर जड़े जाने वाले मूल्यवान पत्थर।
● जड़िया – नगों की जड़ाई करने वाले कारीगर।
● बरक – मशीन से खींचकर अथावा हथौड़े से कुटकर सोने अथवा चाँदी को अत्यन्त पतले, झिल्ली के समान बनाए गए ‘पत्तर’ को बरक कहते हैं।
● बरक बनाने वाला ‘बरकसाज’ कहलाता है।
● वर्क – चाँदी के तार को हरिण की खाल के मध्य रखकर पीठने के पश्चात् बनने वाला बारीक पत्र के समान टुकड़ा वर्क या तबक कहलाता है।
● ‘वर्क’ का कार्य जयपुर का प्रसिद्ध है।
कलईगिरी:-
● कलई – ताँबा, पीतल आदि धातुओं के बर्तनों पर की जानी वाली चमक।
● कलईगर – कलई करने वाला कारीगर।
चमड़े की जूतियाँ:-
● जूती बनाने का काम रेगर, मोची और चमार करते हैं।
● छोटे बच्चों की घुण्डी और तसमें वाली जूतियाँ ‘खाल्या’ या ‘खोल्या’ कहलाती है।
● दुल्हे व दुल्हन की जुतियाँ ‘बिनोटा’ कहलाती है।
हस्तकला और उनके कलाकार
हस्तकला |
प्रसिद्ध कलाकार |
मीनाकारी |
पद्मश्री कुदरतसिंह |
फड़ पेंटिंग |
पद्मश्री श्रीलाल जोशी, विजय जोशी |
थेवा कला |
नाथूजी सोनी |
उस्ता कला |
पद्मश्री हिसामुद्दीन, मोहम्मद हनीफ |
ब्लू पॉटरी |
पद्मश्री कृपालसिंह शेखावत, गिरिराज त्रिलोकचन्द, भगवान सहाय |
हस्तकला |
प्रमुख केंद्र |
1. फड़ कला |
शाहपुरा, भीलवाड़ा |
2. पिछवाई कला |
नाथद्वारा, राजसमंद |
3. थेवा कला |
प्रतापगढ़ |
4. उस्ता कला |
बीकानेर |
5. मथैरणा |
बीकानेर |
6. सुनहरी पॉटरी |
बीकानेर |
7. कागजी पॉटरी |
अलवर |
8. ब्लैक पॉटरी |
कोटा |
9. ब्लू पॉटरी |
जयपुर |
10. मीनाकारी |
जयपुर |
11. हाथी दाँत की वस्तुएँ |
जयपुर |
12. कठपुतली कला |
जयपुर |
13. पाव रजाई |
जयपुर |
14. रत्नाभूषण का काम |
जयपुर |
15. संगमरमर की मूर्तियाँ |
जयपुर |
16. बन्धेज |
जयपुर, जोधपुर, शेखावाटी |
17. जरी व गोटे का काम |
जयपुर, भिनाय, अजमेर, खण्डेला, सीकर |
18. लकड़ी का चित्रित फर्नीचर |
जयपुर, किशनगढ़, अजमेर |
19. चंदन की कलात्मक वस्तुएँ |
जयपुर, चूरू |
20. लाख का काम (चूड़ियाँ) |
बगरू, जयपुर, जोधपुर |
21. बगरू प्रिंट |
जयपुर |
22. सांगानेरी प्रिंट |
जयपुर |
23. जाजम या आजम प्रिंट |
आकोला, चित्तौड़गढ़ |
24. दाबू प्रिंट |
आकोला, चित्तौड़गढ़ |
25. अजरक प्रिंट |
बाड़मेर |
26. मलीर प्रिंट |
बाड़मेर |
27. कोटा-डोरिया (मसूरिया डोरिया) |
कैथून, कोटा |
28. काष्ठ-कला |
बस्सी, चित्तौड़गढ़ |
29. लकड़ी के फर्नीचर |
बाड़मेर |
30. चमड़े की जूतियाँ |
जयपुर, जोधपुर, भीनमाल, जालोर |
31. मलमल की तनसुख |
मथानिया, जोधपुर |
32. बादले |
जोधपुर (जस्ते की पानी की बोतल) |
33. दरी-पट्टियाँ |
टाँकला, नागौर, सालावास, जोधपुर |
34. गलीचे |
जयपुर |
35. टेराकोटा, मृण्मूर्तियाँ |
मोलेला, राजसमंद, बस्सी, चित्तौड़गढ़ |
36. मोजड़ी कशीदादार |
जोधपुर, भीनमाल, जालोर |
37. गुलकंद |
पुष्कर, अजमेर, खमनौर, राजसमंद |
38. शीशम का फर्नीचर |
हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर |
39. सुराहियाँ (मटके) |
रामसर, बीकानेर |
40. कृषि उपकरण (हैंडटूल्स) |
गजसिंहपुर, श्रीगंगानगर, नागौर |
41. सोपस्टोन रमकड़ा |
गलियाकोट, डूँगरपुर |
42. सूँघनी नसवार |
ब्यावर, अजमेर |
43. जस्ते की मूर्तियाँ |
जोधपुर |
44. मुकेश का काम |
जयपुर, शेखावाटी |
45. तारकशी |
नाथद्वारा |
46. नमदे |
मालपुरा, टोंक, बीकानेर |
47. लाल व काले पत्थर की मूर्तियाँ |
तलवाड़ा (बाँसवाड़ा), थानागाजी (अलवर) |
48. आलागीला |
शेखावाटी क्षेत्र |
49 चद्दर की छपाई |
सांगानेर, बगरू, पाली, बालोतरा, बाड़मेर |
राजस्थान के जी.आई टैग |
1. बगरू प्रिंट – जयपुर |
2. बीकानेर भुजिया – बीकानेर |
3. ब्लू पॉटरी – जयपुर |
4. मकराना संगमरमर – नागौर |
5. कोटा डोरिया – कोटा |
6. मोलेल मिट्टी कार्य – नाथद्वारा, राजसमंद |
7. फुलवारी – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा |
8. सांगानेरी – प्रिंट – जयपुर |
9. थेवा कला – प्रतापगढ़ |