राजस्थान की हस्तकला

   😊😊😊 WELCOME 😊😊😊

≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋

हस्तकला एवं लोककलाएँ

 

● हाथ से वस्तुएँ बनाने की कला।

● राजस्थान सम्पूर्ण देश में हस्तकलाओं के आगार के रूप में जाना जाता है।

● हस्तकला, एक लघु उद्योग है।

● लघु उद्योग का विकास एवं संरक्षण, राजसीको (राजस्थान लघु उद्योग विकास निगम) द्वारा किया जाता है।

● राजस्थान में हस्तकला का प्रमुख केन्द्र- बोरानाडा (जोधपुर)

ब्लू पॉटरी- जयपुर

T5.jpg

● राजस्थान में ब्लू पॉटरी निर्माण की शुरुआत जयपुर में सवाई रामसिंह-द्वितीय (1835-1880 ई.) के काल में हुई।

● ब्लू पॉटरी – चीनी मिट्टी के बर्तनों पर नीले रंग की चित्रकारी।

● यह कला मूल रूप से चीन और फारस की है, जो मुगलकाल में भारत आई।

● दिल्ली के भोला नामक कलाकार से जयपुर निवासी चूड़ामन और कालू कुम्हार ने यह कला सीखकर राजस्थान में इसकी शुरुआत की।

● पद्मश्री से सम्मानित कृपाल सिंह शेखावत ने इस कला को देश-विदेश में पहचान दिलाई।

● सन् 1976 में जयपुर के कृपाल सिंह शेखावत को ब्लू पॉटरी के लिए सम्मानित किया गया। स्वर्गीय नाथी बाई इस काल की प्रसिद्ध महिला कलाकार थी।

● बर्तनों पर हरा काँच, कथीरा, सागी, क्वार्ट्ज पाउडर और मुल्तानी मिट्‌टी का घोल चढ़ाया जाता है।

● बर्तनों पर फूल-पत्तियों, देवी-देवताओं व अन्य दृश्यों के चित्र बनाए जाते हैं।

● तैयार पॉटरी को 800° सेन्टीग्रेड तापमान में पकाया जाता है।

● वर्तमान में ब्लू पॉटरी के प्रमुख कलाकार– त्रिलोकचन्द, दुर्गालाल, गिरिराज हनुमान सहाय, भगवान सहाय व भैरू खारवाड़ आदि हैं।

ब्लैक पॉटरी – कोटा

कोटा.jpg

● चीनी मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग की चित्रकारी।

● ब्लैक पॉटरी, राजस्थान की सबसे सस्ती पॉटरी है।

● ब्लैक पॉटरी का कार्य कप, प्लेटे, गमलेदान, कूड़ेदान आदि पर किया जाता है।

कागजी पॉटरी – अलवर

● कागज से निर्मित बर्तनों पर चित्रकारी।

● कागज से बर्तन या मूर्ति बनाने की कला पेपरमेशी कहलाती है।

● इस पॉटरी से निर्मित बर्तनों में तरल पदार्थों का प्रयोग नहीं होता है।

सुनहरी पॉटरी- बीकानेर

● सुनहरी पॉटरी(गोल्डन पॉटरी)बीकानेर की प्रसिद्ध है।

● जोधपुर की चूनड़ी प्रसिद्ध है।

●         चूनड़ी के बंधेज सबसे प्रसिद्ध है।

● बारीक बंधेज की चूनड़ी शेखावाटी की प्रसिद्ध है।

● मामा की ओर से अपनी भांजी को विवाह के अवसर पर दी जाने वाली चूनड़ी को मामा चूनड़ी कहते हैं।

● वर पक्ष की ओर से वधू के लिए भेजी जाने वाली चूनड़ी बडूली कहलाती है।

मलयगिरि

● भूरे रंग के इस रंग को कई मिश्रणों से तैयार किया जाता था।

● इस  रंग में रंगा हुआ वस्त्र वर्षों तक सुगंधित रहता था।

● जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय की अंगरखिया अभी तक सुगंधित है।

अमोवा

● एक रंग की रंगतों में खाकी से मिलती जुलती रंगत अमोवा कहलाती है।

● इसका प्रयोग शिकारी लोग करते थे।

जसोल की जट पट्‌टी

●         प्रमुख केन्द्र – जसोल गाँव, बाड़मेर

● जट पट्‌टी उद्योग को  जिरोही, भाकला गंदहा के नाम से जाना जाता है।

गलीचे व दरियाँ

● प्रमुख केंद्र – जयपुर व अजमेर

● जयपुर और टोंक का गलीचा उद्योग प्रसिद्ध है। 

● जयपुर के गलीचे गहरे रंग, डिजाइन और शिल्प कौशल की दृष्टि प्रसिद्ध है।

● जयपुर व बीकानेर की जेलों में दरियाँ बनाई जाती है।

● राजस्थान में दरियाँ बनाने के प्रमुख केंद्र –

– सालावास गाँव (जोधपुर)।

– टांकला गाँव (नागौर)।

– लवाण गाँव (दौसा)

● टांकला गाँव सुन्दर, आकर्षण एवं मजबूत दरी निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।

● जोधपुर, नागौर, टोंक, बाड़मेर, भीलवाड़ा, शाहपुरा, केकड़ी और मालपुरा दरी निर्माण के मुख्य केन्द्र है।

पट्टु, बरड़ीशॉल, लोइयां

● जैसलमेर में बनने वाले कलात्मक ऊनी वस्त्र।

● यह ‘चौकला भेड़ (मेरिनो) की ऊन’ से तैयार की जाती है।

● यहाँ के पुरुषों के लिए हीरावल शॉल प्रसिद्ध है।

● जालोर के लेटा गाँव गुढ़ा बालोतान गाँव ‘खेसले’ की बुनाई के लिए प्रसिद्ध है।

रंगाई-छपाई का कार्य :-

 

रेवड़ी या खड्ढी की छपाई

● लाल रंग की ओढ़नियों पर गोंद मिश्रित मिट्टी की छपाई की जाती है, इसके बाद लकड़ी के छापों द्वारा सोने-चाँदी के तलक की छपाई की जाती है।

● खड्‌ढी की छपाई के लिए जयपुर एवं उदयपुर प्रसिद्ध है।

टुकड़ी छपाई

● जालोर, मारोठ और नागौर टुकड़ी छपाई के लिए प्रसिद्ध है।

रंगरेज

● वस्त्रों की रंगाई-छपाई करने वाला मुस्लिम कारीगर।

छीपा या छींपा

● कपड़ों पर छपाई व रंगाई का कार्य करने वाले को ‘छींपा’ कहा जाता है।

● वैदिक काल में भी वस्त्रों को रंगना जानते थे, नील के रंग से वस्त्र रंगकर छपाई का काम करने वाले कारीगर नीलघर के नाम से प्रसिद्ध थे।

● सवाई जयसिंह द्वारा स्थापित कारखानों में सीवन खाना (कपड़े सिलना), रंग खाना, (कपड़े रंगना) व छापाखाना (कपड़े छापना) आदि प्रमुख कारखाने थे।

कढ़ाई :-

मुकेश

● सूती या रेशम कपड़े पर बादले से छोटी-छोटी बिंदकी की कढ़ाई ‘मुकेश’ कहलाती है।

जरदोजी

● सुनहरे धागो से जो कढ़ाई का कार्य किया जाता है उसे ‘जरदोजी’ कहते हैं।

● इसमें सुनहरे तार का प्रयोग होता है उसे ‘कलाबत्तू’ कहते हैं।

कशीदाकारी

● कशीदाकारी कार्य, बाड़मेर-जैसलमेर जिलों की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

● इसके लिए बाड़मेर जिले की ‘रमा देवी’ को राज्य स्तरीय पुरस्कार दिया गया।

पेचवर्क

● कपड़ों को तरह-तरह से काटकर, कपड़ों पर सिल दिया जाता है, जिसे पेचवर्क कहा जाता है।

गोटा

● सोने और चाँदी के परतदार तारों से वस्त्रों पर जो कढ़ाई का काम किया जाता है उसे गोटा कहते हैं।

● गोटे का काम जयपुर व बातिक का काम खण्ड़ेला में होता है।

● लप्पा, लप्पी, किरण, बाँकड़ी, गोखरू, बिजिया, मुकेश, नक्शी आदि गोटे के प्रमुख प्रकार हैं।

● जयपुर का गुलाल गोटा देशभर में प्रसिद्ध है।

● खण्डेला, सीकर अपने गोटा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।

काष्ठ कलाकृतियाँ :-

● इस कला में लकड़ी से विविध प्रकार की कलात्मक वस्तुएँ बनाई जाती है।

● इस कला के प्रधान केन्द्र बस्सी, चित्तौड़गढ़ है। जहाँ पर लकड़ी के बेवाण, कावड़ तथा रंगाई-छपाई के ठप्पे तैयार किए जाते हैं।

● लकड़ी से निर्मित खिलौनों एवं कठपुतली निर्माण के लिए उदयपुर प्रसिद्ध है।

● लकड़ी की मूर्तियों के लिए जेठाना, डूँगरपुर  तथा फर्नीचर के लिए शेखावाटी एवं बीकानेर प्रसिद्ध है।

कठपुतली

kathputli.jpg

● उद्भव स्थल राजस्थान

● नर्तक जाति – नट या भाट।

● कठपुतली निर्माण के केन्द्र – उदयपुर, चित्तौड़गढ़ व कठपुतली नगर (जयपुर)।

● कठपुतली के क्षतिग्रस्त होने पर इसे फेंका न जाकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।

● वर्षा काल में कठपुतली का प्रदर्शन नहीं होता है।

● कठपुतलियाँ अरडू की लकड़ी की बनाई जाती हैं।

● स्व. श्री देवीलाल सामर के नेतृत्व में लोक कला मंडल, उदयपुर ने कठपुतली कला को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

● इस कला के विकास के लिए सन् 1968 में स्व. श्रीदेवीलाल सामर को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

● प्रसिद्ध कठपुतली विषय

● राजा विक्रमादित्य की सिंहासन बत्तीसी

● पृथ्वीराज संयोगिता।

● नागौर के अमरसिंह राठौड़ का खेल।

● चार प्रकार की कठपुतलियाँ हैं –

 1. दस्ताना पुतली  2. छड़ पुतली

  3. छाया पुतली  4. धागा या सूत्र पुतली

● कठपुतली कला का जनक देवीलाल सामर को माना जाता है।

कावड़

download 101

● मन्दिरनुमा काष्ठ कलाकृति, जिसमें कई कपाट (द्वार) होते हैं।

● इन कपाटों पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक एवं पौराणिक कथाओं से संबंधित देवी-देवताओं के मुख्य प्रसंग चित्रित होते हैं।

● कावड़ के चित्रों में राम जीवन की बहुलता के कारण इसे राम जी की कावड़ भी कहते हैं।

● यह एक चलता-फिरता देवघर है।

● कावड़ निर्माण के लिए चित्तौड़गढ़ का बस्सी गाँव प्रसिद्ध है।

● कावड़ पूरी लाल रंग से रंगी जाती है व उसके ऊपर काले रंग से पौराणिक कथाओं का चित्रांकन किया जाता है।

● कावड़ निर्माण खेरादी जाति द्वारा किया जाता है।

● मांगीलाल मिस्त्री कावड़ चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।

बेवाण

download 102

● यह  लकड़ी का छोटा-सा मंदिर होता है जिसे मिनिएचर वुड टेम्पल कहा जाता है।

● अनंत चतुर्दशी एवं देवझूलनी एकादशी को बेवाण निकालने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।

खाण्डा (खांडे)

● होली के अवसर पर लकड़ी से निर्मित तलवारनुमा आकृति। राजस्थान में विवाह के बाद दुल्हन द्वारा दुल्हे के घर खांडे भेजने की परम्परा है।

चौपड़े

● विवाह एवं मांगलिक अवसरों पर कुंकुम, अक्षत, चावल आदि रखने हेतु प्रयुक्त लकड़ी का पात्र।

पातरे-तिपरणी

● श्वेताम्बर जैन साधु-सन्तों के प्रयोग में आने वाले लकड़ी के पात्र।

● पीपाड़ (जोधपुर) में विशेष रूप से खैरादी लोगों द्वारा बनाए जाते हैं।

तोरण

● विवाह के अवसर पर वधू के घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर लटकाई जाने वाली लकड़ी की कलाकृति जिसके शीर्ष पर मोर या तोता बना होता है।

● तोरण जाल, बेर या खेजड़ी की लकड़ी का बना होता है।

● वर वधू के घर में प्रवेश करने से पहले हरी डाली, तलवार, खांडे या गोटा लगी डंडी से स्पर्श करता है।

● तोरण शक्ति परीक्षण का प्रतीक माना जाता है। जयपुर का (त्रिपोलिया बाजार) में तोरण निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं।

छापे  

● कपड़े पर हाथ से छपाई करने में प्रयुक्त लकड़ी के छापे खेरादी जाति के लोग बनाते हैं।

बाजोट  

● लकड़ी की चौकी जिसे भोजन या पूजा के समय प्रयुक्त करते हैं।

बादले – जोधपुर

● बादले, पानी भरने के बर्तन जो जिंक से बने होते हैं और इन पर कपड़े या चमड़े की परत चढ़ाई जाती है।

● बादले, जोधपुर के प्रसिद्ध हैं।

● बादले में पानी लम्बे समय तक ठण्डा रहता है।

लाख का काम

लाख का काम.jpg

● लाख का कार्य करने वाले व्यक्ति को ‘मणिहार’ कहा जाता है।

● लाख के आभूषणों के लिए जयपुर एवं जोधपुर प्रसिद्ध है।

● लाख से चूड़ियाँ, पशु-पक्षी अन्य सजावटी उपकरण बनाए जाते हैं।

● जयपुर निवासी अयाज अहमद का लाख का कार्य लोकप्रिय हैं।

● सवाई माधोपुर, लक्ष्मणगढ़ (सीकर) व इन्द्रगढ (बूँदी) लकड़ी के खिलौने व अन्य वस्त्तुओं पर लाख के काम के लिए प्रसिद्ध है।

● लाख से चूड़ियाँ, चूड़े पशु-पक्षी, पेंसिलें, पेन, काँच जड़े लाख के खिलौने, बिछियाँ आदि तैयार किए जाते हैं।

कुट्टी/पेपरमेशी का काम

● कुट्टी के काम के लिए जयपुर प्रसिद्ध है। सवाई रामसिंह द्वितीय (1835 – 1880 ई.) के शासनकाल सें   जयपुर में कुट्टी का कार्य हो रहा है।

● कागज, चाक, फेवीकोल, गोंद व मिट्टी के घोल से निर्मित लुगदी को ‘कुट्टी’ कहा जाता है।

● जाजम की छपाई के लिए चित्तौड़गढ़ प्रसिद्ध है।

मृण्य शिल्प या टेराकोटा

 

t1.jpg

● मिट्‌टी से मूर्तियाँ, विभिन्न सजावटी व उपयोगी वस्तुएँ तैयार कर पकाना, टेराकोटा कहलाता है।

● इस कला से मिट्‌टी की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

● मिट्‌टी के बर्तन, खिलौने, ईंटें खेलू आदि बनाने का कार्य करने वाला व्यक्ति कुंभार या कुम्हार कहलाता है।

● मोलेला, राजसमंद के कुम्हार अपने टेराकोटा कार्य के लिए देश-विदेश में जाने जाते हैं।

● मोलेला तथा हरजी दोनों ही स्थानों में कुम्हार सिरेमिक जैसी मिट्‌टी में गधे की लीद मिलाकर मूर्तियाँ बनाते हैं व उन्हें उच्च ताप पर पकाते हैं।

● तीव्र लाल, सिन्दूरी, पीला, हरा नीला और कहीं-कहीं फिरोजी रंग इन मूर्तियों का आकर्षक और रहस्यमय रूप प्रदान करता है।

● जालोर के हरजी गाँव के कुम्हार मामाजी एवं गोगाजी के घोड़े बनाते हैं।

● बू-नरावता गाँव, नागौर में मिट्टी के खिलौने, गुलदस्ते, गमले, पक्षियों की कलाकृतियों के काम के लिए प्रसिद्ध हैं।

● बसवा गाँव, दौसा का अपने मिट्‌टी के विविध प्रकार, आकार एवं चित्राकर्षण अलंकरण वाले बर्तनों के लिए जाना जाता है।

● यहाँ के मिट्‌टी के बर्तनों में पानी ठण्डा रखने के लिए कुंजा बड़ा प्रसिद्ध है।

● भरतपुर का मेहटोली गाँव अपनी मृत्तिका शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के प्रेमसिंह प्रसिद्ध मृत्तिका शिल्पकार है।

● सवाईमाधोपुर के श्यामोता गाँव में कुम्हारों द्वारा बनाए जाने वाले मिट्टी के खिलौने एवं बर्तन बड़े प्रसिद्ध है।

जेवर बनाने वाले शिल्प :-

जड़ाई

● सोने अथवा चाँदी के आभूषणों में नग/नगीना को जमाने की क्रिया।

● जड़ाऊ गहनों के लिए जयपुर, जोधपुर, बीकानेर एवं उदयपुर प्रसिद्ध है।

● नग/नगीना – आभूषणों पर जड़े जाने वाले मूल्यवान पत्थर।

● जड़िया – नगों की जड़ाई करने वाले कारीगर।

● बरक – मशीन से खींचकर अथावा हथौड़े से कुटकर सोने अथवा चाँदी को अत्यन्त पतले, झिल्ली के समान बनाए गए ‘पत्तर’ को बरक कहते हैं।

● बरक बनाने वाला ‘बरकसाज’ कहलाता है।

● वर्क  चाँदी के तार को हरिण की खाल के मध्य रखकर पीठने के पश्चात् बनने वाला बारीक पत्र के समान टुकड़ा वर्क या तबक कहलाता है।

● ‘वर्क’ का कार्य जयपुर का प्रसिद्ध है।     

कलईगिरी:-

● कलई – ताँबा, पीतल आदि धातुओं के बर्तनों पर की जानी वाली चमक।

● कलईगर – कलई करने वाला कारीगर।

चमड़े की जूतियाँ:-    

● जूती बनाने का काम रेगर, मोची और चमार करते हैं।

● छोटे बच्चों की घुण्डी और तसमें वाली जूतियाँ ‘खाल्या’ या ‘खोल्या’ कहलाती है।

● दुल्हे व दुल्हन की जुतियाँ ‘बिनोटा’ कहलाती है।

हस्तकला और उनके कलाकार

 

हस्तकला

प्रसिद्ध कलाकार

मीनाकारी

पद्मश्री कुदरतसिंह

फड़ पेंटिंग

पद्मश्री श्रीलाल जोशी, विजय जोशी

थेवा कला

नाथूजी सोनी

उस्ता कला

पद्मश्री हिसामुद्दीन, मोहम्मद हनीफ

ब्लू पॉटरी

पद्मश्री कृपालसिंह शेखावत, गिरिराज त्रिलोकचन्द, भगवान सहाय

 

हस्तकला

प्रमुख केंद्र

1. फड़ कला

शाहपुरा, भीलवाड़ा

2. पिछवाई कला

नाथद्वारा, राजसमंद

3. थेवा कला

प्रतापगढ़

4. उस्ता कला

बीकानेर

5. मथैरणा

बीकानेर

6. सुनहरी पॉटरी

बीकानेर

7. कागजी पॉटरी

अलवर

8. ब्लैक पॉटरी

कोटा

9. ब्लू पॉटरी

जयपुर

10. मीनाकारी

जयपुर

11. हाथी दाँत की वस्तुएँ

जयपुर

12. कठपुतली कला

 जयपुर

13. पाव रजाई

जयपुर

14. रत्नाभूषण का काम

जयपुर

15. संगमरमर की मूर्तियाँ

जयपुर

16. बन्धेज

जयपुर, जोधपुर, शेखावाटी

17. जरी व गोटे का काम

जयपुर, भिनाय, अजमेर, खण्डेला, सीकर

18. लकड़ी का चित्रित फर्नीचर

जयपुर, किशनगढ़, अजमेर

19. चंदन की कलात्मक वस्तुएँ

जयपुर, चूरू

20. लाख का काम (चूड़ियाँ)

बगरू, जयपुर, जोधपुर

21. बगरू प्रिंट

जयपुर

22. सांगानेरी प्रिंट

जयपुर

23. जाजम या आजम प्रिंट

आकोला, चित्तौड़गढ़

24. दाबू प्रिंट

आकोला, चित्तौड़गढ़

25. अजरक प्रिंट

बाड़मेर

26. मलीर प्रिंट

बाड़मेर

27. कोटा-डोरिया (मसूरिया डोरिया)

कैथून, कोटा

28. काष्ठ-कला

बस्सी, चित्तौड़गढ़

29. लकड़ी के फर्नीचर

बाड़मेर

30. चमड़े की जूतियाँ

जयपुर, जोधपुर, भीनमाल, जालोर

31. मलमल की तनसुख

मथानिया, जोधपुर

32. बादले

जोधपुर (जस्ते की पानी की बोतल)

33. दरी-पट्टियाँ

टाँकला, नागौर, सालावास, जोधपुर

34. गलीचे

जयपुर

35. टेराकोटा, मृण्मूर्तियाँ

मोलेला, राजसमंद, बस्सी, चित्तौड़गढ़

36. मोजड़ी कशीदादार

जोधपुर, भीनमाल, जालोर

37. गुलकंद

पुष्कर, अजमेर, खमनौर, राजसमंद

38. शीशम का फर्नीचर

हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर

39. सुराहियाँ (मटके)

रामसर, बीकानेर

40. कृषि उपकरण (हैंडटूल्स)

गजसिंहपुर, श्रीगंगानगर, नागौर

41. सोपस्टोन रमकड़ा

गलियाकोट, डूँगरपुर

42. सूँघनी नसवार

ब्यावर, अजमेर

43. जस्ते की मूर्तियाँ

जोधपुर

44. मुकेश का काम

जयपुर, शेखावाटी

45. तारकशी

नाथद्वारा

46. नमदे

 मालपुरा, टोंक, बीकानेर

47. लाल व काले पत्थर की मूर्तियाँ

तलवाड़ा (बाँसवाड़ा), थानागाजी (अलवर)

48. आलागीला

शेखावाटी क्षेत्र

49 चद्दर की छपाई

सांगानेर, बगरू, पाली, बालोतरा, बाड़मेर

 

राजस्थान के जी.आई टैग

1. बगरू प्रिंट – जयपुर

2. बीकानेर  भुजिया – बीकानेर

3. ब्लू पॉटरी – जयपुर

4. मकराना संगमरमर – नागौर

5. कोटा डोरिया – कोटा

6. मोलेल मिट्‌टी  कार्य – नाथद्वारा, राजसमंद

7. फुलवारी – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा

8. सांगानेरी – प्रिंट – जयपुर

9.  थेवा कला – प्रतापगढ़ 

≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋≋
Our channel’s 
👇👇👇👇👇👇

CLICK HERE

  ☺️☺️☺️ Thanks for Visiting ☺️☺️☺️
For any problem leave a comment 🙏

Leave a Comment