राजस्थान में कृषि, उद्यानिकी एवं पशुधन का परिदृश्य, महत्त्व एवं मुख्य बाधाएँ

· राजस्थान में कृषि योग्य भूमि का लगभग 70% हिस्सा वर्षा पर आधारित है। इस कारण राजस्थान में शुष्क खेती एक महत्त्वपूर्ण विकल्प है।

· राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है, परंतु राजस्थान में देश के उपलब्ध जल संसाधनों का मात्र 1% भाग ही उपलब्ध है।

· आर्थिक दृष्टिकोण से कृषि प्राथमिक क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है जिसमें कृषि के सहायक क्षेत्र पशुपालन, मछलीपालन, मधुमक्खी पालन आदि भी शामिल है।

· राजस्थान में भारत के कुल कृषि क्षेत्रफल का लगभग 11% हिस्सा आता है। राजस्थान का भौगोलिक क्षेत्रफल 342.68 लाख हेक्टेयर है।

· राजस्थान के फसल क्षेत्र की आय में खरीफ में बाजरा, मूँगफली, व मूँग एवं रबी में सरसों, गेहूँ व चना की फसलों का प्रमुख योगदान है।

राजस्थान में फसलों का वर्गीकरण:-

ऋतुओं के आधार पर :-

· राजस्थान में मुख्यत: फसलों को तीन प्रकार की ऋतुओं में बोया जाता है।

1. खरीफ

2. रबी

3. जायद

1. खरीफ ऋतु की फसलें :-

· खरीफ की फसलें मानसून फसलें अथवा सावणु भी कहलाती है।

· बुआई का समय – जून-जुलाई

· कटाई का समय – सितंबर-अक्टूबर

· खरीफ फसलों में सर्वाधिक क्षेत्र खाद्यान्न फसलों का होता है।

· खरीफ की मुख्य फसलें –

उदाहरण – बाजरा, मक्का, ज्वार, चावल, कपास, मूँग, मोठ, उड़द, अरहर, चवला, मूँगफली, सोयाबीन, तिल, अरण्डी, ग्वार, गन्ना आदि।

2. रबी ऋतु की फसलें :-

· रबी की फसलें शीतकालीन फसलें अथवा हाडी भी कहलाती है।

· बुआई का समय – अक्टूबर-नवंबर

· कटाई का समय – मार्च-अप्रैल

· रबी की मुख्य फसलें-

उदाहरण – गेहूँ, जौ, चना, सरसों, राई, अलसी, मसूर, मटर, तारामीरा, सूरजमुखी, जीरा, मेथी व धनिया आदि।

3. जायद ऋतु की फसलें :-

· गर्मियों की फसल भी कहलाती है।

· मार्च से जून के मध्य ली जाने वाली फसलें

· जायद की मुख्य फसलें:-

खरबूजा, तरबूज, कद्दू वर्गीय फसलें व मूँग, मोठ आदि।

राजस्थान में कृषि पद्धतियाँ :-

1. झूमिंग कृषि :-

· इसे स्थानांतरित कृषि/कर्तन दहन कृषि भी कहते हैं। आदिवासियों द्वारा दक्षिणी राजस्थान (उदयपुर, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा व प्रतापगढ़) में की जाती है।

· इसे आदिवासी, राजस्थान में “वालरा” कहते हैं।

· पहाड़ी क्षेत्र की वालरा – चिमाता

· मैदानी क्षेत्र की वालरा – दजिया

2. शुष्क कृषि (बारानी) :-

· अधिकांश राजस्थान में शुष्क खेती की जाती है। 50cm से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है इसमें सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

· वर्षा जल का सुनियोजित रूप से संरक्षण व उपयोग कर कम पानी की आवश्यकता वाली व जल्दी पकने वाली फसलों की खेती की जाती है।

3. सिंचित कृषि :-

· कृत्रिम रूप से फसलों को पानी देकर खेती करना।

· सिंचित कृषि 50-100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है।

उदाहरण- श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर, अजमेर और भीलवाड़ा आदि।

4. आर्द्र कृषि :-

· आर्द्र कृषि 100cm से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है।

उदाहरण – बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, कोटा, बाराँ, झालावाड़ आदि।

5. मिश्रित खेती :-

· दो यो दो से अधिक फसलों को एक साथ बोना मिश्रित खेती कहलाता है।

नोट:- मिश्रित कृषि = कृषि + पशुपालन

6. कृषि वानिकी :-

· कृषि + बागवानी/पेड़

7. जैविक कृषि :-

· रासायनिक पदार्थों का प्रयोग किए बिना कृषि करना।

कृषि परिदृश्य :-

· राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र है। कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र में मुख्य रूप से फसल, पशुधन, वानिकी एवं मत्स्य सम्मिलित है। राजस्थान में कृषि मुख्यत: वर्षा पर आधारित है।

· राजस्थान में मानसून अन्य राज्यों की तुलना में देरी से आता है एवं जल्दी चला जाता है। मानसून की अवधि कम है।

· कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र सकल राज्य मूल्यवर्द्धन (GSVA) स्थिर मूल्यों पर वर्ष 2018-19 में 1.57 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 2.09 लाख करोड़ रुपये हो गया जो कि 7.48% की वार्षिक वृद्धि दर्शाता है। जबकि प्रचलित मूल्यों पर कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र का सकल राज्य मूल्यवर्द्धन (GSVA) वर्ष 2018-19 में 2.22 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 3.79 लाख करोड़ हो गया जो कि 14.33% वार्षिक वृद्धि दर्शाता है।

· राजस्थान के सकल राज्य मूल्यवर्द्धन में प्रचलित कीमतों पर वर्ष 2022-23 में कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र का योगदान 28.95% है।

कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र के उप-क्षेत्रों का प्रचलित मूल्यों पर वर्ष 2020-21 में योगदान :-

कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र के उप-क्षेत्रअंश (प्रतिशत)
फसल क्षेत्र46.00
पशुधन क्षेत्र46.41
वानिकी क्षेत्र7.20
मत्स्य क्षेत्र0.39
कुल योगदान  100

नोट – आर्थिक समीक्षा 2022-23 के अनुसार
भू-उपयोग सांख्यिकी 2020-21

भू-उपयोगक्षेत्रफल (लाख हैक्टेयर)प्रतिशत (क्षेत्रफल)
वानिकी27.728.08
कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग भूमि20.105.86
ऊसर तथा कृषि अयोग्य भूमि23.676.91
स्थायी चारागाह तथा अन्य गोचर भूमि16.674.86
वृक्षों के झुण्ड तथा बाग0.300.09
बंजर भूमि37.2710.87
अन्य चालू पड़त भूमि20.936.10
चालू पड़त16.754.89
शुद्ध बोये गए क्षेत्रफल179.4852.34
कुल342.89100

प्रचलित जोत धारक (2015-16)

राजस्थान (श्रेणी)जोत संख्या (हजार)जोत क्षेत्र (हजार)
सीमांत3070.871482.91
छोटा1677.372388.73
अर्द्ध मध्यम1416.173988.60
मध्यम1131.446898.76
बड़ा358.766114.30
कुल7654.6120873.30

· राज्य में कृषि गणना 2015-16 के अनुसार कुल प्रचलित भूमि जोतों की संख्या में 11.14% की वृद्धि हुई है।

· वर्ष 2015-16 में सीमांत, लघु, अर्द्ध मध्यम एवं मध्यम आकार वर्गों की जोतों में वृद्धि हुई है व बड़े आकार वर्गों की जोतों में कमी हुई है।

· वर्ष 2015-16 जोतों के कुल क्षेत्रफल में 1.24% की कमी दर्ज हुई है।

उद्यानिकी :-

· राजस्थान में उद्यानिकी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि प्रसंस्करण एवं अन्य गौण गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण लोगों को अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती है।

· राजस्थान में उद्यानिकी विकास की विपुल संभावनाएँ हैं।

· राजस्थान का पहला हॉर्टिकल्चर पार्क अलवर में विकसित किया जा रहा है।

· राजस्थान कृषि प्रसंस्करण एवं कृषि विपणन संवर्द्धन कृषि योजना 2018 में जारी की गई है।

· राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM)

पशुपालन :-

· शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पशुपालन कृषि को सहायक गतिविधि ही नहीं, बल्कि प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। शुष्क पश्चिमी क्षेत्र में पशुपालन, सूखे एवं अकाल की मार के विरुद्ध सुरक्षा कवच का काम करता है और गरीब ग्रामीणों को स्थायी आजीविका प्रदान करता है।

· राज्य के शुष्क क्षेत्र में दूध देने वाली नस्ल (राठी, गिर, साहीवाल तथा थारपारकर) दूध व खेती दोनों कार्य के लिए काँकरेज व हरियाणा, नागौरी व मालवी प्रचुर मात्रा में है।

· 2019 में राजस्थान 20वीं पशुगणना में 56.8 मिलियन पशुओं के साथ दूसरे स्थान पर है।

· 2019 में कुल पशुओं की संख्या में 1.66% की कमी देखी गई है।

· ऊँट व बकरी की संख्या में राजस्थान पहले स्थान पर है। भैंस की संख्या में द्वितीय, भेड़ में चतुर्थ व गायों की संख्या में छठे स्थान पर है।

राजस्थान में कृषि व पशुपालन का महत्त्व:-

· राजस्थान मुख्यत: एक कृषि व पशुपालन प्रधान राज्य है। राजस्थान की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि कार्यों एवं पशुपालन पर ही निर्भर करती है।

· रेगिस्तानी क्षेत्रों में बाजरा दक्षिणी राजस्थान में ज्वार, मक्का मुख्यत: उगाई जाती है।

· चावल, गेहूँ, जौ के साथ-साथ दलहन, तिलहन व गन्ना उगाए जाते हैं।

· सर्वाधिक ऊन का उत्पादन करने वाला राज्य है।

· दुग्ध उत्पादन में द्वितीय स्थान पर है।

· बाजरा उत्पाद, ग्वार उत्पाद, सरसों उत्पाद, मोटे अनाज उत्पाद व कुल तिलहन उत्पादन में प्रथम स्थान है।

महत्त्व :-

1. रोजगार के प्रमुख साधन:- राजस्थान में कृषि व कृषि आधारित उद्योग रोजगार के प्रमुख साधन हैं।

2. राष्ट्रीय आय का प्रमुख स्रोत:- भारत के 70% लोगों से प्राप्त कृषि उपज के कृषि व्यापार से प्राप्त विभिन्न प्रकार के कर के रूप में सरकार को आय प्राप्त होती है।

3. अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर

4. मानसून पर आधारित कृषि

5. डेयरी उत्पादन के लिए कच्चा माल – राजस्थान में अधिकांश किसान खेती के साथ-साथ पशुपालन करते हैं जिससे प्राप्त दूध ही डेयरी उद्योग का आधार है।

6. खाद्यान्न उपलब्धता – गेहूँ, जौ, चावल, मक्का, बाजरा, ज्वार इत्यादि अनाज की पूर्ति कृषि द्वारा ही संभव है।

7. वस्त्र उद्योग के लिए कच्चा माल

8. पशु चारा उपलब्धता

9. कृषि आधारित उद्योगों के लिए कच्चा माल

10. बेरोजगारी की समस्या का समाधान

11. राज्य व देश के आर्थिक विकास में योगदान

राजस्थान की कृषि एवं उद्यानिकी उत्पादन के मुख्य बाधाएँ :-

1. राज्य में भूजल की स्थिति बहुत चिंताजनक है पिछले 2 दशकों में यह बहुत तेजी से खराब हुई है। राजस्थान के 249 ब्लॉकों में से केवल 40 ब्लॉक ‘सुरक्षित श्रेणी’ में है।

2. राजस्थान का देश का कुल सतही जल संसाधनों का 1% हिस्सा उपलब्ध है।

3. वर्ष 1997-98 के दौरान उच्चतम सकल फसल क्षेत्र लगभग 223.05 लाख हेक्टेयर था, राज्य के फसल क्षेत्र में कमी आई है।

4. वर्षा का असमान वितरण – राजस्थान की औसत वार्षिक वर्षा 575mm है जिसमें से लगभग 532mm वर्षा ऋतु (जून-सितंबर) में हो जाती है।

5. पूर्वी राजस्थान की औसत वर्षा लगभग 704mm और पश्चिमी राजस्थान की लगभग 310mm है जो एक विशाल भिन्नता को दर्शाती है।

6. सामान्य तौर पर हर तीसरा वर्ष सूखा वर्ष होता है।

7. भू-जल कम होने के साथ-साथ प्रदूषित भी हो रहा है।

8. राजस्थान में अधिकांशत: नदियाँ गैर-बारहमासी है, चंबल व माही को छोड़कर।

9. गरीब किसानों की आजीविका ज्यादातर डेयरी फार्मिंग के साथ-साथ बकरी व भेड़ पालन पर निर्भर है। चारागाह के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र वर्तमान पशुधन आबादी की कुल चारे की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम नहीं है।

10. कम वर्षा, अक्षम जल प्रबंधन एवं पानी की कमी राज्य में कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

11. बार-बार सूखे से उत्पादन में गिरावट आती है। फसल और जानवर दोनों प्रकृति की अनियमितताओं से ग्रस्त है।

12. अरावली पर्वत माला का मानसून के समांतर होने के कारण राजस्थान में कम वर्षा होती है।

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