डेयरी विज्ञान (Dairy science)

डेयरी विज्ञान

– विश्व में भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम।

– 2019-20 के आँकड़ों के अनुसार भारत में कुल दूध उत्पादन 198.4 मिलियन टन/वर्ष प्राप्त हुआ है।

– 2020-21 के आँकड़ों के अनुसार भारत में कुल दूध उत्पादन 209.96 मिलियन टन/प्रतिवर्ष प्राप्त हुआ है तथा 2020-21 आँकड़ों के अनुसार भारत में कुल दूध उत्पादन में 5.81 प्रतिशत वृद्धि हुई।

– भारत में वर्ष 2021-22 के दौरान दूध उत्पदन – 221.06 मि. टन

– भारत में प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता 2019-2020 के अनुसार 406 gm/day तक है।

– भारत में प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता 2020-21 के अनुसार 427 gm/day तक है।

– भारत में वर्ष 2021-22 के दौरान प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 444 gm/day तक है।

– भारत में वर्ष 2021-22 के अनुसार प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता में पंजाब प्रथम स्थान पर है। (1271 gm/day) 

– राजस्थान में प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता 2019-2020 के अनुसार – 904 gm/day

– राजस्थान में प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता 2020-2021 के अनुसार – 1,075.00 gm/day

– राजस्थान में प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता 2021-2022 के अनुसार – 1150 gm/day

– राजस्थान में दूध उत्पादन 2021-22 के अनुसार – 33264.70 हजार टन (देश में प्रथम स्थान)

– भारत में कुल दूध उत्पादन में भैंस का योगदान 52% व गाय का योगदान 45% है।

– गाय व भैंस के दुग्ध का परीक्षण हंसा परीक्षण द्वारा किया जाता है।

– दूध में 2-4 घंटे नहीं फटने का कारण या बफर क्षमता को बनाने का कारण – प्रोटीन (केसीन) होती है।

– वातावरण की CO2 जल (H2O) के साथ क्रिया करके H2CO3 का निर्माण करते हैं जिससे दूध में अम्लता बढ़ जाती है।

– थन/अयन में दूध का उतरना मस्तिष्क में स्थित पीयूष ग्रंथि (पिट्यूटरी) के प्रभाव से होता है। पीयूष ग्रंथि से ऑक्सीटोसीन हॉर्मोन का स्त्रवण होता है जो अयन की कोशिकाओं में संकुचन करवाकर दुग्ध को बाहर निकालता है। यह दूध निकालने की क्रिया ‘पुआस’ कहलाती है।

– माल्टोज (Maltose) – Glucose+Glucose

– सुक्रोज (Sucrose) – Glucose+Fructose

– लेक्टोज (Lactose) – Glucose+Galactose

– डेयरी उद्योग में घी के नामक आँकड़ों के आधार पर नमी 0.5 से 0.7% तक होनी चाहिए। इससे अधिक नमी होने पर घी को अमानक घोषित किया जाता है।

– मीठे दही की अम्लता 0.70% होती है।

– दूध में लेक्टोज का आपेक्षिक घनत्व (स्पसिफिक ग्रैविटी) 1.666 होती है।

– ऊँट में जनन की इच्छा होने पर ‘रट या मरत’ अवस्था देखी जाती है जिसमें ऊँट अपने मुलायम तालु को मुँह से बाहर निकालता है।

– दूध के भण्डारण व संग्रहण में पहले दूध को गर्म किया जाता है व इसे ठण्डा करके फिर डेयरी तक पहुँचाया जाता है जिससे इसमें जीवाणुओं का उत्पादन कम होता है।

– दूध में पानी की प्रतिशत मात्रा को ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र उपयोगी है-

– दूध का आपेक्षिक घनत्व लेक्टोमीटर विधि द्वारा ज्ञात किया जाता है।

– दूध में यूरिया PDAB (पैरा डाईमिथाइल अमीनो बैन्जेल्डीहाइड) से पता किया जाता है। यदि यूरिया हो तो PDAB डालने पर पीला रंग आता है।

– दूध में 80% कैसीन प्रोटीन पाई जाती है जिससे दूध का सफेद रंग होता है।

– दूध में 20% तक एल्बुमिन व ग्लोब्युलिन प्रोटीन होती है। यह प्रोटीन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आवश्यक होती है। यह खींस में अधिक होती है।

– दूध में वसा विलेय विटामिन A,D,E,K अधिक पाए जाते हैं व विटामिन B,C (जल विलेय) कम मात्रा में पाए जाते हैं।

– खोआ (मावा) दूध का निर्जलीकृत उत्पाद होता है जिसमें दूध को गर्म करके दूध के जल का वाष्पीकरण किया जाता है।

– प्राकृतिक रूप से बनाया हुआ खोआ में भारतीय मानक के अनुसार वसा 26% से कम नहीं होनी चाहिए व नमी 28% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

– उबलते हुए दूध में लैक्टिक अम्ल, सिट्रिक अम्ल या सिट्रस वर्ग (नीबू वर्ग) के फलों के रस से छैना बनाया जाता है।

– छैने के प्रमुख घटक दूध की वसा, कैसीन तथा स्कंदित लैक्टोएल्बुमिन प्रोटीन होती है।

– छैना में 51.5% नमी तथा 21.5% वसा, 14.5% प्रोटीन तथा 2.5% लैक्टोज, 1.1% भस्म (Minerals) होते हैं।

– गाय के दूध का छैना उत्तम किस्म का होता है तथा भैंस के दूध का खोआ (मावा) उत्तम किस्म का होता है।

¨ दूध की परिभाषाएँ :- एक या एक से अधिक स्वस्थ पशुओं से जिनका भली प्रकार से पालन-पोषण हुआ हो, वत्स-जनन के 15 दिन पूर्व और 10 दिन पश्चात् जो स्वच्छ एवं ताजा लैक्टियल क्षरण प्राप्त होता है, उसे दूध कहते हैं, इस दूध में न्यूनतम वसा की मात्रा 3.25 प्रतिशत और वसा रहित ठोस पदार्थों की मात्रा 8.5 प्रतिशत होनी चाहिए।

– घी से कार्बोहाइड्रेट की तुलना में लगभग 2.25 गुणा अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।

– लैसिथिन दुग्ध वसा को सुरक्षित रखने में मददगार है।

– दुग्ध वसा से शरीर को विटामिन तथा कोलस्टैरोल प्राप्त होते है।

         विभिन्न पशुओं में दूध का PH मान

पशु का नामदूध का PH मान
गाय6.6
भैंस6.8
थनैला रोगी का दूध7.4
खींस5.7-6.4
बकरी7.5-8.0

दूध का संगठन

दुग्धम (Lactose) :-

– दुग्धम दूध में पाया जाना वाला मुख्य कार्बोहाइड्रेट है दूध में मीठापन दुग्धम के कारण ही होता है । दुग्धम एक द्विशर्करीय है जो ग्लूकोस और एक गैलेक्टोस अणुओं के मिलने से बनता है।

 दूध के अंदर यह घुलनशील अवस्था में होता है। दुग्धम ऊर्जा का अच्छा साधन है एक ग्राम दुग्धम में 4.0 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। यह शर्करा की अपेक्षा लगभग ¼ भाग ही मीठा होता है सामान्यत: गाय के दूध में 4.9 प्रतिशत, भैंस के दूध में 5.48 प्रतिशत एवं मानव दूध में 6.98 प्रतिशत दुग्धम पाया जाता है।

 साहीपाल गाय के दूध में 5.0 प्रतिशत लेक्टोज पाया जाता है इस लिए इस नस्ल का दूध मीठा होता है।

प्रोटीन (Protein):

– यह दूध के अन्य मुख्य अवयवों में से एक है जो शरीर की कोशिका के निर्माण हेतु परमावश्यक है। दूध में मुख्यत: तीन प्रकार की प्रोटीन कैसीन, एलब्यूमिन, एवं ग्लोब्यूलिन पाई जाती है। दूध प्रोटीन में कैसीन 80 प्रतिशत होती है जो पायस के रूप में पाई जाती है । ये तीनों प्रोटीन एमिनो अम्ल की बनी होती है तथा पचने से यह प्रोटीन एमिनो अम्ल में टूट जाती है तभी इनका शोषण हो पाता है। दूध का सफेद रंग केसीन के कारण होता है। दूध में केसीन की मात्रा 2.0 से 3.5 प्रतिशत तक पाई जाती है। गाय के दूध में 3.5 प्रतिशत व भैंस के दूध में 3.6 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है।

केसीन की पोषक उपयोगिता (Nutritive importance of casein) :

– इस प्रोटीन में लगभग सभी अनिवार्य अमनो अम्ल (थियोनीन, वेलीन, ल्यूसिन, आइसोल्यूसिन, लाइसिन, मिथियोनीन, फिनाइलेनाइन, ट्रिप्टोफेन, आर्जीनीन तथा हिस्टीडीन) प्राप्त हो जाते हैं।

– यह प्रोटीन पाचन प्रणाली में लगभग 97-98 प्रतिशत तक पच जाती है तथा लगभग 76 प्रतिशत तक शरीर में शोषित हो जाती है 

– केसीन से फॉस्फोरस तथा कैल्सियम भी प्राप्त होता है।

खनिज पदार्थ (Mineral Matter):

– अन्य अवयवों की तरह दूध के खनिज शरीर को ऊर्जा तो प्रदान नहीं करते  परन्तु यह जीवन के लिए परमावश्यक होते है। दूध के मुख्य खनिज पदार्थ निम्न है– कैल्सियम (Ca), फॉस्फोरस (P), आयरन (Fe), पोटेशियम (K), मैग्नीशियम (Mg), सोडियम (Na), गंधक (S), कॉपर (Cu), कोबाल्ट (Co), जिंक (Zn), आयोडीन (I), इत्यादि है। दूध कैल्सियम एवं फॉस्फोरस प्राप्ति का अच्छा स्रोत होता है। कैल्सियम और फॉस्फोरस बच्चों की हड्डियों के निर्माण एवं विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। दूध में खनिज पदार्थों की मात्रा 0.70 से 0.90 प्रतिशत तक होती है।

विटामिन (Vitamin):

– दूध में पाई जाने वाली विटामिनों को घुलनशीलता के आधार पर दो भागों में बाटाँ गया है–

– जल में घुलनशील विटामिन– विटामिन बी कॉम्पलेक्स के थायमीन, राइबोफ्लेविन, बायोटिन, फोलिक अम्ल, पाइरीडॉक्सीन आदि तथा विटामिन सी सम्मिलित है।

– वसा में घुलनशील विटामिन– विटामिन ए, डी, इ, तथा विटामिन-के पाई जाती है। विटामिन शरीर की साधारण वृद्धि परमावश्यक है । यदि इन विटामिनों को खुराक में नहीं दिया जाए तो कई तरह की बीमारियों हो जाती है।

किण्वक (Enzymes):

– किण्वकों का क्षरण जीवित कोषों से होता है तथा यह कार्बनिक उत्प्ररेक की भाँति कार्य करते हैं। किण्वक अपने कार्य में बहुत ही विशिष्ट होते हैं। दूध में मुख्य किण्वक –फॉस्फोरस, एमाइलेज, परआक्सीडेज, ईस्टरेजेज तथा लाईपेज, जेन्थीन आक्सीडेज, प्रोटीएज, कैटालेज, हाइड्रोजिनेज तथा एल्डोलेज पाए जाते है जो इसके पोषक तत्त्वों को विघटित करते हैं।

जल (Water):

– दूध में जल की मात्रा अन्य घटकों की तुलना में सबसे अधिक होती है। गायों के दूध में लगभग 86 प्रतिशत और भैंस के दूध में 83 प्रतिशत जल होता है। दूध में अधिक जल होने से दूध के घटकों की पाचकता बढ़ जाती है। यह दूध के अन्य अवयवों का वाहक होता है।

विभिन्न प्रजातियों के दूध का औसत रासायनिक संघटक :

.क्रसं.जातिजलकुलठोसवसा रहित ठोस पदार्थवसाप्रोटीनदुग्धमखनिज पदार्थ
1.गाय86.6113.399.254.143.584.960.71
2.भैंस82.7617.249.867.383.605.480.78
3.बकरी87.0013.007.754.253.524.270.86
4.भेड़80.7119.2911.397.905.234.810.90
5.ऊँटनी87.6112.397.015.382.983.290.70
6.घोड़ी89.0410.969.371.592.696.140.51

दूध के भौतिक गुण

– दूध का रंग सफेद होता है । गाय का दूध पीलापन लिए होता है। दूध में पीलापन कैरोटीन की मात्रा के कारण होता है।

– दूध का स्वाद मीठा होता है।

– गाय के दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.028 से 1.030 तथा भैंस के दूध का आपेक्षिक घनत्व 60˚F तापक्रम पर 1.032 होता है।

– दूध का उबाल बिन्दु 101˚C हिंमाक बिन्दु -0.52 से 0.56C होता है।

– दूध की पी.एच. मान 6.4 से 6.7 तक होता है। अत: कुछ अम्लीय होता है।

– दूध का अपवर्तनांक 1.3440-1.3480 होता है जबकि पानी का अपवर्तनांक 1.33 होता है।

– दूध की विद्युत संचालकता 0.005 म्होज होती है।

– दूध में अम्लता दो प्रकार की होती है प्राकृतिक व विकसित। प्राकृतिक अम्लता का करण COसाइटेटस, एलब्यूमिन, केसीन और फास्फेट होते हैं। ताजे दूध में यह 0.11-0.14% होती हैं।

– दूध का गाढ़ापन 68˚F पर 1.5 से 2.0 सेंटी पाइस होता है केसीन, वसा एलब्यूमिन आदि दूध के गाढ़ेपन को प्रभावित करते हैं।

दूध का वैद्यानिक मानक :

– राजस्थान में वैद्यानिक मानक गाय के दूध में वसा- 3.5 प्रतिशत एवं वसा रहित ठोस पदार्थ 8.5 प्रतिशत एवं भैंस के दूध में वसा 6.07 प्रतिशत, वसा रहित ठोस पदार्थ 9.0 प्रतिशत निश्चित किए गए है।

दूग्धवैधानिक मान
भैंस का दुग्ध6.0 वसा व 9.0% SNF
गाय का दूध3.5 वसा व 8.5% SNF
बकरी का दुग्ध3.5 वसा व 9.0%SNF
भेड़ का दुग्ध7.0 वसा व 9.0%SNF
स्टेन्डर्डराइज्ड दुग्ध4.5 वसा व 8.45%SNF
रिकम्बाइन्ड दुग्ध3.0 वसा व 8.45%SNF
टॉन्ड दुग्ध3.0 वसा व 8.5%SNF
डबल टॉन्ड दुग्ध1.5 वसा व 9.0% SNF
सप्रेटा दुग्ध (स्किस्ड दुग्ध)0.5वसा व 8.7% SNF
ऊँट का दुग्ध5.0 वसा व 7.0% SNF

विपणन-दूध के प्रकार (Types of market milk):

1. सम्पूर्ण दूध (Pure Milk) :-

– स्वस्थ पशु से प्राप्त दूध जिसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं की गई है, सम्पूर्ण दूध (Pure milk) कहलाता है।

– गाय के शुद्ध दूध में 3.5% वसा व 8.5% SNF होना चाहिए। जबकि भैंस के दूध में 6% वसा व 9% SNF होता है।

2. मानकीकृत दूध (Standard milk) :-

– राजस्थान डेयरी द्वारा नियम मानदण्ड के अनुसार वह दूध जिसमें वसा/SNF की मात्रा कम करके या मिलाकर न्यूनतम वसा 4.5% व SNF 8.5% तक रखी जाती है।

3. टोण्ड दूध (Tond milk) :- सरकारी डेयरी द्वारा दूध के मानक को तय किया जाता है जिसमें पूर्ण दूध में पानी तथा सप्रेटा दूध के पाउडर को मिलाकर विशेष दूध बनाया जाता है जिसे टोण्ड दूध कहा जाता है। इसमें 3% वसा तथा 8.5% SNF तय किए जाते हैं।

– यदि वसा की मात्रा 1.5% तथा SNF 9% कर दिया जाए तो इसे डबल टोण्ड दूध कहा जाता है।

4. पुन: रचित दूध :- जब दूध पाउडर को पानी में घोलकर (Re Constitutes milk) दूध तैयार किया जाता है, तो इसे पुन: रचित दूध कहते हैं।

– पुन: रचित दूध में 1 भाग दूध पाउडर व 7-8 भाग जल होना चाहिए।

5. पुन: संयोजित दूध (Re Combined Milk) :-

– इस प्रकार के दूध में सप्रेटा दूध पाउडर व पानी की निश्चित मात्रा मिलाकर वसा 3% व SNF 8.5% तैयार किया जाता है।

6. पूरित दूध (Filled Milk) :- जब दूध के क्रीम को निकालकर उसके स्थान पर वनस्पति वसा को मिलाया जाता है तो इसे पूरित दूध कहा जाता है।

¨ दूध का प्रसंस्करण (Milk Processing) :-

– पशुओं से प्राप्त कच्चे दूध को कुछ वैज्ञानिक विधियों द्वारा दूध को संरक्षित किया जाता है जिसे प्रसंस्करण कहा जाता है। इसमें निम्न विधियों को सम्मिलित किया जाता है-

 1. दूध को ठण्डा करना

 2. दूध का गर्म करना (पाश्चुरीकरण)

 3. Sterilized milk

 4. समांगीकरण

1. दूध को ठण्डा करने के लिए ठण्डा पानी (15˚-21oC) या अमोनिया को मिलाया जाता है। (अमोनिया से 3-4oC तक किया जा सकता है।)

2. दूध का पाश्चुरीकरण दो विधियों से किया जाता है

A. LTLT (कम ताप अधिक समय विधि) :- इस विधि में दूध को 63oC या 145˚F पर 30 मिनट तक गर्म किया जाता है।

B. HTST (उच्च ताप अल्प समय विधि) :- इस विधि में 72oC या 160˚F पर 15 सेकण्ड तक दूध को गर्म किया जाता है व तुरंत ही इसे कम ताप पर ठण्डा करके भण्डारण के लिए भेज दिया जाता है।

C. UHT  (अल्ट्र हाई तापमान) :- इस विधि मे दूध को 135-149o C तापमान पर 1-5 सेकंड तक गर्म करने के बाद 10oC तापमान पर ठंडा करते है।  

3. Sterilized milk :- व्यापारिक तौर पर दूध को पाश्चुरीकरण के पश्चात् 200˚-211oF तक 30 मिनट तक गर्म किया जाता है इसे Sterilized milk कहा जाता है।

4. समांगीकरण :- इस प्रक्रिया में यांत्रिक विधि द्वारा दूध की वसा गोलिकाओं को एक समान छोटेछोटे कणों में विभाजित कर दिया जाता है। जिससे दूध को संग्रहण करते समय दूध पर वसा की परत नहीं बनती व दूध की गुणवत्ता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

दूध दोहने की विधियाँ

  गायों के दुग्ध दुहने की दो प्रमुख विधियाँ है

 . हाथ द्वारा दुग्ध दोहन

 . दुग्ध मशीन द्वारा दुग्ध दोहन

 अ. हाथ द्वारा दुग्ध दोहन हमारे देश में पशुपालक एक या दो गायें रखते हैं, ग्वाले हाथों से ही गायों को दुहते हैं। गायों के बायीं तरफ बैठकर दुहते हैं। विभिन्न थनों को दुहने का कम भी अलग-अलग होता है। आड़ी-खड़ी रेखा में स्थित थनों को एक साथ दुहा जाता है। पहले अगले थनों को और फिर पिछले थनों को एक साथ दुहा जाता है।

 हाथ द्वारा दूध दोहने की तीन विधियाँ हैं

1.  चुटकी द्वारा दुग्ध दोहन विधि

–  इस विधि में थन की जड़ को अगूंठा और उसके पास की दो अंगुलियों के बीच मजबूती से पकड़ा जाता है उसके बाद थन को उसी स्थिति में नीचे की तरफ खींचते हैं एवं ऊपर से नीचे हाथ को खिसकाते हुए दूध की धार निकालते हैं इसको शीघ्रता से तब तक खिसकाते हैं जब तक कि थन का सम्पूर्ण दूध न निकल जाये। दुहते समय दोनों हाथ मे एक-एक थन पकड़े होते हैं और बारी-बारी से दोनों थनों से धार निकालते हैं। गायों के थन छोटे होने की स्थिति में इस विधि का उपयोग किया जाता है। इस विधि में गायों को कष्ट होता है अतः अच्छी विधि नहीं है। सामान्य अवस्थाओं में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अधिक दूध देने वाली गायों का दूध निकालने में इस विधि द्वारा अधिक समय लगता है तथा दूध भी कम प्राप्त होता है।

2.  पूर्ण हस्त दोहन विधि

– इस विधि में थन का अँगुलियों से चारों ओर से घेरकर मुट्ठी द्वारा दूध निकाला जाता हैं। इस विधि में थन के तन्तुओं पर समान दबाव रहता है तथा थन के बेकार होने का भय नहीं रहता है। इस विधि में थन का दूध ग्रन्थि सिस्टर्न में वापस नहीं जा पाता है। दूग्ध दोहन की पूर्ण हस्त विधि में हाथ की मूठी एक ही स्थान पर रहती है।

3.  अँगूठा दबाकर दूध निकालने की विधि

–  इस विधि में थन को चारों ओर से अँगुलियों एवं मुड़े हुए अँगूठे के बीच में दबाकर दूध निकालते हैं। यह विधि अच्छी नहीं है क्योंकि इस प्रकार से दूध निकालने से थन को नुकसान पहुँचता है तथा गाय को दर्द महसूस होता है। इससे थन के तन्तुओं पर असमान दबाव के कारण थन में गाँठ पड़ जाती है और थन हमेशा के लिए बेकार हो जाते हैं।

4. दूधारु पशुओं से मशीन द्वारा दूध निकालने का महत्त्व

 भारत में ज्यादातर किसान हाथ द्वारा दूध निकालते हैं परन्तु उन्नतशील किसान जो अधिक दूधारु पशु रखते हैं मशीन द्वारा दूध निकाल कर समय की बचत कर सकते हैं। दूध एवं दुग्ध पदार्थो की बढ़ती माँग एवं कम समय में स्वच्छ एवं ज्यादा दूध निकालने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जा रहा है।

मशीन द्वारा दूध निकालने के लाभ

 1. मशीन द्वारा कम समय में अधिक पशुओं का एक साथ दूध निकाला जा सकता है जिससे समय की बचत होती है और यह समय अन्य कार्य जैसे खेती एवं घरेलू कार्य में लगाया जा सकता है।

 2. दूध दोहन के लिए कम व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है।

 3. अच्छी मशीन स्वच्छ दुग्ध उत्पादन में काफी सहायक है क्योंकि मशीन द्वारा निकाला दूध थनों से

 सीधा मशीन के कैन (बर्तन) में जाता है और धूल, मक्खी, बाल एवं गोबर आदि के कण इसमें नहीं जा पाते हैं। इससे उत्पादित दूध की कीमत भी ज्यादा मिलती है।

दूग्ध मशीन का काम करना

 मशीन द्वारा दुग्ध निकालने के लिए थनों पर थन कप (टीट-कप) लगाये जाते हैं। यह टीट-कप स्टील के बने होते हैं जिनके अन्दर रबड़ की लाइनिंग होती है। टीट-कप थन पर जाकर लग जाता है और कम दबाव से दूध को बाहर निकालता है। दूध निकालने की प्रक्रिया एक पम्प की तरह है। यह पम्प 60 प्रतिशत समय दूध निकालने में 40 प्रतिशत समय थन को आराम देता है ताकि थन की मांसपेशियों पर ज्यादा तनाव न पड़े। इसमें 60 : 40 का पलसेशन अनुपात रहता है। चारों थनों पर लगने वाले चार कपों के समूह को कलस्टर कहते हैं। दूध निकालने के लिए 360 मि.मी. पारे का प्रेशर उपयुक्त होता है। दूध कलस्टर में से होकर दुग्ध जार में जाता है जहाँ से उसे माप कर फिर पम्प द्वारा टैंक में भेज दिया जाता है। मशीन द्वार पहले एक मिनट में 1-2 किलो दूध निकाला जा सकता है और दूसरे मिनट में दूध निकालने की गति 3-5 किलो हो जाती है। इसलिए दोहन के समय दुग्ध निकालने की दर बदलती रहती है जिसका सम्बन्ध दूध निकालने के समय में ऑक्सीटोसीन विसर्जन से होता है।

मशीन द्वारा दुग्ध निकालते समय निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

 1. अयन और थनों को स्वच्छ जल से साफ करके फिर साफ कपड़े से पोंछ कर सखाना च चाहिए।

 2. दोहन से पहले अयन और थनों की ठीक तरह से मालिश करने पर ऑक्सीटोसिन (दूध उत्क्षेपक) हॉर्मोन का प्राकृतिक संचार होता है जो दूध का कोष्ठक एवं छोटी वाहनियों से नीचे धकेल कर अयन में लाता है।

 3. मशीन के कपों का प्रेशर (दबाव) सामान्य होना चाहिए। ज्यादा दबाव थनों को नुकसान पहुँचाता है और कम दबाव होने पर अयन से दुग्ध पूर्णतया बाहर नहीं निकल पाता हैं।

 4. टीट-कपों के रबर लाइनरों का रख-रखाव ठीक होना चाहिए। टीट-कपों को एक बार जरूर बदलना चाहिए क्योंकि टीट-कप के लाइनर खराब होने से दूध निकल कर टीट कप में आ जाता है। खराब या फटे हुए लाइनर तुरन्त बदल देने चाहिए। ऐसा न करने पर थनों को नुकसान हो सकता है और थनैला जैस रोग भी पशु को लग सकते है।

 5. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मशीन द्वारा दोहने का तरीका ठीक हो और दूध पूरा निकाला गया हो।

 6. पशु को रोजाना निर्धारित समय पर दोहें। दोहने के समय अन्तराल में बदलाव लाने पर पशु के दुग्ध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

 7. अयन में दूध खत्म होने पर टीट-कप को तुरन्त थनों से अलग कर देना चाहिए। ऐसा न करने पर प्रेशर से थन नलिका खराब हो सकती है और कई बार रक्त का रिसाव भी हो जाता है।

 8. दूध दोहने के पश्चात् मशीन को ठीक तरह से धोकर ऊँचे स्थान पर टाँग देना चाहिए ताकि गन्दगी और धूल के कण मशीन में नहीं जा सके।

 9. थनों में कप लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सभी कपों में बराबर का अन्तर हो। कपों को ठीक लगाने से सभी थनों से बराबर एवं उचित दोहन होता है।

 10. मशीन द्वारा दोहन के समय पशु के व्यवहार पर भी नजर रखनी चाहिए ताकि पशु की कोई भी परेशानी को तुरन्त दूर किया जा सके।

 11. अस्वस्थ पशु को अन्त में दोहें एवं उनका दुग्ध पशु के सामान्य होने तक अलग रखें।

 12. दोहने के उपरान्त पशु के थनों पर टीट डीप घोल में डुबोना चाहिए। इससे थनैला रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है।

 13. बार-बार थनैला रोग के लक्षण दिखाने वाले पशु को अलग कर देना चहिए और उनका समुचित इलाज करवाना चाहिए।

 14. दोहने के उपरान्त पश को कम से कम एक घण्टे तक बैठने नहीं देना चाहिए क्योंकि मशीन द्वारा दोहने के एक घन्टे उपरान्त ही थन के छिद्र पूर्णतः बन्द हो जाते है।

 15. प्रत्येक दोहन के बाद दूध दोहने के स्थान को फिनाइल के घोल से धोना चाहिए ताकि मच्छर, मक्खी या कीड़ों का जमाव नहीं हो।

 16. मशीन के प्रयोग के समय साथ दिये निर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिए तथा समय-समय पर मशीन की जाँच एवं  उपकरण का बदलाव एवं रख-रखाव मशीन की न केवल उम्र बढ़ाते हैं बल्कि पशु से स्वच्छ दुग्ध उत्पादन में भी मदद करते है।

¨ ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) :-

– भारत में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए 13 जनवरी, 1970 में श्वेत क्रांति  शुरू की गई। यह 18 जनवरी, 1970 को प्रारंभ की गई है जिसे श्वेत क्रांति कहा जाता है।

– श्वेत क्रांति के जनक डॉ वर्गीज कुरियन थे।

– यह तीन चरण में प्रारंभ की गई है

1. इसका प्रथम  चरण सन् 1970 से प्रारंभ किया गया था तथा 1978 तक चला था। इस चरण का उद्देश्य 10 मुख्य राज्यों में 18 Milk Shade को स्थापित करना था जिसमें 4 बड़े शहर दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, चेन्नई से शुरू की गई।

– इस चरण के अंत में 13 हजार गाँवों में सहकारी डेयरी विकसित की गई।

– इस चरण में दूध पाउडर की आर्थिक सहायता यूरोपियन देशों से प्राप्त हुई तथा NDDB ने इसे लागू किया।

2. दूसरा चरण- सन् 1978 से 1985 तक चला जिसमें कर्नाटक, राजस्थान और MP में डेयरी विकास कार्यक्रम चलाया गया। इस चरण में 136 Milk Shade विकसित कर लिए गए तथा 34500 गाँवों में डेयरी विकसित की गई।

– इस चरण में अधिकतर उत्पाद भारतीय कम्पनियों द्वारा बनाए गए थे।

3. तीसरा चरण – श्वेत क्रांति का यह अंतिम चरण था। इसमें पशुपालन विभाग को भी जोड़ा गया व यह चरण सन् 1986-1996 तक चलाया गया। इसमें डेयरी का उत्पादन बढ़ाया गया व डेयरी के इन्फ्रा स्ट्रक्सर को विकसित किया गया।

– इसमें कृत्रिम वीर्य सेंचन (A.I.) से पशुओं की नस्लों को दुधारु नस्लों में परिवर्तित किया गया।

– तीसरे चरण में Milk Shade 173 कर दिए गए तथा इसके अंत तक 73300 डेयरी विकसित कर ली गई फिर इस चरण का विस्तार किया गया व इसे पूर्णरूपेण 1996 तक चलाया गया।

दूध का परिक्षण (milk test) –

1. दूध का आपेक्षिक घनत्व ज्ञात करना :-

– डेयरी विज्ञान में दूध के व्यवसाय में दूध की मूल्यता का मापन आपेक्षिक घनत्व के आधार पर किया जाता है।

– इसमें लेक्टोमीटर द्वारा दूध का परीक्षण किया जाता है व इसके पाठ्यांक को दूध के नमूने के साथ तुलना करके दूध का परीक्षण किया जाता है।

– शुद्ध गाय के दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.028 तथा भैंस के दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.032 होता है।

– यदि लेक्टोमीटर द्वारा निकाला गया आपेक्षिक घनत्व 1.028 से कम आता है तो दूध में पानी की मिलावट की गई है।

– यदि आपेक्षिक घनत्व 1.028 से अधिक होता है तो दूध में क्रीम या सप्रेटा की मिलावट की गई है। (दूध को गाढ़ा बनाने के लिए)

2. गरबर विधि :-

– दूध से वसा का मापन गरबर विधि द्वारा किया जाता है।

– इस दूध को ब्यूटायरोमीटर में लेकर गरबर मशीन की सहायता से वसा का मान ज्ञात किया जाता है।

– इस विधि में 10ml H2SO4 ऑटोमैटिक टिल्ट मीजर द्वारा मापकर ब्यूटायरोमीटर में डाला जाता है। उसके पश्चात् 10.75ml दूध पिपेट की सहायता से लेकर ब्यूटायरोमीटर में डाला जाता है।

– 1ml एमिल एल्कोहल को ओटोमैटिक टिल्ट मीजर में मापकर ब्यूटायरोमीटर में भरा जाता है।

– ब्यूटायरोमीटर को गरबर मशीन में 4-5 मिनट तक 1100 RPM पर घुमाया जाता है। जब मशीन को बंद किया जाता है तो ब्यूटायरोमीटर में ऊपर की ओर अर्द्धचंद्राकार परत बनती है। इस परत की ऊपरी व निचले तल का पाठ्यांक का अंतर दूध की वसा होती है।

3.  कॉल्ट ऑन बॉयलिंग टेस्ट (COB Test)

 दूध को उबालने पर फटना परीक्षण कहते हैं।

– इसका उपयोग दूध में खीस की उपस्थिति ज्ञात करने के लिए किया जाता है।

– दूध की अम्लता 0.32 प्रतिशत तक हो जाए तो दूध उबालने पर फट जाता है।  

4. ज्ञानेन्द्रियों द्वारा परीक्षण –

– इस परीक्षण में दूध को आँखों से देखकर व नाक से सूँघकर दूध की शुद्धता का पता लगाया जा सकता है।

– दूध में पानी की मिलावट या क्रीम निकाले हुए दूध का रंग हल्का नीला होता है।

5. अम्लीयता परीक्षण –

– दूध का pH – 6.7   

– शुद्ध दूध में अम्लीयता 0.12 से 0.16 प्रतिशत तक होती है।  

– अम्लीयता परीक्षण सूत्र – N/9 NaOH द्वारा ज्ञात करते हैं।

– दूध में वसा टेस्ट के लिए ब्यूटायरोमीटर से गरबर मशीन पता लगाया जाता है।

– वसा परीक्षण अपकेन्द्रीय बल सिद्धांत पर आधारित है।

– इस परीक्षण हेतु ब्यूटायरोमीटर में 10 ml सल्फ्यूरीक अम्ल व दूध 10.75 ml तथा 1 ml एमाइल एल्कोहल का प्रयोग करते हैं।

– गरबर मशीन को 1100 RPM पर 5 मिनट तक चलाते हैं।

7. हंसा परीक्षण – इस विधि द्वारा गाय के दूध में भैंस के दूध की मिलावट की जाँच करते हैं।

8. आयोडीन परीक्षण –  इस विधि द्वारा दूध में स्टार्च की उपस्थिति का पता लगाते हैं।

9. नाइट्रेट परीक्षण – यह परीक्षण दूध में वर्षा जल की उपस्थिति को दर्शाता है।   

संसाधन स्तर पर गुणवत्ता परीक्षण:

1. अम्लता परीक्षण (Acidity Test)– दूध के ताजेपन की जानकारी के लिए यह परीक्षण किया जाता है। दूध में अम्लीयता दो प्रकार की होती है।

 I. प्राकृतिक अम्लता (Nutural Acidity)– यह दूध में फास्फेट, साइट्रेट लवण, केसनी, एलब्यूमिन, तथा दूध में घुली हुई कार्बनडाईऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होती है। ताजे दूध में यह अम्लता 0.12 से 0.14 प्रतिशत के बीच होती है।

 II. विकसित अम्लता (Developed Acidity)– यह अम्लता दूध में पाए जाने वाले लैक्टोज के किण्वन द्वारा उत्पन्न लैक्टिक अम्ल के कारण होती है।

नोट :

1. N/10 NaOH के घोल का उपयोग करने पर 0.009 अंश से गुणा करें। 1 मि.ली. N/10 NaOH = 0.009 दुग्धाम्ल

2. N/10 सान्द्रता का प्रामाणिक NaOH का विलियन बनाने के लिए 4.0 ग्राम शुष्क NaOH की मात्रा N/9 सान्द्रता का प्रमाणिक NaOH का विलियन बनाने के लिए 4.5 ग्राम शुष्क NaOH की मात्रा को अलग-अलग 1 लीटर आयतन बनाते हैं तथा इन दोनों विलियनों का ऑक्जेलिक अम्ल के N/9 या N/10 सान्द्रता के मानक विलियनों से मानकीकरण कर लेते हैं।

 परिणाम – दिए गए दूध के नमूने में अम्लता प्रतिशत 0.16 है अर्थात् दूध ताजा है।

लैक्टोमीटर द्वारा दूध का परीक्षण :

– लैक्टोमीटर द्वारा दूध का आपेक्षिक घनत्व ज्ञात करते हैं। दूध के इकाई आयतन के भार तथा समान आयतन के पानी के भार के अनुपात को दूध का आपेक्षिक घनत्व कहते हैं। शुद्ध पानी का इकाई आयतन का भार सदैव 1 होता है।

 दूध में पानी व सप्रेटा दूध की मिलावट का पता लगाने के लिए दूध का आपेक्षिक घनत्व ज्ञात करते हैं।

Aदूध का तापक्रम ˚में होने पर

क्र.सं.अवलोकित लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक O.L.R.लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक L.R.दूध का तापक्रम ˚Fसंशोधित लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक C.L.R.दूध का आपेक्षिक घनत्व
1.3030.572˚F30.5+1.2=31.71.0317
2.2828.560˚F28.5+00=28.51.0285
3.3434.552˚F34.5-0.8=33.71.0332

दूध का तापक्रम ˚में होने पर

क्र.सं.अवलोकित लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक (O.L.R.)लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक (L.R.)दूध का तापक्रम ˚Cसंशोधित लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक (C.L.R.)दूध का आपेक्षिक घनत्व
1.3232.528˚C32.5+1.6=34.11.0341
2.2727.520˚C27.5+00= 27.51.0275
3.2424.514˚C24.5-1.2= 23.31.0233

निम्न प्रकार है–

1. दूध का अवलोकित लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक = 30

2. दूध का तापक्रम = 72˚F

3. लैक्टोमीटर पर अंकित पाठ्‌यांक = 60˚F

4. दूध का लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक (L.R.) = अवलोकित लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक (O.L.R.)+ संशोधन कारक (0.5)

   (L.R.) = 30+0.5= 30.5

 दूध का संशोधित लैक्टोमीटर पाठ्‌यांक (C.L.R.) = एल.आर.+तापक्रम संशोधन

 (चूंकि दूध का तापक्रम लैक्टोमीटर के तापक्रम से 12˚F अधिक है इसलिए एल.आर. में 0.1×12=1.2 तापक्रम संशोधन जोड़ देते है।)

 दूध की सी.एल. आर = 30.5+1.2=31.7

Q. एक लेक्टोमीटर प्रयोग में लेक्टोमीटर का पाठ्यांक 32 आता है व दूध का तापमान 28oC आता है तो बताइए दूध में किसकी मिलावट की गई है?

 i. क्रीम

 ii. जल

 iii. एल्कोहल

 iv. साबुन

व्याख्या :-

– लेक्टोमीटर के पाठ्यांक में 0.5 जोड़कर संशोधन किया जाता है क्योंकि कमरे का तापमान परिवर्तित होता रहता है।

– अब इसी दूध में थर्मामीटर (तापमापी) द्वारा तापमान का पाठ्यांक लेते हैं। 20oC पर मानक ताप माना जाता है। 20oC से ऊपर या नीचे तापमान होने पर तापमान में संशोधन किया जाता है।

– प्रत्येक 1oC के लिए 0.2 ताप को 20oC ताप से ऊपर होने पर जोड़ा जाता है तथा 20oC ताप से नीचे होने पर 0.2 कम किया जाता है। इसे C.L.R. कहा जाता है।

– फिर सूत्र द्वारा आपेक्षिक घनत्व ज्ञात किया जाता है। जिसे मानक आँकड़ों से तुलना करके दूध की गुणवत्ता बताई जाती है।

Q. यदि लेक्टोमीटर का पाठ्यांक 27 प्रेक्षित किया गया व तापमान 20oC पाया गया तो दूध का आपेक्षिक घनत्व होगा-

 संशोधित लेक्टोमीटर पाठ्यांक =27.5

Q. यदि लेक्टोमीटर का पाठ्यांक 24 प्रेक्षित किया गया है व तापमान 14oC पाया गया है तो दूध में किसकी मिलावट है?

 CLR = 23.3

 दूध में जल की मिलावट की गई है।

नोट –

 यदि तापमान के आँकड़े oF में दिए जाए तो 60oF को मानक मानते हैं व 60oF से ऊपर होने पर 0.1 से गुणा करके जोड़ा जाता है व कम होने पर 0.1 से गुणा करके घटाया जाता है।

Q. यदि लेक्टोमीटर का पाठ्यांक 30 प्रेक्षित होता है व दूध का तापक्रम 72oF आता है तो दूध का आपेक्षिक घनत्व ज्ञात कीजिए व इसमें किसकी मिलावट की गई है बताइए?

 लेक्टोमीटर पाठ्यांक = 30.5

 दूध का तापक्रम = 72oF

 संशोधिक लेक्टोमीटर पाठ्यांक= 30.5+1.2=31.7

– दूध में क्रीम/सप्रेटा की मिलावट की गई है।

नोट :

– शुद्ध गाय के दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.028 और भैंस के दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.032 होता है यदि परीक्षण द्वारा निकाला गया आपेक्षिक घनत्व कम है तो उसमें पानी की मिलावट है और अधिक आने पर उसमें सप्रेटा दूध की मिलावट हे या क्रीम उत्पादक को दूध की कीमत प्राप्त होती है।

 दूध में वसा परीक्षण की मुख्य दो विधियाँ प्रचलित है–

 I. आयतनमितिय विधि – इसकी दो विधियाँ हैं

(i) गरबर विधि (ii) बैबकॉक विधि

II. भारमित्तीय विश्लेषण विधि – इसकी भी दो विधियाँ हैं (i) एडम्प पेपर कोयल विधि (ii) रोज गोटलिब विधि

उपरोक्त विधियों में गरबर विधि सबसे उत्तम विधि है अत: गरबर विधि से दूध की वसा प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से ज्ञात कर सकते हैं।

नोट :

– गाय के शुद्ध दूध में औसत वसा की प्रतिशत मात्रा 4.5 प्रतिशत और भैंस के दूध में 7.5 प्रतिशत वसा होती है इससे कम या अधिक होने पर अपमिश्रित है।

कृत्रिम दूध (Synthetic Milk) :

– कृत्रिम रूप से बनाया गया दूध होता है जो गाय या भैंस के दूध से वसा निकालर बचे हुए सप्रेटा दूध में यूरिया, डिटरर्जेंट, कास्टिक, सोडा, स्टार्च, ऑयल, चाक चूना आदि मिलाकर बनाया जाता है।

कृत्रिम दूध व प्राकृतिक दूध में अंतर :

– कृत्रिम दूध की पहचान करने के लिए उसे सूँघने पर उसमें साबुन जैसी गंध आती है तो सिंथेटिक दूध है जबकि असली दूध में प्राकृतिक गंध अर्थात् सुवास होती है।

– कृत्रिम दूध का स्वाद बहुत तीखा अच्छा नहीं कड़वा होता है जबकि असली दूध का स्वाद बहुत अच्छा रुचिकर मीठा होता है।

– कृत्रिम दूध को कमरे के तापक्रम 3˚C रखने पर पीलापन लिए होता है जबकि असली दूध के रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है कभी-कभी अधिक देर तक रखा रहने के कारण खट्टापन आता है।

– कृत्रिम दूध को अंगुलियों के बीच मलने पर साबुन जैसा चिकनापन आता है जबकि शुद्ध दूध को अंगुलियों के बीच रगड़ने पर चिकनापन नहीं महसूस नहीं होता है।

– कृत्रिम दूध को उबालने पर पीले रंग का हो जाता है व साबुन जैसी गंध आती जबकि असली दूध में कोई पीलापन नहीं होता है और न ही गंध आती है।

– कृत्रिम दूध का पी.एच. मान क्षारीय 10.5 तथा असली दूध का पी.एच. मान हल्का अम्लीय 6.8 होता है।

– कृत्रिम दूध में यूरिया की मात्रा 1400 मि.ग्रा. प्रतिशत में जबकि असली दूध 20-70 मि.ग्रा. प्रतिशत में होती है।

– कृत्रिम दूध में शर्करा परीक्षण धनात्मक जबकि असली दूध में ऋणात्मक होता है।

MILK ADULTERATION ( दूध मिलावट का परीक्षण)

1दूध में यूरिया की मिलावट की जाँच (Testing of Urea in milk)दूधपैरा-डाई मिथाइल एमिन बेनाजाइल्डिहाइडपरिणाम
 5.0 ml5.0 mlदूध का रंग गहरा पीला हो तो दूध में  यूरिया की उपस्थिति है। यदि दूध का रंग हल्का पीला हो तो इस दूध में यूरिया नहीं मिलाया गया है। 
2दूध में पानी मिलावट की जाँच (Testing of added water in milk)दूध में पानी की मिलावट की जाँच के लिए किसी भी तिरछी सतह पर दूध की एक बूँद डालते है।यदि दूध पीछे एक निशान छोड़ देता है, तो यह शुद्ध दूध है। यदि दूध पीछे एक भी निशान नहीं छोड़ता है। तो दूध में पानी की मिलावट की गई है।
3दूध में स्टार्च मिलावट की जाँच (Testing of added starch in milk )दूधआयोडीनपरिणाम
 10.0 ml1 से 2 बूँदयदि परखनली में दूध का रंग हल्का भूरा दिखायी दे तो दूध में स्टार्च का मिश्रण नहीं किया गया है।यदि परखनली में दूध का रंग हल्के से गहरा नीला दिखाई दे तो दूध में स्टार्च का मिश्रण किया गया है।
4दूध में ग्लूकोज के मिलावट की जाँच (Testing of Glucose in milk)दूधबारफॉयड रसायनफॉस्फोमोलिब्डिक एसिडपरिणाम 
 1.0 ml1.0 ml1.0 mlदोनों द्रवों का मिश्रण हो जाने के बाद परखनली में दूध का रंग हल्का नीला दिखाई दे तो इस सैम्पल में दूध में ग्लूकोज नहीं मिलाया गया है।यदि परखनली में दूध के द्रव का रंग गहरा नीला हो तो इस  सैम्पल में ग्लूकोज मिलाया गया है।  
5दूध में चीनी की मिलावट की जाँच (Testing added sugars in milk)दूधसान्द्र हाइड्रोक्लोरिक एसिडरिसारसिनाल फ्लेक्सपरिणाम 
 10 ml1. 0 ml100 mgयदि परखनली के द्रव का रंग गहरा लाल दिखाई दे तो दूध के इस सैम्पल में चीनी की मिलावट की गई है।  यदि परखनली के द्रव में कोई रंग नहीं आता तो इस दूध के सैम्पल में चीनी की मिलावट नहीं की गई है।   
6दूध में सोडा की जाँच (Tesing of Soda in milk)दूधइथाइल एल्कोहोलरोजेलिक एसिडपरिणाम 
 5.0 ml5.0 ml1- बूँदयदि परखनली में दूध को द्रव का रंग गुलाबी लाल रंग दे तो दूध की इस सैम्पल में सोडा मिला हुआ है। यदि परखनली में दूध के द्रव का रंग पीलापन लिए हुए लाल रंग का दिखाई तो दूध के इस सैम्पल में सोडा की मिलावट नहीं है। 
7फॉरमेलिन मिलावट की दूध में जाँच (Testing of added formalin in milk )दूधफेरिक क्लोराइडसान्द्र सल्फ्यूरिक एसिडपरिणाम 
 3.0 ml1.0 ml5.0 mlयदि परखनली में दूध के द्रव में बैंगनी रंग  का घेरा दिखाई दे तो इस सैम्पल में फॉरमेलिन मिलाई गई है। लेकिन यदि परखनली में दूध के द्रव में कोई रंग नहीं दिखाई दे तो दूध के इस सैम्पल में फॉरमेलिन की मिलावट नहीं की गई है।     
8दूध में वनस्पति तेल मिलावट की जाँच (Testing of added vegetable  oil in milk)दूधहाइड्रोक्लोरिक एसिडचीनीपरिणाम 
 10 ml1.0 ml1 चम्मचयदि दूध के  इस सैम्पल में मिश्रण का रंग लाल हो जाता है। तो इसमें वनस्पति के तेल की मिलावट की गई है।   
9कृत्रिम दूध की जाँच (Testing of Synthetic milk)दूधब्रोमोक्रिसोल पर्पल परिणाम 
 5 ml2 बूँद यदि दूध का रंग हल्का नीला हो जाता है। तो दूध में डिटर्जेंट की मिलावट की गई है। 

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गाय एवं भैंस के दूध की तुलना

क्र.स.गाय का दूधभैंस का दूध
1.भैंस के दूध से अपेक्षाकृत पतलागाय के दूध से गाढ़ा
2.कुछ पीलापन लिए हुएसफेदसफेद
3.स्वाद में कम मीठाकुछ अधिक मीठा
4.कैरोटीन की मात्रा अधिकहोनाकैरोटीन कम होना
5.विटामिन ‘ए’ की मात्रा कम होनाअपेक्षाकृत अधिक होना
6.हिमांक-0.546° से.-0.543° से.
7.आपेक्षित गुरुत्व 1.0301.032
8.वसा रहित ठोस पदार्थकम होनाअधिक होना
9.वसा की प्रतिशत मात्राकम  होनाअधिक होना
10.स्नेह कणकों(fat globlues) काछोटा  तथा अधिकसंख्या का होनाबड़े-बड़े तथाथोड़े संख्या में
11.दुग्ध वसा में ब्युटायरिकतथा  स्टियरिक अम्लों काकम  मात्रा में होनाअपेक्षाकृत अधिकहोना
12.दुग्ध वसा में ओलिक तथालिनोलिनिक एसिड काअधिक मात्रा में होनाकम मात्रा में होना
13.लौह, ताम्र तथा मैंग्नीजलवणों का  अधिक होनाबहुत कम होना
14. कैल्सियम,फॉस्फोरस,मैग्नीशियम तथा सोडियमलवणों की मात्रा कमहोना अपेक्षाकृतअधिक होना 

खीस (colustrum): – मादा पशु के प्रजनन के तुरन्त बाद  से पाँच दिन तक मादा पशु के थनों से प्राप्त होने वाला गाढ़ा एवं पीला दूध खीस कहलाता है।

– खीस में IgA एंटीबॉडी पाई जाती है जो नवजात बछड़े को प्रतिरक्षा प्रदान करती है।     

– इसकी प्राकृतिक अम्लता दूध (0.12-0.14) की अपेक्षा अधिक अर्थात् 0.2-0.4 के मध्य होती है इसका मुख्य कारण खीस में प्रोटीन एवं ठोस पदार्थों एवं ठोस पदार्थों की अधिकता है।

– घुलनशील पदार्थों की अधिकता के कारण इसका हिमांक – 0.605 सेण्टीग्रेड दूध से अधिक होता है।

खीस का संघटन :

– इसमें क्लोराइड्स की मात्रा अधिक होने के कारण इसकी विद्युत संचालकता भी अधिक होती है।

–  इसका आपेक्षिक घनत्व भी दूध की अपेक्षा अधिक 1.040 से 1.080 होता है।

– दूध एवं खीस के संघटन में बहुत कम अंतर पाया जाता है । खीस में दूध  की अपेक्षा दुग्धम कम मात्रा में व क्लोराइड अधिक मात्रा में पाया जाता है। खीस में वसा की मात्रा पशु की अवस्था पर निर्भर करती है। खीस में कुछ ठोस पदार्थ राख, क्लोराइड, केसीन, एल्ब्यूमिन व ग्लोब्यूमिन अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।

क्र.स.अवयवगायभैंस
1.प्रोटीन17.5121.80
2.केसीन5.086.70
3.एल्ब्यूमिन एवं ग्लोब्यूलिन11.3414.90
4.दुग्धम (लैक्टोज)2.192.30
5.वसा5.104.10
6.खनिज पदार्थ1.011.10
7.जल74.1972.01
गुणखीसदूध
रंगपीलापन या लालपन लिएसफेद रंग का
स्वादतीखामीठा
सुगंधअसामान्यसामान्य
प्राकृतिक अम्लता0.2 से 0.4 प्रतशित0.12 से 0.14 प्रतिशत
आपेक्षिक घनत्व1.04 से 1.081.028 से 1.032
क्लोराइडस0.149 से 1.156 प्रतिशत0.14 प्रतिशत
हिमांक-0.605˚C-0.52˚C-056˚C
वर्तनाकदूध से अधिक1.3440-1.3480
विद्युत संचालकतादूध से अधिक0.005 म्हो (Mho)
गाढ़ापनदूध से अधिक1.5 से 2.0 सेण्टीपाइस

खीस का महत्त्व :

1. खीस नवजात शिशु के लिए आरेचक (Laxative) होता है जो नवजात शिशु का पेट साफ करता है तथा म्यूकोनियम को मल द्वार  द्वारा बाहर निकालता है।

2.  खीस शिशु के रक्त में वास्तविक रोग प्रतिरोधकता लाता है, जो माता के खून से बच्चे के खून में खीस द्वारा प्रवेश करती है।

3. खीस नवजात शिशु के लिए मुख्य पोषण होता है। इसमें सभी पोषक पदार्थ प्रचुर मात्रा में होते हैं जिनकी प्रारम्भ में बच्चे को आवश्यकता होती है।

4. इसमें विटामिन “ए” एवं विटामिन “बी” कॉम्पलेक्स की मात्रा अधिक होने से बच्चे का संक्रामक रोगों से बचाव होता है।

5. खीस में अधिक लोहा एवं ग्लोब्यूलिन में अधिक प्रोटीनन की मात्रा बच्चे में हीमोग्लोबिन बनाने में बहुत सहायक होती है।

6. नवजात बछड़े को उसके शरीर के भार का 1/10 भाग खीस पिलाई जाती है।

क्रीम (cream) :

क्रीम (cream):- क्रीम दूध से पृथक् किया गया वह पदार्थ है जिसमें वसा की मात्रा कम से कम 20 प्रतिशत से अधिक होती है।

1.  पतली क्रीम (Table cream) :- इसमें वसा की मात्रा 20-25 प्रतिशत होती है।

2. मध्यम क्रीम (Whipping cream):- इसमें वसा की मात्रा 25-45 प्रतिशत तक होती है।

3. गाढ़ी क्रीम (Rich Cream):- इसमें 45 प्रतिशत से अधिक वसा होती है।

क्रीम निकालने की विधियाँ –

1.  जर्सी क्रीम विधि – इस विधि में प्रयुक्त बर्तन दो परतों का बना होता है तथा किन परतों के बीच खाली स्थान में 88°C तापमान गर्म पानी भरते हैं।

2. अपकेन्द्रीय बल विधि – यह क्रीम निकालने की सर्व श्रेष्ठ एवं वैज्ञानिक विधि है। यह विधि अपकेन्द्रीय बल के सिद्धांत पर आधारित है। इस विधि में सेपरेटर उपकरण काम में लेते हैं जिससे पतली एवं गाढ़ी क्रीम निकाली जा सकती है।  

– बाऊल – इसे सेपरेटर मशीन का हृदय कहते हैं। तथा यह दूध से क्रीम को अलग करता है।  

क्रीम पृथक्करण का सिद्धान्त :- दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.028 से 1.032 होता है। इसमें उपस्थित वसा का आपेक्षिक घनत्व 0.93 होता है जबकि सप्रेटा दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.037 होता है।

मक्खन (Butter)

मक्खन (Butter) :- मक्खन एक दुग्ध पदार्थ है जो दूध या क्रीम को मथने के उपरान्त प्राप्त किया जाता है।

इसमें वसा 80 प्रतिशत से कम नहीं और पानी की मात्रा 16 प्रतिशत से अधिक नहीं होती है और वसाविहीन पदार्थ 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।

घी (Ghee)

परिभाषा :– घी वह दुग्ध पदार्थ होता है जिसमें वसा की मात्रा 99 प्रतिशत होती है तथा सामान्य ताप 20°C पर अर्द्धतरल अवस्था में रहता है।

घी का औसत संगठन :- गाय एवं भैंस के दूध से तैयार घी का संघटन निम्न प्रकार है-

क्र.अवयवगाय का दूधभैंस का दूध
1.वसा99.0 सेअधिक99.0 सेअधिक
2.नमी0.5 से कम0.5 से कम
3.स्वतंत्र वसा0.50.5
4.स्वतंत्र वसा अम्ल2.8%2.8%
5.कैरोटीन3.2 से 7.2 आई.यू./ग्राम3.2 से 7.2 आई.यू./ग्राम
6.विटामिन A19 से 33आई.यू.17 से 38 आई.यू.
7.विटामिन C26 से 48आई.यू.18 से 37आई.यू.

अच्छे घी में नमी की मात्रा 0.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।

दही (Dahi):

दही की परिभाषा:- यह एक किण्वत दुग्ध पदार्थ है जो दूध को गर्म करने के बाद 21°C तक ठंडा करके उसमें उचित मात्रा में जामन मिलाने के पश्चात् 8-10 घंटे इन्कूवेशन अवधि पर प्राप्त किया जाता है।

– गर्मियों में जामन की मात्रा 1 प्रतिशत से कम दूध में मिलाते है तथा 8-10 घन्टे में दही तैयार हो जाता है।   

क्र.स.अवयवसम्पूर्ण दूध कादहीसप्रेटा दूध का दही
1.पानी84-88%88-90%
2.वसा5-7%0.01-0.1%
3.दुग्धम4.4-4.9%4.6-5.0%
4.प्रोटीन3.2-3.5%3.4-3.6%
5.खनिज पदार्थ0.5-0.6%0.7-0.8%
6.कैल्सियम0.11-0.12%0.11-0.13%
7.फॉस्फोरस0.09-0.11%0.8-0.11%
8.दुग्धाम्ल0.7-0.8%0.7-1.0%

दही बनाने की विधियाँ :-

वैज्ञानिक विधि :- इस विधि से दही बनाने में निम्नलिखित चरण सम्मिलित हैं-

1.  दूध का चुनाव छानना :- स्वस्थ पशु से प्राप्त स्वच्छ व ताजा दूध जिसमें अम्लता 0.17% से कम हो उसका चुनाव करते हैं। इसको साफ कपड़े से छान लिया जाता है।

2. दूध को गर्म करना :- स्वच्छ दूध को 72-75°C पर आधा घंटे तक गर्म करते हैं अथवा 10 मिनट तक उबाल लेते हैं जिससे उसमें उपस्थित सभी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।

3. दूध को ठंडा करना :- दूध को गर्म करने के बाद 21-22°C तक ठंडा कर लेना चाहिए। इस तापक्रम पर दुग्धाम्ल जीवाणु सबसे अधिक सक्रिय होते हैं।

4. दूध में जामन मिलाना :- दूध को उपयुक्त तापमान तक ठंडा करने के पश्चात् उसमें जामन मिला देना चाहिए। जामन मिलाने के बाद दूध को अच्छी तरह हिला देना चाहिए जिससे जामन समान रूप में सारे दूध में फैल जाए। जामन की मात्रा कुल दूध की मात्रा का 1-3 प्रतिशत होना चाहिए।

5. इन्कूवेशन तथा तापक्रम नियंत्रण :- दूध में जामन मिलाने के पश्चात् जितना समय दही जमने में लगता है उसे इन्कूवेशन अवधि कहते हैं। ठीक प्रकार से जामन मिलाने के बाद, दूध को अंधेरे में अथवा ढककर 22°C ताप पर एक निश्चित स्थान पर रख देते हैं। दही बनने में गर्मी में 6-8 घंटे तथा सर्दियों में 10-12 घंटे लगते हैं।

  जामन के प्रकार

1. शुद्ध जामन (Pure Starters) :- यह जामन प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है। यह जीवाणुओं का शुद्ध कल्चर पाउडर के रूप में होता है। इसमें स्ट्रेप्टोकोकस अथवा लैक्टोबैसीलस समूह का कोई एक प्रकार का जीवाणु होता है।

2. सामान्य जामन (Comman Starters) :- यह एक दिन पूर्व का दही होता है। इसमें स्टैप्टोकोकस लैक्टिस, स्टैप्टोकोकस कैसाई अथवा लैक्टोबैसीलस एसिडोफिलस बैक्टीरिया तथा कभी-कभी लैक्टोबैसीलस बुलगेरीकस भी पाए जाते हैं।

खोआ या मावा :

खोआ की परिभाषा :- दूध के जल को तीव्र वाष्पीकरण द्वारा निकालकर आंशिक रूप से सुखाया हुआ एक दुग्ध पदार्थ है, जिसमें दुग्ध ठोस पदार्थ 70 से 75% होते हैं, जिसे खोया/खोआ/मावा कहते हैं।

खोआ का संघटन (Composition of Khoa) – गाय व भैंस के दूध से बिने हुए खोआ का रासायनिक संघटन निम्नानुसार है।

क्र.दूध की किस्मनमी%वसा%प्रोटीन%दुग्धम%राख%लोहा%
1.गाय25.526.019.026.03.5139
2.भैंस19.537.017.722.03.8125

खोआ का उत्पादन :- सामान्यत: भैंस के दूध से 20-23 प्रतिशत तथा गाय के दूध से 18-20 प्रतिशत खोआ प्राप्त होता है।

छैना (Chhanna):

परिभाषा:- छैना फटे हुए दूध से तैयार किया हुआ एक विशेष प्रकार का दुग्ध पदार्थ है। उबलते हुए दुग्ध को अम्ल द्वारा फाड़कर तैयार किया जाता है। दूध को फाड़ने के लिए दुग्धाम्ल या साइट्रिक अम्ल् अथवा साइट्रिक फलों के रस का प्रयोग किया जाता है। उत्तम प्रकार का छैना प्राप्त करने के लिए उत्तम प्रकार का दूध लेकर उसमें उत्तम प्रकार के फलों का रस प्रयोग किया जाता है।

संघटन :- गाय तथा भैंस के दूध से बने हुए छैना का रासायनिक संघटन निम्न है-

दूध की किस्मपानी%वसा%प्रोटीन%दुग्धम%खनिज पदार्थ%
गाय का दूध53.424.717.62.22.1
भैंस का दूध51.529.614.62.41.9

– उत्तम प्रकार का छैना तैयार करने के लिए दूध में वसा रहित ठोस पदार्थ की मात्रा वसा की मात्रा का 1.9 से 2.1 होनी चाहिए।

– गाय के दूध से 14% व भैंस के दूध से 20% छैना प्राप्त होता है। उत्तम प्रकार का छैना तैयार करने के लिए दूध में वसा की मात्रा 4% होनी आवश्यक है।

पनीर (Cheese):

पनीर वह दुग्ध पदार्थ है जो दूध जमने/स्कंदन (Coagulation) के पश्चात् व्हे (दुग्ध जल) से निकलने के बाद प्राप्त होता है।

पनीर का पोषकता मूल्य

1.  पनीर प्रोटीन का उत्तम स्रोत है।

2. यह कैल्सियम एवं फॉस्फोरस का भी अच्छा स्रोत है।

3.  ऊर्जा का भी अच्छा स्रोत है।

4. यह सुपाच्य एवं पाचक है।

पनीर का संघटन (Cheese Composition):     चेड्‌डार पनीर का संघटन निम्न प्रकार है-

जल- 34 से 36%, वसा- 35 से 37%, प्रोटीन-24 से 26%

खनिज पदार्थ – 3 से 4%

1.  दूध का चुनाव (Selection of Milk) :- गाय का दूध पनीर के लिए अच्छा होता है। इसको साफ एवं पतले मलमल के कपड़े द्वारा छानकर साफ कर लेते हैं।

2. दूध का पास्तुरीकरण (Pasteurization of Milk) :- पनीर बनाने वाले दूध को धारण विधि द्वारा अर्थात् 60°C से 62°C पर 30 मिनट तक अथवा उच्च अल्पकालीन विधि (H.T.S.T.) द्वारा 72°C से 73°C पर 15 से 16 सेकण्ड तक गर्म करना चाहिए। इसके पश्चात् दूध को 30°C तक ठंडा कर लेना चाहिए। 

दुग्धशाला के बर्तनों की सफाई –

– इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि दुग्धशाला में उपयोगी बर्तनों से सुक्ष्मजीवों को हटाना या नष्ट करना।

बर्तनों की सफाई की विभिन्न विधियाँ –

1. Dry Method – यह विधि मुख्यत: ग्रामीण क्षेत्रों में दुग्धशाला के बर्तनों की सफाई करने में काम में ली जाती है। इस विधि में सूखी मिट्‌टी या राख का प्रयोग करते है।

2. क्षारीय धावन  दुग्धशाला के बर्तनों की सफाई हेतु सबसे उपयोगी विधि है –

 (i) सोडियम बाई-कार्बोनेट – इसका उपयोग काँच तथा पॉलिस वाला बर्तनों की सफाई करने में किया जाता है।

 (ii) ट्राई सोडियम फॉस्फेट – इसका उपयोग सभी प्रकार के बर्तनों की सफाई करने में किया जाता है।

3. अम्लीय धावन  – इसमें बर्तनों की सफाई हेतु 0.1 प्रतिशत अम्लीय धावन काम में ली जाती है। जैसे- फॉस्फोरिक अम्ल, साइट्रिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल।

4. वैज्ञानिक विधि – इस विधि में दुग्धशाला के बर्तनों को पहले साधारण पानी से धोते हैं। फिर सोडा या गर्म पानी से धोते हैं ताकि ठंडे पानी से दूध प्रोटीन फटे नहीं एवं दूध अम्ल नहीं बने।   

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