अलंकृत बागवानी || Ornamental gardening || alankrit bagwani in hindi

अलंकृत बागवानी

उद्यान विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत सभी प्रकार के सजावटी और शोभाकारी पौधों, झाड़ियों, लताओं एवं फूल वाले मौसमी पौधों का अध्ययन किया जाता है, अलंकृत बागवानी कहलाती है।

अलंकृत बागवानी आदिकाल से मानव जीवन से जुड़ी रही है। मनुष्य के जन्म से मृत्यूपर्यन्त तक के सभी कार्यों एवं संस्कारों में फूलों की विशिष्ट भूमिका रहती है, जैसे–

सफेद रंग का पुष्पशांति का प्रतीक
लाल रंग का पुष्पप्रेम एवं हृदय के प्रतीक
नारंगी रंग के पुष्पत्याग एवं समर्पण के प्रतीक

अलंकृत बागवानी का महत्त्व–

1. सजावट के लिए (For Decorative use) 

2.  मनोरजंन के लिए (For Recreation)

3.   आर्थिक महत्त्व  (Economic Importance)

4.  पर्यावरण की शुद्धता (Purification of Environment)

5.   धामिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व (Religious and Spiritual importance)

6.  औषधीय महत्त्व (Medicinal Importance)

7.  मृदा संरक्षण (Soil Conservation)

उद्यान के प्रकार–

उपयोगिता के आधार पर उद्यानों के तीन प्रकार माने जाते हैं–

1. निजी उद्यान (Private garden)

2. सार्वजनिक उद्यान (Public garden)

3. शाला उद्यान (School garden)

1.  निजी उद्यान –

–   इस प्रकार के उद्यानों का निर्माण कोठियों, बंगलों आदि की सीमा के अंदर वाले स्थानों में किया जाता है, जो क्षेत्रफल में सीमित होते हैं। इस प्रकार के उद्यान समतल भूमि पर बनाए जाते हैं। उद्यान में सभी अवयव संतुलित होते हैं।  

–  रास्ते और पगडण्डियों के दोनों ओर लगे पौधों और झाड़ियों में समरूपता रखी जाती हैं।

–   निजी उद्यानों में विशिष्ट वृक्षों जैसे झाड़ियों व लताओं की संख्या सीमित रखी जाती है जबकि मौसमी फूलों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

निजी उद्यान की योजना (Planning of Private garden)–

–  निजी उद्यान घर का एक विशिष्ट भाग होता है जिसमें परिवारीजन अधिक समय तक रहते हैं और उसका समुचित उपयोग करते हैं।

–  निजी उद्यान को ‘Out door living house’ के नाम से भी जाना जाता है।

–  निजी उद्यान का विभाजन निम्नलिखित तीन भागों में किया जाता हैं–

(i) जनहित भाग (Public area)      

(ii) सेवाभाग (Service area)

(iii) व्यक्तिगत भाग (Private area)

2.   सार्वजनिक उद्यान (Public Graden) –  

इस प्रकार के उद्यान शहरों में सार्वजनिक स्थानों जैसे – चिड़ियाघर, संग्रहालय, खेल मैदान अस्पताल परिसर आदि में बनाए जाते है। ये आकार में बड़े जाते हैं। इन्हें नगर निगम, नगरपालिका या विकास प्राधिकरणों के द्वारा बनाया जाता है। इनका उपयोग आम नागरिकों द्वारा किया जाता है इसलिए इन्हें सार्वजनिक उद्यान के नाम से जाना जाता हैं। सार्वजनिक उद्यानों का निर्माण निम्नलिखित तीन शैलियों में किया जाता है–

(i)  औपचारिक शैली उद्यान  (Formal Style of Gardening)

(ii) अनौपचारिक शैली उद्यान (Informal Style of Gardening)

(iii) स्वतंत्र शैली उद्यान (Free Style of Gardening)

(i)   औपचारिक शैली उद्यान (Formal Style of Gardening)

–  इस विधि को ज्यामितीय (Geometrical) या सममित (Symmetrical) शैली के नाम से भी जाना जाता है।  

–  इन उद्यानों में प्रमुख रूप से दो तरफा संतुलन अपनाया जाता है। उद्यानों में लगभग बीचो–बीच किसी प्रकार का भवन होता है जो मुख्य द्वार से एक पक्की सड़क द्वारा जुड़ा रहता है। यह सड़क सम्पूर्ण उद्यान को दो समान भागों में बाँटती है तथा सड़क के दोनों तरफ के भागों का निर्माण लगभग एक जैसा होता है। दोनों ओर एक जैसी सड़के, वृक्ष, झाड़ियाँ, क्यारियाँ, फुहारें, पानी की नाली आदि होती हैं, जैसे –

1. ताजगार्डन – आगरा

2. शालीमार बाग – कश्मीर

3. मुगलगार्डन – दिल्ली

(ii)    अनौपचारिक शैली उद्यान (Informal Style of Gardening)– 

–    अनौपचारिक उद्यानों में पौधों को प्राकृतिक रूप से उगाया जाता है और इसमें उद्यानों का खाका अनौपचारिक होता है अर्थात् कोई दृढ़ नियम नहीं होता है। इन उद्यानों को प्राकृतिक रूप प्रदान करने के लिए पहाड़ियाँ, नदी, झरने, पुल, नाले, तालाब, टेड़े–मेड़े रास्ते या ऊँचे–नीचे स्थान बनाए जाते हैं।  

–   अनौपचारिक उद्यानों में भूमि का तल एक सार नहीं होता, कहीं पर विशाल गड्ढे हाते हैं तो कहीं रेत के ऊँचे–ऊँचे टीले व छोटी मोटी पहाड़ियाँ तथा इन जगहों पर घास, वृक्ष फूल वाली झाड़ियाँ लगाई जाती है, जैसे –

1. जापानी गार्डन

2. चीनी गार्डन

3. इंग्लिश गार्डन  

(iii)    स्वतंत्र शैली उद्यान (Free Style of Gardening) –  

–    इन उद्यानों को अपूर्ण चित्र शैली या कलात्मक शैली उद्यान के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के उद्यानों में औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों शेलियों का मिश्रण पाया जाता है। औपचारिक उद्यान के अच्छे स्थलों व अनौपचारिक उद्यान के प्राकृतिक व आध्यात्मिक सौंदर्य का मिश्रण करके इन्हें बनाया जाता है।

जैसे – लुधियाना का रोज गार्डन

3.  शाला उद्यान (School garden) –

–  शिक्षण संस्थाओं के चारों तरफ सुंदर एवं स्वच्छ वातावरण का विशेष महत्त्व होता है। प्राचीन समय में गुरुकुल प्राकृतिक क्षेत्रों में शहरों से दूर स्थित होते थे। इससे विद्यार्थियों में निरीक्षण की तीव्र शक्ति, धैर्य, एकाग्रता, विचारों का क्रम में व्यक्त करना रंग और रूप की समझ आदि मानसिक गुणों का विकास होता है।  

–   शाला उद्यानों में विद्यार्थियों के खेलने कूदने के लिए खुला स्थान रखा जाता है। चौड़े खुले स्थान के चारों तरफ मौसमी फूलों की क्यारियाँ, कुछ दूरी पर शर्बरी बार्डर, रोजरी, अलंकृत वृक्षों व झाड़ियों के समूह तथा फल वृक्षों की विभिन्न जातियाँ मिलकर एक उत्तम शाला उद्यान बनाते हैं।

एवेन्यू (Avenue) –  

–  जब वृक्ष सीधी लाइन में सड़क के दोनों किनारों की ओर लगाए जाते हैं तो उन्हें मार्ग एवेन्यू (Roadside Avenues) कहा जाता है।

–  एवेन्यू को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है–

1. बगीचे के अंदर एवेन्यू (Inside garden avenue)

2. राजमार्ग एवेन्यू (Highway avenue)

1.   बगीचे के अंदर एवेन्यू (Inside garden avenue) –

–  इसमें अलंकृत वृक्ष बगीचे में सड़क के दोनों ओर बगीचे के अनुसार लगाए जाते हें। अलग–अलग सड़क पर अलग–अलग प्रकार के पौधे लगाते हैं जो वर्ष में अलग–अलग समय पर फूल देकर सुंदरता बढ़ाते हैं।  

2.  राजमार्ग एवेन्यू (Highway avenue)–

–  इसमें बड़े छायादार फूल व फल देने वाले वृक्षों को सड़के के दोनों तरफ दो या तीन लाइनों में लगाया जाता है। जिससे सड़क पर छाया मिलती है और सड़क की सुंदरता बढ़ती है।

–  महानगरों में स्थान विशेष की जलवायु को ध्यान में रखकर फूल आने के समय व रंग के अनुसार वृक्ष लगाए जाते हैं।

–  सदाबहार पौधों को रोपने का उपयुक्त समय जुलाई–अगस्त तथा पतझड़ वाले पौधों को रोपने का सही समय फरवरी–मार्च होता है।

झाड़ियाँ (Shrubs)–

–  ऐसे बहुवर्षीय पौधे जिनमें भूमि की सतह के समीप से अनेक स्थायी काष्ठीय तने निकलते हैं, झाड़ी कहलाते हैं। झाड़ियाँ 2 से 4 मीटर ऊँची, काष्ठीय, अर्द्ध–काष्ठीय या शाकीय व स्थाई प्रकृति की होती है।

झाड़ियों के सामान्य उपयोग –  

1.   झाड़ियाँ उद्यान का प्रमुख अंग होती है। जब इन्हें ऊँचे वृक्षों की शृंखला में लगाया जाता है तो ये स्थान विशेष की सुंदरता को बढ़ा देती है।

2.   काँट छाँट करके झाड़ियों से विभिन्न प्रकार की आकृतियों का निर्माण किया जाता है जिससे उद्यान अधिक सुंदर दिखाई देता है।

3.   बाड़ (Hedge) लगाकर सीमांकन एवं सुरक्षा के लिए झाड़ियों का उपयोग किया जाता है।

4.   गर्मियों में गर्म एवं सर्दियों में सर्द हवाओं से बचाव के लिए इनका उपयोग किया जा सकता है।

5.   सुनियोजित तरीके से झुरमुट (Shrubberies) तैयार करके मनोरम दृश्य बनाया जा सकता है।

झाड़ियाँ लगाने के सामान्य सिद्धांत–

1.  झाड़ियों को बड़े छायादार वृक्षों और भवनों की छाया में नहीं लगाना चाहिए।

2.   अच्छे प्रभाव के लिए झाड़ियों को पूर्व एवं दक्षिण दिशा में लगाना चाहिए।

3.   झाड़ियों को सम्भवतया बड़े वृक्षों के समक्ष उगाना चाहिए जिससे ये देखने में सुंदर दिखाई देती है।

प्रमुख महत्त्वपूर्ण झाड़ियाँ–

1.   अधिक ऊँचाई वाली झाड़ियाँ–

(i)    हिबिस्कस रोजा साइनेन्सिस– इसका सामान्य नाम गुडहल है जो मालवेसी परिवार से संबंधित एक फूलों वाला पौधा है।

(ii)   डुरैन्टा प्लयूमेराई  इसे Golden Durenta के नाम से भी जाना जाता है।

(iii)  मोराया एक्जोटिका  

(iv)  नेरियम इन्डिकम  

(v)   टिकोमा स्टेन्स   

(vi)  थेवटिया नैरिफोलिया   

2.  मध्यम ऊँचाई वाली झाड़ियाँ – 

(i)    एकेलिफा – Acalypha यूफोरबिएसी परिवार में फूलों के पौधे का एक जीन है।  

(ii)   सेस्ट्रम नॉकटनर्म  इसे ‘रात की रानी’ उपनाम से जाना जाता है।

(iii)  सेस्ट्रम डाइयूरनम – इसे दिन का राजा के उपनाम से जाना जाता है।

(iv)  टिकोमा केपेन्सिस – यह एक सदाबहार बारहमासी फूल वाला पौधा है, जो साल भर खिलता है और यह प्राचीन फूलों के पौधे में से एक है जिसका उपयोग ज्यादातर हर भारतीय गृह उद्यान में किया जाता है।

3.   कम ऊँचाई वाली झाड़ियाँ –

(i)   एकेलिफा मेकाफिकाना

(ii)  इरेन्थिमम

(iii)  पेडलेन्थस

(iv)  क्रोटोलेरिया  

झाड़ियाँ लगाने की प्रमुख कृषि क्रियाएँ –

(i)   भूमि का चयन

(ii)  स्थान का चयन

(iii)  झाड़ियाँ लगाने का समय

(iv)  झाड़ियाँ लगाने की विधि

(v)  उर्वरक देना

(vi)  सिंचाई

(vii)  निराई-गुड़ाई

(viii)  कटाई-छँटाई

अलंकृत वृक्ष (Ornamental Plant)–

–  सड़क के चारों ओर वृक्ष लगाने का जनक सम्राट अशोक को माना जाता है।  

–  आर्बोरेटम – वैज्ञानिक अध्ययन हेतु वृक्ष लगाना

–  आरबोरीकल्चर – विज्ञान, शिक्षा, परिदृश्य हेतु वृक्ष उगाना

–  सिल्वीकल्चर – वानिकी के उद्देश्य से वृक्ष उगाना

वृक्ष के आकार के अनुसार

(Classification according to size of tree) –

1.   बड़े आकार के वृक्ष –

(i)   नीम– Azadirachta indica – नीम का पेड़ ध्वनि प्रदूषण, डस्ट एवं प्रकाश को फिल्टर करने का कार्य करते हैं।

(ii)  सेमल  Bombax malabaricum

(iii)   अशोक – Polyalthia longifolia

2.   मध्यम आकार के वृक्ष–

(i)   गुलमोहर – वानस्पतिक नाम – डेलोनिक्स रिजिया

                        कुल– फेबिएसी

                        पुष्प रंग – लाल/नांरगी  

(ii)  अमलतास – वानस्पतिक नाम – केसिया फिस्टुला

                      कुल – फेबिएसी

                       पुष्प रंग – पीला

(iii)   नीला गुलमोहर – वानस्पतिक नाम – जकारण्डा मीमोसिफोलिया

                       कुल – फेबिएसी

                       पुष्प रंग – नीला

(iv)   गुलाबी कचनार – वानस्पतिक नाम – बहुनिया परफ्यूरिया

(v)    सफेद कचनार – वानस्पतिक नाम – बहुनिया वेरिएगाटा

(vi)   पगूड़ा – वानस्पतिक नाम – इरिथ्रिना इण्डिका

(vii)  चम्पा – वानस्पतिक नाम – प्लूमेरिया एल्बा

(viii)  पलाश – वानस्पतिक नाम – ब्यूटिया मोनोस्पर्मा

–   इसे जंगल की आग के नाम से जाना जाता है।

लताएँ (Climbers) –  

–  लता अथवा बेल पौधों का वह समूह है जो किसी विशेष संरचनाओं के सहारे किसी दीवार, ढाँचे या वृक्षों पर ऊपर की ओर चढ़ते हैं। ये पौधें बिना किसी आधार के खड़े नहीं रह पाते, ऊपर चढ़ने/फैलने के लिए जो विशेष संरचनाएँ पाई जाती है। उनमें प्रतान (Tendrils) परिवर्तित पर्णवृन्त (Modified leafstalks) वायुवीय अपस्थानिक जड़े (Rootlets) अथवा कन्टक (Hook like thorns) प्रमुख है।  

–  कुछ लताएँ ऐसी होती हैं जो ऊपर नहीं चढ़ पाती है और नीचे ही फैलती है इन्हें विसर्पी/बेल (Creepers) कहते हैं।

–  कुछ बिना विशेष संरचनाओं के सहारे अथवा पौधों में लिपटकर चढ़ती है इन्हें वल्लरी/आरोही  (Twinner) कहते हैं।

लताओं के उपयोग –

(i)  मकान की दीवार, पार्किंग अथवा बड़े, छोटे हिस्से को विभक्त करने के लिए।

(ii)  वृक्ष या किसी ऊँचे-नीचे स्थान पर खाली जगह को ढकने के लिए।

लताओं के प्रकार –

(i)   एक वर्षीय लताएँ – ऐसी लताएँ जो अपना जीवन चक्र (वृद्धि, विकास, पुष्पन एवं बीज आदि) एक वर्ष में पूरा कर लेती हैं एक वर्षीय लताएँ कहलाती हैं। ये मुख्य रूप से बीज बोकर तैयार की जाती है और ये शीघ्रता से तैयार हो जाती हैं, जैसे–

1. स्वीट पी

2. मॉर्निंग ग्लोरी

3. नास्ट्रेशियम 

(ii)    पत्तियों वाली लताएँ – इस समूह में मुख्यत: सुंदर पत्तियों के लिए उगाई जाने वाली लताएँ आती हैं, जैसे –

1. मनी प्लांट

2. मोनेस्टेरा

3. फिलोडेन्ड्रान

4. सतावर

(iii)   सुंदर पुष्प वाली लताएँ– यह लताएँ मुख्य रूप से आकर्षक व रंग बिरंगे फूलों के लिए लगाई जाती हैं, जैसे –

1. बोगनविलिया

2. क्लोरोडेन्ड्रोन  

3. बिगनोनिया

4. राखी बेल (Passiflora edulis)

(4)    सुंगधित पुष्पों वाली लताएँ – इन लताओं के पुष्प सुंगधित होते हैं, जैसे–

1. चमेली

2. रंगुनलता

3. क्लिमेटिस

4. बतखबेल

(5)    छायादार स्थान के लिए लताएँ – ये लताएँ छायादार स्थानों पर अच्छी वृद्धि करती हैं, जैसे –

1. रेल्वे क्रीपर

2. एसपेरागस

3. आइपोमिया

4.  पोटेटोक्रीपर  

मौसमी पुष्पों का अध्ययन–

–  ऐसे पौधे जो अपना जीवन चक्र एक वर्ष या एक मौसम में पूरा कर लेते हैं मौसमी फूल वाले या एक वर्षीय पौधे कहलाते हैं।

–  इनमें से अधिकांश अपना जीवन 3 से 6 माह में पूर्ण कर लेते हैं। इस सीमित समय में इनका अंकुरण, वृद्धि, फूल व अंत में बीज बनकर पौधा समाप्त हो जाता है।

मौसमी पौधों को उगाने के प्रमुख उद्देश्य–

1.   क्यारियों में लगाने के लिए

2.   गमलों में उगाने के लिए

3.   सड़क या रास्ते के किनारों पर लगाने के लिए

4.   सुगंध के लिए

5.   शैल उद्यानों के लिए

6.   लटकती टोकरियों में लगाने के लिए

7.   ट्रेलिस को ढकने और स्तम्भों पर चढ़ाने के लिए

8.   कटफ्लावर के लिए

एक वर्षीय मौसमी फूल–

ऋतु के आधार पर

फूलबुवाई समयपौधारोपण समय
ग्रीष्म ऋतुफरवरी व मार्चमार्च से अप्रैल
वर्षा ऋतुजूनजुलाई
शरद ऋतुसितम्बरअक्टूबर

1.   ग्रीष्म ऋतु हेतु उपयुक्त मौसमी फूल –    

(i) जीनीया                      

(ii) कोचिया

(iii) गैलार्डिया                 

(iv) पोर्चुलेका

2.  वर्षा ऋतु हेतु उपयुक्त मौसमी फूल –     

(i) अमरेन्थस                 

(ii) हॉलीहॉक

(iii) कॉसमॉस                

(iv) कॉक्स–कॉम्ब

3.  शरद ऋतु हेतु उपयुक्त मौसमी फूल – 

(i) गुलदाऊदी                 

(ii) कारनेशन

(iii) पिटूनिया                 

(iv) पैंजी – एकवर्षीय फूलों का राजा

(v) हैलीक्राइसम            

(vi) एन्टीराइनम

(vii) स्वीट सुल्तान         

(viii) स्वीट विलियम

महत्त्वपूर्ण शब्दावली

1.   बोनसाई – बोनसाई की उत्पत्ति का श्रेय चीन को दिया जाता है। बोनसाई एक जापानीज कला है जिसमें छोटे पेड़ पौधों एवं लताओं को कंटेनर या गमलों में उगाया जाता है। सामान्यतया बोनसाई की औसत ऊँचाई 30 से 60 सेन्टीमीटर होती है। डॉ. वी.पी. अग्निहोत्री को बोनसाई का जनक कहा जाता है।

2.   टोपिअरी – पौधों को पक्षियों के आकार में त्रिआयामीय सजावटी रूप में बदलने के लिए तैयार करना टोपिअरी कहलाता है।

3.  पुष्पीय परिबंध – एक वर्षीय मौसमी फूलों को लॉन, सड़क के किनारों पर समानान्तर क्यारियों में उनकी ऊँचाई के अनुसार लगाना पुष्पीय परिबंध कहलाता है। 

4.  रॉकरी – सौंदर्यता के दृष्टिकोण से पत्थरों को विभिन्न तरह से सजाना रॉकरी कहलाता है। 

5.  इकेबाना – जापानीज फूलों को सौंदर्यता के लिए सजाना इकेबाना कहलाता है।

6. टर्फिंग/Turfing – सबसे कम समय में लॉन लगाने की विधि

7. एस्ट्रोटर्फ/Astroturf– एस्ट्रोटर्फ प्राकृतिक घास की तरह दिखने के लिए सिंथेटिक फाइबर की एक सतह है।

8.  कारपेट बेड – छोटे–छोटे रंग बिरंगी पौधों को एक किसी आकार में काटना या डिजाइन बनाना।

लॉन (Lown)

–   Heart of the Garden (गार्डन का हृदय)

–   भारत में सर्वाधिक उपयोगी एवं उपयुक्त घास – दूब घास

–   छोटे क्षेत्रों एवं गृह उद्यान हेतु सर्वोत्तम घास – कोरियन घास

गार्डन का इतिहास (History of Gardens)

–   अलंकृत बागवानी के जनक – डॉ. M.S. रन्धावा

–  Robert Kyd (1787) को राष्ट्रीय वनस्पति गार्डन के विकास का श्रेय दिया जाता है।

–  जोधपुर का मण्डोर उद्यान राजा अभय सिंह ने विकसित किया था।

–  राजस्थान के डीग, भरतपुर में गार्डन पैलेस राजा सूरजमल ने विकसित किए थे।

–   “Garden of five Senses” नई दिल्ली में स्थित है।

भारत में पुष्प विज्ञान (Floriculture) के प्रमुख संस्थान

1.   राष्ट्रीय ऑर्किड अनुसंधान केंद्र – गंगटोक, सिक्किम

2.   फ्लोरीकल्चर अनुसंधान निदेशालय – पुणे महाराष्ट्र

3.   ऑर्किड अनुसंधान एवं विकास केंद्र – अरुणाचल प्रदेश

4.   राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान – लखनऊ, उत्तरप्रदेश

5.   राजस्थान में पुष्प विज्ञान का उत्कृष्ठता केंद्र – सवाईमाधोपुर

भारत के प्रमुख पुष्प विज्ञान प्रजनक (Floriculture Breeder)

–   रजनीगंधा – मीनाक्षी, श्रीनिवास

–   गुलाब – B.P. Pal.

–   बोगनविलिया  T.N Khoshoo, S.N. Zadoo

–   गुलदाऊदी  M.A. Kher, S.K. Datta, M.N. Gupta

–   ग्लेडियोलस  बजरंग बहादुर सिंह भण्डारी, R.L. Mishra, S.S. Negi

फूलों में की जाने वाली महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ

क्रियाउद्देश्यउदाहरण
स्टफिंगसहारा प्रदान करनाSweet Pea, कारनेशन
पिन्चिंगसहायक कलिकाओं के विकास को प्रेरित करनाडहेलिया, गेंदा
डिसबडिंगउच्च गुणवत्ता के पुष्प तैयार करनाकारनेशन, डहेलिया, गुलदाऊदी
विन्टरिंग (जड़ प्रूनिंग)पौधे को बौना बनाना, पुष्पन को प्रेरित करनागुलाब
Green BendingSink एवं Source के मध्य संबंध को नियंत्रित करना, नई कलिकाओं के अंकुरण को प्रेरित करनागुलाब

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