फलोद्यान में विभिन्न पादप वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग
– पादप वृद्धि नियामक एक नवीन शब्द है जिसको पूर्व में ‘हॉर्मोन’ के नाम से जाना जाता है।
– ‘हॉर्मोन’ एक ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘उत्प्रेरित करना’।
– ‘हॉर्मोन’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अर्नेस्ट स्टर्लिंग ने किया था।
– वर्ष 1948 में वैज्ञानिक थीमेन ने ‘फाइटोहॉर्मोन’ शब्द का प्रयोग किया जिसमें फाइटो शब्द का अर्थ पादप है अर्थात् पादप हॉर्मोन।
– ये वे कार्बनिक पदार्थ है जो कि पादप के किसी भी भाग में प्राकृतिक रूप से संश्लेषित होते हैं एवं एक भाग से दूसरी जगह ले जाया जाता है जो वहाँ पादप की वृद्धि एवं दूसरी अन्य क्रियाओं को प्रभावित करता है उसे पादप वृद्धि हॉर्मोन कहा जाता है।
– पादप वृद्धि नियामक दो प्रकार के होते हैं ̵
1. वृद्धि प्रेरक:-
– ऐसे पादप हॉर्मोन जो पादपों की वृद्धि को प्रेरित करने का काम करते हैं।
– वृद्धि प्रेरक हॉर्मोन निम्नलिखित प्रकार के हैं- ऑक्सिन, जिब्बरेलिन, साइटोकाइनिन, एथाइलिन।
– वृद्धि प्रेरक हॉर्मोन भी दो प्रकार के होते हैं एक वो जो पादप में प्राकृतिक रूप से संश्लेषित होते हैं; जैसे- IAA एक प्राकृतिक ऑक्सिन हॉर्मोन का उदाहरण है जबकि IBA, NAA, 2,4D का क्रियात्मक कार्य IAA के समान ही है लेकिन संरचनात्मक रूप में भिन्न है।
– इसी प्रकार एथीलीन प्राकृतिक रूप से पौधे में उत्पन्न होती है जबकि ईथेफोन व इथ्रेल को कृत्रिम रूप से संश्लेषण किया जाता है।
2. वृद्धि निरोधक:-
– ABA- एब्सिसिक एसिड
1. ऑक्सिन:-
– ऑक्सिन हॉर्मोन के अस्तित्व का पता 1880 में चार्ल्स डॉर्विन ने कैनेरी घास में लगाया जिसमें उन्होंने देखा कि घास का शीर्ष भाग प्रकाश की ओर गमन कर रहा है अर्थात् प्रकाशानुवर्तन।
– ऑक्सिन ऐसे पादप हॉर्मोन है जिसके बारें में सबसे पहले पता लगाया गया अर्थात् सर्वप्रथम खोजा गया पादप हॉर्मोन।
– सन् 1928 में F.W. वेन्ट ने ऑक्सिन हॉर्मोन की खोज जंगली जई (एविना कॉलियोप्टाइल) में जंगली जई-परीक्षण के माध्यम से लगाया।
– सन् 1931 में स्मिथ व कोगल नामक वैज्ञानिकों ने ऑक्सिन हॉर्मोन का नामकरण किया।
– पादपों में ऑक्सिन हॉर्मोन को बढ़ाने में जिंक पोषक तत्त्व का विशेष योगदान होता है।
– पादपों में ऑक्सिन हॉर्मोन का संश्लेषण पादपों के शीर्ष क्षेत्र (मेरीस्टेमेटिक क्षेत्र) में; जैसे – जड़ों के शीर्ष भाग, शाखाओं की पार्श्व कलिकाओं, नवीन पत्तियों, फूलों व नवीन भ्रूण के विकास आदि में।
– ऑक्सिन हॉर्मोन का निर्माण ट्रिप्टोफेन (अमीनो अम्ल) के बनने से शुरु होता है अर्थात् ऑक्जिन (IAA) का पूर्वगामी कहलाता है।
– ऑक्सिन हॉर्मोन में ध्रुवीय गति पाई जाती है अर्थात् शीर्ष से नीचे की ओर गमन करना।
– संश्लेषित ऑक्जिन – IBA (इण्डोल ब्यूटाइरिक अम्ल) जड़ हॉर्मोन भी कहते हैं, NAA (नेफ्थेलीन एसीटिक एसिड), 2,4-D (2, 4 डाईफिनॉक्सी एसीटिक एसिड) MCPA (2 मरक्यूटिक-4 क्लोरोफिनॉक्सी एसिटिक एसिड)
– ऑक्सिन हॉर्मोन में प्रकाशानुवर्तन व गुरुत्कवाकर्षण पाया जाता है।
ऑक्सिन के कार्य:-
1. शीर्ष प्रभाविता:-
– इसकी खोज स्कुग तथा थीमैन ने 1950 में की थी।
– शीर्ष प्रभाविता का अर्थ शीर्ष भाग का अधिक वृद्धि करना होता है।
2. कोशिका का दीर्घीकरण:-
– कोशिका दीर्घीकरण से तात्पर्य पादप की कोशिका में लम्बाई के रूप में वृद्धि करता है।
3. जाइलम/दारु विभेदीकरण:-
– पादपों में कलिकायन व ग्राफ्टिंग में होने वाले मिलन की सफलता में ऑक्सिन का योगदान।
4. पादप वृद्धि:-
– पादप की वृद्धि में कोशिकीय वृद्धि होगी तभी पादप वृद्धि होगी जिसमें ऑक्सिन का योगदान होता है।
5. केन्द्रिक अम्लीय सक्रियता:-
– ऑक्सिन हॉर्मोन पादपों में कुल RNA व एन्जाइमों को सक्रिय करने में सहायक होते हैं; जैसे- एमाइलेज व केटाकेस एन्जाइम।
6. ऑक्सिन पादपों के श्वसन में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है।
7. ऑक्सिन हॉर्मोन पौधों में वृद्धि, जड़ों में वृद्धि, बीजों के अंकुरण में वृद्धि।
8. ऑक्सिन पादपों की जड़ों में वृद्धि करने का कार्य करता है।
ऑक्सिन का व्यावहारिक प्रयोग:-
1. जड़ फुटान:-
– IBA का प्रयोग पौधों की कलम के जड़ों को प्रोत्साहित करने में, IBA की 3000-6000 PPM मात्रा के घोल में कलम को 5-7 सेकण्ड डुबोकर लगाया जाता है।
– IAA की 75 PPM मात्रा के घोल का प्रयोग अँगूर की कलम की जड़ों को प्रोत्साहित करता है।
– NAA की 200 PPM की मात्रा नीबू वर्गीय पौधों में हवाई दाब कलिकायन में काम लेते हैं।
2. खरपतवार नियंत्रण:-
– 2,4-D, MCPA, 2,4,5-T आदि का प्रयोग वरणात्मक (Selective) शाकनाशी के रूप में प्रयोग किया जाता है।
3. फलों को झड़ने से रोकने हेतु:-
– मुख्यतया NAA की विभिन्न PPM मात्रा का प्रयोग फलों को झड़ने से रोकता है।
– नीबू वर्गीय फलों में फलों को झड़ने से रोकने हेतु 2,4-D की 15-20 PPM मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
– आम में फलों को झड़ने से रोकने हेतु 2,4-D की 10-20 PPM मात्रा एवं NAA की 50-60 PPM मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
4. पुष्पों का नियमन:-
– NAA का प्रयोग अमरूद के पुष्पों के नियमन हेतु 600 PPM का प्रयोग किया जाता है।
2.जिब्रेलिन – GA3 – जिबरेलिक अम्ल
– जिब्रेलिन की खोज वर्ष 1926 में जापानी वैज्ञानिक कुरौसोवा ने धान के बैकाने रोग के रोग कारक जिब्रेला फ्युजिकोराई में संश्लेषित किया जिसमें देखा कि धान का पौधा लम्बा, बीजरहित व पीले रंग का होता है।
– वर्ष 1935 में जापानी वैज्ञानिक याबुती व सुमाकी ने इसका नामकरण जिब्रेलिन के रूप में किया।
– जिब्रेलिन का संश्लेषण पादप के लैंगिक भागों, नवीन पत्तियों में व जड़ों में होता है।
– जिब्रेलिन का पूर्वगामी टेरपोनोइडस (एण्टकुरेन) होता है।
जिब्रेलिन के कार्य:-
1. बौनेपन का निवारण:-
– पादपों में आनुवंशिक बौनापन उनके जीन में उत्परिवर्तन के द्वारा होता है। ऐसे पौधों का बौनापन GA3 से दूर किया जाता है।
2. पादपों की कोशिकाओं में मोटाई में वृद्धि करके तने की लंबाई को बढ़ाना।
3. अंकुरण:-
– बीजों के अंकुरण को GA3 के द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
4. अनिषेक फलन (पार्थेनोकार्पी):-
– जिब्रेलिन अनिषेकफलन के लिए एक प्रभावी पादप वृद्धि नियंत्रक है। ऑक्सिन भी अनिषेकफलन का काम करता है लेकिन GA3 अधिक प्रभावी है।
जिब्रेलिन की उपयोगिता:–
1. अंकुरण:-
– बीजोपचार में GA3 का प्रभावी परिणाम है। अगर पपीता को GA3 के 200 PPM घोल से व आलु के कंदों को 5PPM GA3 से उपचारित करके बुनाई की जाए तो अंकुरण अधिक व शीघ्र होता है।
2. पुष्पन
– GA3 पुष्पन को शीघ्र लाने हेतु प्रेरित करने का काम करता है। विशेष रूप से दीर्घ प्रकाशावधि व पुष्पन हेतु शीत चाहने वाले पादपो में GA3 का प्रयोग किया जाता है तथा खीरा, मूली, गाजर, फूलगोभी में GA3 की 100-200 PPM मात्रा का प्रभावी प्रयोग किया जाता है।
3. अनिषेकफलन:-
– टमाटर / बैंगन/ बंगुर में अनिषेक फलन फल प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार अमरूद में 1000-8000 PPM GA3 घोल का प्रयोग किया जाए तो अनिषेक फल प्राप्त होते हैं।
4. फल टिकाव (Fruit setting):-
– नीबू/ फालसा/ संतरा/ टमाटर / बंगुर आदि में GA3 की 20-50 PPM घोल का प्रयोग करके फलों के टिकाव को बढ़ाया जा सकता है। जिससे फलों के आकार में भी वृद्धि होती है।
5. सुषुप्तावस्था की समाप्ति:-
– GA3 पादपों के बीजो व कलिका में सुषुप्तावस्था हटाकर अंकुरण व फुटान को बढ़ावा देता है। आलू की सुषुप्तावस्था को हटाने के लिए GA3 की 25 PPM मात्रा का प्रयोग करने पर आलू की सुषुप्तावस्था भंग हो जाती है।
6. विरलीकरण:-
– अँगूर में GA3 की 60PPM मात्रा का प्रयोग कर विरलीकरण किया जाता है। जिससे गुच्छों में अँगूर की संख्या कम हो जाती है।
7. भण्डारण में वृद्धि:-
– अमरूद के परिपक्व फलों को GA3 के 100-200PPM घोल से उपचारित करके भण्डार में वृद्धि की जाती है।
3. साइटोकाइनीन:-
– साइटोकाइनीन को फाइटोकाइनीन भी कहा जाता है।
– साइटोकाइनीन की खोज स्कूग व मिलर नामक वैज्ञानिक ने तंबाकू के पौधे में की थी।
– साइटोकाइनीन का संश्लेषण पादपों की जड़ों में, भ्रूण व पादप के शीर्ष भाग में होता है।
– साइटोकाइनीन का पूर्वगामी- 5 AMP (आइसोपेन्टाइल ग्रुप)
– प्राकृतिक साइटोकाइनीन- IPA (आइसोपेन्टाइल एडीनीन), जियाटीन (मक्का के संश्लेषण से), काइनेटीप (नारियल से)
– नारियल के पानी में काइनेटीन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
– संश्लेषित साइटोकाइनीन – BA (बेन्जाइल एडीनीन)
साइटोकाइनीन के कार्य
1. कोशिका विभाजन –
– साइटोकाइनीन ऑक्सिन के साथ मिलकर विभाजन का काम करता है।
– साइटोकाइनीन की मात्रा अधिक हो व ऑक्सिन की मात्रा कम हो तो पादप की Cellus cell में वृद्धि अर्थात् पादप में पार्श्व शाखाओं में वृद्धि होती है।
– ऑक्सिन की मात्रा अधिक हो व साइटोकाइनीन की मात्रा कम होने पर पादप में जड़ों की वृद्धि अधिक तथा पार्श्व शाखाओं में वृद्धि कम होती है।
2. बीज अंकुरण
3. पार्श्वकालिका में वृद्धि तथा शाखाओं में बढ़ोतरी –
– साइटोकाइनीन पादप की शीर्ष प्रभावित का विरोध करता है व शाखाओं में वृद्धि करता है।
4. सुषुप्तावस्था को हटाने में –
– ग्लेडियोलस की सुषुप्तावस्था को हटाने में किया जाता है।
5. पादपों में पत्तियों के पिगलने को रोककर पादपों की उम्र को बढ़ाता है।
– रिचमण्ड प्रभाव (पादपों की उम्र बढ़ाना)
6. पादपों में पोषक तत्त्वों का स्थानान्तरण-
– यह पादपों में RNA व प्रोटीन संश्लेषण की गति को बढ़ाता है तथा जाइलम व फ्लोएम के माध्यम से पोषक तत्त्वों को पादपों में पूर्ण रूप से फैलाने का काम करता है।
4. एथिलीन
– 1934 में गैने नामक वैज्ञानिक ने यह खोज की पादप का फल पककर नीचे गिरता है जिसका कारण एथिलीन हॉर्मोन हैं।
– 1969 में एथिलीन को पादप हॉर्मोन के रूप में स्वीकार किया।
– एथिलीन एकमात्र गैसीय हॉर्मोन है, यह फलों को पकाता है।
– पत्तियों, फलों, जड़ों आदि में इसके प्रमाण मिले हैं।
– एथिलीन की रासायनिक संरचना CH2= CH2(C2H4)
– एथिलीन का पूर्वगामी मिथियोनिन होता है।
एथिलीन के कार्य:–
1. फलों को पकाने में-
– फलों का पकाव शुरू होने पर श्वसन प्रकिया तेज हो जाती है। जिससे एथिलीन का निर्माण होता है तथा फलों में पकाव उत्पन्न होता है।
2. पादपों में फलों व पत्तियों के पिगलन को बढ़ाता है। इसलिए फाइटोजिरेनटोलोजिकल हॉर्मोन भी कहा जाता है।
– पत्तियों व फलों के वृन्त पर मृदुन्तक कोशिका की परत का निर्माण होता है। जिससे प्रोटीन संश्लेषण व श्वसन की प्रक्रिया तेज होती है। जिससे एथिलीन का निर्माण होता है यह एथिलीन हॉर्मोन पादप में पत्तियों व फलों में पिगलन की प्रक्रिया को तीव्र करता है।
3. पौधों को उगाना व वृद्धि करना
4. तीहरा प्रभाव
– पादप की शाखाओं (shoot) जड़ (Root) व पादप में विभेदीकरण को बढ़ावा देता है।
एथिलीन के प्रायोगिक कार्य:-
1. फल पकाव –
– ईथेफोन की 50 PPM मात्रा का प्रयोग नीबू वर्गीय फलों को जल्दी पकाने में काम आता है। केले के गुच्छों को पकाने में 500-1000 PPM इथ्रेल का प्रभावी प्रयोग करते हैं।
2. वृद्धि –
– पादप वृद्धि का विरोध करता है लेकिन पादप की पराग नलिका को बढ़ाता है।
3. पुष्पन (Flowering) ̵
– अन्नानास में एथिलीन का प्रयोग पादप में पुष्पन को बढ़ावा देता है।
– एथिलिन की 200-500 PPM मात्रा का प्रयोग कुकुरबिटेसी कुल की सब्जियों में मादा फूलों की संख्या को बढ़ाने के काम में लिया जाता है। खीरा में मादा फूलों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयोग लेते हैं- इथाइलीन – 200-500 PPM
5. एबसीसिक अम्ल (ABA) /एबसीसिक अम्ल
– यह पादप निरोधक हॉर्मोन है।
– वर्ष 1961 में लीयू और कार्नस ने कपास में इसकी खोज की।
– वर्ष 1963 में ओहकुया ने भी कपास में विस्तृत अध्ययन कर खोजा।
– कोर्नफोर्थ ने सीकामोर पादप के डोरमीन नाम पदार्थ की खोज की ।
इन तीनों के परिणामों को मिलाकर एबसीसिक अम्ल नाम दिया गया।
– ABA हॉर्मोन को GA3 का प्रतिरोधी कहा जाता है।
– ABA हॉर्मोन को स्ट्रेस हॉर्मोन कहा जाता है।
– ABA हॉर्मोन को प्रतिकूल दशाओं का हॉर्मोन भी कहा जाता है।
– ABA का निर्माण पादप में प्राकृतिक रूप से होता है।
– ABA का संश्लेषण पादप की कलिकाओं में होता है।
ABA का कार्य ̵
1. विगलन-
– यह पादपों में विगलन की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है। यह विगलन उत्पन्न कर पादप को विपरीत दशाओं से बचाता है।
2. सुषुप्तावस्था को बढ़ावा देना-
– ABA हॉर्मोन पादपों के बीजों व कलिकाओं में GA3 व साइटोकाइनीन के प्रभाव को निश्चित कर इसमें सुषुप्तावस्था पैदा करता है।
3. पादपों में प्रोटीन संश्लेषण को रोकता है।
4. बीजों का विकास व अंकुरण को रोकना-
– GA3 व साइटोकाइनीन को बीज अंकुरण वृद्धि हॉर्मोन भी कहते हैं। ABA इस प्रभाव का विरोध कर बीजों के अंकुरण को रोकता है।
5. वात रंध्रों को बंद करना-
– ABA हॉर्मोन पादप को प्रतिकूल दशाओं से बचाने हेतु उसकी कोशिकाओं द्वारा K के संश्लेषण को बंद कर पादपों में वात रंध्रों को बंद कर देती है।
6. कम पानी में मददगार-
– कम पानी वाले पौधों में ABA हॉर्मोन जमा हो जाता है तथा पानी की उपलब्धता होने पर ABA का प्रभाव कम होने लगता है।
– ABA हॉर्मोन शुष्क खेती के लिए उपयुक्त हॉर्मोन है।
पादप वृद्धि नियंत्रकों का संश्लेषण स्थल-
1. नयी पत्तियाँ व कलिका – ऑक्सिन व जिब्रेलिन
2. जड़ों में जिब्रेलिन व साइटोकाइनीन
3. छोटे व नवीन फलों में साइटोकाइनीन
4. पुरानी पत्तियों में ABA व एथिलीन हॉर्मोन
पादप अवरोध ̵
– ये संश्लेषित पदार्थ होते हैं। पादप की वृद्धि को धीमा करते हैं।
– ये पादप की पत्तियों, फूलों, फलों का विरोध नहीं करते बल्कि इनकी प्रक्रिया को धीमी कर देते हैं; जैसे – AM0-1618, साइकोसेल, MH, B-115, TIBA आदि।
साइकोसेल- पुष्पन को बढ़ावा /भण्डारण क्षमता को बढ़ाता है।
मैलिक हाइड्रेजाइड (MH)
– प्याज व लहसुन की फसल के कटाई से 15 दिन पूर्व MH की 2500 PPM का छिड़काव करने पर इसमें भण्डारण गृह में अंकुरण नहीं होता है।
– यह नर बंध्यता को उत्पन्न कर मादा फूलों की संख्या में बढ़ावा देता है।
TIBA-
– कपास व दलहनी फसलों में पार्श्व शाखाओं में वृद्धि करता है।
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