सब्जी उत्पादन की विधियाँ एवं सब्जी उत्पादन में नर्सरी प्रबन्धन
वर्गीकरण
- सब्जी विज्ञान का जनक – लिबर्टी हाइडे बेली
(i) वानस्पतिक आधार पर सब्जियों का वर्गीकरण –
A एकबीजपत्री सब्जियाँ – प्याज/एलियम सीपा/एलियेसी
B द्विबीजपत्री सब्जियाँ – लहसुन/एलियम सेटाइवम/
(ii) सब्जियों के उपभोग/खाए जाने वाले भाग के आधार पर सब्जियों का वर्गीकरण-
(i) जड़ वाली सब्जियाँ (रूपांतरित जड़)- गाजर, मूली, शलजम, चुकंदर, शकरकंद
(ii) कंद वाली सब्जियाँ (रूपांतरित तना)- आलू, कसावा, रतालू, याम, जमीकंद, शकरकंद
(iii) बल्ब वाली सब्जियाँ- प्याज, लहसुन
(iv) पत्ते वाली सब्जियाँ- मैथी, धनिया, पत्तागोभी, चौलाई, पालक
(v) फूल वाली सब्जियाँ- फूलगोभी, ब्रोकली
(vi) बीज वाली सब्जियाँ- मटर, चना
(vii) फल वाली सब्जियाँ- टमाटर, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, कुकर बिटेसी परिवार
(iii) प्रकाशावधि के आधार पर सब्जियों का वर्गीकरण-
(A) लघु दिवस/अल्पप्रकाशाश्रेपी पौधे (SDP)- 10 घंटे से कम प्रकाशावधि की आवश्यकता होती है।
उदाहरण – पालक, शकरकंद, ग्वार
(B) दीर्घ दिवस/दीर्घ प्रकाशश्रेणी पौधे (LDP)- 14 घंटे से अधिक प्रकाशावधि/प्रकाशदिवस की आवश्यकता होती है।
उदाहरण – गाजर, मूली, शलजम, चुकंदर, आलू, प्याज, लहसुन, ब्रेसीकेसी कुल (पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, गाँठ गोभी)
(C) दिवस निष्प्रभावी पौधे (NDP)- प्रकाशावधि का पुष्पन पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
उदाहरण – टमाटर, बैंगन, मिर्च, भिण्डी, कुकुरबिटेसी परिवार
(iv) ऋतुओं के आधार पर सब्जियों का वर्गीकरण-
A. खरीफ वाली सब्जियाँ (जून से सितंबर) – ग्वार, टमाटर, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, लौकी, खीरा।
B. रबी वाली सब्जियाँ (अक्टूबर से फरवरी) – गाजर, मूली, शलजम, चुकंदर, आलू, प्याज, लहसुन ब्रेसीकेसी परिवार।
C. जायद वाली सब्जियाँ (मार्च से मई तक) – खीरा, लौकी, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, कुकुरबिटेसी परिवार।
सब्जियों की खेती के प्रकार-
– सब्जियों की खेती सब्जियों को उगाने का उद्देश्य, उगाने की विधि, साधन सामग्री, जलवायु प्रबंध व्यवस्था, विपणन की व्यवस्था ये सभी कारण सब्जियों की खेती को प्रभावित करते हैं।
– भारत में लगभग 125 प्रकार की वनस्पति सब्जियों के रूप में प्रयोग होती है।
– विश्व में लगभग 1100 प्रकार की वनस्पति जो सब्जियों के रूप में प्रयोग होती है।
– लिबर्टी हाइडे बेली के अनुसार सब्जियों की खेती के दो प्रकार होते हैं ̵
1. गृहवाटिका स्तर पर सब्जियों की खेती
2. व्यावसायिक स्तर पर सब्जियों की खेती
– थॉम्पसन व केली ने सब्जियों की खेती के प्रकार को 7 प्रकार से विभाजित किया है-
(i) गृह वाटिका स्तर पर सब्जियों की खेती।
(ii) व्यापारिक/व्यावसायिक स्तर पर सब्जियों की खेती।
(A) मार्केट (B) ट्रक गार्डनिंग
(iii) बीजोत्पादन के लिए सब्जियों की खेती।
(iv) बेमौसमी सब्जियों की खेती (फोर्सिंग वेजीटेबल)
(v) तैरते हुए सब्जी उद्यान (फ्लोटिंग गार्डनिंग)
(vi) प्रसंस्करण/प्रोसेसिंग के लिए सब्जियों की खेती।
(vii) प्रदर्शनी के लिए सब्जियों की खेती।
गृहवाटिका स्तर पर सब्जियों की खेती-
– इसको रसोई उद्यान, किचन गार्डनिंग, गृह वाटिका आदि नामों से जाना जाता है।
– घर के आस-पास खाली जगहों में अपने परिवार की निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु सब्जियों को एक छोटे भाग में उगाना गृह वाटिका। रसोई उद्यान के नाम से जाना जाता है।
– यह सब्जियों की खेती करने की सबसे प्राचीन विधि है।
– रसोई वाटिका का मुख्य उद्देश्य घर के लिए पूरे वर्षभर हेतु स्वस्थ व रोग रहित सब्जियों की उपलब्धता का होना।
– इस प्रकार की सब्जियों की खेती करने में कभी भी आर्थिक लाभ कमाना उद्देश्य नहीं होता है।
– गृहवाटिका का लाभ –
1. पूरे परिवार को वर्षभर स्वस्थ व ताजा सब्जियों की उपलब्धता होती रहेगी।
2. खाली भूमि का उपयोग, स्नानघर व रसोईघर के अतिरिक्त पानी का तथा घर के कूड़े-कचरे का सदुपयोग।
3. समय व धन की बचत।
4. घर परिवार के सदस्य व छोटे बच्चे नए ज्ञान को अर्जित कर सकते हैं।
5. इन फार्मों से उत्पादित सब्जियाँ रोग व कीटों से तथा रसायनों के प्रभावन से मुक्त रहती हैं।
6. इन फार्मों से घर के सदस्यों को व्यायाम एवं मनोरंजन का साधन मिल जाता है।
7. यहाँ उत्पादित सब्जियों की खेती से व्यक्ति को मानसिक संतुष्टि मिलती है।
– गृह वाटिका में सब्जियों के अतिरिक्त फल, फूल एवं मीठा मक्का (स्वीट कॉर्न-जियामेज सेकेराटा) उगाए जाते हैं, इसलिए इसे रसोई उद्यान के नाम से जाना जाता है।
– गृह वाटिका में सब्जियाँ सघन रूप (Intensive) में उगाई जाती हैं।
– सब्जियों को उगाना – गृह वाटिका में पूरे वर्षभर में तीन बार सब्जियों को उगाया जाता है।
1. खरीफ में सब्जियों की खेती – इसमें सब्जियों को जून-जुलाई माह में उगाया जाता है।
उदाहरण – टमाटर, भिण्डी, मिर्च, बैंगन, खीरा, करेला, लौकी, ग्वार, लोबिया आदि।
2. रबी में सब्जियों की खेती – इसमें अक्टूबर-नवम्बर माह में सब्जियों को उगाया जाता है।
उदाहरण – गाजर, मूली, शलजम, चुकंदर, आलू, ब्रेसीकेसी कुल की सब्जियाँ।
3. जायद में सब्जियों की खेती – ये सब्जियाँ फरवरी-मार्च माह में उगाई जाती हैं।
उदाहरण – खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा व कुकरबेटेसी कुल की सब्जियाँ।
– गृहवाटिका का रेखांकन – गृह वाटिका का अभिविन्यास (Lay out) अपने घर की आवश्यकता उपलब्ध क्षेत्रफल व परिवार के सदस्यों की संख्या पर गृह वाटिका का क्षेत्रफल निर्भर करता है।
– एक औसत परिवार (5-6 सदस्य) के लिए गृह वाटिका का क्षेत्रफल 25×10 वर्ग मीटर पर्याप्त होता है, जिससे पूरे साल भर सब्जियाँ मिलती रहती हैं।
– गृह वाटिका का अभिविन्यास इस प्रकार बनाया जाए जिसमें गृह वाटिका की चौड़ाई कम तथा लंबाई अधिक होनी चाहिए तथा गृहवाटिका के एक किनारे पर खाद के लिए गड्डे का निर्माण अवश्य होना चाहिए।
– रसोई उद्यान में छोटे फलदार पौधों को; यथा-पपीता, नीबू, फालसा, अमरूद आदि को उत्तर दिशा में लगाना चाहिए क्योंकि सूर्यास्त दक्षिण-पश्चिम दिशा से होता है। इसलिए प्रकाश पूर्ण उपयोग हो सके।
रेखांकन में ध्यान रखने योग्य बातें-
1. सब्जियों की बुवाई हमेशा पंक्तियों में करें।
2. कुछ सब्जियों को 2-3 लाइनों में 8-10 दिनों के अंतराल पर बौना चाहिए, जैसे – टमाटर, मटर, बैंगन।
– ग्रीष्मकालीन/कुकरबीटेसी कुल की सब्जियों को गृहवाटिका के किनारों/बाड़ के पास-पास लगानी चाहिए।
– जड़ कंदवाली सब्जियों को मेड़ पर बोना चाहिए; जैसे – आलू, गाजर, मूली, शलजम।
– व्यापारिक स्तर पर सब्जियों की खेती-
– इसमें सब्जियों को उगाने का मुख्य उद्देश्य धनोपार्जन (पैसा कमाना) होता है। उत्पादित सब्जियों को स्थानीय एवं दूरस्थ बाजारों में बेचा जाता है।
– व्यापारिक स्तर पर सब्जियों की खेती दो प्रकार से की जाती है̵
(i) मार्केट गार्डनिंग– इन फार्मों में उत्पादित सब्जियों को स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है तथा ये सब्जियाँ स्थानीय माँग के आधार पर उत्पादित की जाती हैं।
– इन फार्मों की विपणन संस्थाओं से अधिकतम दूरी 20-25 किमी. तक होती है।
– इन फार्मों में खेती कम क्षेत्रफल में की जाती है लेकिन खेती सघन रूप से की जाती है, अर्थात् श्रम की अधिक आवश्यकता होती है।
– इन फार्मों में वो सब्जियाँ अधिक उगाई जाती हैं, जो शीघ्र खराब होने वाली हैं, जैसे – धनिया, मैथी, पालक, पत्ता गोभी, मूली आदि।
– इन फार्मों में सब्जियों को सुबह के समय तोड़कर ताजी-ताजी बाजार में भेजी जाती हैं।
– इन फार्मों में नवीन कृषि तकनीकों को अपनाया जाता है।
(ii) ट्रक गार्डनिंग – ट्रक गार्डनिंग में ट्रक शब्द फ्रेंच भाषा के ट्राकर (Troquer) से बना है, जिसका अर्थ बाँटना या अदला-बदला होता है।
– ये फार्म विपणन संस्थाओं से लगभग सैकड़ों किमी. दूर होते हैं।
– इन फार्मों में वो सब्जियाँ अधिक उगाई जाती हैं, जो शीघ्र खराब नहीं होती हैं, जैसे – प्याज, आलू, लहसुन, अरबी, शलजम आदि।
– इन फार्मों पर मशीनों का प्रयोग अधिक किया जाता है।
– इन फार्मों पर विस्तृत खेती की जाती है, अर्थात् लम्बे क्षेत्रफल में सब्जियों को उगाया जाता है।
– इन फार्मों में उत्पादित सब्जियों को मध्यस्थों/आड़तियों के माध्यम से बाजारों में बेचा जाता है।
– इन फार्मों में साल में एक या दो सब्जियों की खेती की जाती है।
बे-मौसमी सब्जियों की खेती – ऋतु के अलावा सब्जियों को उगाना, जैसे – दियारा खेती (नदी की तलहट्टी में सब्जियों की खेती)
– बेमौसमी सब्जियों को कृत्रिम माध्यम में उगाया जाता है, जैसे – पॉली हाउस/ग्रीन हाउस/टनल हाउस आदि।
– बेमौसमी सब्जियों में मुख्यत: टमाटर/खीरा/मशरूम की खेती की जाती है।
– बेमौसमी सब्जियाँ मुख्यत: विकसित/पश्चिमी/यूरोपीय देशों में उगाई जाती हैं धीरे-धीरे भारत में इस खेती का प्रयोग बढ़ा है।
– तैरते हुए सहजी उद्यान – भारत में इस प्रकार की खेती, श्रीनगर की डल झील में डरफा घास डालकर उसके ऊपर सब्जियों की खेती की जाती है।
– बीजोत्पादन हेतु सब्जियों की खेती – उन्नत बीज उत्पादित करके बाजार में बेचना।
– इसमें आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखने के लिए पृथक्करण दूरी का विशेष ध्यान रखा जाता है।
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