राजस्थानी शब्दावली
● मेर – खेत में हँके हुए भाग के चारों ओर बिना हँकी छोड़ी गई भूमि मेर कहलाती है। है। उदयपुर के आसपास इसे पाली कहते हैं।
● बाँझड़ – अनुपजाऊ या वर्षा में बिना जोती पड़ी हुई भूमि को बाँझड़ कहते हैं।
● गोर्यां, गोरम्याँ, गाँव-गोरम्याँ – गाँव के समीप के खेत, जिनमें पशुओं से उजाड़ का सदा डर रहता है।
● रूँण – तालाब में पिछले भाग की दलदली भूमि, जिसमें पानी और दलदल सूखने पर खेती की जाती है।
● ढंढ – गाँव से दूर की किसी तलाई आदि के समीप की भूमि, जिसमें चरने के उपरान्त जलपान करके पशु विश्राम करते हैं।
● धेड़ – नीचे धरातल वाली खड्डे जैसी भूमि में स्थित खेत, जिनमें वर्षा ऋतु में पानी भर जाता है।
● डोळी – मंदिर के पुजारी आदि को दी गई भूमि, जिसकी नाम दो हल के बराबर होती थी। जिस मंदिर या पुजारी को दो हल (100) बीघा जमीन दी जाती थी, वह डोळलया कहलाता था। कालान्तर में डोळया को कितनी भूमि दी जाए, इस विषय में कोई बंधन नहीं रहा। डोळ्या शब्द रूढ़ हो गया।
● पणो – तालाब में पानी एवं दलदल सूखने पर जमी उपजाऊ मिट्टी की परत, जिसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।
● चू, चऊ, चउड़ो – हल में लगा शंक्वाकार अंग, जिसमें भूमि फाड़ने के लिए फाल लगाया जाता है। ब्रजभाषा शब्दावली में इनके लिए पनिहारी शब्द मिलता है। महर्षि पराशर ने इसे प्रतिहारी कहा है।
● पराणी – बैलों को हाँकने के लिए प्रयुक्त होने वाली समग्रन्थि बाँस की लड़की, जिसके मुख पर लोहे की कील लगी होती है।
● चामठ्या – बैलों को हाँकने का डण्डा, जिसमें चमड़े की डोरियाँ बँधी होती है और मुख पर यवाकार लोहे की आर (कील)।
● ओरणी – खेत में बीज ऊरने के लिए काम में लाई जाने वाली मोटे बाँस की नलिका। इसे नाई और बीजाळी भी कहते हैं।
● फाळ्या – हल में भूमि को हाँकने के लिए लगाया गया लोहे का उपकरण।
● हाल – हल में लगाई जाने वाली लकड़ी की लम्बी एवं चक्र पटिया, जिसमें बैलों को जोतने के लिए जूड़ा लगाया जाता है।
● हळौट – संध्या समय जब किसान अपने घर लौटता है, तो जूड़े को हल के साथ गांगड़े के पास बाँध लेता है और हाल के बल घिसाते हुए लाता है। इसे प्रक्रिया को हळौट कहते हैं।
● सोल, समेल, सीलम – जूड़े के दोनों ओर लगाई जाने वाली खूँटियाँ, जिनमें जोत अटकाए जाते हैं। ये बैलों को बाहर निकलने से भी रोकती हैं।
● नाड़ी – नूंण, नेंण-चमड़े की रस्सी, जिससे जूड़ा बाँधा जाता है।
● केरण – खेत की ऊँची-नीची की मिट्टी को समतल करने के लिए प्रयुक्त होने वाला यंत्र
● सुंवार – हाँके गए खेत में ढेलों (ढगळो) को फोड़कर समतल बनाने के लिए प्रयुक्त यंत्र। इसे पटेला, चावर, चौबळद्या भी कहते हैं।
● खात – खेत की उत्पादन शक्ति बढ़ाने के लिए डाला जाने वाला सड़ा हुआ कचरा, गोबर, मैला आदि।
● हेल – गूथ अथवा खात का भरा छबड़ा। भंगी के लिए हेला शब्द का प्रयोग होता हैं और भंगिन के लिए हेलण।
● लूरबो – खेत में उगे निरर्थक घास-पात को उखाड़ना।
● ओगालो – पशुओं के द्वारा मुख से जुगाली कर निकाला गया घास, जिसका उपयोग खाद के रूप में होता है।
● दुसार्यो, तिसार्यो, चौसार्यो – खेत को दूसरी, तीसरी, चौथी बार हाँकने की प्रक्रिया।
● हळाय – हल की लम्बाई के बराबर खेत की चौड़ी पाटी।
● जोता देबो, जोता काढबो, रावटो (आवृत्ति) देणो – खेत में मेर के पास भी हँकने से छूटी भूमि, जिसे दुबारा आडी छामें देकर हाँका जाता है।
● दाँतली – फसल काटने की हँसिया।
● साण्णो, मोखी – कोठी के तल और भित्ति भाग में बना विवर, जिसमें से अनाज बाहर निकाला जाता है। इसे बिहार में आनन कहते हैं।
● मूंदण – साण्णे या मोखी में लगाया जाने वाला ढक्कन।
● धनेर्या – धान्य में पाया जाने वाला सूक्ष्म लाल रंग का कीड़ा।
● सुर्सलया – धान में पाया जाने वाला लम्बी नाम का कीड़ा, जो धान्य को सुळा देता है।
● ऊरबो – खेत में बनाई गई छामों में नायले के माध्यम से बीज बोना।
● ऊरी – भूमि में बीज ऊरने के समय कमीण-कारुओं को दिया जाने वाला धान्य।
● सेकळ जावणो – स्वल्प वर्षा से बीज का मिट्टी के नीचे दब जाना।
● गाळ – काछों में डोळों के बीच सिंचाई के लिए बनाई गई नालियाँ।
● रोपणी – बीज से बीजार उत्पन्न करके उसे अन्यत्र रोपने की क्रिया।
● बाड़, बाढ़ – गन्ने के खेतों को बाड़ या बाढ़ कहते हैं।
● पड़वा, फड़ा – तालाब आदि के नीचे की भूमि अथवा पाल में से फूटकर निकले पानी का बहाव।
● रेंट, राठ, अराठ, अरठ्ठ, आठ – सिंचाई के लिए कुएँ पर पानी निकालने हेतु लगाया गया तीन चक्रों वाला विशेष यंत्र।
● ढीकळी – कुएँ से पानी निकालने के लिए प्रयुक्त तुला-यंत्र
● पावटी – रहँट की तरह का पाँव से चलाया जाने वाला यंत्र
● झंझेड्यों – टूटा-फूटा कुआँ।
● सीर – कुओं की दीवारों से रिसने वाली जलधारा।
● खांजण्यो – कुएँ में खोदी गई सुरंग की ऊँखली से गीली मिट्टी निकालने के लिए प्रयुक्त लोहे की दर्वी।
● गरणा – सीर में से निकलने वाली गीली मिट्टी।
● रेळी – नदी के किनारे खोदी गई डोरी की दीवारों की रेतीली मिट्टी
● दाबड़ो – कुएँ के ढाणे का पत्थर जिस पर चड़स द्वारा उड़ेला गाया पानी गिरता है। 2. रहँट का वह चक्र जिस पर घड़-माळ चलती है।
● ताकल्यो – चड़स वाले कुएँ पर दाबड़ा में लगाई गई लम्बी मार्दलाकार गिर्री, जिस पर संडोर्या फिसलता है। इसे मांदल्या भी कहते हैं।
● बरो, बरत – चमड़े या सण की रस्सी जो चड़स में बाँधी जाती है, बरो या वरत कहलाती है।
● बजूड़ियो – गहरा कुआँ जिस पर एक चड़स के लिए दो जोड़ी बैल जोते जाते हैं। इस जोड़ियों को बळदो कहते हैं।
● चड़स, चड़, छड़ – चर्ममय-भाँड जिसके द्वारा कुएँ से पानी निकाला जाता है। सूँडवाला चड़स सूँइयां कहलाता है।
● कुड, कुड़त्या – चड़स के मुख पर लगाया जाने वाला अरों से युक्त लोहे का कुंडल। इसके स्थान पर लगाई गई चौखट माँची कहलाती है।
● रींगो – कुण्ड में लगे लोहे के कुंडल को रींगा कहते हैं।
● पोवण्या – चड़स और कुड़त्या को सम्बद्ध करने के लिए बाँधी गई चमड़े की डोरी।
● उलाळ्यो – चड़स को एक ओर उलाळने में सहायक कुड़ में बाँधा गया पत्थर।
● गांत्या – चड़स की माँची में लगने वाले मध्यदण्ड, जिन्हें पींडी, आड़या, आइड़या भी कहते हैं।
● परजूड़ – चड़स खींचने के लिए बैलों के कँधों पर लगाया जाने वाला दोहरा जुआ भी कहते हैं।
● मरड़ो – रहँट के दाबड़े नामक चक्र के लिए प्रयुक्त शब्द।
● घड़माल – घेड़ों (घटको) को रस्सी से संयुक्त कर बनाई गई माला। इसे घड़माँची भी कहते हैं।
● डीगार, डेंगार – रहँट के दाबड़े नाम के चक्र के दीर्घ आकार के अरे।
● भरेड़, भरेत, भ्रेड़ – वह दिशा जिधर के घेड़ों से पानी भरकर ऊपर चढ़ता है।
● करमळा, करवल्या, कलवरी – घड़माल की रस्सियों को समानान्तर रखने के लिए लगाई गई लकड़ी की खूँटियाँ। एक ओर से पैने करमळे को धांस्या-करमळा कहते हैं। माळ के दोनों छोरों को मिलाने के लिए लगाया गया करमळा सामर्या, हामर्या, कडु या कल्डु कहलाता है।
● गदेल्या चाका – रहँट का वह चक्र, जिसमें बैल जोता जाता है और हाँकने वाला बैठता है।
● रेडू – दाबड़ा और गदेल्या के बीच में स्थित चाका
● टेरछो – रहँट के गदेल्या चाका की घुरी को पकड़े रखने के लिए लगाई गई तेरह हाथ लम्बी लकड़ी।
● रेलणी – कोरे खेतों में पानी छोड़ने की क्रिया।
● पाणत – बीज बोये हुए खेत को पानी देने की क्रिया। दूसरी बार की पिलाई जोड़-पाण और अन्तिम पिलाई छूट-पाण कहलाती है।
● मोळकबो – मेथी-पालक को पानी पिलाने की क्रिया।
● डागळो, डांगड़ो, ढांगलो – खेत की रखवाली के लिए बनाया गाया मकान।
● ओडो, ओडको, अड़वो – पशुओं को डराने के लिए खेत में बनाया गया घास का पुतला। इसे ओघो, ओझको, ओझाको, सड़ो, घास-भेरू या खैर-बजूको भी कहते हैं।
● ललबो – पक्षियों को डराने के लिए पेड़ पर लटकाया गया मृत कौआ।
● फर्णाबो – गोफण के द्वारा वेग से पत्थर फेंकना।
● उफणबो – गाहे हुए अनाज को हवा में बरसाना।
● उसाणो, ओसाणो – अनाज उफणने का वंश-पात्र।
● पाखर – खलिहान में गावठे का बाह्य भाग।
● दो आँगली, चोआँगली – पूलों को उकराळी देने के लिए प्रयुक्त झेळी।
● लावणी – अनाज की कटाई।
● ओघा – मक्का और तिलों के पौधों का ढेर।
● कर्डा, कडपा, कडपी – खेत में पंक्तिश: काटकर रखे गए पौधों की बिना बँधी राशि।
● कटारो – काटने वालों को दी जाने वाली धान्य के पौधों की राशि।
● पच्चासी – गोल घेरे में फैले हुए अनाज के गावे। इसे पगरी भी कहते हैं।
● सल्लो, हल्लो, सालो – धान की लावणी के समय खेत में बिखरी ऊमियाँ।
● दांवणा, दामण – खलिहान में अनाज गाहने के लिए चढ़ाए गए बैल जो एक-दूसरे से रस्सी से सम्बद्ध होते हैं।
● माद – गाहा गया अनाज का भूसी सहित ढेर जिसे लम्बे चबूतरे के रूप में जमा दिया जाता है।
● क्या – खलिहान से ब्राह्मणों को दी जाने वाली खलि-भिक्षा।
● हूँखड़ी, सूखड़ी – खलिहान से कमीण कारुओं को दी जाने वाली अनाज की राशि।
● गाड़ी – बैलों द्वारा खींचा जाने वाला वाहन।
● सग्गड़ – रथ के अनुरूप सवारी गाड़ी, जो बैलों द्वारा खींची जाती है।
● भरण, भण्ण, भर्ण – गाड़ी की छत।
● गडार – गाड़ी के पहियों से बनी रेखा या मार्ग।
● पेड़ो – गाड़ी का पहिया।
● गेलो – मार्ग
● तूम्बण – गाड़ी की नाभि उसे नांह, नांई, नाउड़ी भी कहते हैं।
● नाह – गाड़ी के पहिए के मध्य की नाभि।
● अर, अरा, आरा, अरांट्या, ऊर – गाड़ी की नाभि और पाटलों को संयुक्त कर परिधि बनाने वाले डण्डे।
● नागबेच – पाटलों में अरे लगाने के लिए किया गया छेद।
● पाचरा – पूठियों को पाटलों के साथ संयुक्त करने के लिए लगाई गई खूँटियाँ।
● धरो – पहिये की नाभि में लगने वाली धुरी।
● धरूंडा – गाड़ी में अग्र भाग पर लगने वाला डण्डा, जिस पर गाड़ी टिकाई जाती है। इसे ऊँटड़ा भी कहते हैं।
● सोल, समेल, सीमल – जुए के दोनों ओर लगाई जाने वाली खूँटियाँ।
● तळेटी – गाड़ी के नीचे लगाई जाने वाली लकड़ियाँ, जिनमें से एक हाळी की बैठक के नीचे लगाई जाती है और दूसरी पूँछी के नीचे।
● जत – गाड़ी की पींजणी को बाँधने की रस्सियाँ।
● सीदवाव – गाड़ी को वांगते समय पहिया खोलने पर गाड़ी के नीचे लगाया गया सहारा। अंग्रेजी भाषा के जैक के लिए उपयुक्त शब्द है।
● पींनणी, पींजणी – पहियों के बाहर धुरी को उठाये रखने वाली चक्र पट्टियाँ, जो पहियों को भी बाहर से कसे रहती हैं।
● पनोल – उगते धान्य की पत्तियाँ
● दादरबो – डाँगी की बाली में कण पड़ना।
● फांगरबो – पौधे में एक स्थान पर दो पत्तियों का अंकुरित होना।
● आँखा, धाँसा, हींकड्या, खूँड्या, पोया, कल्लो – विभिन्न प्रकार के पौधों के धरती से निकलने वाले प्रथम अंकुर।
● हावड़, सावड़ – दो या तीन भुट्टो वाला पौधा।
2. लाल पीले दोनों वाला भुट्टा, जिसे कुलथ्या भी कहते हैं।
● उतेड़ो – बण के खेत में उड़द, मूँग, तिल आदि बोने की प्रक्रिया।
● पलाणबो – रोप तैयार करने के लिए चावल भिजोना।
● सार, हार – चावल (जवहार, बांगड़हार, धणहार, सुतरहार, वरूहार, कुओरहार, सुअरहार) इस प्रकार के चावलों के नाम है।
● बादला – आकाश में छाया जलवाष्प।
● रेल्लम–पेल्ल – मूसलाधार वर्षा।
● गाभा – कार्तिक –पौष के रिक्त बादल या वायुमंडल की आर्द्रता, जिन्हें वर्षा ऋतु के बादलों का गर्भ माना जाता है।
● आभा, आबा – पहाड़ों पर लटके सघन बादल।
● मोखां – बादलों पर विपरीत दिशाओं से पड़ने वाली सूर्य रश्मियाँ।
● सँपणी – सर्पाकृति बिजली की चमक।
● लू – वैशाख-ज्येष्ठ मास की गर्म हवाएँ।
● उझाड़ – पशुओं के द्वारा खेत में की गई हानि।
● बाड़ – खेत के चारों और लगाई गई काँटों की दीवार।
● कांजीहोद – राजकीय बाड़ा, जिसमें उखाड़, करने वाले पशुओं को बंद किया जाता है।
● कोदू – गेहूँ में होने वाला रोग, जिसे कायमा भी कहते हैं।
● रोळी – गेहूँ का रोग, जिसमें दोनों में लाल चूर्ण उत्पन्न हो जाता है।
● ठाण – पशुओं को बाँधने का स्थान
● घेर, हेड़ – टोळा, ढार-चरागाह में जाने से पूर्व गाँव के बाहर लगा पशुओं का जमघट।
● उछेरबो – पशुओं को चरागाह में भेजने के लिए प्रात:काल ही घर से निकालना।
● आखर्या – गाँव के बाहर चरागाह में जाने से पूर्व पशुओं के इकट्ठा होने का स्थान।
● मांकड़ी, मांकड़ो – पशुओं की पूँछ और रीढ़ की हड्डी का संधिस्थल।
● सड़ा टूटबो – प्रसव के पूर्व कूल्हों पर गड्ढे पड़ जाने के कारण दिखाई देने वाला कूल्हे की हड्डियों का उभार।
● वार्डो, वाडो, उवाड़ो, उसाड़ो, ऊध – मादा पशुओं के थनों से ऊपर की गुदगुदी थैली। इसे नांवा, गादी या गाधी भी कहते हैं।
● बूई – गाय जो गर्भधारण कराने की इच्छुक हो। गर्भ धारण करने की इच्छा के लिए पाळी आवणो, बास करणो, सामी होणो, कांबीजणो आदि क्रिया-शब्द प्रयुक्त होते हैं।
● आलरो करबो – संभोग की इच्छा होने पर योनि का खुलना-बन्द होना।
● तूण जावणो – गर्भस्त्राव
● सांखो – शंख योनि के लिए सांखो शब्द प्रयुक्त होता है।
● व्यावर – पशु की योनि।
● ऐरी, अरण्यो, आरणो – जंगली भैंसा।
● झोटी – एक वर्ष की आयु से व्याहने पर्यन्त भैंस का नाम।
● कादमी – कीचड़ में बैठने की प्रकृति के कारण भैंस का नाम। इसी प्रकृति के कारण भैंस को कासारी भी नाम मिलता है।
● रूंथ – पगुराना।
● इंडोणी, इंढाणी – इंड्णी की आकृति के सींगों वाली भैंस।
● कायरी – टेढ़ा देखने वाली।
● गार – भेड़
● गायरी – भेड़पालक, अविपाल
● छाली – बकरी के लिए प्रयुक्त शब्द
● ग्याभण – गर्भवती गाय, भैंस आदि मादा पशु।
● खोदो – बैल के लिए प्रयुक्त शब्द
● हाभरू, हाबरू – साँड बनाने के लिए चुना गया बछड़ा, जिसके लिए गाय का सारा दूध छोड़ दिया जाता है, दूहा नहीं जाता।
● बांड्या – कटी पूँछ का बैल
● भराई – घोड़ी को गर्भवती करना।
● ठाण देबो – वर्ष भर में प्रसव करने वाली घोड़ी का प्रसव करना ठाण देबो कहलाता है।
● नूंजणो – दूध दोहते समय गाय के पिछले पाँव बाँधने की रस्सी।
● पावसबो – स्तनों से स्वत: दूध नीचे उतरने की अवस्था।
● जावण – दही जमाने के लिए प्रयुक्त खटाई।
● ओसाबो – जमाने के लिए दूध ठंडा करने की क्रिया।
● कड़बो – छाछ में जौ या मक्का का दलिया राँधकर तैयार किया गया अवलेह।
● मेलखोरा – घोड़े की पीठ पर जीण के नीचे बिछाया जाने वाला वस्त्र
● तगै – बेकरियों को रोकने के लिए की गई ध्वनि।
● छौ-छौ – बकरियों को वापिस लौटाने के लिए की गई ध्वनि।
● छै-छै-ग्छै-ग्छै – पशुओं को चलाने के लिए दिया गया आदेश या दकाल।
● त्वी त्वित्, त्वित् त्वै – पशुओं को पानी पीने के स्थान पर जाने का आदेश।
● साबळ, हाबळ, हामळी – लोहे का लम्बा और मोटा सरिया, जिससे पत्थर तोड़े या उखाड़े जाते हैं।
● जनोउ – रग, नस-इमारती पत्थरों में पाई जाने वाली रेखाएँ या जोड़।
● गड़स, हाड़ – इमारती पत्थर में पाया जाने वाला कठोर और चिटकने वाला भाग।
● काठ खूणा – सिलावटों का समकोण गज, जो लकड़ी का बना होता है।
● पंचाळी – लकड़ी या डिब्बे से बना यंत्र, जिसमें पानी भरकर, पत्थर, दीवार या पृथ्वी का समतलत्व देखा जाता है।
● पखरावज – पत्थरों को कुरेदकर बेल-बूटे बनाने की क्रिया।
● नरजू – टोड़ी के नीचे लटकता लट्ट।
● मूंनणा – नींव के ऊपर कुर्सी से आगे निकला भाग।
● झडूंबो – मूंनण के स्थान पर लगाया जाने वाला गोल घड़ाई का पत्थर।
● आँणोट, आसणोट – देहली के नीचे लगा कोणदार पत्थर, जो पार्श्व भित्तियों एवं देहली के आसन के रूप में स्थित रहता है।
● डेरू– थंमे के अधो – भाग में डमरू की आकृति वाला भाग।
● रूई या रूड़ – पुरानी रुई।
● पिंजारा, पनारा – पिंजारें के लिए नदाप शब्द भी कहीं-कहीं प्रचलित है।
● काकर – धुनकी की टीय पर लगाया जाने वाला पुराने ढोल का चमड़ा।
● फेल – पींजकर तैयार की गई मृदु रूई।
● पूणी – रूई से सूत कातने के लिए बनाया गया फोला या पुष्प।
● बळाई – वस्त्र वयन करने वाला कारीगर।
● सालवी – पट शाल में वस्त्र बुननेवाला।
● ताणा – वस्त्र बुनने के लिए तैयार किया गया लम्बाई का सूत्र
● बेझो, बेझको – कपड़ा बुनने का यंत्र
● वेसकी – कपड़ा बुनते समय बलाई के बैठने का स्थान
● तुर – कपड़ा बुनने के यंत्र में बुने हुए वस्त्र को लपेटने के लिए प्रयुक्त बेलन।
● बे, बियां – बेझे में सूत के ताणे को विभाजित करने एवं बाना डालने में सहायक सूत्रवेष्टित उपकरण, जिसमें सूत का जाल बुना रहता है, बे कहलाता है।
● तेजू – बे के समानान्तर लगाए जाने वाले बाँस के डण्डे।
● बेभरा – बे में ताणी का सूत्र भरने का उपकरण, जिसे पनिक भी कहते हैं।
● भाँत – वस्त्रों पर अनेक प्रकार के बेलबूटों की छपाई।
● बूंत – वस्त्र का नाप लेना।
● डांडोडी – फटे वस्त्र को पूरा काटकर पुन: सीना।
● खूम – ऊस और मींगणियों के तैयार किए गए घोळ, जिसे डेळ कहते हैं, में सार कर घड़ों में वाष्प द्वारा वस्त्र धोने की प्रक्रिया।
● सार – किसी वस्तु में छिद्र करने का औजार, जिसे गुजराती में शारड़ी कहते हैं।
● ओपणी – सोने के आभूषण पर वर्षण द्वारा चमक लाने के लिए प्रयुक्त उपकरण।
● ओगन्या – कानों के ऊपरी भाग पहिनने का पीपल के पते सदृश आभूषण।
● टोटी – कान की लोळों में पहिनने का आभूषण, जो टॉप्स की तरह का होता है।
● कसारा – कांसे का काम करने वाला कारीगर।
● ठाम, ठाँव, ठाँवडा – ताँबा, पीतल आदि धातुओं के बर्तन।
● लीण – धातु पात्रों से मैला खुरचने का उपकरण।
● चंपाली – संडासी, जिससे भट्टी पर रखे पर गावे और बर्तन पकडे जाते हैं।
● उगाळो – भरत के आभूषणों से मिट्टी निकालने का उपकरण।
● कोलाळी : कलई करते समय बर्तन माँजने के लिए प्रयुक्त होने वाली कोयले की चूरी।
● साण – हथियारों को तीक्ष्ण करने का चक्रायित पत्थर।
● ऊना – एक प्रकार की तलवार, जिसकी धार बाल के समान महीन होती है।
● पटवा – आभूषणों को डोरों में पिरोकर कलाबूत का काम करने वाला कारीगर।
● चूड़ीगर – चूड़ियाँ खरादने का काम करने वाला।
● वल्ल्या – हाथीदाँत एवं रबर की खरीदी गई छोटी चूड़ियाँ।
● बसोली – लकड़ी छीलने या महीन करने का एक विशेष औज़ार।
● करोती – लकड़ी काटने का दाँतेदार औजार।
● कमड़ी – छप्परों पर प्रयुक्त होने वाला बाँस ।
● बरंड – नाव की आकृति का वश पात्र, जिसमें भील साँवा झाड़ते हैं।
● आगळ – मरे हुए पशुओं को उठाकर ले जाने के लिए प्रयुक्त लकड़ी।
● छाल – मरे हए पशुओं से ताजा उतारा गई कच्ची खाल।
● रांग – बबूल की छाल जिसका उपयोग चमड़ा रंगने के लिए होता है।
● क्षावंड़ : क्षाड़ – कष की कूडी, जिसमें चमड़ा पकाने के लिए रांग डाली जाती है।
● पोट या सौतेला – मूंज की रस्सी से सीकर तैयार किया गया खाल का थैला, जिसमें बबूल की छाल का पानी, जिसे तोरा, बगर या रस्सी कहते हैं, भरकर खाल को पकाते हैं।
● बासण – मिट्टी के बर्तन, जो कुम्हार के यहाँ से लाए जाते हैं। पुरा-काल में वसन देकर खरीदे गए बर्तनों के लिए यह शब्द प्रयुक्त होता था।
● पलाणबो – मिट्टी को गलाने की प्रक्रिया।
● चकलाठी, चकफेरणी, चलाकड़ी – चाक फिराने की लकड़ी।
● छीण – चाक पर बन रहे बर्तनों को काटकर अलग करने के लिए प्रयुक्त डोरा।
● आव, अवाड़ा, एवाड़ा – बर्तनों को पकाने के लिए लगाई गई भट्टी।
● अथारा – आव लगाने के लिए भूमि पर बिछाया गया घास का स्तर।
● पोयठा – गोबर
● उथरेड़ – घड़ों को एक-दूसरे पर जमाकर तैयार किया गया रूप।
● घाणी – तेल पीलने का यन्त्र।
● जंगळ – पकिल तेल-किट, जो पशुओं को खिलाने के लिए तैयार किया जाता है।
● खरथळी – घाणी का ऊपरी थाली सदृश्य भाग।
● मांकड़ी – लघु सप्तर्षि की आकृति का लाठ की चूल में लगनेवाला पट्टिका-दण्ड, जिसका निम्न भाग माणक-थंमे से सम्बद्ध होता है।
● माणक थंभो – घाणी के पाटे पर पड़े बोझ के कारण उसके समीप स्थित इस थंभे को मानक स्तम्भ कह सकते हैं अथवा मूसल की तरह स्थित होने से यह माणिक्य (मुसल्याम) स्तम्भ कहा जा सकता है।
● झाबी – घाणी से तेल निकालने का चम्मच ।
● दु‘णो – तेल भर कर सुरक्षित रखने का पात्र।
● डूंघो – तेल उलींचने का नारियल की खोल का बना पात्र ।
● नेणी – नख काटने का उपकरण।
● कांगसी – केश-विन्यास के लिए प्रयुक्त दाँतों वाला उपकरण कंघी।
● मौंग – बालों में कंघी से बनाया गया मार्ग।
● पखाल – पानी भरने का चमड़े का थैला, जो बैल पर रखा रहता है।
● दीवी, दीवड़ी – पानी भरने का चर्म पात्र ।
● बिजूका – (अडवो, बिदकणा) – खेत में पशु-पक्षियों से फसल की रक्षा करने के लिए मानव जैसी बनाई गई आकृति।
● उर्डो, ऊर्यो, ऊसरडो, छापर्यो – ऐसा खेत जिसमें घास और अनाज दोनों में से कुछ भी पैदा न होता हो।
● अडाव – जब लगातार काम में लेने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाने पर उसको खाली छोड़ दिया जाता है।
● अखड, पड़त, पडेत्या – जो खेत बिना जुता हुआ पड़ा रहता है।
● बावणी – खेत में बीज बोने को कहा जाता है।
● ढूँगरा, ढूँगरी – जब फसल पक जाने के बाद काट ली जाती उसको एक जगह ढेर कर दिया जाता है।
● बाँझड – अनुपजाऊ भूमि।
● गूणी – लाव की खींचने हेतु बैलों के चलने काढालनुमा स्थान।
● चरणोत – पशुओं के चरने की भूमि।
● बीड – जिस भूमि को कोई उपयोग में नहीं लिया जाता है जिसमें सिर्फ घास उगती हो।
● सड़ो, हडो, बाड़ – पशुओं के खेतों में घुसने से रोकने के लिए खेत के चारों तरफ बनाई गई मेड।
● गोफन – पत्थर फेंकने का चमड़े और डोरियों से बना यंत्र।
● तंगड-पट्टियाँ – ऊँट को हल जोतते समय कसने की साज।
● चावर, पाटा, पटेला, हमाडो, पटवास – जोते गए खेतों को चौरस करने का लकड़ी का बना चौड़ा तख्ता।
● गुलेल – पक्षी को मारने या उड़ाने के लिए दो –शाखी लकड़ी पर रबड़ की पट्टी बांधी जाती है जिसमें बीच में पत्थर रखकर फेंका जाता है।
● खेली – पशुओं के पानी पीने के लिए बनाया गया छोड़ा कुंड।
● दंताली – खेत की जमीन को साफ करना तथा क्यारी याधोरा बनाने के लिए काम में ली जाती है।
● लाव – कुएँ में जाने तथा कुएँ से पानी को बाहर निकालने के लिए डोरी को लाव कहा जाता है।
● रेलनी – गर्मी या ताप को कम करने के लिए खेत में पानी फेरना।
● नीरनी – मोट और मूँग का चारा।
● नाँगला – नेडी और झेरने में डालने की रस्सी।
● सींकळौ – दही को मथने की मथनी के साथ लगा लोहे का कुंदा।
● लूण्यो – मक्खन इसको “घीलडी” नामक उपकरण में रखा जाता है।
● ओबरी – अनाज व उपयोगी सामान को रखने के लिए बनाया गया मिट्टी का उपकरण (कोटला)।
● नातणौ – पानी, दूध, छाछ को छानने के काम आने वाला वस्त्र।
● थली – घर के दरवाजे का स्थान।
● नाडी – तलाई – पानी के बड़े गड्ढों को तलाई या नाडी कहा जाता है।
● जैली – लकड़ी का सींगदार उपकरण।
● रहँट – सिंचाई के लिए कुओं से पानी निकालने का यंत्र।
● सूड – खेत जोतने से पहले खेत के झाड-झंखाड को साफकरना।
● खाखला – गेहूँ या जौ का चारा।
● दावणा – पशु को चरते समय छोड़ने के लिए पैरों में बाँधी जाने वाली रस्सी
● हटडी – मिर्च मसाले रखने का यंत्र
● कुटी – बाजरे की फसल का चारा
● कुदाली, कुश – मिट्टी को खोदने का यंत्र
● चडस – यह लोहे के पिंजरे पर खाल को मडकर बनाया जाता है जो कुओं से पानी निकालने के काम आता है
● पावड़ा – खुदाई के लिए बनाया गया उपकरण।
● तांती – जो व्यक्ति बीमार हो जाता है उसके सूत या मोली का धागा बाँधा जाता है यह देवता की जोत के ऊपर घुमाकर बाँधा जाता है।
● बेवणी – चूल्हे के सामने राख (बानी) के लिए बनाया गया चौकोर स्थान।
● जावणी – दूध गर्म करने और दही जमाने की मटकी।
● बिलौवनी – दही को बिलौने के लिए मिट्टी का मटका।
● नेडी – छाछ बिलौने के लिए लगाया गया खूँटा या लकड़ी का स्तम्भ।
● झेरना – छाछ बिलौने के लिए लकड़ी का उपकरण इसको “रई” भी कहते है।
● नेतरा, नेता – झरने को घुमाने की रस्सी।
● छाजलो – अनाज को साफ करने का उपकरण।
● बांदरवाल – मांगलिक कार्यों पर घर के दरवाजे पर पत्तों से बनी लम्बी झालर।
● छाणों- सूखा हुआ गोबर जो जलाने के काम आता है।
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