राजस्थान के मंदिर

राजस्थान के मंदिर

मौर्यकालीन
● नगरी, चित्तौड़गढ़ – विष्णु मंदिरों के अवशेष
● बैराठ, जयपुर – बौद्धधर्म के मठ, चैत्य एवं स्तूप

● नोह, भरतपुर – यक्ष (जाखबाबा) की मूर्ति
● रैढ़, टोंक – गजमुखी यक्ष की मूर्ति
● नाँद, पुष्कर – कुषाणकालीन शिवलिंग
 

गुप्तकालीन
● चारचौमा शिव मंदिर, कोटा
● शीतलेश्वर महादेव, झालावाड़
● कन्सुआ शिव मंदिर, कोटा
गुर्जर प्रतिहार या महामारु शैली
●  8वीं शताब्दी से मध्य भारत राजस्थान में जो क्षेत्रीय शैली विकसित हुई उसे गुर्जर प्रतिहार या महामारु शैली कहा गया है।

गुर्जर प्रतिहार कालीन
● अम्बिका माता का मंदिर, जगत, उदयपुर
● हर्षद माता का मंदिर, आभानेरी, दौसा
● कुंभश्याम मंदिर, चित्तौड़गढ़
● सोमेश्वर मंदिर, किराडू, बाड़मेर
● सूर्य मंदिर,हरिहर व महावीर मंदिर, ओसिया, जोधपुर
● हर्षनाथ का मंदिर, सीकर
● कालिका मंदिर, (मूलत: सूर्य मंदिर) चित्तौड़गढ़ दुर्ग 
● दधिमति माता का मंदिर, गोठ मांगलोद, नागौर
● नकटी माता का मंदिर, भवानीपुर, जयपुर
 

मारु गुर्जर कालीन
● समिद्धेश्वर मंदिर, चित्तौड़गढ़ 
● सच्चियाय माता का मंदिर, ओसिया, जोधपुर
● दिलवाड़ा का जैन मंदिर, सिरोही
 

भूमिज शैली
● यह मंदिर निर्माण की नागर शैली की उपशैली है।
● यह एकान्डक शिखर की भाँति होते हैं जिसके चारों कोनों में नीचे से ऊपर तक घटते आकार वाले छोटे-छोटे शिखरों की लड़ियाँ बनी होती है।
● सेवाड़ी का जैन मंदिर, पाली 
● महानालेश्वर मंदिर, मेनाल, भीलवाड़ा
● भण्डदेवरा मंदिर, अटरू, बाराँ
● उंडेश्वर मंदिर, बिजौलिया, चित्तौड़गढ़

मंदिरउपनाम
मातृकुण्डिया मंदिर, चित्तौड़गढ़मेवाड़ का हरिद्वार
बेणेश्वर मंदिर, डूँगरपुरआदिवासियों का कुम्भ वागड़ का पुष्कर
स्वर्ण मंदिर, फालना, पालीगेटवे  ऑफ गोडवल व मिनी मुंबई
सीताबाड़ी, बाराँसहरियों का कुम्भ
सोनी जी की नसियाँ, अजमेरलाल मंदिर
भाण्डासर जैन मंदिर, बीकानेरत्रिलोक दीपक प्रासाद मंदिर
रणकपुर जैन मंदिर, पालीस्तम्भों का वन, नलिनीगुल्म विमान, त्रिलोक दीपक प्रसाद
किराडू के मंदिर, बाड़मेरराजस्थान का खजुराहो, मारवाड़ का खजुराहो
भण्डदेवरा मंदिर, बाराँहाड़ौती का खजुराहो, मिनी खजुराहो
अम्बिका माता मंदिर, जगत, उदयपुरमेवाड़ का खजुराहो
पुष्कर, अजमेरतीर्थों का मामा
मंचकुण्ड, धौलपुरतीर्थों का भांजा
देवयानी, सांभरतीर्थों की नानी
करणी माता का मंदिर देशनोकचूहों का मंदिर
जगदीश मंदिर, उदयपुरसपने में बना मंदिर
श्रीनाथ जी मंदिर, राजसमंदसात ध्वजा के नाथ
नागदा, उदयपुरसास-बहू का मंदिर
सूर्य मंदिर झालावाड़सात सहेलियों का मंदिर
गलता जी, जयपुरबंदरों की घाटी

द्रविड़ शैली के मंदिर
रंगनाथ जी का मंदिर

● स्थान – पुष्कर (अजमेर)
● शैली – द्रविड़ शैली या गोमुख शैली
● भगवान विष्णु को समर्पित है।
 

33 करोड़ देवताओं का मंदिर

● स्थान -जूनागढ़ दुर्ग 
● औरंगजेब के सेनापति व बीकानेर के शासक अनूपसिंह दक्षिण भारत से आते समय मूर्तियाँ लेकर आए।
● इस मंदिर में ‘हेरम्ब गणपति’ की मूर्ति है जिसमें गणेश जी ‘सिंह पर सवार’ है। 


नागर शैली के मंदिर 
सावित्री मंदिर या सरस्वती मंदिर

● स्थान -रत्नगिरी पहाड़ी (पुष्कर)
● इस मंदिर में दो प्रतिमाएँ हैं- 
 1. सावित्री माता  2. माँ सरस्वती 
● यह राज्य का एकमात्र सरस्वती मंदिर है। 
 

एकलिंगजी या लकुलीश का मन्दिर


● स्थान – कैलाशपुरी (उदयपुर)
● निर्माणकर्ता – बप्पा रावल।
● वर्तमान स्वरूप – महाराणा रायमल
● परकोटे का निर्माण –  राणा मोकल एवं राणा कुंभा 
● मेवाड़ के गुहिल-सिसोदिया राजवंश के शासक स्वयं को ‘एकलिंगजी के दीवान’ मानते थे।
● राजस्थान में भगवान शिव का सबसे बड़ा मन्दिर।
● भगवान शिव की काले पत्थर की चर्तुमुखी मूर्ति।
● यहाँ पर हारित ऋषि की मूर्ति भी स्थित है।
● मंदिर परिसर में कुम्भा द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर भी है जिसे मीराबाई का मंदिर कहते हैं।
● शिवरात्रि को प्रतिवर्ष मेला लगता है।
 

जगदीश मन्दिर (उदयपुर)

● निर्माणकर्ता – महाराणा जगतसिंह प्रथम (1651)
● उपनाम – सपने में बना मंदिर
● पंचायतन शैली में बने इस मन्दिर में भगवान विष्णु की काले पत्थर की प्रतिमा है।
● मन्दिर के चारों कोनों में शिव-पार्वती, गणपति, सूर्य एवं बाण माता की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
● गर्भगृह के सामने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की विशाल प्रतिमा है।
 

शीतलेश्वर महादेव या चन्द्रमोलेश्वर मन्दिर

● स्थान:- झालरापाटन (झालावाड़) 
● यह राजस्थान का प्राचीनतम मंदिर है जिस पर समयांकित 689 ई. (विक्रम संवत् 746) है।
● यह प्रारम्भिक गुप्त शैली का मन्दिर है।
● इस मंदिर के भग्नावशेषों में केवल गर्भगृह और छत रहित अंतराल ही मिलता है।
● यहाँ लकुलीश की काले पत्थर की आकर्षक व सुंदर प्रतिमा बनी हुई है। 
 

किराडू के  मन्दिर

● स्थान – हाथमा गाँव, किराडू (बाड़मेर) 
● 10वीं व 11वीं  सदी में बना यह भगवान शिव को समर्पित है।
● खजुराहो शैली से समानता।
● उपनाम – ‘राजस्थान का खजुराहो’, ‘मारवाड़ का खजुराहो।‘
● काम शास्त्री की मूर्तियों के कारण किराडू को ‘राजस्थान का खजुराहो’ कहा जाता है।
● गुर्जर-प्रतिहार शैली का अन्तिम एवं सबसे भव्य मन्दिर।
● इस मन्दिर का शिखर 65 अंग-उपांग युक्त है। 
● इस मन्दिर में वीर रस, शृंगार रस और कामशास्त्र की भाव भंगिमाएँ प्रस्तुत करने वाले चित्र उत्कीर्ण किए गए हैं।
 

शिव मन्दिर या भण्डदेवरा मन्दिर 

● स्थान – भण्डदेवरा  (बाराँ) 
● उपनाम – हाड़ौती का खजुराहो, राजस्थान का मिनी खजुराहो।
● मंदिर में उत्कीर्ण मिथुन मुद्रा की आकृतियाँ इसे खुजराहो के समकक्ष रखती है।
● इस मंदिर का निर्माण मेदवंशीय राजा मलयवर्मा ने 10वीं शताब्दी में करवाया था।
● 1125 ई. में निर्मित इस मन्दिर के मण्डप में स्तम्भों की भव्यता दर्शनीय है।
● यह देवालय पंचायतन शैली में बना हुआ।
● इस मन्दिर का आधार ‘स्टेनलैट प्लेन’ है।

अम्बिका माता मन्दिर
 

● स्थान – जगत (उदयपुर)
● उपनाम – मेवाड़ का खजुराहो, राजस्थान का दूसरा खजुराहो।
● इस प्राचीन मंदिर के स्तम्भ पर विक्रम संवत् 1017 यानि ईस्वी 960 में तत्कालीन महारावल अल्लट के शासनकाल में पुरखों की विरासत को बचाए रखने के संदेश व इससे प्राप्त होने वाले पुण्यकर्म के सम्बंध में श्लोक लिखा गया है।
● इस मन्दिर के शिखर में 25 अंग-उपांग हैं।

श्रीनाथ जी मन्दिर

 ● स्थित – बनास नदी के किनारे, सिहाड़ गाँव, राजसमंद
● काले पत्थर की मूर्ति
● श्रीनाथ जी  का मंदिर पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
● औरंगजेब द्वारा हिन्दू मूर्तियों एवं मन्दिरों को तुड़वाने पर मथुरा से वैष्णव दाउजी महाराज के नेतृत्व में वैष्णव भक्त श्रीनाथ जी की मूर्ति सिहाड़ (आधुनिक नाथद्वारा) लाए थे, जहाँ महाराणा राजसिंह ने उन्हें शरण देकर यहाँ मूर्ति को प्रतिष्ठित किया था।
● भीलों की लूट – अन्नकूट महोत्सव (कार्तिक शुक्ल एकम) 
● हवेली स्थापत्य शैली में बनाए गए, इस मन्दिर में ‘भगवान कृष्ण के बाल रूप’ (वल्लभ सम्प्रदाय) की पूजा की जाती है। यह मन्दिर ‘हवेली संगीत’ एवं ‘पिछवाई कला’ के लिए प्रसिद्ध है।
● यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा, पिछवाई चित्रशैली, हवेली संगीत, भीलों की लूट एवं सांझियाँ प्रसिद्ध है।
 

गोविन्द देव जी मन्दिर 

● स्थान – जयपुर
● इस मन्दिर की प्रतिमा सवाई जयसिंह द्वितीय वृंदावन से जयपुर लाए थे। 
● जयपुर का गोविंददेवजी गौड़ीय संप्रदाय का प्रमुख मंदिर है।
● यहाँ पर गौड़ीय संप्रदाय द्वारा ‘कृष्ण व राधा के युगल रूप की पूजा’ की जाती है। 
● यह मन्दिर जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा), ब्रज क्षेत्र तथा ढूँढाड़ क्षेत्र सांस्कृतिक परम्पराओं का सुंदर समन्वय है।
 

सास बहू या सहस्त्रबाहु का मन्दिर

● स्थान – नागदा (उदयपुर)
● समर्पित – भगवान विष्णु 
● निर्माण – 975 ई. 
● रामायण एवं महाभारत को चित्रित किया गया है। 
● इसमें दो मन्दिर बनाए गए हैं।
● बड़ा मन्दिर, ‘सास का मन्दिर’ कहलाता है, जिसमें 10 देव प्रतिमाएँ विराजमान है। 
● छोटा मन्दिर, ‘बहु का मन्दिर’ कहलाता है, इसे पंचायतन शैली में बनाया गया है।
● यह मंदिर विष्णु को समर्पित है।
● सास के मंदिर का शिखर ईंटों का है तथा शेष मंदिर संगमरमर का है। 
● खुमाण रावल का देवरा एवं अदबदजी का मंदिर दो विशाल जैन मंदिर हैं।
 

जगतशिरोमणि मन्दिर


● स्थान – आमेर (जयपुर)
● निर्माण –  महाराजा मानसिंह प्रथम की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया था। 
● इस मन्दिर में भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति है। ऐसा कहा जाता है कि इस मन्दिर में स्थापित भगवान कृष्ण की मूर्ति, चित्तौड़गढ़ के मीरा मन्दिर से लाई गई थी।
● मानसिंह इसे चित्तौड़ से लेकर आए थे।
● मन्दिर के शिल्प एवं सौन्दर्य पर मुगल शैली का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
 

ओसिया के मन्दिर

● स्थान – जोधपुर 
● यह मन्दिर गुर्जर-प्रतिहार काल में गुर्जर-महामारू शैली में बनाए गए हैं, इन मन्दिरों का तोरण द्वार भव्य है। मन्दिरों में पंचायतन शैली का अनुसरण किया गया है। 
● इस पंचायतन शैली के मंदिर के कोनों पर विष्णु, शिव व सूर्य के मंदिर बने हुए हैं।
● यहाँ निम्नलिखित चार मंदिर पाए जाते हैं-
 1. सच्चियाय माता मन्दिर 2. सूर्य मन्दिर
 3. हरिहर मन्दिर 4. भगवान महावीर का मन्दिर


कैला देवी मन्दिर

● स्थान – करौली
● मूल मन्दिर खींची राजपूतों द्वारा तथा कालांतर में यादव वंशज भंवरपाल द्वारा संगमरमर से निर्मित था।
● मुख्य मंदिर में कैला देवी (महालक्ष्मी)एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमा स्थापित है।
● मंदिर के समाने बोहरा भगत की छतरी है। 
● धार्मिक आस्था का केन्द्र – लक्खी मेला 
● यहाँ का लांगुरिया नृत्य व जोगनिया गीत प्रसिद्ध है।


सूर्य मन्दिर

● स्थान – झालरापाटन (झालावाड़)
● निर्माण – 10वीं सदी में  
● सूर्य और विष्णु के सम्मिलित भाव की एक ही त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा मुख्य रथिका में है। 
● गर्भगृह के बाहर शिव की ताण्डव नृत्यरत प्रतिमा और मातृकाओं की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गई।


ब्रह्माजी के प्रमुख मंदिर

(i)  पुष्कर (अजमेर) :-  पूरे विश्व का एकमात्र  ब्रह्मा मंदिर पुष्कर में स्थित है। जहाँ ब्रह्माजी की विधिवत रूप से पूजा होती है।
● मंदिर के अन्दर चतुर्मुखी ब्रह्माजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
● इस मंदिर के मूल निर्माणकर्ता के बारे में जानकारी नहीं है लेकिन वर्तमान स्वरूप ‘गोकुल चन्द्र पारिक’ ने दिया।
● कर्नल जेम्स टॉड इस मंदिर पर लगे क्रॉस चिह्न को देखकर चकित रह गए थे।
(ii)  आसोतरा (बाड़मेर) : –  निर्माण – खेताराम जी महाराज
(iii) छिंछ गाँव (बाँसवाड़ा) :-  आम्बलिया तालाब के किनारे


गणेशजी के प्रमुख मंदिर

त्रिनेत्र गणेश – रणथम्भौर दुर्ग
नृत्य गणेश – अलवर
बाजणा गणेश – सिरोही
मूरला गणेश – डूँगरपुर
खेड़ गणेश – खेड़ (बाड़मेर)
खड़े गणेश – कोटा
खोड़ा गणेश – किशनगढ़ (अजमेर)
काक गणेश – जैसलमेर
मोती डूँगरी गणेश – जयपुर
हेरम्ब गणेश – जूनागढ़ दुर्ग – सिंह पर सवार
बोहरा गणेश – उदयपुर
गढ़ गणेश – जयपुर

सप्त गौमाता मंदिर

●  रैवासा (सीकर) 
● यह देश का एकमात्र सप्त गौमाता मंदिर है।
राधा जी का मंदिर
● स्थान – सलेमाबाद (अजमेर)
● यह राज्य में राधा जी का सबसे बड़ा मंदिर है।
रसिया-बालम और कुँआरी कन्या का मंदिर
● स्थान – माउण्ट आबू, (सिरोही) 
● इस मंदिर में रसिया अपने हाथों में विष का प्याला लेकर खड़ी है।
गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर
● स्थान – बीसलपुर बाँध के निकट (टोंक)
● ऐसी मान्यता है कि यहाँ रावण ने 6 माह तक भगवान शिव की तपस्या की थी।
उषा मंदिर
● स्थान – बयाना दुर्ग (भरतपुर)
● भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के नाम पर कनौज के महाराजा महीपाल की रानी चित्रलेखा ने सन् 956 में बयाना (भरतपुर) में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। 
● यह भारत में एकमात्र उषा मंदिर है।
● बयाना का प्राचीन नाम ‘बाणपुर’ था क्योंकि बाणासुर की पुत्री उषा और भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के मध्य प्रेम का रास यहीं रचा गया था।
● इस स्थान पर फक्का वंश की राजकुमारी चित्रालेखा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
● कालान्तर में आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को तुड़वाकर उषा मस्जिद का निर्माण करवाया था परन्तु कुछ समय बाद भरतपुर के जाट शासकों ने इस मस्जिद को तुड़वाकर पुन: उषा मंदिर का निर्माण करवा दिया।
गंगा मंदिर
● स्थान – भरतपुर नगर 
● राज्य में एक मात्र गंगा मंदिर।
लक्ष्मण मंदिर
● स्थान – भरतपुर 
● भरतपुर के शासक लक्ष्मण के वंशज माने जाते हैं।
विभीषण मंदिर
● स्थान – कैथून (कोटा) 
● यह भारत का एकमात्र विभीषण मंदिर है। 
सम्बोधि धाम
● स्थान – जोधपुर 
आदिनाथजी मन्दिर या ऋषभदेवजी मन्दिर
● जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथजी को समर्पित यह मंदिर 1031 ई. में गुजरात के चालुक्य शासक भीम प्रथम के मंत्री विमलशाह ने करवाया था, इस कारण इस मन्दिर को विमलशाही मंदिर भी कहते हैं। 
● मन्दिर में संगमरमर के पत्थर पर अत्यन्त बारीकी से कार्य किया गया है।
नेमीनाथ मन्दिर या देवरानी-जेठानी मंदिर
● 1231 में गुजरात के चालुक्य शासक वीररावल के मंत्री वास्तुपाल एवं तेजपाल ने भगवान नेमीनाथ को समर्पित इस जैन मन्दिर में काले पत्थर से निर्माण करवाया था।
रणकपुर जैन मंदिर

● समर्पित – ऋषभदेव (आदिनाथ) 
● किनारे – मथाई नदी 
● स्थान – सादड़ी गाँव के निकट (पाली)
● निर्माण – धरणक शाह (राणा कुम्भा के वित्त मंत्री) 
● शिल्पी – देपाक
● शैली – पंचायतन व भूमिज 
● उपनाम – 1444 खम्भों वाला मंदिर, चौमुखा जैन मंदिर, खम्भों का अजायबघर
● मूल गर्भगृह में आदिनाथ की चार मुख वाली मूर्ति लगी हुई है।
● कवि विमलसूरी द्वारा नलिनी गुल्म विमान नाम दिया गया।
● कवि मेह ने त्रिलोक दीपक नाम से पुकारा।
● धरणक शाह ने यह मंदिर राणा कुम्भा द्वारा दान में दी गई भूमि पर बनवाया। कुम्भलगढ़ से मालगढ़ जाने वाले रास्ते में माद्रीपर्वत की छाया में बसे मादड़ी गाँव को मंदिर निर्माण हेतु चुना गया और धरणक शाह ने मादड़ी का नाम बदलकर रणकपुर कर दिया। 
सोमनाथ मंदिर
● स्थान – पाली
● निर्माण – राजा कुमारपाल सोलंकी (गुजरात)
देलवाड़ा के जैन मंदिर 


● स्थान – माउंट आबू (सिरोही)
● श्वेताम्बर जैन मंदिरों का समूह
● काल – 10 से 12वीं सदी के मध्य निर्मित 
● शैली – नागर शैली
● यहाँ स्थित जैन मन्दिरों में दो मंदिर प्रमुख है।
● प्रथम मंदिर 1031 ई. में गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव के मंत्री विमलशाह ने बनवाया था। इस मंदिर को विमलवसाही के नाम से भी जाना जाता है। 
● दूसरा प्रमुख मंदिर 22वें जैन तीर्थंकर नेमिनाथ का है, जिसका निर्माण वास्तुपाल और तेजपाल द्वारा 1230 में करवाया गया था।
● इस मंदिर को लूणवसही के नाम से जाना जाता है।
● डाक टिकट – 14 अक्टूबर, 2009 – भारत सरकार द्वारा 
● कर्नल जेम्स टॉड – “ताजमहल को छोड़कर देश की सबसे सुन्दर इमारत देलवाड़ा के जैन मंदिर समूह है।“ 
गोसण बावजी का मंदिर
● स्थान – सराड़ा (उदयपुर)
● पत्थर का बैल चढ़ाने की परम्परा।
● बैल खो जाने के बाद इस मंदिर में मनौती के रूप में बैल चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है।
ईडाणा माता का मंदिर
● स्थान – बंबोर (उदयपुर)
● ईडाणा माता – अग्नि स्नान करने वाली देवी।
● यहाँ नारियल, मौली, प्रसाद की अग्नि जल कर शांत हो जाती है।
72 जिनालय मंदिर
● स्थान -भीनमाल (जालोर) 
● यह एक जैन मंदिर है जिसमें जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की 3-3 प्रतिमाएँ लगी हुई हैं। 
● यह क्षेत्रफल की दृष्टि से ‘राजस्थान का सबसे बड़ा मंदिर’ है। 
सोनी जी की नसियाँ या लाल मंदिर
● स्थान – अजमेर
● निर्माण – 1870 मूलचन्द सोनी ने लाल पत्थरों से करवाया।
● जैन तीर्थंकर ऋषभदेव को समर्पित
● भाग-1 (नसियाँ) – 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ – सभी धर्मों के लिए 
● भाग-2 (अक्षरधाम) – 400 किलोग्राम सोने से निर्मित – केवल जैन धर्म के लोगों के लिए) 
भाडासर जैन मंदिर
● स्थान – बीकानेर नगर 
● निर्माण – भांडा शाह व्यापारी 
● नींवों में नारियल व घी भरा गया था।
● सुमतिनाथ को समर्पित (5वें तीर्थंकर)
● इस मंदिर को ‘त्रिलोक दीपक प्रसाद’ मंदिर भी कहते हैं। 
पद्मनाथ मंदिर या वैष्णव या सात सहेलियों का मंदिर
● स्थान – झालरापाटन (झालावाड़)
● भगवान विष्णु को समर्पित 
● कर्नल जेम्स टॉड ने इसे ‘चारभुजानाथ मंदिर’ का नाम दिया।
● यह मंदिर कच्छपघात शैली का है।
 

मन्दिरस्थाननिर्माणकर्ता
कुड़की गाँव का मंदिरकुड़की (पाली)रतनसिंह
चारभुजा नाथ मंदिरमेड़ता सिटीराव दूदा
कृष्ण मंदिरचित्तौड़गढ़ दुर्गराणा सांगा
जगत शिरोमणि मंदिरआमेरमिर्जाराजा मानसिंह
हरिहर  मंदिरकैलाशपुर,उदयपुरराणा कुम्भा


जिलों में  स्थित प्रमुख मंदिर

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