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राजस्थान के दुर्ग
● राजस्थान में महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के पश्चात् सर्वाधिक दुर्गों का निर्माण हुआ है।
● राजस्थान में दुर्गों की स्थापना के विकास का प्रथम आधार कालीबंगा की खुदाई में मिलता है।
● दुर्गों की विशेषताएँ–
1. सुदृढ़ प्राचीरें 2. अभेद्य बुर्जे
3. विशाल परकोटे 4. दुर्ग के चारों ओर गहरी खाई
5. दुर्ग के भीतर जलाशय 6. शस्त्रागार
7. मंदिर निर्माण 8. अन्न भण्डार की स्थापना
9. सुरंग प्रणाली 10. गुप्त प्रवेश द्वार।
● कौटिल्य के अनुसार दुर्ग की श्रेणियाँ – 04
1. ओदक दुर्ग
2. पर्वत दुर्ग
3. धान्वन दुर्ग
4. वन दुर्ग
● कौटिल्य के अनुसार राज्य के अंग – 07
1. राजा 2. अमात्य (मंत्री) 3. जनपद 4. दुर्ग
5. कोष 6. सेना 7. मित्र
● राज्य को मानव शरीर का अंग मानते हुए कौटिल्य के अनुसार दुर्ग को शरीर के प्रमुख अंग ‘हाथ’ की संज्ञा दी है।
● शुक्र नीति के अनुसार दुर्गों के प्रकार – 09
(1) एरण दुर्ग – वे दुर्ग, जिसके मार्ग में खाई, काँटो व पत्थरों से युक्त दुर्गम मार्ग हों।
उदाहरण – जालोर दुर्ग
(2) ओदक दुर्ग – जल दुर्ग
उदाहरण – जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर) भी कहा जाता है। ऐसा दुर्ग जो विशाल जल राशि से घिरा हुआ हो।
उदाहरण – गागरोन दुर्ग।
(3) पारिख दुर्ग – वह दुर्ग, जिसके चारों तरफ बहुत बड़ी खाई हो।
(4) पारिध दुर्ग – ऐसा दुर्ग जिसके चारों तरफ ईंट, पत्थर तथा मिट्टी से बनी बड़ी-बड़ी दीवारों का विशाल परकोटा हो।
उदाहरण – चित्तौड़ दुर्ग, जैसलमेर दुर्ग।
(5) गिरि दुर्ग – किसी उच्च गिरि या पर्वत पर अवस्थित दुर्ग।
उदाहरण – चित्तौड़ दुर्ग, मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) आदि।
(6) धान्वन दुर्ग – मरुभूमि (मरुस्थल) में बना दुर्ग।
उदाहरण – जैसलमेर का दुर्ग।
(7) वन दुर्ग – सघन बीहड़ वनों में निर्मित दुर्ग।
उदाहरण – सिवाणा दुर्ग।
(8) सैन्य दुर्ग – खंडों या ईंटों से समतल भूमि पर निर्मित दुर्ग, जहाँ युद्ध की व्यूह रचना में चतुर सैनिक निवास करते हो। इस श्रेणी में लगभग सभी दुर्ग आते हैं।
शुक्र नीति के अनुसार सैन्य दुर्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
(9) सहाय दुर्ग (लिविंग फोर्ट) – वह दुर्ग, जिसमें शूरवीर तथा सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते हो।
उदाहरण – जैसलमेर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग
● भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़) तथा भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग मिट्टी से बने दुर्ग हैं।
● राजस्थान के 6 दुर्ग यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल –
1. आमेर दुर्ग |
2. गागरोन दुर्ग |
3. कुम्भलगढ़ दुर्ग |
4. जैसलमेर दुर्ग |
5. रणथम्भौर दुर्ग |
6. चित्तौड़गढ़ दुर्ग |
● ये दुर्ग जून, 2013 में नोमपेन्ह (कम्बोडिया) में हुई वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में यूनेस्को साइट की सूची में शामिल किए गए।
चित्तौड़ दुर्ग
● प्रकार – धान्वन श्रेणी के दुर्ग को छोड़कर सभी श्रेणी का दुर्ग
● निर्माता – चित्रांगद मौर्य (मौर्य राजा) (प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वीर विनोद’ के अनुसार)
● स्थित – मेसा पठार, गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम, चित्तौड़गढ़
● आकार – व्हेल मछली के समान।
● उपनाम – राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर, चित्रकूट।
● इस दुर्ग की परिधि लगभग 13 किलोमीटर हैं।
● कहावत – गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया।
● मेवाड़ के गुहिलवंशीय शासक बप्पा रावल ने मौर्य शासक मानमोरी को परास्त कर 734 ई. में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
● राजस्थान के दुर्गों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा, राज्य का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट तथा एकमात्र दुर्ग जिसमें कृषि की जाती है।
● यह दिल्ली-मालवा मार्ग पर अवस्थित है।
स्थापत्य –
● अदबद्जी का मंदिर, रानी पद्मिनी का महल, गोरा-बादल महल, कालिका माता मंदिर, सूरज कुण्ड, समद्धिश्वर मंदिर, जयमल-फत्ता (पता) छतरियाँ, तुलजा माता मंदिर, कुम्भश्याम मंदिर, सतबीस देवरी (जैन मंदिर) शृंगार चंवरी जैन मन्दिर, लाखोटा की बारी, कल्ला राठौड़ की छतरी, रैदास की छतरी, रावत बाघसिंह का स्मारक एवं नवलखा भण्डार।
● सात प्रवेश द्वार – पाडन पोल (मुख्य व पहला प्रवेश द्वार), भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल, रामपोल।
● जलापूर्ति के स्रोत – रत्नेश्वर तालाब, कुम्भसागर, गोमुख झरना, हाथीकुण्ड, भीमलत तालाब, झालीबाव तालाब।
विजय स्तम्भ
● उपनाम – विष्णु स्तंभ, भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष
● निर्माण – महाराणा कुंभा
● प्रेरणा – बयाना के विष्णु स्तंभ से
● वास्तुकार – जैता, नापा, पोमा एवं पूंजा, भूमि, बलराज
● कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति की रचना – कवि अत्रि तथा बाद में महेश भट्ट
● जीर्णोद्धार – महाराणा स्वरूप सिंह
1437 ई. में ‘सारंगपुर युद्ध’में महमूद खिलजी प्रथम को पराजित करने के उपलक्ष्य में विजयस्तम्भ का निर्माण 1440 ई. से 1448 ई. में करवाया गया था।
● यह 9 मंजिला इमारत है जो 30 फीट चौड़ा और 122 फीट ऊँचा है। इसमें कुल 157 सीढ़ियाँ हैं।
● इसकी तीसरी मंजिल पर 9 बार अल्लाह शब्द लिखा है।
● इसके चारों ओर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की मूर्तियाँ बनी है।
सी. वी. वैद्य ने कहा – विष्णु स्तंभ |
उपेंद्र नाथ डे ने कहा – विष्णु ध्वज |
गोपीनाथ शर्मा ने कहा – लोक जीवन का रंगमंच |
आर पी व्यास ने कहा – हिंदू प्रतिमा शास्त्र की अनुपम निधि |
फर्ग्यूसन ने कहा – टार्जन टावर (इंग्लैंड) |
जैन कीर्ति स्तम्भ
● 7 मंजिला
● निर्माणकर्ता – बघेरवाला जैन जीजा
● समय – 10वीं – 13वीं सदी
● समर्पित – भगवान आदिनाथ
तीन साके –
(1) पहला साका –
● वर्ष – 1303 ई.
● आक्रमण – अलाउद्दीन खिलजी
● शासक – राणा रतनसिंह।
● जौहर – पद्मिनी ,
● केसरिया – राणा रतनसिंह गोरा-बादल का सम्बन्ध चित्तौड़ के पहले साके से है।
● नाम परिवर्तन – खिज्राबाद
(2) दूसरा साका –
● वर्ष – 1535
● आक्रमण – बहादुरशाह (गुजरात सुल्तान)
● शासक – विक्रमादित्य
● जौहर – कर्मावती
● केसरिया – देवलिया के रावत बाघसिंह
● बहादुरशाह ने अपने सेनापति रुमीखाँ को इस अभियान का नेतृत्व सौंपा था।
● इस युद्ध में रानी कर्मावती ने मुगल शासक हुमायूँ को राखी भेजकर मदद माँगी थी।
(3) तीसरा साका
● वर्ष – 1568
● आक्रमण – अकबर
● शासक – राणा उदयसिंह
● केसरिया – जयमल राठौड़ व फत्ता सिसोदिया
● नवलखा बुर्ज (बनवीर द्वारा निर्मित लघु दुर्ग) इसी किले में है।
कुम्भलगढ़ दुर्ग
● स्थित – मेवाड़ – मारवाड़ सीमा पर (राजसमन्द)
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● निर्माण – महाराणा कुम्भा ने मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावशेषों पर शिल्पी मंडन की देखरेख में करवाया था।
● शिल्पी – मंडन
● निर्माण काल – 1448-1458 ई.
● उपनाम – मेवाड़ की तीसरी आँख, कुम्भलमेर, मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी, मत्स्येन्द्र, एस्ट्रूस्कन, कुंभलमेरु, कमलमीर आदि।
● प्रवेश द्वार – ओरठ पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, विजय पोल, भैरव पोल, चौगान पोल, पागड़ा पोल और गणेश पोल। (9 द्वार)
● यह अरावली पर्वत की 13 ऊँची चोटियों से घिरा दुर्ग है।
● कुम्भलगढ़ दुर्ग 36 किमी. लम्बे परकोटे से सुरक्षित है।
● कुम्भलगढ़ दुर्ग की सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते हैं।
● कर्नल टॉड ने कुम्भलगढ़ की तुलना सुदृढ़ प्राचीरों, बुर्जों व कंगुरों के विचारों से ‘एट्रस्कन वास्तु’ से की है।
● इस दुर्ग में ही महाराणा उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ था।
● कुम्भलगढ़ दुर्ग से ही महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध की तैयारी की थी।
स्थापत्य –
● झालीबाव (बावड़ी), कुम्भस्वामी (विष्णु), नीलकण्ठ महादेव मंदिर, विष्णु मंदिर, मामादेव (महादेव) का कुंड, झाली रानी का मालिया, उड़ना राजकुमार (पृथ्वीराज राठौड़) की छतरी (12 खम्भों की छतरी) आदि।
● कटारगढ़ – इस दुर्ग में स्थित लघु दुर्ग जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान है।
● इसमें महाराणा प्रताप का जन्म तथा राणा कुम्भा के पुत्र ऊदा ने कुम्भा की हत्या की थी।
● कटारगढ़ में ही झाली रानी का मालिया महल बना हुआ है। इसे ‘बादल महल’ भी कहा जाता है।
● कटारगढ़ की ऊँचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि “यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।“
मेहरानगढ़ दुर्ग
● निर्माता – राव जोधा
● समय – 1459 ई. में
● नींव – करणी माता द्वारा
● चिड़ियाटूँक पहाड़ी पर निर्मित गिरि दुर्ग। (पचेटिया पहाड़ी पर निर्मित)।
● आकृति – मोर (मयूर) के समान।
● अन्य नाम – मयूरध्वज, गढ़चिन्तामणि (कुण्डली के अनुसार नामकरण)।
इस दुर्ग की नींव में राजिया (राजाराम) मेघवाल को जीवित चुना गया।
● रूडयार्ड किपलिंग ने कहा कि ‘यह दुर्ग देवताओं, परियों एवं फरिश्तों द्वारा निर्मित हैं।
● प्रवेश द्वार –
(i) जयपोल – उत्तर-पूर्व में। मानसिंह द्वारा 1808 ई. में निर्मित।
(ii) फतेहपोल – दक्षिण-पश्चिम में। अजीतसिंह द्वारा 1707 ई. में निर्मित।
प्रमुख स्थापत्य –
(1) मामा–भान्जा या धन्ना भींवा की छतरी
यह 10 खम्भों की छतरी लोहा पोल के पास स्थित है।
(2) पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय
स्थापित – महाराजा मानसिंह
(3) चामुण्डा माता मंदिर
● इस मंदिर का निर्माण राव जोधा ने दुर्ग निर्माण के समय करवाया था, जिसका जीर्णोद्धार महाराजा तख्तसिंह ने 1857 ई. में करवाया।
● वर्ष 2008 में चामुण्डा मंदिर में भगदड़ मच जाने से कई लोग मारे गए। इसकी जाँच हेतु जसराज चोपड़ा कमेटी का गठन किया गया।
(4) नागणेची माता का मंदिर – यह राठौड़ वंश की कुलदेवी है।
(5) शृंगार चौकी – यहाँ पर राठौड़ वंश के राजाओं का राजतिलक किया जाता है।
(6) मोती महल – महाराजा सूरसिंह द्वारा निर्मित
(7) फूल महल – महाराजा अभयसिंह द्वारा निर्मित
(8) रानीसर तालाब – राव जोधा की हाड़ी रानी जसमादे ने निर्माण करवाया।
(9) पदमसर – इसका निर्माण राव गांगा (1515 ई. – 1531 ई.) की रानी पद्मावती ने करवाया, जो मेवाड़ के राणा सांगा की पुत्री थी।
● अन्य स्थापत्य– मुरली मनोहर तथा आनंदघनजी के प्राचीन मंदिर, भूरे खाँ की मजार, वीर कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी, तख्तविलास, अजीत विलास, उम्मेद विलास आदि का भीतरी वैभव दर्शनीय है।
किले में तोपें
(1) किलकिला तोप – राजा अजीत सिंह द्वारा अहमदाबाद में बनवाई गई।
(2) शम्भूबाण तोप – राजा अभय सिंह ने सर बुलन्दखाँ से छीनी।
(3) गजनी खाँ तोप – 1607 ई. में राजा गजसिंह ने जालोर विजय पर हासिल की।
(4) अन्य तोपें – कड़क, गजक, जमजमा, बिजली, बिच्छूबाण, नुसरत, गुब्बार, नागपली, मागवा, मीरक आदि।
सोनार किला
● स्थित – त्रिकूट पहाड़ी पर, जैसलमेर में
● निर्माण – रावल जैसल ने 1155 ई. में
● श्रेणी – धान्वन दुर्ग
● पूर्ण निर्माण – शालिवाहन द्वितीय
● उपनाम – सोनगढ़, गौहरारगढ़, त्रिकूटगढ़
● दूर से देखने पर यह किला पहाड़ी पर लंगर डाले एक जहाज का आभास कराता है।
● प्रचलित कहावत – ‘घोड़ा कीजे काठ का पग कीजे पाषाण, बख्तर कीजे लोहे का तब पहुँचे जैसाण’।
● इस दुर्ग के सम्बन्ध में अबुल फजल की उक्ति –
‘यह ऐसा दुर्ग है, जहाँ पहुँचने के लिए पत्थर की टाँगें चाहिए।’
● सोनारगढ़ दुर्ग का निर्माण चूने का प्रयोग किए बिना पत्थरों को जोड़कर किया गया है।
स्थापत्य –
● प्रवेश द्वार – अक्षय पोल (मुख्य प्रवेश द्वार), गणेश पोल, सूरज पोल, हवा पोल।
● शीश महल – दुर्ग में महारावल अखैसिंह द्वारा निर्मित सर्वोत्तम विलास।
● दुर्ग के भीतर जैसल कुआँ प्राचीन पेयजल स्रोत है।
● इस दुर्ग में 99 बुर्ज हैं।
● सर्वाधिक बुर्जों वाला दुर्ग है।
● गहरे पीले पत्थरों से निर्मित है।
● जैसलमेर दुर्ग विश्व का एकमात्र दुर्ग है, जिसकी छत लकड़ी की बनी हुई है।
● राज्य का दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट। (पहला – चित्तौड़ दुर्ग)
● कमरकोट – दुर्ग का घाघरानुमा दोहरा परकोटा। इसे स्थानीय लोग ‘पाड़ा’ भी कहते हैं।
● इस दुर्ग में हस्तलिखित ग्रंथों का सबसे बड़ा भंडार ‘जिनभद्र सूरी ग्रंथ भंडार’ अवस्थित है।
● इस दुर्ग के भीतर ही घड़सीसर तालाब है।
‘ढाई साके’ के लिए प्रसिद्ध-
(1) पहला साका
● वर्ष – 1308 से 1312-13
● आक्रमण – अलाउद्दीन खिलजी
● शासक – मूलराज
(2) दूसरा साका
● आक्रमण – फिरोज तुगलक
● शासक – राव दूदा
(3) तीसरा अर्द्ध साका
● वर्ष – 1550
● आक्रमण – कंधार के अमीर अली
● शासक – राव लूणकरण
● इस समय केसरिया हुआ लेकिन जौहर नहीं हुआ था।
● आदिनाथ जैन मंदिर – इस दुर्ग में स्थित सबसे प्राचीन जैन मंदिर।
● फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा ‘सोनार किला फिल्म’ का निर्माण किया गया।
● वर्ष 2009 में इस दुर्ग पर 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।
● वर्ष 2009 में आए भूकम्प से इसमें दरारें पड़ गई हैं।
जूनागढ़ दुर्ग
● श्रेणी – धान्वन दुर्ग, भूमि दुर्ग एवं पारिख दुर्ग
● निर्माण – महाराजा रायसिंह
● निर्माण समय – 1589 ई. से 1594 ई. तक
● आकृति – चतुष्कोण या चतुर्भुजाकृति।
● उपनाम – जमीन का जेवर लालगढ़ दुर्ग, रातीघाटी का किला।
● अनूप महल – बीकानेर के राठौड़ शासकों का राजतिलक
● लाल पत्थरों से निर्मित होने के कारण ‘लालगढ़’ भी कहा जाता है।
प्रवेश द्वार
● बाहरी – कर्णपोल एवं चाँदपोल
● भीतरी – दौलत पोल, फतेह पोल, रतन पोल, सूरज पोल एवं ध्रुव पोल।
● सूरज पोल पर जैता द्वारा राजा रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण की गई।
● सूरज पोल के दोनों तरफ जयमल राठौड़ तथा फत्ता सिसोदिया की गजारूढ़ मूर्तियाँ स्थापित की गई थी।
● इस दुर्ग की प्राचीर बहुत सुदृढ़ है तथा उनमें 37 बुर्जे बनी हुई हैं।
● राजपूत एवं मुगल स्थापत्य शैली का समन्वय है।
● यह दुर्ग वास्तव में आगरा के दुर्ग से मिलता-जुलता है।
● दर्शनीय स्थल – गज मंदिर, हर मंदिर, अनूप संग्रहालय, फूल महल, चन्द्र महल, लाल निवास, छत्र महल, गंगा निवास, दलेल निवास, रतन निवास आदि।
● दो कुएँ – रामसर एवं रानीसर
● 33 करोड़ देवी–देवताओं का मंदिर – इस मंदिर में हेरंब गणपति (सिंह पर सवार गणपति) की प्रतिमा है।
● राजस्थान में पहली बार लिफ्ट इसी दुर्ग में लगाई थी।
● जूनागढ़ दुर्ग के सम्बन्ध में दीनानाथ दुबे की उक्ति –
‘दीवारों के भी कान होते हैं पर जूनागढ़ के महलों की दीवारें तो बोलती हैं।’
नागौर दुर्ग
● श्रेणी – धान्वन दुर्ग व स्थल दुर्ग
● निर्माण – वि. सं. 1211 में कैमास (चौहान शासक सोमेश्वर का सामन्त)
● उपनाम – अहिच्छत्रपुर दुर्ग, नागदुर्ग
● 1570 ई. में अकबर अजमेर में ख्वाजा साहब की जियारत करने के बाद नागौर आया तथा यहाँ पर लगभग दो महीने रहा। उसने यहाँ एक तालाब खुदवाया, जिसका नाम शुक्र तालाब था।
● नागौर का दुर्ग वीर शिरोमणि अमरसिंह राठौड़ के शौर्य एवं स्वाभिमान के लिए प्रसिद्ध है।
● अकबर ने इस दुर्ग को बीकानेर शासक रायसिंह को सौंपा।
● नागौर के दुर्ग की मुख्य विशेषता यह है कि इसके बाहर से चलाए गए तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाए बिना ही ऊपर से निकल जाते हैं।
स्थापत्य –
● वीर अमरसिंह राठौड़ की छतरी, ज्ञानी तालाब, वंशीवाला का मंदिर, वरमाया का मंदिर, अन्न गोदाम, दोहरा परकोटा
सिवाणा दुर्ग
● श्रेणी – गिरि दुर्ग, सहाय दुर्ग, कुमट दुर्ग
● निर्माण – परमार शासक वीर नारायण पंवार
● समय – 954 ई. में (10वीं सदी)
● स्थान – हल्देश्वर पहाड़ी, सिवाना कस्बा, बाड़मेर
● अन्य नाम – कुम्थाना, कूमट (कूमट झाड़ियों के कारण)
दो साके –
(1) प्रथम साका –
● वर्ष – 1308
● आक्रमण – अलाउद्दीन खिलजी
● शासक – सातलदेव सोनगरा
● नाम परिवर्तन – खैराबाद
(2) द्वितीय साका –
● आक्रमण – अकबर ने मोटा राजा उदयसिंह के नेतृत्व
● शासक – कल्ला रायमलोत
● केसरिया – वीर कल्ला
● जौहर – हाड़ी रानी
● राव मालदेव ने गिरि सुमेल युद्ध (1544 ई.) के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा किए जाने पर सिवाणा दुर्ग में आश्रय लिया था।
● जोधपुर शासकों की संकटकाल में शरणस्थली के रूप में प्रसिद्ध दुर्ग।
● ‘शेर–ए–राजस्थान’ नाम से विख्यात जयनारायण व्यास को राज्य के सिवाणा दुर्ग में बंदी बनाकर रखा गया।
● तालाब – भांडेलाव
रणथम्भौर दुर्ग
● स्थित – सवाईमाधोपुर
● श्रेणी – गिरि व वन दुर्ग
● निर्माण – 8वीं शताब्दी में चौहान शासकों द्वारा। (रणथम्मनदेव चौहान)
● यह दुर्ग विषम आकार वाली सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
● अबुल फजल ने कहा – ‘अन्य सब दुर्ग नंगे हैं जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।’
● वास्तविक नाम – रन्त:पुर अर्थात् रण की घाटी
● यह दुर्ग शिव पिंड पर रखे बिल्वपत्र की भाँति पहाड़ी शृंखला में खोया हुआ है।
स्थापत्य –
● त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर, पीर सदरुद्दीन की दरगाह, सुपारी महल, जौरां-भौरां (अन्न भंडार), जोगी महल, बादल महल, हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी, नौलखा दरवाजा, रनिहाड़ तालाब, पद्मला तालाब, 32 खम्भों की छतरी
● सुपारी महल (रणथम्भौर) में एक ही स्थान पर मन्दिर, मस्जिद और गिरजाघर स्थित है।
● प्रवेश द्वार – नौलखा दरवाजा, हाथी पोल, गणेश पोल, सूरज पोल, त्रिपोलिया।
राजस्थान का पहला प्रमाणित साका
● वर्ष – 1301
● शासक – हम्मीर देव चौहान
● आक्रमण – अलाउद्दीन खिलजी
● जौहर – देवल (हम्मीर देव की पुत्री)
● पाशेब – दुर्ग में विशिष्ट चबूतरे।
● गरगच, मगरबी – दुर्ग से ज्वलनशील पदार्थ फेंकने के यंत्र।
● अर्शदा – दुर्ग से पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र।
● अकबर ने इस दुर्ग में ‘सिक्का ढालने की टकसाल’ स्थापित की।
● अकबर के शासनकाल में रणथम्भौर दुर्ग जगन्नाथ कच्छवाहा की जागीर में रहा। शाहजहाँ के समय यहाँ का अधिपति विट्ठलदास गौड़ था।
आमेर दुर्ग
● अन्य नाम – आम्बेर, अम्बिकापुर, अम्बर, अम्बावती।
● स्थित – जयपुर नगर से उत्तर की ओर 11 किमी. दूर
● श्रेणी – गिरी दुर्ग
● अधिकार – कोकिलदेव ने 1036 ई. में यह दुर्ग आमेर के मीणा शासक भुट्टो से छीन लिया।
● पुनर्निर्माण – मिर्जा राजा मानसिंह प्रथम
● हिन्दू-मुस्लिम शैली का समन्वित रूप।
● बिशप हेबर ने आमेर के महलों को क्रेमलिन के महलों से भी ज्यादा सुन्दर एवं अलंकृत बताया।
स्थापत्य –
● शीशमहल, अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर, शीला माता मंदिर, दीवाने आम, दीवाने खास, दिलखुश महल, 24 रानियों का महल, बुखारा गार्डन, सुहाग मंदिर, मावठा तालाब, दौलाराम का बाग, केसर क्यारी बाग, सुख मंदिर, बालाबाई (महाराजा पृथ्वीराज की रानी) की साल।
● प्रवेश द्वार – जयपोल, सिंहपोल, गणेश पोल, सूरज पोल, चाँदपोल।
● जगत शिरोमणि मंदिर – इस मंदिर में प्रतिष्ठापित भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति लगी हुई है। यह मूर्ति आमेर के राजा मानसिंह-प्रथम द्वारा चित्तौड़ से लाई गई थी। इस मंदिर का निर्माण महाराजा मानसिंह की पत्नी कनकावती द्वारा अपने दिवंगत पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया गया था।
● 1707 ई. में मुगल बादशाह मुअज्जम (बहादुरशाह) ने आमेर दुर्ग पर अधिकार कर उसका नाम ‘मोमिनाबाद’ रखा।
● दीवान-ए-आम एवं दीवान-ए-खास का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया था।
● दुर्ग में गणेश पोल के निर्माता मिर्जा राजा जयसिंह थे।
● गणेश पोल पर शीला देवी का प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है।
जयगढ़ दुर्ग
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● निर्माण – मिर्जा राजा जयसिंह
● परिवर्द्धनकर्ता – सवाई जयसिंह द्वितीय
● स्थान – चिल्ह का टीला (जयपुर)
● प्रवेश द्वार – डूँगर दरवाजा, अवनि दरवाजा एवं भैरु दरवाजा
● उपनाम – रहस्यमयी दुर्ग, संकटकालीन राजधानी, चिल्ह का टीला दुर्ग
● विजयगढ़ी – इसमें सवाई जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजयसिंह को कैद रखा तथा राजनीतिक बंदियों के लिए कैदखाने के रूप में काम आता है।
● दिया बुर्ज – सबसे ऊँचा बुर्ज (7 मंजिला)
● जयबाण – 1720 ई. में निर्मित एशिया की सबसे बड़ी तोप
● जयबाण तोप की मारक क्षमता – 32 किलोमीटर
● जयगढ़ दुर्ग भारत का एकमात्र दुर्ग है, जहाँ तोप ढालने का संयंत्र लगा हुआ है।
● अन्य तोपें – बादली, बजरंगबाण, मचवान
स्थापत्य –
● पानी के टांके, हथियारों का कारखाना, जलेब चौक, सुभट निवास, खिलबत निवास, लक्ष्मी निवास, ललित मंदिर, आराम मंदिर आदि हैं।
● कच्छवाहा राजाओं का राजकोष रखा हुआ था, श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल में गुप्त खजाने के लिए खुदाई करवाई गई थी।
● इसका निर्माण प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र के निर्धारित मानकों के अनुसार किया गया है
नाहरगढ़ दुर्ग
● स्थित – जयपुर
● निर्माण – 1734 ई. में सवाई जयसिंह
● उपनाम – सुदर्शनगढ़, सुलक्षणगढ़
● नामकरण – नाहरसिंह भोमिया के नाम पर
● आकार – जयपुर के मुकुट के समान
● इस दुर्ग में महाराजा माधोसिंह प्रथम ने अपनी 9 पासवानों हेतु एक जैसे 9 महल बनवाए।
● 9 महल – सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, आनन्द प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, चाँद प्रकाश, फूल प्रकाश और बसन्त प्रकाश
● सवाई जगतसिंह की प्रेमिका रसकपूर कुछ समय तक इसी किले में कैद करके रखी गई थी।
गागरोन दुर्ग
● श्रेणी – जल दुर्ग या औदक दुर्ग
● निर्माण – 12वीं सदी में डोड राजा या बीजलदेव
● स्थान – सामेलणी (झालावाड़) में कालीसिन्ध-आहू नदियों के संगम पर
● अन्य नाम – धूलरगढ़ या डोडगढ़, गर्गराटपुर
● ‘चौहान कल्पद्रुम’ ग्रन्थ के अनुसार खींची राजवंश संस्थापक देवनसिंह (धारू) ने 12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में डोड शासक बीजलदेव को परास्त कर इसका नाम गागरोन दुर्ग रखा।
स्थापत्य –
● सूफी संत ‘मिट्ठे साहब की दरगाह’
● बुलन्द दरवाजा औरंगजेब द्वारा निर्मित भी स्थित है।
● संत पीपा की छतरी
● भगवान मधुसूदन का मंदिर
● कोटा रियासत के सिक्के ढालने की टकसाल
● जालिमकोट – कोटा के झाला जालिमसिंह द्वारा निर्मित विशाल परकोटा।
दो साके –
(1) प्रथम साका
● वर्ष – 1423
● आक्रमण – मांडू सुल्तान होशंगशाह
● शासक – अचलदास खींची
(2) द्वितीय साका
● वर्ष – 1444
● आक्रमण – महमूद खिलजी
● शासक – पाल्हणसी
● नाम परिवर्तन – मुस्तफाबाद
● अकबर ने गागरोन दुर्ग पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया।
● पृथ्वीराज ने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेलि क्रिसन रुकमणि री’ गागरोन में रहकर लिखा।
● बादशाह जहाँगीर ने यह किला बूँदी के हाड़ा शासक राव रतन हाड़ा को जागीर में दे दिया।
● गीध कराई – गागरोन दुर्ग के पास स्थित ऊँची पहाड़ी।
● यह राज्य का एकमात्र दुर्ग है, जो बिना नींव के एक चट्टान पर सीधा खड़ा है।
मैगजीन किला
● स्थित – अजमेर
● निर्माण – मुगल शासक अकबर द्वारा 1571-72 ई.
● अन्य नाम – अकबर का दौलतखाना, मुगल किला
● यह मुगलों द्वारा मुस्लिम-हिन्दू दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया गया राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है।
● इसी दुर्ग में 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध की अन्तिम योजना बनाई गई थी।
● 10 जनवरी, 1616 को इंग्लैण्ड सम्राट जेम्स प्रथम के दूत टॉमस रो ने इसी दुर्ग में बादशाह जहाँगीर से मुलाकात की थी।
● 1801 ई. में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैग्जीन) बना लिया।
● अकबर के पुत्र दनियाल तथा शाहजहाँ के पुत्र शहजादा शुजा का जन्म इसी किले में हुआ।
● इस दुर्ग में अंग्रेजों ने राजपूताना म्यूजियम बनवाया।
तारागढ़ दुर्ग (अजमेर)
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● निर्माण – चौहान शासक अजयराज
● समय – 11वीं सदी में
● स्थान – तारागढ़ पर्वत की बीठली पहाड़ी, अजमेर
● उपनाम – गढ़बीठली दुर्ग, अजयमेरु दुर्ग, राजपूताने की कुँजी, राजस्थान का जिब्राल्टर, अरावली का अरमान
● बिशप हैबर ने तारागढ़ दुर्ग को ‘राजस्थान का जिब्राल्टर’ की संज्ञा दी।
● हरविलास शारदा ने इस दुर्ग को भारत का प्रथम दुर्ग माना है।
● प्रवेश द्वार – विजय पोल, लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा, भवानी पोल, हाथी पोल आदि।
● 14 बुर्ज – जिनमें घूँघट, गूगड़ी, फूटी बुर्ज, नक्कारची की बुर्ज, शृंगार चँवरी बुर्ज, पीपली बुर्ज, दोराई बुर्ज, फतेह बुर्ज, जानू नायक, इब्राहीम शहीद, बांदरा, इमली, खिड़की, आर-पार का अत्ता आदि प्रमुख हैं।
● तारागढ़ – मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज पृथ्वीराज ने अपनी रानी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा।
प्रमुख इमारतें –
● शीशाखान गुफा, घोड़े की मंजार, मीरान साहब की दरगाह (यह दरगाह तारागढ़ के प्रथम गवर्नर मीर हुसैन खिंगसवार की है) हिंजड़े की मजार, सेनेटोरियम (विलियम बैंटिक द्वारा निर्मित)
● प्रमुख जलाशय – नाना साहब का झालरा, इब्राहिम का झालरा एवं गोल झालरा
● रानी उमादे (रूठी रानी) जोधपुर शासक मालदेव की पत्नी थी, जिसने अंतिम दिनों में अपना जीवन इसी दुर्ग में बिताया था।
● राव मालदेव ने तारागढ़ का जीर्णोद्धार करवाया तथा किले में पानी पहुँचाने के लिए एक रहट का निर्माण भी करवाया।
तारागढ़ दुर्ग (बूँदी)
● श्रेणी – गिरि दुर्ग।
● यह रात्रि में झील में तारे के समान प्रतीत होता है।
● निर्माण – राव बरसिंह द्वारा 1354 ई. में।
● लगभग 1426 फीट ऊँचे पर्वत शिखर पर निर्मित।
● इस दुर्ग में छत्रशाल महल, यंत्रशाला, बादल महल तथा अनिरुद्ध महल को सुंदर भित्ति चित्रों से सजाया गया।
● किले के बाहरी दीवार का निर्माण 18वीं सदी में फौजदार दलील ने करवाया था।
● तोप – गर्भ गुंजन
● कर्नल जेम्स टॉड ने बूँदी के राजमहल को राजस्थान के सभी राजप्रासादों में सर्वश्रेष्ठ बताया है।
दुर्ग में स्थित महल –
● रंग महल (शत्रुशाल द्वारा निर्मित)
● चित्रशाला इसका निर्माण उम्मेदसिंह ने करवाया इसे भित्ति चित्रों (बूँदी चित्रशैली) का स्वर्ग कहा जाता है।
स्थापत्य–
● 84 खम्भों की छतरी, शिकार बुर्ज, फूलसागर, जैतसागर, नवलसागर छत्र-महल, अनिरुद्ध महल, रतन-महल, बादल-महल, फूल महल, रानीजी की बावड़ी
● प्रवेश द्वार – हाथी पोल, गणेश पोल, हजारी पोल, पाटन पोल, भैरव पोल एवं शुकल बारी दरवाजा।
● मेवाड़ महाराणा राणा लाखा ने इस दुर्ग को जीतने की प्रतिज्ञा पूर्ण न करने पर मिट्टी का नकली दुर्ग बनाकर उसे ध्वस्त करके अपनी कसम पूरी की।
● बूँदी दुर्ग की प्राचीर (शहरपनाह) का निर्माण राव बुद्धसिंह ने सन् 1700 ई. के लगभग करवाया।
भटनेर का किला
● श्रेणी – धान्वन दुर्ग
● स्थित – घग्घर नदी के मुहाने पर हनुमानगढ़
● निर्माता – भूपत भाटी द्वारा तीसरी शताब्दी में। (295 ई.)
● पुनर्निर्माण – राजा अभयराव भाटी द्वारा।
● उपनाम – उत्तरी सीमा का प्रहरी
● इस दुर्ग में 52 विशाल बुर्ज हैं।
● किले का निर्माण पकी हुई ईंटों और चूने से हुआ था।
● सर्वाधिक विदेशी आक्रमण सहने वाला दुर्ग।
● दिल्ली-मुल्तान मार्ग पर स्थित
● 1001 में महमूद गजनवी ने इस पर अधिकार कर लिया।
● 1398 ई. में तैमूर लंग ने राव दूलचन्द भाटी को परास्त कर इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
● तैमूर के आक्रमण के समय यहाँ हिन्दू स्त्रियों के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं द्वारा भी जौहर किया गया था।
● तैमूर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में इस दुर्ग की प्रशंसा में लिखा है कि उसने इतना सुरक्षित व मजबूत दुर्ग पूरे हिन्दुस्तान में कहीं नहीं देखा।
स्थापत्य – माँ भद्रकाली मंदिर
● शेर खाँ की कब्र (बलवन का किलेदार)
● दलपत सिंह व उसकी छह पत्नियों के स्मारक
बाला किला
● निर्माण – अलघुराय
● पुनर्निर्माण – 1049 ई. निकुम्भ चौहान
● उपनाम – आँख वाला किला, बावनगढ़ का लाडला
● यहाँ पर कुछ समय के लिए मुगल शासक बाबर ठहरे थे।
● किले में प्रमुख बुर्ज – नौगजा बुर्ज, काबुल एवं खुद बुर्ज, बंगला बुर्ज।
● बंगला बुर्ज के निर्माता – महाराजा शिवदान सिंह।
● प्रवेश द्वार – चाँदपोल, सूरजपोल, कृष्णपोल, लक्ष्मणपोल, अंधेरीपोल, जयपोल।
● जल के मुख्य स्रोत – सलीम सागर तालाब एवं सूरज कुण्ड।
लोहागढ़ दुर्ग
● श्रेणी – पारिख व भूमि दुर्ग।
● स्थित – भरतपुर
● निर्माण – 1733 में जाट राजा सूरजमल
● इसके चारों ओर मिट्टी की दोहरी प्राचीर बनी हुई है इसलिए इसे मिट्टी का दुर्ग भी कहते हैं।
● इस दुर्ग के चारों ओर गहरी खाई है जिसमें मोती झील से सुजान गंगा नहर द्वारा पानी लाया गया है।
● इस दुर्ग के प्रवेश द्वार पर लगा हुआ अष्ट धातु दरवाजा है, जिसे महाराजा जवाहरसिंह 1765 ई. में दिल्ली में मुगलों से जीतने के बाद लाल किले से लाए थे।
● मिट्टी से बना दुर्ग अपनी अजेयता के लिए प्रसिद्ध है। इस किले को अंग्रेज व मुगल नहीं जीत पाए।
● लॉर्ड लेक ने इस दुर्ग को जीतने का पाँच बार असफल प्रयास किया।
● 18 मार्च, 1948 को मत्स्य संघ का उद्घाटन इसी दुर्ग में हुआ था।
स्थापत्य –
● महलखास, गंगा मंदिर, राजेश्वरी माता का मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, जामा मस्जिद, दादी माँ का महल,वजीर की कोठी, कोठी खास, किशोरी महल, सिलह खाना, दरबार खास आदि प्रमुख महल हैं।
● किले में 8 बुर्ज हैं, जिसमें जवाहर बुर्ज एवं फतेह बुर्ज प्रमुख हैं।
मांडलगढ़ दुर्ग
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● स्थित – बनास, बेड़च, मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम, भीलवाड़ा
● निर्माण – चानणा गुर्जर द्वारा मांडिया भील की याद में
● आकृति – मंडल (वृत्ताकार)
● शृंगि ऋषि अभिलेख के अनुसार मंडलाकृति (कटोरेनुमा) का होने के कारण इसका नाम मांडलगढ़ पड़ा।
● इस दुर्ग में हल्दीघाटी युद्ध से पहले मिर्जा राजा मानसिंह ठहरे थे
स्थापत्य –
● दो प्राचीन शिव मंदिर ऊंडेश्वर और जलेश्वर महादेव, शीतला माता का मंदिर, ऋषभदेव जैन मंदिर, सागर एवं सागरी जलाशय, जालेसर एवं देवसागर तालाब, सैनिकों के आवासगृह स्थित है।
दौसा किला
● स्थित – देव गिरि पहाड़ी, दौसा
● निर्माण – गुर्जर-प्रतिहारों (बड़गुर्जरों)
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● आकार – छाजले के समान
● 11वीं सदी में कच्छवाहों ने यह दुर्ग बड़गुर्जरों से छीन लिया।
● दुर्ग प्रवेश द्वार – हाथी पोल एवं मोरी दरवाजा
● दुर्ग का निचला भाग दोहरे परकोटे से आबद्ध है।
● दुर्ग में प्रसिद्ध ‘राजाजी का कुआँ’ तथा बैजनाथ महादेव मंदिर है।
● इस दुर्ग में ’14 राजाओं की साल’ है।
● दादूपंथी सन्त सुन्दरदास जी का जन्म स्थान माना जाता है।
अचलगढ़ दुर्ग
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● निर्माण – परमार शासकों द्वारा 9वीं सदी में
● स्थित – आबू (सिरोही)
● कर्नल टॉड ने माउण्ट आबू को ‘हिन्दू ओलम्पस’ (देव पर्वत) कहा है।
● परमारों की राजधानी – चन्द्रावती
● पुनर्निर्माण – 1452 ई. में महाराणा कुम्भा
● प्रवेश द्वार – हनुमान पोल, गणेश पोल, चम्पा पोल, भैरव पोल।
● दर्शनीय स्थल – अचलेश्वर महादेव मंदिर, मन्दाकिनी कुण्ड, सावन-भादो झील, कुम्भा-उदा की मूर्तियाँ, दुरसा आढ़ा की मूर्तियाँ ओखा रानी का महल, भर्तृहरी की गुफा आदि।
● ‘भंवराथल’ नामक स्थान का सम्बन्ध इसी दुर्ग से है जहाँ आक्रमणकारी महमूद बेगड़ा एवं उसके सैनिकों पर मधुमक्खियों ने आक्रमण कर दिया था।
सुवर्णगिरी दुर्ग
श्रेणी – गिरि दुर्ग
● स्थित – सूकड़ी नदी के किनारे, जालोर
● निर्माण – गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम
● पुनर्निर्माण – कान्हड़देव सोनगरा
● अन्य नाम – सोनगिरी, कनकाचल, जलालाबाद, जाबालिपुर।
● अलाउद्दीन खिलजी ने कान्हड़देव के समय 1311-12 ई. में जालोर पर आक्रमण कर इस दुर्ग का नाम ‘जलालाबाद’ रख दिया।
● 1311 ई. में इस दुर्ग का पतन बीका नामक दहिया राजपूत की गद्दारी से हुआ था।
स्थापत्य –
● संत मलिक शाह की दरगाह, परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ, ‘स्वर्णगिरि’ मंदिर (जैन मंदिर), तोपखाना मस्जिद (परमार शासक भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला), आशापुरा माता का मंदिर, वीरमदेव की चौकी, अलाई मस्जिद, खिलजी मीनार(इन दोनों का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया)।
● स्वतंत्रता आन्दोलन के समय मथुरादास माथुर, गणेशीलाल व्यास, फतहराज जोशी जैसे नेताओं को किले में नजरबंद रखा गया।
भैंसरोड़गढ़ दुर्ग
● श्रेणी – जल दुर्ग
● स्थित – चम्बल और बामनी नदियों के संगम, चित्तौड़गढ़
● निर्माता – भैंसाशाह नामक व्यापारी तथा रोड़ा चारण द्वारा।
● उपनाम – राजस्थान का वैल्लोर
● कर्नल टॉड ने इसे ‘अभेद्य दुर्ग’ कहा है।
चूरू का किला
● स्थित – चूरू
● निर्माता – 1739 ई. में ठाकुर कुशालसिंह
● गोपीनाथ मंदिर है।
● अपनी आजादी व अस्मिता के लिए इस दुर्ग में ठाकुरों ने गोले-बारूद खत्म होने पर दुश्मनों पर चाँदी के गोले दागे। (ठाकुर – शिवसिंह)
शेरगढ़ दुर्ग (धौलपुर)
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● स्थित – चम्बल नदी के किनारे, धौलपुर
● निर्माण – राव मालदेव
● जीर्णोद्धार – शेरशाह सूरी
स्थापत्य –
● सद्दीक खाँ का मकबरा, हनुमानजी का मन्दिर, सैय्यद की मजार (शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित), निहाल टॉवर, कमल बाग
● तोप – हुनहुंकार
● यह दुर्ग 1804 ई. से 1811 ई. की अवधि में धौलपुर के प्रथम शासक कीरतसिंह की राजधानी रहा था।
● श्रेणी – गिरि व जल दुर्ग
● स्थित – परवन नदी के किनारे, कोषवर्द्धन पर्वत शिखर, बाराँ
● उपनाम – कोषवर्द्धन दुर्ग
● देवदत्त ने दुर्ग के पास ही एक बौद्ध मठ एवं बौद्ध विहार बनवाया था।
स्थापत्य –
● सोमनाथ मंदिर, चारभुजानाथ मंदिर, झालाओं की हवेली, अमीर खाँ के महल आदि दर्शनीय स्थल हैं।
बयाना दुर्ग
● श्रेणी – गिरि व वन दुर्ग
● निर्माण – यादव वंशी राजा विजयपाल
● स्थान – दमदमा पहाड़ी, भरतपुर
● अन्य नाम – विजयमंदिरगढ़, बाणासुर दुर्ग, बादशाह दुर्ग,
● खानवा के युद्ध के बाद बाबर इसी दुर्ग में आया था।
स्थापत्य –
● भीम लाट (उषा लाट) – दुर्ग के भीतर लाल पत्थरों से निर्मित 8 मंजिला ऊँची लाट। इसे राजस्थान की कुतुबमीनार कहा जाता है। इसे महाराजा विष्णुवर्द्धन द्वारा बनवाया गया था।
● उषा मंदिर – वि. सं. 1012 में रानी चित्रलेखा द्वारा निर्मित।
● विजयस्तम्भ – यह राजस्थान का पहला स्तम्भ है जिसका निर्माण समुद्रगुप्त द्वारा करवाया गया था।
● लोदी मीनार, अकबर की छतरी, जहाँगीरी दरवाजा, सराय सादुल्ला (1565 ई. में निर्मित), दाउद खाँ की मीनार दर्शनीय है।
● राजस्थान का एकमात्र दुर्ग जिसमें सर्वाधिक कब्रे हैं।
● यह दुर्ग दिल्ली के सुल्तानों के युद्ध के संचालन व सैनिक विश्राम गृह का कार्य करता था।
● हुमायूँ के शासनकाल में उसके चचेरे भाई मुहम्मद जमान मिर्जा को इसी दुर्ग में कैद रखा गया।
खण्डार का किला
● स्थित – सवाईमाधोपुर
● श्रेणी– गिरि दुर्ग
● आकृति – त्रिभुजाकार
● यहाँ अष्टधातु निर्मित ‘शारदा तोप’ अपनी मारक क्षमता हेतु प्रसिद्ध है। यह रणथम्भौर के चौहान वंशीय शासकों द्वारा 8वीं – 9वीं सदी में निर्मित दुर्ग है।
● इस दुर्ग का उपयोग मूलत: सैन्य साज-सज्जा, युद्ध अभियानों की तैयारी, सैनिक प्रशिक्षण तथा अन्य सैनिक गतिविधियों के लिए किया जाता है।
● दुर्ग में प्रमुख जलाशय – सतकुण्डा, लक्ष्मण कुण्ड, बाण कुण्ड, झिरी कुण्ड आदि।
तिमनगढ़ (त्रिभुवनगढ़)
● श्रेणी – गिरि दुर्ग।
● स्थित – त्रिभुवनगिरि पहाड़ी, करौली
● निर्माता – 11वीं सदी में तवनपाल अथवा त्रिभुवनपाल
● स्थापत्य – खास महल, ननद-भोजाई का कुआँ, राजगिरी, दुर्गाध्यक्ष के महल
● तिमनगढ़ दुर्ग के प्रवेश द्वार – जगनपोल एवं सूर्यपोल।
भोपालगढ़ दुर्ग
● स्थित– खेतड़ी, झुंझुनूँ
● निर्माण – ठाकुर भोपालसिंह
● उपनाम – खेतड़ी का हवा महल
● यह दुर्ग संकीर्ण गलियारों के लिए प्रसिद्ध है।
बसन्तगढ़ दुर्ग
● स्थित – सिरोही
● निर्माण – मेवाड़ महाराणा कुम्भा
● दुर्ग में सूर्य मन्दिर, दत्तात्रेय का मंदिर एवं खींवल माता का मंदिर बना हुआ है।
भानगढ़ दुर्ग
● स्थित – अजबगढ़, अलवर
● निर्माता – माधोसिंह द्वारा 1631 ई.
● वर्तमान में ‘भूतहा किले’ के रूप में प्रसिद्ध है।
● यह दुर्ग सरिस्का अभयारण्य की सीमा के पास पहाड़ी पर स्थित है।
● इस दुर्ग में मंगला माता मंदिर, नटनी की हवेली, भैरव गोपीनाथ, हनुमान मंदिर, सेवडे की छतरी सुरंग, गोमुख कुण्ड, बालकनाथ की धूनी आदि वर्तमान में खण्डहरों के रूप में हैं।
नीमराणा किला
उपनाम – पंचमहल
● स्थित – अलवर
● निर्माण – 1464 ई. में चौहान शासकों
● वर्ष 2008 में ‘नीमराणा फोर्ट पैलेस’ में तब्दील।
कोटा दुर्ग
● श्रेणी – जल दुर्ग
● स्थित – चम्बल नदी के किनारे, कोटा
● निर्माता – माधोसिंह द्वारा
● जेम्स टॉड ने इस किले का परकोटा आगरा किले के बाद सबसे बड़ा बताया।
● प्रवेश द्वार – पाटन पोल, कैथूनी पोल, सूरज पोल, हाथी पोल एवं किशोरपुरा दरवाजा।
● स्थापत्य – जैतसिंह महल, कँवरपदा महल, केसर महल, अर्जुन महल, चन्द्र महल, हवा महल, झाला झालिम सिंह की हवेली आदि स्थित है।
दुर्ग के भीतर ‘महाराजा माधवसिंह म्यूजियम’ रियासतकालीन कला एवं संस्कृति का अद्भुत खजाना है।
राजोरगढ़ दुर्ग
● टहला कस्बा (अलवर) में स्थित दुर्ग।
● यहाँ 12वीं सदी तक बड़गुर्जर शासकों का अधिकार रहा।
● 10वीं सदी में मंथन देव ने भव्य नीलकण्ठ महादेव मंदिर बनवाया।
● नौगजा मंदिर – जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का मंदिर।
● अन्य नाम – नीलकण्ठ दुर्ग।
● इस दुर्ग का उपयोग मुख्य रूप से सैनिक कार्यों व युद्ध अभियानों हेतु होता था।
कांकनवाड़ी का दुर्ग
● श्रेणी – गिरि व वन दुर्ग
● निर्माण– सवाई जयसिंह
● स्थित – अलवर के सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य के मध्य
● मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पराजित भाई दाराशिकोह को इसी दुर्ग में कैद रखा था।
● कांकनवाड़ी दुर्ग दूर से तो दिखाई देता है परन्तु पास जाने पर वृक्षों के झुरमुट में छिप जाता है।
सोजत दुर्ग
● श्रेणी – गिरि दुर्ग
● निर्माण – राव जोधा के पुत्र नीम्बा द्वारा 15वीं सदी में
● स्थित – मेवाड़-मारवाड़ सीमा पर, पाली
● जोधपुर शासक राव मालदेव ने इस दुर्ग के चारों ओर विशाल एवं सुदृढ़ परकोटे का निर्माण करवाया।
● इस दुर्ग में राव मालदेव के पुत्र राम ने रामेलाव तालाब बनवाया।
माधोराजपुरा का किला
● स्थित – जयपुर
● निर्माता – सवाई माधोसिंह प्रथम (मराठा विजय के उपलक्ष्य में निर्माण)।
● इस किले में ठाकुर भरतसिंह नारुका द्वारा अमीर खाँ पिण्डारी की बेगमों को कैद में रखा गया।
चौमू का किला
● श्रेणी – भूमि दुर्ग
● स्थित – चौमू (जयपुर)
● निर्माण – ठाकुर कर्णसिंह द्वारा (बेणीदास नामक साधु के आशीर्वाद से)
● अन्य नाम – रघुनाथगढ़, धाराधारगढ़
● स्थापत्य – हवा मंदिर (अतिथिगृह)
फतेहपुर दुर्ग
● श्रेणी – धान्वन व भूमि दुर्ग
● निर्माता – 1453 ई. में फतेह खाँ कायमखानी
● स्थापत्य – तेलिन का महल, पीर निजामुद्दीन की दरगाह
सज्जनगढ़ दुर्ग
● श्रेणी – गिरि दुर्ग।
● स्थित – बांसदरा पहाड़ियाँ, उदयपुर
● निर्माता – महाराणा सज्जनसिंह
● उपनाम – उदयपुर का मुकुटमणि।
● दुर्ग में महाराणा सज्जनसिंह द्वारा 1881 ई. में वाणी विलास पैलेस एवं गुलाबबाड़ी का निर्माण करवाया।
अन्य महत्त्वपूर्ण दुर्ग
दुर्ग |
स्थित |
नाहरगढ़ दुर्ग |
बाराँ |
शाहबाद का किला |
बाराँ |
लक्ष्मणगढ़ दुर्ग |
सीकर |
भूमगढ़ या असीरगढ़ दुर्ग |
टोंक |
कुचामन दुर्ग |
कुचामन, नागौर |
टॉडगढ़ दुर्ग |
अजमेर |
गीजगढ़ दुर्ग |
दौसा |
उटगिरी का किला |
कल्याणपुर, करौली |
वैरगढ़ दुर्ग |
भरतपुर |
मंडरायल दुर्ग |
करौली |
मालकोट का दुर्ग |
मेड़ता, नागौर |
तिजारा का दुर्ग |
अलवर |
बनेड़ा का किला |
भीलवाड़ा |
कोटकास्ता का किला |
जालोर |
गुमट का दुर्ग |
बाड़ी, धौलपुर |
राजगढ़ दुर्ग |
अलवर |
मनोहरथाना दुर्ग |
झालावाड़ |
सोढ़लगढ़ दुर्ग |
सूरतगढ़, श्रीगंगानगर |
किलोणगढ़ दुर्ग |
बाड़मेर में |
ऊँटाला का किला |
वल्लभगढ़, उदयपुर |
झाइन दुर्ग |
सवाईमाधोपुर |
मीठडी दुर्ग |
जयपुर |
नवलखा दुर्ग |
झालावाड़ |
काकोड़ दुर्ग |
टोंक |
बोराज का दुर्ग |
जयपुर |
तोहन दुर्ग |
कांकरोली, राजसमन्द |
टांई का किला |
टांई, झुंझुनूँ |
केहरीगढ़ दुर्ग |
अजमेर |
पचेवर का किला |
टोंक |
नदियों के तट पर स्थित दुर्ग
दुर्ग |
नदी |
गागरोन दुर्ग, झालावाड़ |
कालीसिंध व आहू नदियों के संगम पर स्थित |
मनोहर थाना दुर्ग, झालावाड़ |
परवन व काली नदियों के संगम पर स्थित |
चित्तौड़गढ़ |
गंभीरी व बेड़च नदियों के संगम पर स्थित |
सुवर्णगिरि, जालोर |
सूकड़ी |
कोटा दुर्ग, कोटा |
चम्बल |
राजस्थान के दुर्गों पर आक्रमण
भटनेर दुर्ग, हनुमानगढ़ आक्रमणकारी – महमूद गजनवी (1001 ई.) – तैमूर (1398 ई.) समकालीन शासक – दुलचंद भाटी – अकबर (1570 ई.) |
रणथम्भौर दुर्ग, सवाईमाधोपुर शासक – हम्मीर देव आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी (1301 ई.) |
गागरोन दुर्ग, झालावाड़ शासक – अचलदास खींची आक्रमणकारी – होशंगशाह, मांडू सुल्तान (1423 ई.) शासक – पाल्हणसी आक्रमणकारी – महमूद खिलजी प्रथम (1444 ई.) |
चित्तौड़ दुर्ग, चित्तौड़गढ़ शासक – रावल रतनसिंह आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी (1303 ई.) शासक – विक्रमादित्य आक्रमणकारी – बहादुर शाह (1534 ई.) शासक – उदयसिंह आक्रमणकारी – अकबर (1567-68 ई.) |
जैसलमेर दुर्ग, जैसलमेर शासक – रावल मूलराज आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी (1312-13 ई.) शासक – रावल दूदा आक्रमणकारी – फिरोज तुगलक (1351-1388 ई.) शासक – लूणकरण आक्रमणकारी – अमीर अली, कंधार (1550 ई.) |
सुवर्णगिरि दुर्ग, जालोर शासक – कान्हड़देव आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी (1311) |
सिवाणा दुर्ग, बाड़मेर शासक – सातलदेव आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी (1308 ई.) |
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