हिंदी भाषा, विश्व की एक वैज्ञानिक भाषा है।
भारत के जन-जन की कठाहार इस भाषा के विकास में सैकड़ों वर्षों का समय लगा।
किसी भी भाषा की गहन जानकारी से पहले उसके विकास क्रम को जानना अत्यन्त आवश्यक है।
भाषा-विकास-क्रम से ही हम ध्वनि, वर्ण अक्षर, शब्द व वाक्य के मध्य मौलिक सम्बन्धों को जान सकते हैं।
हिन्दी भाषा की विकास यात्रा (छह चरणों में):-
- ध्वनि (sound) अस्पष्ट आवाज
- भाषा ध्वनि (Language sound) अपेक्षाकृत स्पष्ट आवाज
- वर्ण (Letter) सबसे छोटी व पूर्णतया स्पष्ट ध्वनि।
- अक्षर (Syllable) ध्वनि या ध्वनियों का अर्थ रहित समूह।
- शब्द (Word) वर्णों या अक्षरों का सार्थक समूह।
- वाक्य (Sentence) शब्दों का क्रमबद्ध, सार्थक समूह
- इन चरणों में प्रत्येक चरण के मध्य संबंध श्रृंखला बद्ध है।
- प्रत्येक चरण के विकास में पूर्व चरण का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- प्रत्येक चरण उत्तरोत्तर विकास का द्योतक है।
भाषा क्या है? विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम

NOTE:- पद – जब कोई स्वतंत्र शब्द किसी वाक्य में प्रयुक्त हो जाए वह पद बन जाता है। पद अनेकार्थक शब्द है, जिसके अर्थ है ओहदा, पैर, कवितांश आदि।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो सदैव अपने विचारों के आदान- प्रदान हेतु किसी न किसी भाषा का प्रयोग करता है। “भाषा” शब्द संस्कृत के ‘भाष्’ धातु से व्युत्पन्न है, जिसका शाब्दिक अर्थ-प्रकट करना या बोलना है।
भाषा:- “उच्चारण अवयवों द्वारा उच्चरित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों का वह समूह है, जिनके द्वारा समाज विशेष के लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।”
(उच्चारण अवयव, यादृच्छिक ध्वनि प्रतीक व एक भाषी समाज)
ध्वनि:- आवाज का ही दूसरा नाम ध्वनि है, जो अस्पष्ट व अनेक आवाजों का संयुक्त रूप है। ध्वनि कान का विषय है।
भाषा ध्वनि:- भाषा ध्वनि, वह ध्वनि है, जिसका उच्चारण एवं श्रोतव्यता की दृष्टि से स्वतन्त्र अस्तित्व हो।
यह ध्वनि का कुछ-कुछ स्पष्ट रूप है।
वर्ण:- वर्ण भाषा की लघुतम इकाई है जिसके मूलतः दो रूप होते हैं- मौखिक व लिखित ।
- मौखिक रूप से – वर्ण वह छोटी-से-छोटी ध्वनि है जिसके और टुकड़े संभव न हो अर्थात् खड़ेतर ध्वनि है।
- लिखित रूप से – भाषा के लिखित रूप को लिपि चिह्नों को वर्ण कहते हैं।
- (अर्थात् वर्ण ध्वनि भी है और ध्वनि चिह्न भी)
अक्षर – ध्वनि या ध्वनियों का वह समूह जिनका उच्चारण एक श्वास के एक ही आघात में हो जाए, उसे अक्षर कहते हैं। जैसे-समस्त स्वर, व्यंजन, आम, राम, स्नान आदि
(अर्थात् अक्षर ध्वनि भी है, और ध्वनि समूह भी)
शब्द – ध्वनियों, वर्णों या अक्षरों का सार्थक समूह शब्द कहलाता है। सार्थकता शब्द की आत्मा है।
वाक्य – शब्दों का क्रमबद्ध, स्पष्ट, स्वतन्त्र व सार्थक समूह जिनके द्वारा किसी विचार विशेष का वहन किया जाता हो, उसे वाक्य कहते हैं।

जिन वर्णों का उच्चारण बिना बाधा के हो
- स्वतन्त्र व बाधा रहित उच्चारण
- बिना किसी सहायता के उच्चारण
जिन वर्णों का उच्चारण बाधा सहित हो
- परतन्त्र व बाधा सहित उच्चारण
- स्वरों की सहायता से ही उच्चारण संभव।
- स्वर – वे वर्ण जिनके उच्चारण में वायु निर्बाध रूप (बिना किसी स्पर्श के) से मुँह या नाक द्वारा बाहर निकल जाती है उन्हें स्वर कहते हैं।
- व्यंजन – वे वर्ण जिनके उच्चारण में वायु मुख विवर में या स्वर यंत्र में कहीं न कहीं स्पर्श (बाधा सहित) करती हुई बाहर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
- अयोगवाह – वे वर्ण जो न तो स्वर है, नहीं व्यंजन हैं, लेकिन ध्वनि का निर्वहन करते हैं, उन्हें अयोगवाह कहते हैं।
- अनुस्वार – (स्वर के पीछे आने वाली ध्वनि) – नाक के सहयोग से उच्चरित वे ध्वनियाँ जिनके पहले स्वर का अपना जरूरी है, उन्हें अनुस्वार कहते हैं। अनुस्वार को शिरोबिंदु भी कहते हैं। अनुस्वार (६) व्यंजन है, तथा स्वर रहित पंचम वर्णों के लिए प्रयुक्त होते है।
- विसर्ग – विसर्ग ( : ) मूलतः संस्कृत की ध्वनि है, जिसका उच्चारण ‘ह’ की तरह किया जाता है। इसका उच्चारण स्थल कण्ठ है तथा यह एक अघोष ध्वनि है।
- अनुनासिकता – अनुनासिक (“‘) से तात्पर्य उन स्वरों से है, जिनका उच्चारण नाक के सहयोग से किया जाता है।
हिन्दी में स्वरों के मुख्यतः दो रूप प्रचलित है-
- निरनुनासिक (निर् + अनुनासिक रूप) – अ, आ, इ, ई, उ,
- अनुनासिक रूप – अँ, आँ, इ, ई, उँ, ऊँ, ऊँ, एँ, ऐं, ओं, औं सारांशत स्वरों के नासिक्य विकार को अनुनासिकता कहा जाता है।
वर्णमाला :- वर्णों के क्रमबद्ध (श्रृंखलाबद्ध) समूह को या वर्णों की माला को वर्ण माला कहते हैं।

1. स्वर(11):-

- स्वरों का एक रूप भौतिक रूप है तो दूसरा रूप मात्रात्मक रूप है जिसका प्रयोग व्यंजनों के साथ होता है।
- उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। मात्रा का शाब्दिक अर्थ ‘चिह्न या संकेत’ हाता है।
- मूल स्वर (हृस्व/लघु) [4] – अ, इ, उ, ऋ
2. अयोगवाह (2) – अं (अनुस्वार ध्वनि), अः (विसर्ग ध्वनि)
3. व्यंजन (39+1(ळ) = 40
(4) शुद्ध व्यंजन (33) – [ क च ट त प वर्ग ]
Note:- 22 अगस्त, 2024 के अनुसार केंद्रीय हिन्दी निदेशालय ने एक नवीन वर्ण (ळ) स्वीकृत किया है अतः अब वर्णों की संख्या 53 हो गई है।


(5) संयुक्त व्यंजन (संयुक्ताक्षर) 4 .-
- क्ष – क्+ ष – [क् + ष् + अ]
- त्र – त् + र – [त् +र् +अ]
- ज्ञ – त् + ञ – [ज् + ञ् + अ]
- श्र – श् + र – [श् + र् + अ]
(6) द्विगुण व्यंजन [2]– ड़ ढ़ नुकता इसके अन्य नाम-उत्क्षिप्त, ताड़नजात, द्विस्पर्शी और द्विस्पृष्ट व्यंजन है।
प्रमुख उच्चारण स्थल (Major organs of speech)
वे मुखावयव जिनका प्रयोग विभिन्न वर्णों के उच्चारण हेतु किया जाता है, वे वर्णों के उच्चारण-स्थल (स्थान) कहलाते है। वर्णों के उच्चारण के समय प्राण वायु मुख के जिन अवयवों या भागों से टकराकर बाहर निकलती है तथा जिव्हा मुख के जिन अवयवों का स्पर्श करती है अथवा जिन भागों के पास जाकर मुड़ती है और वायु को रोकती है, मुख के वे सभी भाग वर्णों के उच्चारण स्थान कहलाते हैं।
प्रमुख उच्चारण स्थान निम्नलिखित है :-
1. कण्ठ (Throat) –
कण्ठ से उच्चरित होने वाले वर्णों को कण्ठ्य (Gutteral) कहते है। अ, आ, क वर्ग, ह तथा विसर्ग का उच्चारण कण्ठ से होता है। (अकुह विसर्जनीयाना कण्ठ.)
2. तालु (Palate) –
तालु से उच्चरित होने वाले वर्णों को तालव्य (Palates) कहते हैं। इ, ई, च वर्ग, य तथा श का उच्चारण तालु से होता है।
3. मूर्धा (Root of the mouth) –
मूर्धा से उच्चरित होने वाले वर्णों को मूर्धन्य (cerebrals or lingual) कहा जाता है। ऋ, ऋ, ट वर्ग, र तथा ष का उच्चारण मूर्धा से होता है। (ऋटुरषाणां मूर्धा)
4. दन्त (Teeth) –
दन्त से उच्चरित होने वाले वर्णों को दन्त्य (Dentals) कहा जाता है। लू, त वर्ग ल तथा स का उच्चारण दन्त से होता है। (लृतुलसाना दन्ताः)
5. ओष्ठ (Lips) –
ओष्ठ से उच्चरित होने वाले वर्णों को ओष्ठ्य (Labials) कहते हैं। उ, ऊ तथा प वर्ग का उच्चारण ओष्ठ से होता है। (उपूपध्मानीयाम् ओष्ठौ)
6. नासिका (Nose) –
नाक से उच्चारित होने वाली या नाक के सहयोग से उच्चरित होने वाली ध्वनि या वर्णों को नासिक्य (Nasal) कहते हैं। ड ञ, न् म् तथा अनुस्वार नासिका से होता है। (ञमडणना नासिका) इनके उच्चारण में क्रमशः कण्ठ, मूर्धा, तालु, दन्त, ओष्ठ इन पाँचों स्थानों पर स्पर्श से उत्पन्न होने वाली ध्वनियों के साथ नासिका से उत्पन्न ध्वनि भी मिल जाती है।
7. कण्ठ-तालु –
कण्ठ और तालु दोनों के सहयोग से या संयोग से उच्चरित होने वाले वर्णों का कण्ठ-तालव्य कहते हैं। ए, ऐ का उच्चारण कण्ठ-तालु से होता है। (एदैतोः कण्ठतालु:)
8. कण्ठोष्ठ –
कण्ठ और ओष्ठ दोनों के संयोग से उच्चरित होने वाले वर्णों को कण्ठौष्ठ्य कहते हैं। ओ, औ का उच्चारण कण्ठ और ओष्ठ के सहयोग से होता है। (ओदौतोः कण्ठोष्ठम्)
9. दन्तोष्ठ –
दन्त और ओष्ठ दोनों के संयोग से उच्चरित होने वाले वर्णों को दन्तौष्ठ्य कहते हैं व का उच्चारण स्थान दन्तौष्ठ है। (वकारस्य दन्तौष्ठम्)
10. जिह्वामूलीय –
जिह्वामूलीय का उच्चारण स्थान चिह्वा का मूल भाग है। (जिह्वामूलयस्थ जिह्वामूलम)
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