भू–परिष्करण (Tillage)

 

भू–परिष्करण (Tillage) :-

● यंत्रों व औजारों से मृदा में पौधों के अंकुरण एवं फसल वृद्धि के लिए उचित अवस्था प्रदान करने के लिए हेरफेर करने को भू-परिष्करण कहते हैं।

● भूमि की तैयारी से लेकर फसल कटाई तक जो खेत में कृषि क्रियाएँ किया जाता है, उसे भू-परिष्करण (tillage) कहते हैं।

भू–परिष्करण का जनक :- जेथ्रोटुल

● जेथ्रोटुल द्वारा लिखित पुस्तक का नाम ‘हाउस हॉइंग हजबैण्ड्री’ (House Hoeing Husbandry) है।

● भू-परिष्करण शब्द की उत्पत्ति एंग्लो सेक्सोन शब्द टिलियन (Tilian) से हुई है। ‘Tilian’ का अर्थ है जुताई करना अर्थात् भूमि पर कर्षण क्रियाएँ कर उसे बुआई के लिये तैयार करना।

टिल्थ (Tilth) :-

● पौधों की वृद्धि से सम्बन्धित मृदा की उत्तम भौतिक अवस्थाओं को टिल्थ कहते हैं।

● मृदा में भू – परिष्करण के परिणाम स्वरूप मृदा की भौतिक दशा में होने वाले बदलाव को मृदा टिल्थ (Soil Tilth) कहा जाता है।

भू-परिष्करण के लाभ :-

● भू-परिष्करण से मृदा में वायु तथा जल आदि की संचार में वृद्धि होने की वजह से फसलों की वृद्धि और विकास अच्छा होता है जिसे उपज में वृद्धि हो जाती हैं।

● भू-परिष्करण क्रिया द्वारा खरपतवारों  को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता हैं।

● मृदा के भौतिक, जैविक व रासायनिक दशा में सुधार आता है।

● मृदा में भू- परिष्करण करने पर स्थूल घनत्व  (B.d.) कम हो जाती है।

● मृदा की ऊपरी सतह का तापमान बढ़ जाता है।

● भू-परिष्करण क्रिया द्वारा मृदा क्षरण को नियंत्रित किया जा सकता हैं।

● भू परिष्करण क्रिया, जैसे- जुताई आदि करने से भूमि ढीली तथा भूर- भूरी बन जाती है जिससे बीजों की बुआई आसान हो जाती है तथा बीजों का जमाव भी अच्छा हो जाता है।

● भू परिष्करण से मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती हैं।

● भू परिष्करण द्वारा फसलों को हानि पहुँचाने वाले विभिन्न प्रकार के कीटों व रोगों से फसलों को बचाया जा सकता हैं।

भू-परिष्करण के प्रकार :-

1.   प्राथमिक भू – परिष्करण (Primary Tillage) – मृदा की कठोर परत को तोड़ने के लिए बुआई से पूर्व प्राथमिक भू – परिष्करण किया जाता है।

● यंत्र – देशी हल, कन्ट्री प्लाऊ, चिजेल प्लाऊ, मोल्ड बोल्ड हल (M.B. Plough), डिस्क प्लाऊ ।

2   द्वितीयक भू–परिष्करण (Secondary Tillage)- यह प्राथमिक भू-परिष्करण के बाद किया जाता है। बीज बुआई के बाद जो अंतरशस्य क्रियाएँ की जाती हैं। द्वितीयक भू–परिष्करण के अंतर्गत आती है। द्वितीयक भू – परिष्करण में बीज बुआई के लिए सही बीजशैय्या तैयार की जाती है।

● यंत्र– कल्टीवेटर, डिस्क हैरो, हो, फ्लांटर, रोलर, रीजर

रोटावेटर :-

● इसका उपयोग प्राथमिक तथा द्वितीयक भू-परिष्करण दोनों में किया जाता है। इसकी खोज Faulkner (फाऊलकनर) नामक वैज्ञानिक ने की।

3.    न्यूनतम भू–परिष्करण (Minimum Tillage) – इस भू–परिष्करण में प्राथमिक भू–परिष्करण कम किया जाता है, इसमें द्वितीयक भू–परिष्करण किया जाता है।

● उत्पत्ति देश – U.S.A

● यंत्र – रोटावेटर

4.  शून्य भू–परिष्करण (Zero Tillage) –

● जब किसी फसल की कटाई के बाद फसल के अवशेषों के बीच कम से कम जुताई या बिना जुताई किये ही दूसरी फसल की बुआई कर दी जाती है, तो ‌ इसे शून्य भू-परिष्करण (zero tillage) कहते हैं।

● वह भू-परिष्करण जिसमें प्राथमिक भू-परिष्करण को पूर्णत: टाला जाता है द्वितीयक जुताई शीर्ष नर्सरी की तैयारी तक सीमित है, जीरो टिलेज कहलाता है। इसका आविष्कार U.S.A. में G. B. ट्रिप्लेट ने किया।

● शून्य भू-परिष्करण में डाईक्वाट और पैराक्वाट खरपतवारनाशी का उपयोग किया जाता है। इसमें बहुवर्षीय खरपतवारों का प्रकोप बढ़ जाता है।

5.   संरक्षण भू-परिष्करण (Conservation Tillage) –

● 30% या इससे अधिक फसल अवशेष में फसल बुआई करना संरक्षण कहलाता है।

● धान– गेहूँ के फसल चक्र में बुआई के लिए हैप्पी सीडर का प्रयोग किया जाता है। हैप्पी सीडर, टाउन सीडर व डिस्क सीडर का उपयोग फसलों के अवशेषों में बीजों की बुआई करने में किया जाता है।

1.   देशी हल (Country plough) – देशी हल के कुंड का आकार V जैसा होता है। देशी हल से औसतन 8 घटों (वन मेन डे) में 0.3 hac. की जुताई की जा सकती है।(1 मैन पावर – 0.1 HP)

● यह बहुउपयोगी यंत्र है।

2.   मोल्डबोर्ड हल (M. B. Plough) – यह मृदा को काटने के साथ में पलटता भी है। इसका उपयोग हरी खाद को मृदा में पलटने के लिए किया जाता है। M.B. हल के कुंड का आकार L जैसा होता है। M.B. हल से औसतन 8 घटों (वन मेन डे) में 0.4 hac. की जुताई की जा सकती है।

3.   डिस्क प्लाऊ (disc plough)

● डिस्क प्लाऊ में डिस्क कोण – 40-45°

● डिस्क प्लाऊ में टिल्ट कोण – 15-25°

4.   चिजेल प्लाऊ (chisel plough) – इसका उपयोग मृदा की गहरी जुताई करने के लिए किया जाता है (कठोर परत को तोड़ने के लिए)

5.   सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल (seed cum fertiliser drill)– इस यंत्र का प्रयोग बीज तथा उर्वरकों की साथ बुआई के लिए किया जाता है। इसमें बीजों को ऊपर व उर्वरक को 0.5 cm के अन्तराल पर नीचे डाला जाता है।

6.  सीड ड्रिल (seed drill)– इसका प्रयोग बीजों की बुआई के लिए किया जाता है।

7.   कल्टीवेटर – बीज बोने के बाद की क्रियाओं को करने के लिए कल्टीवेटर का प्रयोग किया जाता है; जैसे- मृदा को भूरभूरी करना।

CRIDA– हैदराबाद के अनुसार मृदा भू-परिष्करण का वर्गीकरण :-  

प्रकारगहराई (cm)
1. कम गहरी जुताई5–6 cm
2. मध्य गहरी जुताई15–20 cm
3. अधिक गहरी जुताई25–30 cm

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