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सामान्य मृदा विज्ञान
मृदा (Soil):-
· मृदा (सॉयल) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के सोलम (Solum) शब्द से हुई है जिसका अर्थ फर्श (Floor) होता है।
मृदा विज्ञान:-
· मृदा विज्ञान कृषि विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत मृदा का अध्ययन एक प्राकृतिक संसाधन के रूप में किया जाता है इसमें मृदा निर्माण, वर्गीकरण, मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुण व उर्वरता का अध्ययन किया जाता है।
· विथनी के अनुसार मृदा पोषक तत्त्वों की धानी है।
· मृदा विज्ञान के पितामह/जनक – वी.वी. डोकुचेव
· मृदा परीक्षण तकनीक के जनक – एम.एल. ट्रोंग
· मृदा सूक्ष्म जीव विज्ञान के जनक – S.N. विनोग्राडस्की
· मृदा वर्गीकी के जनक – Dr. G.D. स्मिथ
पेडोलॉजी (Pedology):-
· इसमें मृदा के उद्भव, वर्गीकरण व गुणों (भौतिक, रासायनिक व जैविक) का अध्ययन किया जाता है।
· पेडोलॉजी के जनक – वी.वी. डोकुचेव
· पेडोलॉजी ग्रीक भाषा का शब्द है।
· इसके अनुसार मृदा एक प्राकृतिक पिण्ड है।
एडेफोलॉजी (Edaphology):-
· मृदा का पादपों के संबंध में अध्ययन करना एडेफोलॉजी कहलाता है।
· एडेफोलॉजी ग्रीक भाषा का शब्द है।
· इसके अनुसार मृदा पौधों का प्राकृतिक आवास है।
पेट्रोलॉजी (Petrology):-
· चट्टानों के उद्भव का अध्ययन पेट्रोलॉजी कहलाता है।
मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)
· मृदा के पैतृक पदार्थों तक फैले ऊर्ध्वाधर खंड को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं।
· मृदा परिच्छेदिका मृदा संस्तरों से मिलकर बनी होती है।
· विभिन्न परतें जो स्पष्ट दिखाई देती है, मृदा संस्तर कहलाती है।
· मुख्यत: 5 संस्तर स्वीकृत किए गए हैं-
O, A, E, B व C
A+B संस्तर मिलकर सोलम (Solum) कहलाते हैं।
A+B+C संस्तर मिलकर रिगोलिथ (Rigolith) कहलाते हैं।
नोट:- बिना संस्तर की मृदा को रिगोसोल्स कहते हैं।
प्रमुख संस्तर:-
1. O संस्तर:-
· यह कृषित भूमि (Arable soil) में अनुपस्थित होता है, ये प्राय: जंगल की मृदाओं में पाए जाते हैं।
· यह जंतुओं एवं पौधों के अवशेषों के परिणामस्वरूप खनिज मृदा की ऊपरी परत बनाते हैं, इसे कार्बनिक संस्तर भी कहते हैं।
· O समूह में कार्बनिक संस्तर सम्मिलित है।
· Oi – इसमें कार्बनिक पदार्थ मूल अवस्था में होता है।
· Oe – इसमें कार्बनिक पदार्थ कम विच्छेदित होता है।
· Oa इसमें कार्बनिक पदार्थ पूर्णतया विच्छेदित होते हैं।
2. A संस्तर:-
· A को Top soil संस्तर भी कहते हैं यह प्रथम खनिज संस्तर है इसका रंग निम्न संस्तरों की अपेक्षा गहरा होता है वनों वाली भूमि में O संस्तर सबसे ऊपर जबकि कृषिगत भूमि में A संस्तर सबसे ऊपर होता है।
· AI = इसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
· मिट्टी गहरे रंग की होती है।
· AII/E= अल्यूविएशन (Eluvitation) (washing out) – इस संस्तर में क्ले, आयरन, एल्युमिनियम ऑक्साइड का निक्षालन (Eluviation) होता है जिसमें ये नीचे चले जाते हैं और इस संस्तर में सिल्ट, क्वार्ट्ज और बालू खनिज तत्त्व रह जाते हैं इसलिए इस संस्तर का रंग हल्का होता है।
· AB/EB संस्तर – यह E और B के मध्य का संस्तर है जो B की अपेक्षा A या E के अधिक समान है।
· BA/BE संस्तर – यह E और B के मध्य अंत:वर्ती संस्तर है जो A या E की अपेक्षा B के अधिक समान होती है।
3. B संस्तर:-
· इसे Sub soil संस्तर भी कहते हैं। इस संस्तर में कार्बनिक पदार्थ नहीं मिलता है।
· इस संस्तर में पदार्थों का संचयन होता है।
· A संस्तर से आए हुए क्ले, आयरन और एल्युमिनियम ऑक्साइड जमा हो जाते हैं इसलिए इसे निक्षेपण संस्तर (Illuviation horizon) भी कहते हैं।
· शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में कैल्सियम कार्बोनेट, कैल्सियम सल्फेट तथा अन्य लवणों का संचयन B संस्तर में होता है।
· आर्द्र क्षेत्रों में fe व Al ऑक्साइड तथा सिलिकेट क्लेज का संचयन B संस्तर में होता है।
4. C संस्तर:-
· इसे पैतृक अथवा स्पेरोलीन संस्तर भी कहते हैं।
· इस संस्तर में Ca, Mg के कार्बोनेट्स व सल्फेट का जमाव होता है।
· यह संस्तर सोलम (A+B) के नीचे स्थित रहता है।
· इसमें जैविक क्रियाएँ नहीं होती हैं कठोर आधार चट्टानें पाई जाती है।
· इस संस्तर में मृदा के निर्माण की प्रक्रिया सतत जारी रहती है।
5. R संस्तर:-
· इस संस्तर में कठोर पैतृक चट्टानें पाई जाती है।
नोट:- खनिज तत्त्वों एवं जीवांश पदार्थों की उपस्थिति के कारण मृदा संस्तरों के रंग में विभिन्नता आती है।
· निक्षेपण या B संस्तर प्राय: अधिक सुदृढ़ (Compact) होता है।

मृदा के भौतिक गुण (Physical properties of soil)
· मृदा के भौतिक गुण मृदा में पादपों की वृद्धि, जल निकास, वातन, नमी धारण आदि को प्रभावित करते हैं।
मृदा कणाकार (Soil texture)
· मृदा में उपस्थित विभिन्न आकार के खनिज कण; जैसे बालू, सिल्ट तथा क्ले कणों के अनुपात को मृदा कणाकार कहते हैं।
· यह मृदा का पैतृक गुण है इसे कृषण क्रियाओं द्वारा बदला नहीं जा सकता है।
· मृदा कणाकार ज्ञात करने के लिए मेसन जार (Mason jar) का उपयोग किया जाता है।
· फसल उत्पादन के लिए मृदा कणाकार का उचित होना विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है; जैसे – वायु संचार, भूमि में नमी, मृदा ताप तथा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा आदि।
· भूमि क्षमता वर्गीकरण तथा मृदा प्रबंधन का निर्धारण करते समय मृदा कणाकार को ध्यान में रखा जाता है।
· मृदा कणाकार भूमि के मूल्य निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है।
कणाकार वर्ग :-
· इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ सोइल साइंस (ISSS) के अनुसार :-
मृदा कण | आकार (mm) |
क्ले | 0.002 से कम |
सिल्ट | 0.002 से 0.02 |
महीन बालू | 0.02 से 0.2 |
मोटी बालू | 0.2 से 2.0 |
कृषि विभाग संयुक्त राज्य अमेरिका
United states department of agriculture (USDA के अनुसार)
मृदा कण | आकार (mm) |
क्ले | 0.002mm से कम |
सिल्ट | 0.002 – 0.05 |
बहुत महीन बालू | 0.05 – 0.10 |
महीन बालू | 0.10 – 0.25 |
मध्यम बालू | 0.25 – 0.50 |
मोटी बालू | 0.50 – 1.00 |
बहुत मोटी बालू | 1 – 2 |
· संयुक्त राज्य अमेरिका कृषि विभाग द्वारा 12 प्रमुख मृदा कणाकार वर्ग परिभाषित किए गए हैं।
प्रमुख मृदा कणाकार वर्ग (USDA के अनुसार)
क्र.सं. | गठन वर्ग | बालू % | सिल्ट & | मृत्तिका (क्ले) % |
1. | बालू | 20-100 | 0-20 | 0-20 |
2. | बालू लोम | 50-80 | 0-50 | 0-20 |
3. | लोम | 30-50 | 30-50 | 0-20 |
4. | सिल्ट लोम | 0-50 | 50-100 | 0-20 |
5. | बलुई क्ले लोम | 50-80 | 0-30 | 20-30 |
6. | सिल्ट क्ले लोम | 0-30 | 50-80 | 20-30 |
7. | क्ले लोम | 20-50 | 20-50 | 20-30 |
8. | बलुई लोम | 50-70 | 0-20 | 30-50 |
9. | सिल्ट क्ले | 0-20 | 50-70 | 30-50 |
10. | क्ले | 0-50 | 0-50 | 30-100 |
मृदा कणाकार त्रिभुज (Soil texture triangle)
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बालू, सिल्ट, क्ले
क्र.सं. | विशेषताएँ | बालू | सिल्ट | क्ले |
1. | जल धारण क्षमता | कम | मध्यम | अधिक |
2. | उर्वरता | बहुत कम | कम | अत्यधिक |
3. | रन्ध्र आकार | बड़े | मध्यम | बहुत महीन |
4. | रन्ध्र संख्या | कम | मध्यम | अत्यधिक |
5. | जुताई | आसान | मध्यम | कठिन |
6. | संकुचन, संसजन | बहुत कम | कम | अत्यधिक |
मृदा संरचना (Soil structure)
· मृदा में प्राथमिक एवं द्वितीयक कण कई प्रकार से व्यवस्थित होते हैं। कणों की इसी व्यवस्था को मृदा संरचना कहते हैं।
मृदा संरचना के प्रकार (Types of soil structure):-
1. प्लेटी संरचना (Platy structure) :-
· इस प्रकार की संरचना में मृदा, ऊर्ध्वाधर अक्ष की अपेक्षा क्षैतिज अक्ष में अधिक विकसित होती है।
· प्लेटी संरचना नम प्रदेशों की मृदाओं के A संस्तर में पाई जाती है।
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2. प्रिज्मीय संरचना:-
· इस प्रकार की संरचना में मृदा क्षैतिज अक्ष की अपेक्षा ऊर्ध्वाधर अक्ष में अधिक विकसित होती है।
· प्रिज्मीय संरचना शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्र की मृदाओं के B संस्तर में देखने को मिलती है।

3. ब्लॉकी संरचना:-
· इस प्रकार की संरचना में मृदा कण पुंज घन की तरह समतल या गोलाकार सतह से बने होते हैं।
· ब्लॉकी संरचना B संस्तर/ Sub soil में देखने को मिलती है।
4. स्फेरीकल/गोलाकार संरचना:-
· इस प्रकार की संरचना में मृदा कणपुंजों का आकार गोल होता है।
· यह खेती के लिए उपयुक्त मृदा संरचना मानी जाती है।

नोट :- क्रम्बी मृदा संरचना खेती के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण संरचना है क्योंकि इसमें मृदा अधिक सरंध्री होती है।
मृदा घनत्व (Soil density)
· मिट्टी के इकाई आयतन की सहति (वजन) को मृदा घनत्व कहते हैं।
· पिक्नोमीटर द्वारा मृदा घनत्व ज्ञात किया जाता है।
· मृदा के दो आपेक्षिक घनत्व होते हैं क्योंकि मृदा कण व रन्ध्रावकाशों से मिलकर बनी होती है।
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1. कण घनत्व –
· मृदा कणों के इकाई आयतन का वजन मृदा कण घनत्व कहलाता है इसमें केवल ठोस भाग को शामिल किया जाता है।
· कण घनत्व को gm/cm3 में व्यक्त किया जाता है।
· इसे वास्तविक घनत्व या सापेक्ष घनत्व भी कहते हैं।

नोट:- कार्बनिक पदार्थ को मृदा में मिलाने से कण घनत्व घट जाता है।
· सामान्य मृदा का औसत कण घनत्व 2.65 g/cm3 होता है।
· कार्बनिक पदार्थ का कण घनत्व 1.2–1.7 g/cm3 होता है।
2. स्थूल घनत्व :-
· शुष्क मृदा के इकाई आयतन का भार मृदा का स्थूल घनत्व कहलाता है।
· इसमें ठोस व रन्ध्र दोनों को शामिल किया जाता है।
· इसे आभासीय घनत्व भी कहा जाता है।
· इसकी इकाई gm/cm3 होती है।

नोट:-
· कार्बनिक पदार्थ को मृदा में मिलाने पर स्थूल घनत्व भी घट जाता है।
· सामान्य मृदाओं का स्थूल घनत्व 1.02–1.8 g/cm3 (1.33) होता है।
· कार्बनिक पदार्थ का स्थूल घनत्व लगभग 0.5 g/cm3 होता है।
मृदा रंध्रता/सरन्ध्रता (Porosity)
· मृदा के कुल आयतन में ठोस पदार्थों के अतिरिक्त जो रिक्त स्थान होता है मृदा रन्ध्रता कहलाता है।
· सामान्यत: मृदा की कुल रन्ध्रता लगभग 50% होती है।
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नोट:- मृदा में कार्बनिक पदार्थ मिलाने पर रन्ध्रता बढ़ती है।
· गहराई अधिक होने पर रन्ध्रता कम हो जाती है।
· बालू मृदा में रन्ध्रों का आकार बड़ा होता है जबकि क्ले मृदा में रन्ध्रों की संख्या ज्यादा होती है।
मृदा रंग (Soil colour)
· मृदा रंग का निर्धारण मुसेंल कलर चार्ट से किया जाता है।
· मृदा के रंग से पौधे की वृद्धि प्रभावित होती है क्योंकि मृदा का रंग अप्रत्यक्ष रूप से मृदा ताप एवं नमी को प्रभावित करता है।
प्रकाश के गुणों का मापन:-
I. Hue (वर्ग) – यह प्रकाश के रंग (लाल, नीला, पीला व हरा) को दर्शाता है।
II. Value (मान) – यह गहरे व हल्के रंग को दर्शाता है।
III. Chroma (क्रोमा) – यह रंग की शुद्धता को दर्शाता है।
मृदा निर्माण
· मृदा का निर्माण चट्टानों के अपक्षय से होता है।
· मृदा का निर्माण 2 चरणों में होता है।
1. चट्टानों का अपक्षय
2. मृदा परिच्छेदिका का विकास
· चट्टानों के अपक्षय से बना पैतृक पदार्थ रिगोलिथ कहलाता है।
· अपक्षय तीन प्रकार का होता है-
1. भौतिक 2. रासायनिक 3. जैविक अपक्षय
मृदा निर्माण की प्रक्रिया:-
(A) प्राथमिक प्रक्रियाएँ:-
1. ह्यूमिफिकेशन:- सूक्ष्म जीवों द्वारा कार्बनिक पदार्थों का विच्छेदन कर ह्यूमस का निर्माण करना।
2. निक्षालन (Eluviaiton):- Means “Wash out” A संस्तर से क्ले आयरन एल्युमिनियम ऑक्साइड और कार्बनिक पदार्थों का B संस्तर में जाना “Eluviaiton” कहलाता है।
3. निक्षेपण (Illuviation):- Means “Wash in” A संस्तर से आए हुए पदार्थों का B संस्तर में जमा होना Illuviation कहलाता है।
4. संचयन (Accumulation)
5. पेडोटर्बेशन (Pedoturbation):- मृदा का विकास विभिन्न संस्तरों में होता है सभी मृदाओं में एक सीमा तक मिश्रण होता है जबकि मृदा संस्तरों का मिश्रित होना पेडोटर्बेशन कहलाता है।
(B) गौण/विशिष्ट प्रक्रियाएँ:-
1. पोडजोलीकरण (Podzolisation):- ह्यूमस तथा सेस्क्वी ऑक्साइड ऊपर से नीचे के संस्तरों में जमा हो जाते हैं इसे पोडजोलीकरण कहते हैं।
2. लेटेराइटीकरण (Laterisation):- जब सेस्क्वी ऑक्साइड ऊपरी संस्तरों में ही रहते हैं जबकि सिलिका नीचे संस्तरों में चली जाती है इस प्रक्रिया से बनने वाली मृदा की प्रकृति अम्लीय होती है।
3. केल्सीकरण (Calcification):- मृदा प्रोफाइल में कैल्सियम कार्बोनेट का संचयन होने के फलस्वरूप कैल्सिक संस्तर बनता है।
4. सोलनीकरण/क्षारीकरण (Solonization or Alkalization):- मृदा में NaCl, N2SO4, NaHCO3 व Na2CO3 क्षारीय लवणों का संचयन होने से इन मृदाओं की संरचना खराब हो जाती है।
5. ग्लाइकरण (Glaization):- इन्हें हाइड्रो मार्फिक मृदा भी कहा जाता है। मृदा में उचित जलनिकास न होने की स्थिति में ग्लाई परत का निर्माण होता है।
मृदा निर्माण:-
· मृदा निर्माण की प्रक्रिया को पेडोजिनेसिस (Pedogensis) कहा जाता है।
· मृदा का विकास शृंखलाबद्ध परिवर्तनों से होता है।
· मृदा निर्माण में प्रारंभिक बिंदु ताजा संचित मूल सामग्री (Parent material) का अपक्षय (Weathring) है।
मृदा निर्माण के कारक:-
· मृदा का निर्माण कम से कम पाँच कारकों से प्रभावित होता है–

· रूस के भू-वैज्ञानिक वेसिली डोकुचेव को पेडोलॉजी का जनक माना जाता है।
· इन्होंने वर्ष 1898 में मिट्टी बनाने वाले कारकों का समीकरण दिया।
S = f (Cl, O, P)
· अमेरिकी मृदा वैज्ञानिक हैस जैनी ने सन् 1941 में मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों के लिए एक समीकरण दिया।
नोट:- जैनी का समीकरण डोकुचेव के समीकरण से अलग है।
S = F (Cl, O, R, P, T)
यहाँ Cl = जलवायु
O = जीव और वनस्पति
R = स्थलाकृति
P = पैतृक पदार्थ
T = समय
S = मृदा
F = कारक
· मृदा निर्माण के कारकों को वैज्ञानिक जोफे (Joffe) ने दो भागों में बाँटा है।
(1) सक्रिय कारक :-
(i) जलवायु (ii) वनस्पति और जीव
(2) निष्क्रिय कारक :-
(i) पैतृक पदार्थ (ii) स्थलाकृति (iii) समय
मृदा अवयव
· मुख्यत: मृदा 4 अवयव के मिश्रण से निर्मित है।
1. मृदा जल
2. मृदा वायु
3. खनिज तत्त्व
4. कार्बनिक पदार्थ

ठोस भाग में 90% से अधिक भाग खनिज का होता है।
खनिज:-
· खनिज मिट्टी की उर्वरता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
· प्राकृतिक अकार्बनिक ठोस जिसकी एक निश्चित रासायनिक एवं क्रिस्टलीय संरचना होती है, खनिज कहलाता है।
खनिज तत्त्व
क्र.सं. | प्राथमिक खनिज | द्वितीयक खनिज |
1. | क्वार्ट्ज | डोलोमाइट |
2. | मस्कोबाइट | जिओथाइट |
3. | बायोटाइट | हेमेटाइट |
4. | ऐल्बाइट | केल्साइट |
5. | ऑर्थोक्लेज | जिप्सम |
6. | हॉनब्लेड | क्ले मिनरल्स |
7. | अर्नोथाइट | मेग्नेटाइट |
8. | ऑजाइट | गिब्साइट |
9. | ऑलीवाइन | |
10. | माइका |
· क्वार्ट्ज – SiO2
· ऑर्थोक्लेज – KAlSi3O3
· केल्साइट – CaCO3
· डोलोमाइट – Ca Mg (CO3)2
· जिप्सम – Ca SO4. 2H2O
नोट:- भू-पर्पटी में फेल्सपार की अधिकता होती है जबकि मृदा में क्वार्ट्ज व क्ले खनिजों की।
चट्टानें:-
· परिभाषा – मेग्मा के ठंडे होने से पृथ्वी की ऊपरी सतह/परत पर बना ठोस पिण्ड चट्टान कहलाती है चट्टानों के भौतिक तथा रासायनिक संगठन उसमें पाए जाने वाले खनिजों के गुणों पर निर्भर होते हैं।
वर्गीकरण:-
· तीन प्रकार – उत्पत्ति के आधार पर
1. आग्नेय (Igneous)
2. अवसादी/परतदार/पातालिक (Sedimentary)
3. रूपांतरित/कायान्तरित (Metamorphic)
1. आग्नेय(Igneous):-
· ये सबसे पुरानी चट्टानें हैं।
· मेग्मा के जमने के फलस्वरूप निर्मित होती है।
· इन्हें प्राथमिक चट्टान भी कहते हैं।
· ये चट्टानें सघन, कठोर व संगठित होती है।
· इन्हें स्तरहीन व क्रिस्टलीय चट्टानें भी कहते हैं।
2. अवसादी/पातालिक चट्टानें (Sedimentary rocks):-
· इन चट्टानों के निर्माण में वायु, पानी तथा बर्फ काम करते हैं।
· आग्नेय चट्टानें टूटकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जमा हो जाती है जिससे अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है।
· विशेषता:-
– परतदार होती है।
– कण व छिद्र पाए जाते हैं।
– वनस्पति तथा जीव-जंतु के अवशेष मिलते हैं।
· उदाहरण:-
– चूना पत्थर (Lime stone)]
– बलुआ/रेती पत्थर (Sand stone)
– कोयला (Coal)
3. रूपांतरित चट्टानें (Metamorphic rocks):-
· आग्नेय व अवसादी चट्टानों में ताप, दाब और रासायनिक क्रिया द्वारा परिवर्तन के परिणामस्वरूप बनने वाली चट्टानें रूपांतरित चट्टानें कहलाती है।
नोट:- आग्नेय चट्टानें की भाँति ये भी क्रिस्टलीय होती है।
रूपांतरित चट्टान
क्र.सं. | मूल चट्टान | रूपांतरित चट्टान |
1. | बालू पत्थर | क्वार्ट्जाइट |
2. | स्लेटी पत्थर | स्लेट |
3. | चूना पत्थर | संगमरमर |
4. | अभ्रक | शिष्ट |
5. | ग्रेनाइट | नीस |
6. | पीट | कोयला |
मृदा कार्बनिक पदार्थ:-
· मृदा में उपस्थित जंतु एवं वनस्पति के अवशेष मृदा कार्बनिक पदार्थ कहलाते हैं।
स्रोत:-
1. पादप :- पेड़-पौधों की पत्तियाँ, जड़ें व टहनियाँ, फसलों के अवशेष, हरी खाद की फसलें, कम्पोस्ट, बिछाली एवं पशुओं का बिछावन व धान की पराली आदि।
2. जंतु :- पशुओं का मृत शरीर, हड्डियों का चूरा, कीड़े-मकोड़े के अवशेष आदि।
3. ह्यूमस:- ह्यूमस गहरे भूरे या काले रंग का एक पदार्थ है जो पेड़-पौधों की पत्तियों, बीजों, शाखाओं व मृत जीवधारियों के शरीर के अपघटन से निर्मित होता है।
मृदा वायु:-
· मृदा के रन्ध्रावकाशों में उपस्थित वायु मृदा वायु कहलाती है।
· मृदा की ऊपरी सतह में मृदा वायु की मात्रा अधिक होती है।
· गहराई के बढ़ने के साथ-साथ वायु कम होती है।
मृदा वायु संगठन (आयतन %)
गैस | वायुमंडलीय वायु | मृदा वायु |
N2 | 78.08 | 79.2 |
O2 | 20.95 | 20.6 |
CO2 | 0.033 | 0.25 |
नोट:- मृदा वायु में CO2 की मात्रा वायुमण्डलीय वायु की तुलना में 6-7 गुना अधिक होती है।
मृदा जल:-
· मृदा में उपस्थित जल मृदा जल कहलाता है।
· मृदा जल की गति:- जल मृदा में विभिन्न प्रकार से गति करता है जो निम्नलिखित प्रकार से है-
1. अन्त:स्पंदन (Infiltration):-
· जल का मृदा सतह से मृदा में प्रवेश करना अन्त:स्पंदन कहलाता है। अंन्त:स्पंदन मृदा का एक गतिक और परिवर्तनशील गुण है।
· यह मृदा की संरचना एवं मृदा में नमी की मात्रा से प्रभावित होता है।
· मापन इकाई – मिली मीटर/घंटा या इंच/घंटा
जैसे – मृदा संतृप्त होने लगती है वैसे ही अंत:स्पंदन दर कम हो जाती है।
· संतृप्त मृदा (Saturated soil) – मृदा के रंध्र जब पूर्णतया पानी से भर जाए तो मृदा संतृप्त मृदा कहलाती है।
· इस स्थिति में मृदा और अधिक जल को ग्रहण करने में सक्षम नहीं होती है।
2. अन्त:स्रावन (Percolation):-
· परकोलेशन लैटिन शब्द ‘परकोलेयर’ से बना है जिसका अर्थ है ‘के माध्यम से छनाव’
· मृदा में उपस्थित जल का गुरुत्वाकर्षण बल के कारण मृदा संस्तरों से नीचे की ओर गति करना अन्त:स्रावन कहलाता है।
· यह स्थिति संतृप्त/लगभग संतृप्त मृदा में देखने को मिलती है।
3. निक्षालन (Leaching):- मृदा जल में घुलकर लवण व अन्य पोषक पदार्थ मृदा संस्तरों से नीचे चले जाते हैं यह निक्षालन कहलाता है।
नोट:- यह लवणीय भूमियों को सुधारने की महत्त्वपूर्ण विधि है।
4. सतह जलप्रवाह (Surface runoff):- मृदा में बिना प्रवेश किए मृदा की सतह पर जल के बहने को सतह जलप्रवाह कहते हैं।
5. रिसाव/सीपेज (Seepage):- जलाशय या नहर के पानी का पार्श्व में गति करना Seepage कहलाता है।

भौतिक वर्गीकरण:-
1. आर्द्रता ग्राही जल (Hygroscopic water):- यह जल पौधों को प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि आर्द्रताग्राही जल मृदा कणों पर अत्यधिक दृढ़ता से धारित होता है। यह मृदा में अचल (Immobile) होता है।
2. केशिका जल (Capillary water):- यह जल पौधों द्वारा ग्रहण किया जाता है। क्षेत्र धारण क्षमता (Field capacity) और आर्द्रताग्राही गुणांक (Hygroscopic coefficient) के मध्य उपस्थित जल को केशिका जल कहलाता है।
3. गुरुत्वाकर्षण जल (Gravitational Water):- मृदा के दीर्घ रन्ध्रों में उपस्थित जल जो गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा नीचे की ओर गति करता है, गुरुत्वाकर्षण जल कहलाता है।
जैविक वर्गीकरण:-
1. उपलब्ध/प्राप्य जल (Available Water):- क्षेत्र जल धारण क्षमता (Field capacity) और मुर्झान गुणांक (Wilting coefficient) के मध्य उपस्थित जल “प्राप्य जल” कहलाता है।
2. अनुपलब्ध/अप्राप्य जल (Unavailable Water):- मुर्झान गुणांक और आर्द्रताग्राही जल के बीच उपस्थित जल जो पौधों को अप्राप्य होता है। जीवाणु तथा कवक इस जल का उपयोग कर लेते हैं।
3. आवश्यकता से अधिक जल (Super Available Water):- जब पौधों के लिए आवश्यकता से अधिक जल एकत्र हो जाता है तो मृदा में वातन कम हो जाता है और पौधों को हानि होती है।
· क्षेत्र जल धारण क्षमता (Field Capacity) से अधिक जल को Super available Water कहते हैं।
जल धारण के बल:-
1. जल अणुओं और ठोस सतहों (मृदा कणों) के मध्य आकर्षण “आसंजन बल” के कारण होते हैं।
2. जल के अणुओं का अन्य जल के अणुओं से आकर्षण “ससंजन बल” के कारण होता है।
1. जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity):- किसी मृदा की जल ग्रहण करने की क्षमता जल धारण क्षमता कहलाती है यह मृदा द्वारा गुरुत्व बल के विपरीत जल की धारिता को प्रदर्शित करती है। जल धारण क्षमता का मान – 31 से 0 Atm होता है।
2. क्षेत्र क्षमता (Field capacity):- मृदा में जल की वह मात्रा जो स्वतंत्र जल निकास होने के बाद गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध मृदा में उपस्थित रहता है वो क्षेत्र क्षमता कहलाता है। यह जल की उच्चतम सीमा है।
· क्षेत्र क्षमता जल −13
बार या –0.1 से –0.3 बार पर उपलब्ध होता है।
· क्षेत्र क्षमता पर जल मृदा के सूक्ष्म रंध्रों में उपलब्ध होता है।
· क्षेत्र क्षमता पर पौधो को 100% जल उपलब्ध होता है।
नोट:- सिंचाई के 36-48 घंटे बाद खेत की मृदा में बचा पानी क्षेत्र धारण क्षमता को दर्शाता है।
3. Permanent Wilting Point :- पौधा अस्थायी रूप से मुर्झाता है पानी देने पर पुन: जीवित/हरा हो जाता है।
• इसका मान = -15bar
• सूरजमुखी Permanent Wilting Point का सूचक पौधा होता है।
4. अल्टीमेट मुर्झान बिंदु (Ultimate Wilting Point):- इसका मान -60bar होता है इस पर पौधा पूर्णतया सूख जाता है।
5. आर्द्रताग्राही गुणांक (Hygroscopic Coefficient):- इसका मान -31bar होता है। यह जल पौधों को प्राप्त नहीं होता है कुछ जीवाणु इसका प्रयोग करते हैं। 100gm शुष्क मृदा द्वारा निश्चित ताप 25°C व निश्चित आर्द्रता (50%) पर मृदा द्वारा धारण की गई अधिकतम आर्द्रताग्राही जल की मात्रा को आर्द्रताग्राही गुणांक कहते हैं।
मृदा जल व तनाव
क्र.सं. | मृदा जल स्थिरांक | तनाव (Bar) | PF |
1. | जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity) | -31 से 0 | |
2. | क्षेत्र क्षमता (Field Capacity) | −13 | 2.54 |
3. | गुरुत्वाकर्षण जल (Gravitational water) | −13 से 0 | 2.54 से कम |
4. | केशिका जल (Capilary Water) | −13 से –31 | 2.54 से 4.50 |
5. | मुर्झान बिंदु (Wilting point) | –15Bar | 4.20 |
6. | आर्द्रताग्राही गुणांक | –31 | 4.20 |
7. | आर्द्रताग्राही जल | –31 से 10000 | 4.5 से 7 |
मृदा कोलाइड्स
· मृदा के गुणों (भौतिक/रासायनिक) को निर्धारित करने वाले पदार्थ मृदा कोलाइड्स कहलाते हैं।
· मृदा कोलाइड्स ग्रीक भाषा के कोला शब्द से लिया गया है।
· जनक – थॉमस ग्राह्म
· ये 2 प्रकार के होते हैं–
1. कार्बनिक कोलाइड्स (उदाहरण – ह्यूमस)
2. अकार्बनिक कोलाइड्स (उदाहरण – क्ले, खनिज, हाइड्रस ऑक्साइड)
· कोलाइड्स कणों का आकार – 0.002mm से कम
मृदा कोलाइड | धनायन विनिमय क्षमता (Cmol/Kg) | विशिष्ट पृष्ठीय क्षेत्र (M2/g) |
ह्यूमस | 200 | 560-800 |
वर्मीकुलाइट | 150 | – |
मॉटमोरिलोनाइट | 100 | 280-500 |
इलाइट | 30 | – |
क्लोराइट | 30 | – |
केओलिनाइट | 8 | 15-20 |
· मृदा कोलाइड्स सिलिका व एल्युमिनियम से बने होते हैं इसमें चतुष्फलकीय सिलिका व अष्टफलकीय एल्युमिनियम होते हैं।
· मृतिका कणों पर ऋणात्मक आवेश होता है।
1:1 क्ले खनिज:-
· केओलनाइट
2:1 क्ले खनिज:-
· फूलने वाले – मॉन्टमोरिलोनाइट (सर्वाधिक संकुचन व फैलाव का गुण)
· आंशिक फुलने वाले – वर्मीकुलाइट
· बिना फूलने वाले – मस्कोवाइट, इलाइट, बायोटाइट
2:2 क्ले खनिज:-
· क्लोराइट
भू-पर्पटी (Earth crust):-
· थल मण्डल की सबसे ऊपरी परत भू-पर्पटी कहलाती है।

भू-पर्पटी का संगठन
तत्त्व | % मात्रा में |
ऑक्सीजन | 46.50% |
सिलिकॉन | 27.50% |
एल्युमिनियम | 8.07% |
आयरन | 5% |
कैल्सियम | 3.64% |
मैग्नीशियम | 2.05% |
सोडियम | 2.75% |
पोटैशियम | 2.58% |
टाइटेनियम | 0.62% |
· भू-पर्पटी में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्त्व – O2
· भू-पर्पटी में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला धात्विक तत्त्व – एल्युमिनियम (Al)
मृदा सूक्ष्म जीव:-
· प्रति ग्राम मृदा में संख्या के आधार पर सूक्ष्म जीवों का क्रम-
जीवाणु>एक्टिनोमाइस्टिज>कवक>शैवाल
· सामान्य मृदा में भार के आधार पर सूक्ष्म जीव
कवक>जीवाणु>एक्टिनोमाइस्टिज>शैवाल
· अम्लीय मृदाओं में
कवक>जीवाणु>शैवाल>एक्टिनोमाइस्टिज
· लवणीय/क्षारीय मृदाओं में
एक्टिनोमाइस्टिज>जीवाणु>कवक>शैवाल
· सूक्ष्म जीवों के लिए उपयुक्त pH मान 6-7.5 होता है।
C:N Ration:-
कार्बनिक पदार्थ | C:N ratio |
तेल खली | 3 : 5 |
मृदा सूक्ष्मजीव | 4-9 : 1 |
ह्यूमस | 10 : 1 |
कार्बनिक पदार्थ | 10 : 1 |
कृषित मृदा | 8-15 : 1 |
FYM | 20 : 1 |
दलहनी फसलें | 20-30 : 1 |
खाद्यान्न का भूसा | 80 : 1 |
धूल | 400 : 1 |
· पश्चिम राजस्थान की मृदाओं में कार्बन की मात्रा = 0.1% से कम
· भारतीय मृदाओं में कार्बन की मात्रा – 0.5%
तापमान के आधार पर मृदा सूक्ष्म जीवों का विभाजन:-
· साइक्रोफिलिक – <10°C तापमान पर सक्रिय
· मीजोफिलिक – 10-40°C तापमान पर सक्रिय
· थर्मोफिलिक – >45°C
महत्त्वपूर्ण बिंदु:-
· पृष्ठीय मृदा का वजन – 2.25×106 kg/ha
· 1 हेक्टेयर मृदा की 1cm परत का वजन – 150 टन
· रासायनिक अपक्षय की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया “हाइड्रोलिसिस” है।
· विशिष्ट पृष्ठीय क्षेत्र –
बालू < 10m2/g
क्ले > 25m2/g
· मृदा के भौतिक गुणों के लिए स्थूल घनत्व कण घनत्व की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।
· भू-परिष्करण करने से स्थूल घनत्व (B.D) घटती है।
· मृदा का पीला/लाल रंग ऑक्सीकृत फेरिक ऑक्साइड के कारण होता है।
· सूक्ष्मजीवों के लिए उपयुक्त तापमान 25-35°C होता है।
· N2 स्थिरकारक जीवाणुओं के लिए – 30-35°C
· बीज अंकुरण के लिए – 20-35°C
· जिस मृदा में 20% से अधिक कार्बनिक पदार्थ होता है, उसे कार्बनिक मृदा कहते हैं।
· खादर – नवीनतम जलोढ़ मृदा
· बांगर – पुरानी जलोढ़ मृदा
संतृप्त बहाव (Saturated flow) :-
· जब मृदा के सभी रन्ध्र जल से भरे हो तो वह और अधिक जल ग्रहण नहीं कर सकती है। यह दशा संतृप्तता कहलाती है।
· संतृप्त मृदा से जल का बहाव नीचे की ओर होना संतृप्त बहाव कहलाता है।
सोइल सोलेराइजेशन (Soil Solarisation):-
· भूमि को कीट एवं रोगों से बचाने के लिए व खरपतवारों को नष्ट करने के लिए गर्मी के दिनों (अप्रैल-जून) में सिंचाई करते हैं और पारदर्शी पॉलिथीन से 4-6 सप्ताह के लिए ढक देते हैं।
· इससे भूमि का तापमान 10-15°C बढ़ जाता है।
मृदा निर्जमीकरण (Soil sterilization):-
· पौध रोपण से पूर्व मृदा को हल्की सिंचाई देकर 1lit/m2 क्षेत्र में फार्मेलिन का छिड़काव करें।
· पृथ्वी की सतह में सबसे अधिक फेल्सपार पाया जाता है जबकि मृदा में सबसे अधिक क्वार्ट्ज खनिज पदार्थ पाया जाता है।
· ऑक्सीजन पृथ्वी की सतह में सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्त्व है।
· डोलोमाइट का सबसे अधिक व क्वार्ट्ज का सबसे कम विघटन होता है।
· मृदा में वायु बड़े रन्ध्रों में जबकि जल छोटे रन्ध्रों में पाया जाता है।
· जब मृदा में 10% से कम वायु होती है तो जड़ों की वृद्धि नहीं होती है।
· जल के साथ बहाकर लाई गई मिट्टी – एलुवियल
· पशुओं के अधिक चराई से होने वाला अपरदन – एन्थ्रोपोजेनिक अपरदन
· वायु द्वारा लाई गई मिट्टी – एओलियन/लोएस
· मुख्यत: खस घास (वेटिविरेया) मृदा अपरदन को रोकने के लिए वानस्पतिक प्रतिरोध के रूप में प्रयोग की जाती है।
· खेत में नमी ज्ञात करने की श्रेष्ठ विधि – न्यूट्रोन नमी मीटर
· प्रयोगशाला में मृदा नमी ज्ञात करने के लिए प्रेसर मेम्ब्रेन एण्ड प्रेसर प्लेट अपरेटस का प्रयोग किया जाता है।
· हल्की मृदाएँ (Light soil):- ऐसी मृदाएँ जिनमें जुताई व बुआई करना आसान होता है।
जैसे – बालू मृदाएँ ये मृदाएँ आलू, मूँगफली आदि के लिए उपयुक्त है।
· भारी मृदाएँ:- ऐसी मृदाएँ जिनमें जुताई व बुआई करना, आसान नहीं होता है।
जैसे – क्ले, सिल्ट मृदा।
· ये मृदाएँ धान, कपास आदि के लिए उपयुक्त है।
· मृदा का लाल रंग हेमेटाइट (fe-oxide) के कारण होता है।
· Organic Carbon = Organic matter × 0.58
· Organic matter = Organic Carbon × 1.72
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