पशुओ का प्रबंधन एवं संरक्षण (Management and protection of animals)

         चारे का संरक्षण :-

– जब हरे चारे की बहुतायत हो उस समय चारे को काटकर असामान्य समय जैसे ग्रीष्म ऋतु / अकाल आदि में पशुओं को खिलाने के लिए निम्नलिखित विधियों से हरे चारे को संरक्षित किया जाता है ताकि पशुओं को केरोटीन, प्रोटीन एवं लवण व विटामिन वर्ष भर मिल सके।

– पशुओं में चारे का संग्रहण ‘हे’ व ’साइलेज’ द्वारा किया जाता है। साइलेज में किण्वन प्रक्रिया से लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है।

– कपास (बिनौला) में विषाक्त पदार्थ ‘गोसीपोल’ पाया जाता है।

● चारा संरक्षण की निम्न विधियाँ है :-

– सूखी घास अथवा ‘हे’ बनाने (Hay Making)

– साइलेज बनाना (Silage making)

– कृत्रिम रूप से घास सूखाना (Artificial drying of grasses)

1.  ‘हे ’ बनाना :-

– ‘हे’  उस सूखी घास को कहते हैं जिसमें जो हरी घास में फूल निकलने की अवस्था के समय अर्थात् परिपक्व होने से पहले काटकर इस प्रकार सुखाएँ कि उसमें  उपस्थित आवश्यक पोषक तत्त्वों का ह्रास न हो, वह मुलायम रहे, रंग भी हरा रहे तथा सड़नयुक्त नहीं हो, उसमें किसी प्रकार की नमी नहीं हो तथा जब हरा चारा उपलब्ध नहीं हो उस समय पशुओं को खिलाने हेतु संरक्षित करके भण्डारित करने की विधि को “हे” कहते हैं।

  ‘हे’ के प्रकार :-

 (i) दलहनी हे :- रिजका, बरसीम

 (ii) अदलहनी हे :- जई, जौ

 (iii) मिश्रित हे:- रिजका + बरसीम + जौ

●  ‘हे’ बनाने के सिद्धान्त :-

–  सबसे अच्छी हे ‘जई’ से तैयार की जाती है ।

–  सबसे अच्छी दलहनी हे ‘रिजका’ से तैयार की जाती है।

– ज्यादातर ‘हे’ उन चारों से बनाई जाती हैं, जिनमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जैसे- रिजका, बरसीम, लोबिया और काऊपी।

– भारत में ज्यादातर ‘हे’ रिजके से बनाई जाती हैं । ‘हे’ के लिए चारे/फसल को काटते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि फसल ज्यादा पुरानी न हो अर्थात‌् उसे फूल आने से पहले की अवस्था में काटते हैं क्योंकि इस समय फसल के अंदर अधिकतम पोषक तत्त्व उपलब्ध रहते हैं।

● हे बनाने की विधि :-

1.  मैदानी विधि

2.  बाड़ पर सूखाना (Trench method)

3. पूला विधि

        4.  मकान अथवा पशुशाला की छत पर घास सूखाना

5.  पिरामिड विधि (Tri-pod method)

● हे बनाते समय सावधानियाँ :-

– चारे को फूल आने की पूर्व अवस्था पर काटना चाहिए।

– फसल को इकट्ठा करते समय नमी की मात्रा 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अधिक नमी की उपस्थिति में फसल में फफूँद लगने का खतरा रहता है, जिसमें हे खराब हो जाती हैं।

– फसल को इस प्रकार से काटा जाना चाहिए कि उसका परिवहन करते समय उसके अंदर पत्तियाँ न गिरे , क्योंकि पत्तियों के अंदर महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व खासकर Vitamin A रहता है।

● हे बनाने के लाभ :-

– हे बनाना आसान और एक सस्ता तरीका है।

– हे के अंदर पोषक तत्त्वों की मात्रा भरपूर रहती हैं।

– हे आसानी से तैयारी की जा सकती है।

– चारे की कमी के दौरान इसे पशुओं को आसानी से खिलाया जा सकता है।

– विटामिन -D प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।

– हे निर्माण के कारण ज्वार की सायनाइड विषाक्तता नष्ट हो जाती है।

2. साइलेज :-

 साइलेज बनाना:- 

– नियंत्रित किण्वन के द्वारा गीले हरे चारे का संरक्षण।

– साइलेज बनाने की प्रक्रिया और विधि को Ensilage / Ensiling कहते हैं।

● Silage बनाने का सिद्धान्त :-

– साइलेज बनाने हेतु फसल silo डालने के पूर्व इतना सूखाया जाता हैं कि उसमें नमी की 70% रह जाए, क्योंकि अधिक नमी की उपस्थिति में ही किण्वन प्रक्रिया सही तरीके से हो सकती है। साइलेज की गुणवत्ता की जाँच के लिए “Flieg index” काम में ली जाती है।

● Silage बनाने की विधि एवं Silage में होने वाले रासायनिक परिवर्तन :-

– हरे चारे को काटकर इतना सूखाया जाता हैं उसमें नमी 70% रह जाए। उस चारे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता हैं और इसे Silo में इस तरह भर दिया जाता हैं कि किसी तरह का air-space या वायुकोष न रहे, फिर Silo को ऊपर से airtight ढक्कन द्वारा बंद कर दिया जाता है।

– साइलेज में N2 की मात्रा बढ़ाने के लिए 1% यूरिया तथा स्वाद बढ़ाने के लिए 0.5% नमक (Nacl) मिलाया जाता है।

– Silo में silage को बनाने में कम से कम 21 दिन लगते हैं।

– Silo के अंदर हरे चारे में से एक- दो दिन तक O2 गैस निकलती है। परन्तु 2 दिन के बाद CO2 का निर्माण शुरू हो जाता है तथा अवायुवीय वातावरण बन जाता हैं। इस वातावरण में जीवाणुओं का निर्माण शुरू हो जाता हैं। ये जीवाणु कार्बोहाइड्रेट को लैक्टिक अम्ल (90%) में परिवर्तन कर देते हैं, जो कि silage में अधिकतम होता है तथा कुछ मात्रा में एसीटिक अम्ल और (Formic acid) का भी निर्माण होता है।

– ऐसी फसलें जिनमें घुलनशील शर्करा की मात्रा कम होती है, उन फसलों का साइलेज बनाते समय 3-3.5% शीरा (molasses) मिलाया जाता है।

– इन जीवाणुओं के द्वारा कुछ मात्रा में एल्कोहल का भी निर्माण होता हैं, जिसकी वजह से साइलेज की सुगंध पशुओं की पसंद हो जाती हैं बाद में ये जीवाणु प्रोटीन में भी कार्य करते हैं तथा प्रोटीन को पहले (amino acid) तथा बाद में लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं।

– ऐसी फसलें जिनमें घुलनशील शर्करा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है (जैसे- मक्का, ज्वार, बाजरा, आदि) साइलेज बनाने के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं।

● Silage बनाने की उपयुक्त फसलें :-

– वे फसलें जिनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज्यादा होती हैं। जैसे- मक्का, जौ, जई, बाजरा इत्यादि।

 सबसे अच्छी फसल – मक्का।

गुणवत्ता के आधार पर साइलेज के प्रकार
क्रं. सं.सारणीVery good silageGood silageFair silage
1.pH3.5-4.24.2-4.54.8 या इससे अधिक
2.अमोनिकल नाइट्रोजन की मात्रा10% से कम10%20% या अधिक
3.ब्यूटायरिक अम्लबिल्कुल नहींबहुत कमथोड़ा बहुत
हे एवं साइलेज में अंतर
क्रं. सं.सारणीहेसाइलेज
1.परिभाषासूर्य के प्रकाश में सूखाया हुआ चाराअवायवीय किण्वन द्वारा हरे चारे की लम्बे समय तक संरक्षित रखने का तरीका
2.नमी की मात्रा12-14%60-70%
3.सर्वोत्तम फसलजई (Avena sativa), रिजकामक्का (Zea mays), बाजरा
4.पौधे का प्रकारपतला तना एवं पत्तियाँ ज्यादामोटा तना एवं पत्तियाँ कम 
5.फसल काटने का उचित समयपुष्प अवस्था के समयपुष्प अवस्था से परिपक्व अवस्था के मध्य
6.pHउदासीनअम्लीय

विभिन्न पशुओं का प्रबंधन –

 पशुओं को नियंत्रित करना –

● पशुओं को काबू करना :-

– Restraint पशुओं के इलाज हेतु उन्हें नियंत्रित करना।

● पशुओं को गिराना :-

– Casting शल्य चिकित्सा के लिए पशुओं को नीचे गिराना।

● गाय भैंस को काबू करना तथा नियंत्रित करना :-

– काबू करने की विधियाँ –

  1. Halter (रस्सी) या मोहरा

2. Anti – cow – kicker

3. ट्रेविस

4. Nose ring

5. tail restraint (पूँछ को आधार से उठाकर)

 ● गाय को गिराने के तरीके :-

1. Reuff’s method – Rope squeeze method (सबसे ज्यादा प्रयोग में ली जाने वाली विधि)

2. Barley method – Alternative method

● भैंस को गिराना :-

– आगे के दोनों पैरों को बाँधकर पीछे के दोनों पैरों को बाँधकर गिराते हैं।

● घोड़े के Resraint की विधियाँ :-

– Blind method – आँख पर कपड़ा डालकर

– Twitch द्वारा – कान पर, ऊपरी होंठ तथा निचली होंठ पर पतली रस्सी को बाँधकर घूमाते हैं।

– Hobbles के द्वारा – U आकार का उपकरण

– Cradle – लकड़ियों को गर्दन पर बाँधकर

– Mouth gag – (मुँह के Exmination में)

– घोड़े को गिराना –

1. Double site line

2. Hobbles द्वारा

● ऊँट को नियंत्रित करने की विधियाँ :-

– आगे के पैर उठाकर बाँधना

– Sternal recumbency -8 – पैटर्न से आगे के पैरों को रस्सी से बाँधना।

 पशुओं की पहचान के तरीके :-

स्थाई पहचान के तरीकेअस्थाई पहचान के तरीके
टेटुईंग(Tattoing)ईयर टैंगिंग (Ear Tagging)
ब्रांडिंग(Branding)कलर मार्किंग(Colour marking)
ईयर नोचिंग (Ear notching)हूफ मार्किंग(Hoof marking)
 होर्न मार्किंग(Horn marking)
 लेग मार्किंग(Leg marking)
 लेग बैंड (Leg band)
  विंग बैंड (Wing Band)
 नेक चेन (Neck Chain)
 वूल मार्किंग(Wool marking)

● स्थाई पहचान के तरीके :-

1. Branding (ब्रान्डिंग) :-

– बड़े जानवर गाय, भैंस, ऊँट तथा घोड़े में पहचान में काम में लेते हैं।

– सबसे ज्यादा पहचान के काम में लिए जाने वाली विधि हैं।

– ये तीन प्रकार की हैं-

 (i) Hot

 (ii) Cold

 (iii) Chemical

(i) Hot branding –

– लोहे की गर्म छड़ को 2- 4 सेकण्ड पशु के जाँघ पर रखते हैं।

(ii) Cold / Freze branding –

 इसमें तरल नाइट्रोजन (liquid) N – 196˚C तापमान को बिना बाल काटे शरीर के भाग पर 10 – 40 सेकण्ड तथा बाल काटे हुए भाग पर 5 – 10 सेकण्ड रखते हैं। यह विधि काले पशुओं के लिए उपयुक्त है।

 branding की उपयुक्त जगह पशुओं के पिछले पैरों की जाँघ है।

2. Ear Notching :-

– कान के किनारों को V – आकार से काटना।

– सूअर में सबसे ज्यादा प्रयोग में ली जाने वाली विधि

– स्थाई पहचान का तरीका है।

3. Tattoing :-

– हल्के रंग के पशुओं में काम में ली जाती है।

– सबसे ज्यादा गाय तथा भैंस के बछड़े एवं भेड़ में काम में लेते हैं।

– उपयुक्त स्थान – कान की आंतरिक सतह पर स्थाई काली स्याही का अंकन करना।

– घोड़े में होंठ पर टेटुइंग करते हैं (Lip tattoing)

– गहरे रंग के पशु की निचली सतह के आधार पर टेटुइंग करते हैं।

● अस्थाई पहचान के तरीके :-

1. Ear Taggaing :-

– कुड़की लगाना

– सबसे ज्यादा भेड़- बकरियों में काम में लेते हैं।

– गाय तथा भैंस में भी प्रयोग करते हैं।

– टीकाकरण में भी प्रयोग करते हैं।

– अस्थाई पहचान का तरीका है।

2. Wing band :-

– पक्षियों में प्रयोग में लेते हैं।

– नवजात चूजे में प्रयोग करते हैं।

3. Leg band :-

– पक्षियों में प्रयोग में लेते हैं।

– बड़े चूजे या जवान चूजे में प्रयोग करते हैं।

4. Wool marking :-

– भेड़ों के झुण्ड में रंगों द्वारा पहचान करते हैं।

– ऊन पर रंग को अंकन करना

5. Colour marking :-

– मुख्यतया भेड़, बकरी, ऊँट तथा गधों में प्रयोग करते हैं।

– पशुओं के झुण्ड के पहचान के लिए

– विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग करते हैं।

6. Hoof marking :-

– इसका प्रयोग घोड़ों में करते हैं।

– घोड़ों के खुरों में निशान लगाते हैं।

7. Horn making :-

– गायों में प्रयोग में लेते हैं।

– सींग पर निशान या रंग लगाना।

Castration(बंध्याकरण)

– वह प्रक्रिया जिसमें नर तथा मादा पशु को प्रजनन (breeding) के लिए अयोग्य बना देना।

– अर्थात् नर तथा मादा के प्राथमिक जनन अंग (वृषण तथा अण्डाशय) को हटा देना।

– Castration open method -सर्जरी द्वारा जनन अंगों (ovary, testis) को हटा देना।

– Castration close method- Buridizo castrator द्वारा तथा Elastorator

● विभिन्न पशुओं में बंध्याकरण की आयु

क्र. सं.पशुबंध्याकरण की आयु
1.गाय तथा भैंस के बछड़े8 सप्ताह
2.बकरी के बच्चे (kid)3 सप्ताह
3.भेड़ के मेमने (lamb)2 सप्ताह
4.सूअर के बच्चे(piglet)1 सप्ताह

पशुओं में सींग रोधन (Dehorning) –

– विद्युत डीहोर्नर द्वारा – यह विधि बछड़ों के लिए उपर्युक्त विधि है।

– आरी द्वारा  बड़े पशुओं में सींग रोधन करते हैं। 

– कास्टिक छड़ (KOH) द्वारा – यह सींग रोधन की श्रेष्ठ विधि है। इसे रासायनिक विधि या वैज्ञानिक विधि भी कहते हैं। यह सामान्यत: 7-15 दिन की आयु तक नवजात बछड़ों में करते हैं।

– इसमें कास्टिक छड़ को सींग कलिका पर रगड़ते हैं।

 विभिन्न पशुओं में आवास व्यवस्था :-

● पशु आवास Method of housing

● खुली आवास प्रणाली की जरूरतें –

खुली  आवास प्रणाली की जरूरते
क्र.स.जानवरढका हुआ क्षेत्र (वर्ग फीट प्रति पशु)खुला क्षेत्र(वर्ग फीट प्रति पशु)मेंजर की लम्बाई (इंच)
1.बछड़ा/बछड़ी15- 2050-6015-20
2.गाय20-3080-10020-24
3.भैंस25-3580-10024-30
4.ग्याभिन गाय100-120180-20024-30
5.साँड120-140200-25024-30

● Loose housing के फायदे तथा हानियाँ

फायदेनुकसान
कम लागत में निर्माणआवास में ज्यादा जमीन की आवश्यकता
पशुओं की संख्या बढ़ा सकते हैं।प्रत्येक पशु का अलग से ध्यान नहीं रखा जाता है।
पशुओं को घूमने-फिरने की आजादी है।पूरे समय का निरीक्षण आसानी से या एक साथ नहीं किया जा सकता ।
पशु पर्याप्त व्यायाम करते हैंBedding mational अधिक चाहिए।
चोट लगने का खतरा कम होता है। 

● गाय तथा भैंसों में आवास व्यवस्था :-

– दो प्रकार

1. Loose housing system

2. Conventional housing system (पारंपरिक आवासीय व्यवस्था)

1. Loose housing system :-

– इसमें पशुओं को कुछ ही समय अस्थाई बाड़े (शेड) में रखते हैं। जैसे – दूध दोहन या इलाज के समय, बाकि समय पशु स्वतंत्र फिरते हैं।

– यह कम खर्चीला होने के कारण प्रसिद्ध है।

– इसमें विपरीत परिस्थितियों के लिए अस्थाई शेड का निर्माण करते हैं।

– Loose housing system में कुछ इकाइयाँ होती है-

(i) Cattle shed – प्रतिकूल परिस्थितियों में आवास

(ii) Watering trough – खैल्ली

(iii) Calving pen – ग्याभिन पशु के प्रसव के लिए आवास

(iv) Calf pen – नवजात बछड़ों के लिए आवास।

(v) Open loading area – खुली जगह जहाँ पशु शेड नहीं होता है। (पशुओं के घूमने का स्थान)।

– Bull pen – साँड के आवास।

– Mannure pit- गोबर इकट्‌ठा करने की जगह।

– Holding place – कुछ समय के लिए पशुओं को रखने की जगह।

● Cow में Calf shed :-

S.n.Age of CalfCoverd space/cali
1.3 माह से कम20 – 25 वर्ग फीट
2.3- 6 माह25 – 30 वर्ग फीट
3.6 – 12 माह30 – 40 वर्ग फीट
4.1 वर्ष से अधिक40 – 50 वर्गफीट

● Sheep/ Goat ponts of management :-

S.N.पशु(Animal)फर्श का माप प्रति पशुचारे का स्थल का माप प्रति पशुपानी के स्थल का माप प्रति पशु
1.वयस्क मादा पशु1-1 ½वर्गमीटर40 cm.4 cm.
2.Kid/lamb½-1 वर्गमीटर30 cm.5 cm.
3.बकरा/ मेढ़ा2 वर्गमीटर50 cm.5 cm.

2.  Conventional Housing System (पारंपरिक

आवासीय व्यवस्था) –

– इस आवासीय व्यवस्था में पशुओं को भवन के अन्दर बाँधकर रखते हैं।

– भवन पूरी तरह से छत से ढका होता है।

– वेंटिलेशन की उचित व्यवस्था होती है।

– तुलनात्मक रूप से महँगी व्यवस्था होती है।

– खराब मौसम से अधिक प्रभावशाली ढंग से बचाया जा सकता है।

Single row housing (एकल पंक्ति व्यवस्था)Double row housing (दोहरी पंक्ति व्यवस्था)
गायों की संख्या 10 से कमइसमें गायें 10 से लेकर 80 – 100 तक रखते हैं।
गायों में केवल एक ही कतार दीवार के सहारे रखी जाती है।इसमें गायों की दो कतारे समानान्तर क्रम में लगाते हैं।
दो प्रकार – (1) Tail to tail(2) Face to face

 (a) Face to face :- 

– दो समानान्तर कतार/पंक्ति में चेहरा – आमने सामने बीच में 5 फुट रास्ते के दोनों तरफ 2 चौड़ी नाद गहराई 40 cm. होती है।

– 1 फुट चौड़ी नाली मूत्र हेतु।

– लाभ – राशन में आसानी (समय कम)

– सूर्य की किरणें सीधी नाली पर जिससे पेशाब सूख जाता है।

– पशु दिखने में सुन्दर लगते हैं।

– हानियाँ -श्वसन संबंधित बीमारियाँ

– Supervision आसान नहीं होता है।

– साफ- सफाई में अधिक समय लगता है।

(b) Tail to Tail :-

– इस विधि में पशु का चेहरा विपरीत दिशा में होता है।

– दूध निकालने तथा सफाई हेतु 6 फुट स्थान।

– लाभ –

– साफ- सफाई करने में कम समय लगता है।

– श्वसन संबंधित बीमारियाँ नहीं होती है।

– हानियाँ –

– चारा-दाना डालने में समय अधिक लगता है।

 Poultry में Housing system (आवास व्यवस्था)

Extensive या free range systemSemi intensive systemFloding unit systemIntensive system (सघन प्रणाली)
सबसे पुरानी विधि।इसमें पक्षियों का खुला चरना – फिरना होता है।मांसाहार जानवरों को रोकने के लिए तारबन्दी या दीवार करना।तारों के जाल से छोटे- छोटे ढाँचे बनाया जाता है । इससे प्रत्येक पक्षी के लिए 4 Square feet / bird का स्थान(3 square feet घूमने के लिए तथा 1 square feet का आवास)Deep liter systemCage system (Battery system)
 Liter – सूखे चारे को आवास में बिछा देना।Layer तथा broiler दोनों में काम में लेते हैं।पिंजरा प्रणाली यह केवल layer (अण्डे देने वाले ) पक्षियों के लिए होता है।

● layer अण्डे उत्पादन वाले पक्षी

– Brooder house – 1 दिन से 8 सप्ताह तक इस आवास में रखते हैं।

– Rearing house – 8 – 22 सप्ताह तक मुर्गियों को रखना।

– Laying house – 22 – 76 सप्ताह तक मुर्गियों को आवास में रखना।

● Broiler house –

– मांस उत्पादन वाले पक्षी

– Broiler house – 0- 8 सप्ताह तक मुर्गियों को रखना

v विभिन्न पशुओं में मदकाल (Estrous Cycle

1. मोनोइस्ट्रस – इसमें वे पशु आते हैं जिसमें वर्ष में एक बार मदचक्र आता है। जैसे – कुतिया

2. पॉलीइस्ट्रस- इसमें वे पशु आते हैं जिसमें वर्ष में दो या दो से ज्यादा बार मदचक्र आता है। जैसे- गाय व सूअरी

3. सीजनल इस्ट्रस – इसमें वे पशु आते हैं जिनमें वर्ष के किसी निश्चित मौसम में दो या दो से ज्यादा बार मदचक्र आता है। जैसे- घोड़ी, भैंस, भेड़ व बकरी

● मद चक्र (estrus cycle) – दो मदकाल के बीच की अवधि को मद चक्र कहते हैं।

 मादा पशुओं में मदकाल की पहचान हेतु टीजर बुल का प्रयोग करते हैं।

– मद चक्र की चार अवस्था –

(i) प्रोइस्ट्रस 

(ii) इस्ट्रस

(iii) मेटइस्ट्रस

(iv) डाईइस्ट्रस – सबसे लम्बी अवस्था 

 क्र.सं.पशुमदचक्र की अवधि
1.गाय21 day
2.सूअरी21 day
3.घोड़ी21 day
4.भैंस21 day
5.भेड़17 day
6.बकरी20 day
7.कुतिया6-7 month
8.ऊँटनी23 day

● गर्भकाल (Gestation Period)— मादा पशु में गर्भधारण से लेकर प्रसव तक  के बीच के समय अंतराल को गर्भकाल कहते हैं।

क्र.सं.पशुगर्भकाल
1.भैंस10 माह + 10 दिन (310 दिन)
2.घोड़ी11 माह + 11 दिन (341 दिन)
3.गाय9 माह + 9 दिन (280 दिन)
4.बकरी5 माह + 5 दिन (155 दिन)
5.भेड़5 माह – 5 दिन (145 दिन)
6.सुअरी3 माह + 3 सप्ताह + 3 दिन (114 दिन)
7.ऊंटनी13 माह + 13 दिन (390 दिन)
8.कुत्तियां2 माह + 2 दिन (62 दिन)

यौवनारम्भ(Puberty) –

– जब पशु के जनन अंग क्रियात्मक रूप से पूर्ण विकसित हो जावे व द्वितीयक लैंगिक लक्षण प्रदर्शित करने लगे अथवा उनकी जनन कोशिका अण्डाणु या शुक्राणु का निर्माण शुरू हो जाते हैं। मादा में यह अवस्था मद चक्र द्वारा तथा नर में यह अवस्था संभोग क्षमता द्वारा प्रदर्शित की जाती है।

क्र.सं.पशुमादा की आयुनर की आयु
1.विदेशी गौवंश18-24 माह12-18 माह
2.स्वदेशी गौवंश24-30 माह18-24 माह
3.भैंस24-36 माह24-30 माह
4.बकरी8-12 माह7-10 माह
5.भेड़8-12 माह7-10 माह
6.घोड़ा16-24 माह18 माह
7.कुत्ता8-12 माह8-10 माह

       कृत्रिम गर्भधारण Artificail Insemination

– इसमें वीर्य को कृत्रिम रूप से मादा के जननांगों में छोड़ना, कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है।

– Semen Collection (वीर्य का एकत्रण)

 1. मसाज करके

 2. विद्युत झटके द्वारा

 3. कृत्रिम वेजाइना

– सर्वप्रथम A.I. (कृत्रिम गर्भाधान) एल. स्पेल्नजानी ने 1780ई. में कुतिया में किया था।

– भारत में सबसे पहले कृत्रिम गर्भाधान डॉ. सम्पत कुमार ने वर्ष 1939 में गौवंश में मैसूर पेलेस डेयरी में किया था।

● सीमन का संग्रहण :-

– मसाज विधि द्वारा – इसमें जननांगों को सहलाकर सीमन को एकत्र किया जाता है।

– विद्युत झटके द्वारा – इसमें 10-15 वोल्ट के गुदा में झटके देते हैं।

– कृत्रिम योनि द्वारा – यह नर पशु से वीर्य एकत्र करने की सबसे उपयुक्त विधि है तथा इसका उपयुक्त तापमान 39-40°c (102-106° F) होता है।  

– कृत्रिम गर्भाधान की सबसे उपयुक्त विधि गुदा योनि विधि (Rectovaginal method) है।

 सीमन तनुकारक :-

1. Egg yolk dilutor – सीमन को पोषण प्रदान करता है तथा गर्मी व ठण्डे से सुरक्षा प्रदान करता है।

2. Citrate solt – ये pH को नियमित रखते हैं ज्यादातर पशुओं में सीमन की pH-6.8 अम्लीय होती है जबकि घोड़ा, मुर्गा व सूअर के सीमन का pH- 7-4 (हल्का क्षारीय) होता है।

3. Glycerol – ये सीमन को ठण्डे आघात से बचाता है।

4. Antibiotic Peneciline, Streptomycin

– ये सीमन को जीवाणुओं के संक्रमण से बचाते हैं।

– सीमन को LNजार में भरते हैं व LNजार का तापमान -196˚c होता है।

– हिमशीतित वीर्य के लिए Thawing तापमान 37˚c/30 sec.

– सीमन – इसमें सिट्रीक एसिड, फ्रक्टोज व विटामिन आदि होते हैं।

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