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उर्वरक
• कारखानों में तैयार किए गए रासायनिक पदार्थ जिनमें पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व उपस्थित होते हैं, उर्वरक कहलाते हैं।
• उर्वरक मुख्यत: अकार्बनिक होते हैं।
• कार्बनिक उर्वरक – यूरिया, कैल्सियम सायनैमाइड
• उर्वरकों पौधों को कम समय में पोषक तत्त्व उपलब्ध करवाते हैं।
• इनमें कार्बनिक/जैविक खादों की तुलना में पोषक तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है।
नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटैशियम उर्वरक:-
A. नत्रजन युक्त उर्वरक:-
• भारत में सर्वाधिक N-युक्त उर्वरक प्रयोग किए जाते हैं।
• नत्रजन उर्वरकों को 4 उपवर्गों में बाँटा गया है–
नत्रजन उर्वरक
नाइट्रेट उर्वरक | अमोनिकल उर्वरक | नाइट्रेट एवं अमोनिकल उर्वरक | एमाइड उर्वरक |
उदाहरण:- सोडियम नाइट्रेट, कैल्सियम नाइट्रेट, पोटैशियम नाइट्रेट | उदाहरण:- अमोनियम सल्फेट, अमोनियम क्लोराइड, अमोनियम फॉस्फेट | उदाहरण:- अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट, कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट, अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट | उदाहरण:- यूरिया, कैल्सियम सायनामाइड |
1. नाइट्रेट युक्त उर्वरक:-
• नाइट्रेट युक्त उर्वरक क्षारीय प्रकृति के होते हैं।
• इनकी निक्षालन द्वारा हानि हो जाती है।
• उदाहरण:- सोडियम नाइट्रेट, कैल्सियम नाइट्रेट, पोटैशियम नाइट्रेट
2. अमोनिकल उर्वरक:-
• इस वर्ग में नाइट्रोजन सदैव अमोनिया
(𝑁𝐻4+)
के रूप में पाई जाती है।
• अमोनिकल उर्वरक अम्लीय प्रकृति के होते हैं।
• निक्षालन द्वारा हानि कम होती है।
• उदाहरण:- अमोनियम सल्फेट, अमोनियम क्लोराइड, अमोनियम फॉस्फेट, एनहाइड्राइड अमोनिया
3. नाइट्रेट एवं अमोनिकल युक्त उर्वरक:-
• इस वर्ग में नाइट्रोजन सदैव नाइट्रेट
(𝑁𝑂3−)
व अमोनिया
(𝑁𝐻4+)
दोनों ही रूप में विद्यमान होते हैं।
• निक्षालन द्वारा हानि कम होती है।
• उदाहरण:- कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट (CAN), अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट
4. एमाइड उर्वरक:-
• इस वर्ग में नाइट्रोजन सदैव एमाइड के रूप में पाई जाती है।
• यह कार्बनिक उर्वरक भी कहलाते हैं।
• भारतीय किसानों द्वारा सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाने वाला उर्वरक एमाइड उर्वरक है।
• उदाहरण:- यूरिया [CO(NH2)2], कैल्सियम सायनामाइड (CaCN2)
नाइट्रोजन युक्त उर्वरक:-
1. नाइट्रेट उर्वरक
• कैल्सियम नाइट्रेट – 15.5% (N), 19.5% (Ca), 1.5% (Mg)
• सोडियम नाइट्रेट – 16% (N)
• पोटैशियम नाइट्रेट – 13% (N), 44% (K)
2. अमोनिकल उर्वरक:-
• अमोनियम सल्फेट – 20.6% (N), 23.7% (S)
• अमोनियम क्लोराइड – 26% (N)
• एनहाइड्रस अमोनिया – 82% (N)
3. नाइट्रेट एवं अमोनियम उर्वरक:-
• अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट – 26% (N), 21% (S)
• अमोनियम नाइट्रेट – 33-34% (N)
• कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट (CAN) – 25% (N), 8.1% (Ca), 4.5% (Mg)
4. एमाइड उर्वरक:-
• यूरिया (NH2CONH2) – 46% (N)
• कैल्सियम सायनामाइड 21% (N), 39.1% (Ca)
नाइट्रोजन की क्षति:-
1. लीचिंग :-
• नाइट्रेट
(𝑁𝑂3−)
का जल के साथ घुलकर जड़ क्षेत्र से नीचे चले जाना लीचिंग कहलाता है।
2. डिनाइट्रीफिकेशन:-
• मृदा में सूक्ष्म जीवों की जैविक क्रिया के द्वारा नाइट्रेट का नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) में परिवर्तित होना डिनाइट्रीफिकेशन कहलाता है।

𝑁𝑂3−→𝑁2𝑂
3. वोल्टीलाइजेशन :-
• शुष्क क्षेत्रों में अमोनियम (NH4+) का अमोनिया (NH3) में परिवर्तन होना वोल्टीलाइजेशन कहलाता है।

B. फॉस्फोरस युक्त उर्वरक:-
जल में विलय उर्वरक | साइट्रेट/साइट्रिक अम्ल में विलय उर्वरक | साइट्रेट अम्ल व जल में अविलय उर्वरक |
उदाहरण:- सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), डबल सुपर फॉस्फेट (DSP), ट्रिपल सुपर फॉस्फेट (TSP), मोनो अमोनियम फॉस्फेट (MAP), डाइ अमोनियम फॉस्फेट (DAP), अमोनियम फॉस्फेट | उदाहरण:- डाइ कैल्सियम फॉस्फेट | उदाहरण:- रॉक फॉस्फेट (शैल फॉस्फेट), हड्डी की खाद |
1. जल में विलेय फॉस्फोरस युक्त उर्वरक:-
• ये जल में शीघ्र घुल जाते हैं।
• पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं।
• उदाहरण:- SSP, DSP, TSP, MAP, DAP
2. साइट्रेट विलेय फॉस्फोरस उर्वरक:-
• ये उर्वरक साइट्रिक अम्ल में घुलनशील, जबकि जल में अघुलनशील होते हैं। पौधों को उपलब्धता मध्यम होती है।
• उदाहरण:- डाइ कैल्सियम फॉस्फेट
3. साइट्रिक अम्ल व जल में अविलय उर्वरक:-
• ये उर्वरक पौधों को फॉस्फोरस धीरे-धीरे उपलब्ध कराते हैं क्योंकि ये जल एवं साइट्रिक अम्ल दोनों में अघुलनशील होते हैं।
• ये उर्वरक लंबी अवधि (रोपण फसलें) फसलों के लिए अधिक उपयुक्त है।
• उदाहरण:- रॉक फॉस्फेट, हड्डी की खाद (Bone meal)
फॉस्फोरस युक्त उर्वरक
उर्वरक | फॉस्फोरस | कैल्सियम | अन्य |
सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) | 16% | 19.5% | 12.5% (S) |
डबल सुपर फॉस्फेट (DSP) | 32% | – | – |
ट्रिपल सुपर फॉस्फेट (TSP) | 48% | 14.3% | 4% (S) |
अमोनियम फॉस्फेट | 20% | 16-20% (N) | |
डाइ अमोनियम फॉस्फेट(DAP) | 46% | – | 18% (N) |
डाइकैल्सियम फॉस्फेट | 34-39% | 23% | – |
बेसिक स्लेग | 14-18% | 15-33% | 1.8-9% (Mg) |
रॉक फॉस्फेट | 20-40% | 35-38% | |
हड्डी का चूरा | 20-25% | 23% | 3-4% (N) |
C. पोटैशियम युक्त उर्वरक:-

1. पोटैशियम क्लोराइड (KCl):-
• इसे म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) भी कहते हैं।
• पोटैशियम उर्वरक जिनमें क्लोराइड पाया जाता है।
• क्लोराइड के कारण गन्ना, आलू, तंबाकू आदि फसलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
• स्टॉर्च वाली फसलों में प्रयोग नहीं कर सकते हैं।
• पोटाश उर्वरकों में सबसे सस्ता एवं सबसे लोकप्रिय उर्वरक हैं।
2. पोटैशियम सल्फेट (K2SO4):-
• इसे सल्फेट ऑफ पोटाश (SOP) भी कहते हैं।
• जब फसलों में गुणवत्ता की आवश्यकता होती है तो SOP का प्रयोग किया जाता है।
• इसका प्रयोग मुख्यत: गन्ना, चुकंदर एवं सोलेनेसी कुल की फसलों में किया जाता है।
3. पोटैशियम नाइट्रेट (KNO3):-
• KNO3 का प्रयोग मुख्यत: फल व सब्जियों में किया जाता है।
• KNO3 नाइट्रोजन व पोटाश का अच्छा स्रोत है।
पोटैशियम युक्त उर्वरक:-
• पोटैशियम क्लोराइड – 58-60% (K)
• पोटैशियम नाइट्रेट – 13% (N), 44% (K)
• पोटैशियम सल्फेट – 48-52% (K), 17.5% (S)
सूक्ष्म पोषक तत्त्व
क्र.सं. | सूक्ष्म तत्त्व | यौगिक | पोषक तत्त्व (%) | अन्य (%) |
1. | लोहा | फेरस सल्फेट (FeSO4. 7H2O) पाइराइट (FeS2) | 19 (Fe) 46.5 (Fe) | 18.8 (S) 53.5 (S) |
2. | मैंगनीज | मैंगनीज सल्फेट (MnSO4.4H2O) | 26-28 (Mn) | |
3. | जस्ता | जिंक सल्फेट (ZnSO4.H2O) | 33 (Zn) | 17.8 (S) |
4. | ताँबा | कॉपर सल्फेट (CuSO4.5H2O) | 25 (Cu) | |
5. | बोरॉन | बोरेक्स सोल्यूबोर | 10.60 (B) 19-21 (B) | |
6. | मोलिब्डेनम | सोडियम मोलिब्डेट अमोनियम मोलिब्डेट | 39 (Mo) 54 (Mo) |
मृदा सुधारक:-
• जिप्सम – 18.6-23.5% (S), 29.2% (Ca)
• डोलोमाइट – 14-31.5% (Ca), 4-10.6% (Mg)
उर्वरकों का महत्त्व:-
• कार्बनिक खादों की तुलना में अधिक मात्रा में पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं।
• पौधों को शीघ्र (लगभग एक सप्ताह में) पोषक तत्त्व उपलब्ध करवाते हैं।
• उर्वरकों को खड़ी फसल में भी प्रयोग किया जा सकता है।
• जीवांश खाद की तुलना में कम मात्रा का प्रयोग करना पड़ता है।
उर्वरकों से हानि:-
• लगातार उर्वरकों के प्रयोग से भूमि के जैविक, भौतिक व रासायनिक गुणों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
• मृदा सूक्ष्म जीवों, जीवाणुओं पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलता है।
• अधिक मात्रा में प्रयोग करने से पौधे व भूमि की दशा खराब हो जाती है।
• यह खर्चीली विधि है।
नोट:- उर्वरकों को खेत में डालने के 2 से 4 दिन पहले या बाद में सिंचाई करना आवश्यक है। इससे उर्वरकों की उपयोग दक्षता बढ़ती है।
उर्वरकों का वर्गीकरण:-

A. प्राथमिक पोषक तत्त्वों की संख्या के आधार पर:-
1. एकल या सरल उर्वरक (Straight fertilizer):-
• वे उर्वरक जिनमें प्राथमिक पोषक तत्त्व (N, P, K) में से कोई एक पोषक तत्त्व उपस्थित होता है, एकल या सरल उर्वरक कहलाते हैं।
• उदाहरण:- यूरिया – (46%N), अमोनियम क्लोराइड – (26%N), सिंगल सुपर फॉस्फेट – (16%P), म्यूरेट ऑफ पोटाश – (60%K)
2. संयुक्त या जटिल उर्वरक (Complex fertilizer):-
• प्राथमिक पोषक तत्त्वों की संख्या जब एक से अधिक हो वे उर्वरक संयुक्त या जटिल उर्वरक कहलाता है। इन्हें बहुतत्त्वीय उर्वरक (Multiple Nutrient fertilizer) भी कहते हैं।
• इन्हें दानेदार रूप (Granular form) में बनाया जाता है।
• ये 2 प्रकार के होते हैं-
(i) अपूर्ण जटिल उर्वरक:- ऐसे जटिल उर्वरक जिनमें केवल दो प्राथमिक पोषक तत्त्व पाए जाते हैं, अपूर्ण जटिल उर्वरक कहलाते हैं।
जैसे – डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) – N(16%), P(48%)
पोटैशियम नाइट्रेट (KNO3) – K(44%), N(13%)
(ii) पूर्ण जटिल उर्वरक:- ऐसे जटिल उर्वरक जिनमें तीनों प्राथमिक पोषक तत्त्व उपस्थित होते हैं पूर्ण जटिल उर्वरक कहलाते हैं।
जैसे – अमोनियम पोटैशियम फॉस्फेट
नाइट्रोफॉस्फेट पोटाश युक्त उर्वरक
श्रेणी – I व II आदि।
3. मिश्रित उर्वरक (Mixed fertilizer):-
• दो या दो से अधिक उर्वरकों (प्राथमिक पोषक तत्त्व युक्त) के भौतिक मिश्रण को मिश्रित उर्वरक कहते हैं।
• मिश्रित उर्वरकों के प्रयोग से श्रम की लागत कम हो जाती है।
B. प्राथमिक पोषक तत्त्वों के सांद्रण (मात्रा) के आधार पर:-
1. निम्न विश्लेषक उर्वरक (Low analysis fertilizer):-
• जिन उर्वरकों में प्राथमिक पोषक तत्त्वों की मात्रा 25% से कम होती है निम्न विश्लेषक उर्वरक कहलाते हैं।
जैसे:- सिंगल सुपर फॉस्फेट – P(16%)
सोडियम नाइट्रेट – N(16%)
2. उच्च विश्लेषक उर्वरक (High analysis fertilizer):-
• जिन उर्वरकों में प्राथमिक पोषक तत्त्वों की कुल मात्रा 25% से अधिक होती है उच्च विश्लेषक उर्वरक कहलाते हैं।
जैसे – यूरिया, डाई अमोनियम फॉस्फेट, पोटैशियम क्लोराइड, अमोनियम फॉस्फेट आदि।
C. उर्वरक की भौतिक अवस्था के आधार पर:-
1. ठोस उर्वरक (Solid fertilizer):-
• भारतीय किसान मुख्यत: ठोस उर्वरकों का प्रयोग करता है।
• अधिकांश उर्वरकों का निर्माण ठोस अवस्था में होता है।
• मुख्यत: दानेदार (Granular) अवस्था का प्रयोग किया जाता है।
• ठोस उर्वरक निम्न प्रकार के होते हैं-
विभिन्न उर्वरकों की अवस्था
क्र.सं. | अवस्था | उर्वरक |
1. | दानेदार (Granular) | यूरिया, डाई अमोनियम फॉस्फेट |
2. | क्रिस्टल (Crystal) | अमोनियम सल्फेट |
3. | धूल/चूर्ण (Dust) | जिप्सम, सिंगल सुपर फॉस्फेट |
4. | ब्रिक्रेट्स (Briquttes) | यूरिया ब्रिकेट्स |
5. | उच्च कणाकार (Super granules) | यूरिया सुपर ग्रेन्युलस |
6. | कणाकार | हॉलैंड ग्रेन्युल |
2. तरल/द्रव उर्वरक (Liquid fertilizer):-
• भारतीय किसान तरल उर्वरकों का प्रयोग कम करते हैं लेकिन धीरे-धीरे द्रव उर्वरकों की स्वीकार्यता किसानों में बढ़ रही है।
• तरल उर्वरक सिंचाई के साथ या पर्णीय छिड़काव के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
• तरल उर्वरक 2 प्रकार के होते हैं-
(i) स्पष्ट द्रव उर्वरक (Clear liquid fertilizer):- जब N, P एवं K पानी पूर्ण रूप से घुल जाते हैं स्पष्ट द्रव उर्वरक कहलाते हैं।
(ii) निलंबन द्रव उर्वरक (Suspension liquid fertilizer):- जब उर्वरक सामग्री में कुछ भाग महीन कणों के रूप में रहता है इसे निलंबन द्रव उर्वरक कहते हैं।
D. पोषक तत्त्वों की उपस्थिति के आधार पर:-
नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटैशियम उर्वरक:-
• नत्रजन युक्त उर्वरक:-
1. नाइट्रेट युक्त उर्वरक
2. अमोनिकल उर्वरक
3. नाइट्रेट एवं अमोनिकल युक्त उर्वरक
4. एमाइड उर्वरक
• फॉस्फोरस युक्त उर्वरक
1. जल में विलय फॉस्फोरस युक्त उर्वरक
2. साइट्रेट विलय फॉस्फोरस उर्वरक
3. साइट्रिक अम्ल व जल में अविलय उर्वरक
• पोटैशियम युक्त उर्वरक:-
1. पोटैशियम क्लोराइड (KCl)
2. पोटैशियम सल्फेट (K2SO4)
3. पोटैशियम नाइट्रेट (KNO3)
E. मृदा पर प्रभाव के आधार पर:-
• उर्वरकों के उपयोग से मृदा की अम्लीयता व क्षारीयता प्रभावित होती है।
1. अम्लीय उर्वरक (Acidic fertilizer):-
• जो मृदा में अम्लीय अवशिष्ट प्रभाव (Acidic residual effect) छोड़ते है अम्लीय उर्वरक कहलाते है। इनके अम्लीय प्रभाव को उदासीन करने के लिए कैल्सियम कार्बोनेट/चूना का प्रयोग किया जाता है प्रयोग की गई चूने की मात्रा को तुल्यांकी या समकक्ष अम्लीयता कहते हैं।
क्र.सं. | उर्वरक | तुल्यांकी अम्लीयता (kg/100kg Acid fertilizer) |
1. | एनहाइड्रस अमोनिया | 148 |
2. | अमोनियम क्लोराइड | 128 |
3. | अमोनियम सल्फेट | 110 |
4. | अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट | 93 |
5. | अमोनियम फॉस्फेट | 86 |
6. | यूरिया | 80 |
2. क्षारीय उर्वरक (Alkaline fertilizers):-
• ये मृदा पर क्षारीय प्रभाव छोड़ते हैं।
क्र.सं. | उर्वरक | तुल्यांकी क्षारीयता (kg/100kg Salt fertilizer) |
1. | कैल्सियम सायनामाइड | 63 |
2. | सोडियम नाइट्रेट | 29 |
3. | डाई कैल्सियम फॉस्फेट | 25 |
4. | कैल्सियम नाइट्रेट | 21 |
उर्वरक प्रयोग की विधियाँ:-

ठोस रूप में:-
1. छिटकवाँ विधि (Broadcasting method):-
• यह सर्वाधिक प्रचलित विधि है।
• श्रम व समय की बचत होती है।
• पौधों को बराबर मात्रा में पोषक तत्त्व प्रदान नहीं होते हैं व पोषक तत्त्वों की हानि भी अधिक होती है अत: यह विधि लाभदायक नहीं है।
• इसके 2 प्रकार हैं-
(i) बेसल ड्रेसिंग:- बुआई के समय खेत में उर्वरक देना बेसल ड्रेसिंग कहलाता है।
(ii) टॉप ड्रेसिंग:- खड़ी फसल में उर्वरक देना टॉप ड्रेसिंग कहलाता है।
2. संस्थापन विधि (Placement method):-
• उर्वरक को मृदा में किसी निश्चित गहराई पर देना।
• कम गतिशील उर्वरकों (P, K) का प्रयोग इस विधि द्वारा किया जाना चाहिए।
• संस्थापन विधि के निम्न प्रकार हैं-
(i) हल संस्थापन विधि (plough sole placement):- उर्वरक को कुड के आधार भाग में, जहाँ मृदा में उचित नमी हो, देना चाहिए। इस विधि में उर्वरकों के प्रयोग के बाद खेत में जुताई नहीं की जाती है।
(ii) गहरा संस्थापन (Deep placement):- यह विधि धान में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक देने के लिए जापान में प्रचलित है। अमोनिकल उर्वरकों को अनॉक्सीकृत जॉन (Reduce zone) में दिए जाते हैं।
(iii) अधोमृदा संस्थापन:- पोटाश व फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों को मशीनों की सहायता से अधोमृदा में देते हैं। यह विधि आर्द्र व उपआर्द्र क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहाँ की मृदा अम्लीय होती है।
3. स्थानिक संस्थापन विधि (Localized placement method):-
• इस विधि में उर्वरकों को पौधों की जड़ों के समीप ही प्रयोग करते हैं।
• इस विधि में उर्वरक कम मात्रा में ही प्रयोग किए जाते हैं।
• स्थानिक विधि के निम्न प्रकार है-
(i) डिबलर/ड्रिल्स विधि द्वारा
(ii) बैंड प्लेसमेंट (Band placement):- खड़ी फसल की पट्टी में उर्वरक संस्थापन करना। बैंड प्लेसमेंट के 2 प्रकार है- Hill placement, Row placement
(iii) रिंग संस्थापन (Ring placement):- फलदार वृक्षों के चारों ओर रिंग में उर्वरक देना रिंग संस्थापन कहलाता है।
(iv) गोली संस्थापन (Pellet placement):- उर्वरक को गोलिका के रूप में देना। मिट्टी 10 से 12 भाग, उर्वरक एक भाग मिलाकर गोलियाँ बनाकर पंक्तियों में ढाई से पाँच सेंटीमीटर पर इस विधि द्वारा प्रयोग करें।
द्रव रूप में:-
1. प्रारंभिक उर्वरक घोल (Starter solution):-
• इस विधि से पौधों की जड़ें आसानी से पोषक तत्त्व ग्रहण कर सकती है व पौधे शीघ्र ही स्थापित हो जाते हैं इसमें N, P, K का अनुपात 1:2:1 या 1:1:2 रखते हैं।
• यह सब्जियों में मुख्य प्रयोग किया जाता है।
2. फर्टीगेशन (Fertigation):-,
• सिंचाई जल के साथ उर्वरकों का प्रयोग फुहार एवं बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली द्वारा किया जाता है।
• उर्वरक घोल के एक समान वितरण के लिए वेंचुरी का उपयोग किया जाता है।
• उबड़-खाबड़ भूमि में इस विधि का प्रयोग नहीं करते हैं।
3. पर्णीय छिड़काव (Foliar application):-
• उर्वरकों का घोल बनाकर स्प्रेयर द्वारा पौधों की पत्तियों पर छिड़काव करना पर्णीय छिड़काव कहलाता है।
• पर्णीय छिड़काव में सामान्यत: मीडिया की सांद्रता 2 से 6 प्रतिशत रखते हैं।
• यूरिया के पर्णीय छिड़काव के लिए 2% का घोल तैयार किया जाता है।
• पर्णीय छिड़काव के लिए यूरिया के घोल में बाइयुरेट की मात्रा 0.25% से कम होनी चाहिए।
4. बीजों पर सान्द्र घोल की परत चढ़ाना:-
• सूक्ष्म तत्त्वों के गाढ़े घोल की परत बीजों पर चढ़ा देते हैं; जैसे – ताँबा, लोहा, जस्ता आदि।
5. उर्वरक घोल को प्रत्यक्ष मृदा में डालना:-
• विदेशों में यह विधि काफी प्रचलित है।
• अमोनिया व फॉस्फोरस को इस विधि द्वारा दिया जाता है।
नोट:- स्पॉट ड्रेसिंग:- जब पौधों के बीच दूरी अधिक हो वहाँ उर्वरक को पौधों के चारो ओर या एक ओर डाल दिया जाता है जैसे- मक्का आदि।
उर्वरक प्रयोग की विधि का चयन:-
• ऐसी विधि का चयन करें जिसमें उर्वरकों का कम से कम ह्रास हो और इनके प्रयोग से उर्वरकों की उपयोग दक्षता (Fertilizer use efficiency) बढ़ाई जा सके।
• विधि का चयन मृदा की प्रकृति, फसल की प्रकृति और उर्वर की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए करें।
• उर्वरक की भौतिक अवस्था मृदा में घुलनशीलता व गतिशीलता आदि उर्वरक प्रयोग की उपयुक्त विधि के चयन को प्रभावित करते हैं।
• मृदा में नमी की मात्रा, मौसम की दशा, फसल की किस्म व आयु, उर्वर की किस्म व आयु, पोषक तत्त्वों की उपलब्धता व इकाई मूल्य, उर्वरक के प्रयोग में काम आने वाले यंत्र आदि की उपलब्धता व श्रम की उपलब्धता आदि उर्वरक प्रयोग को प्रभावित करते हैं।
• इनके अतिरिक्त मृदा गठन, pH मान, धनायन विनिमय क्षमता आदि उर्वरक विधि के चयन को प्रभावित करते हैं।
उर्वरकी की श्रेणी/ग्रेड (Fertilizer Grade):-
• किसी उर्वरक में प्राथमिक पोषक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा उर्वरक श्रेणी द्वारा बताई जाती है।
• श्रेणी शब्द जटिल व मिश्रित दोनों प्रकार के उर्वरकों के लिए प्रयोग किया जाता है।
उर्वरक अनुपात (Fertilizer ratio):-
• यह उर्वरक में उपस्थित नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का पारस्परिक अनुपात होता है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:-
• बागों में उर्वरकों के प्रतिस्थापन की विधि Hill placement है।
• निर्जल अमोनिया को मृदा में इंजेक्शन द्वारा गहराई में दिया जाता है।
• यूरिया एवं कैल्सियम सायनामाइड उर्वरक कार्बनिक प्रकृति के होते हैं।
• आर्द्रता ग्राही उर्वरक:- अमोनियम नाइट्रेट > यूरिया > अमोनियम सल्फेट
• आर्द्रता ग्राही उर्वरकों को मिश्रित करके भंडारित नहीं करना चाहिए।
• अमोनियम युक्त उर्वरकों को चूना युक्त उर्वरकों के साथ नहीं मिलाना चाहिए।
• यूरिया में बाइयुरेट की मात्रा 1.5% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
• यूरिया में अधिकतम नमी की मात्रा 1%होती है।
• अमोनियम सल्फेट धान के लिए सर्वोत्तम उर्वरक है।
• CAN उदासीन उर्वरक है, इसे ‘किसान खाद’ भी कहते हैं।
• निर्जल अमोनिया में सर्वाधिक नाइट्रोजन पाई जाती है।
• फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों में फॉस्फोरस P2O5 अवस्था में उपस्थित होते हैं।
• अधिक अम्लीय मृदाओं में रॉक फॉस्फेट का प्रयोग किया जाता है। (मृदा सुधारक के रूप में)
• पोटाश युक्त उर्वरकों में पोटाश K2O की अवस्था में उपस्थित होता है।
• पोटाश युक्त उर्वरकों में KCl सबसे सस्ता एवं लोकप्रिय उर्वरक है।
• भारत में पोटाश युक्त उर्वरकों का उत्पादन नहीं होता है अत: इनका आयात किया जाता है।
• भारत में सर्वाधिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
• नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों में सर्वाधिक एमाइड युक्त उर्वरक काम में लिए जाते हैं।
रूपातंरण कारक:-
P2O5% = P × 2.29
P% = P2O5 × 0.436
K2O% = K × 1.20
K% = K2O × 0.88
Organic matter = Organic carbon × 1.724
Organic carbon = Organic matter× 0.58
• न्यूनता का सिद्धांत (The law of minimum):- J.V लीबिंग ने 1840 में दिया।
• L.C.C. (लीफ कलर चार्ट)– खड़ी फसल में नाइट्रोजन उर्वरक की मात्रा व प्रयोग करने का समय निर्धारण करने में किया जाता है। इसका सर्वप्रथम प्रयोग धान की फसल में किया गया।
• खाद्यानों के लिए NPK का अनुपात 4:2:1 उपयुक्त रहता है।
• दलहनी फसलों के लिए NPK का अनुपात 1:2:1 उपयुक्त रहता है।
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