पशु चिकित्सा में उपयोगी औषधियाँ व रसायन (Medicines and Chemicals Useful in Veterinary Medicine)

¨ सामान्य दवाइयाँ व उपयोग :-

 शब्दावली (Terminology) :-

क्र.सं. शब्दावलीपरिभाषाउदाहरण
1.Antiseptic (जीवाणुरोधक)इस प्रकार की औषधियाँ जीवाणु को रोकती है परन्तु जीवाणु को पूर्णतया नष्ट नहीं करती हैं।बोरिक एसिड, डिटॉल, लाल दवा (Kmno4),आयोडीन
2.Disinfantant(प्रतिसंक्रामक)इस प्रकार की औषधियाँ रोगाणुओं को पूर्णतया नष्ट कर देती है तथा इस प्रकार की औषधियों का उपयोग शरीर के बाहरी अंगों पर किया जाता हैं।फिनायल, चूना, लाइसोल, कार्बोलिक अम्ल (फिनोल)
3.Antibiotic(प्रतिजैविक)इस प्रकार की औषधियाँ रोगाणुओं की वृद्धि को रोकते हैं तथा उनको नष्ट भी करते हैं।प्रतिजैविक का उपयोग शरीर के भीतर किया जाता है।पेनेसिलिन, स्ट्रेप्टोमाइसीन,क्लोरम फेनिकोल
4.Purgative(रेचक)इस प्रकार की औषधियों का उपयोग कब्ज (Constipation) में मल को बाहर निकालने के लिए किया जाता है।रेचक को तीन भागों में बाँटा गया है–(i) Laxative (विचेरक) – इस प्रकार की औषधियों से सामान्य कब्ज या हल्की दस्त होती है।(ii) मृदुरेचक-  इस प्रकार की औषधियाँ पशु को देने पर बिना एंठन के तेजी से कब्ज को तोड़ती हैं व इस प्रकार की औषधियों से पशुओं में अधिक मात्रा में दस्त लगती है।(iii) तीव्ररेचक – कई बार पशुओं में सामान्य रेचक व मृदुरेचक औषधियाँ से कब्ज नहीं टूटती है तो तीव्ररेचक औषधियाँ दी जाती है। जिनसे पशु में तेज दस्त लगती है।इनसे कई बार पशुओं में डिहाइड्रेशन हो जाता है।     ईसबगोल मैग्नीशियम सल्फेट (MgSO4),सोडियम सल्फेट (Na2SO4),अलसी का तेल, अरण्डी का तेल Cratm का तेल,बेरियम क्लोराइड 
5.Astringents(स्तम्भक)इस प्रकार की औषधियाँ रक्त या आंतरिक रक्त स्राव व डायरिया में दी जाती है। ये औषधियाँ रक्त स्राव को रोकती है।इस प्रकार की औषधियाँ शरीर के अंदर रक्त वाहिनियों के संकुचन को कम करके रक्त स्राव को रोकती है।टिंचर आयोडीन, फिटकरी, (बाह्य स्तम्भक के रूप में)कत्था, खड़िया, अफीम, (आंतरिक स्तम्भक के रूप में)
6.Expectorant(कफोत्सक)इस प्रकार की औषधियाँ फेफडे, श्वासनली (ट्रेकिया) व नासागुहा में जमे हुए श्लेष्मा को बाहर निकालती हैं।अमोनिया, वाष्पशील तेल
7.Anti-expectorants(प्रतिकफोत्सक)इस प्रकार की औषधियाँ श्वासनलिका व नासागुहा में बहने वाले श्लेषमा व उसके स्त्रवण को रोकने का कार्य करती है।अफीम, बेलाडोना
8.Antipuratic(एण्टीपइरेटिक)इस प्रकार की औषधियाँ पशु के शरीर का ताप कम करती है।कुनेन, पेरासिटामोल, एस्प्रिन, सेलिसेलिक अम्ल
9.Antidots(विषहन)इस प्रकार की औषधियाँ विष के प्रभाव को कम करती है।सायनाइड के जहर को कम करने के लिए लोह लवण का उपयोग किया जाता है।
10.Anesthesia(निश्चेतक)इस प्रकार की औषधियाँ पशु के शरीर को बेहोश करने के लिए काम आती है।Note- क्लोरोफॉर्म से एक जहरीला पदार्थ फॉस्जीन बनता है जिससे कई बार पशु की मौत हो जाती है। अत: क्लोरोफॉर्म का प्रयोग चिकित्सक सलाह से करना चाहिए।क्लोरोफॉर्म, इथर, नाइट्रस ऑक्साइड
11.Antizymotics(एण्टीजाइमोटिकस)रूमिनल किण्वन को कम करके गैस उत्पादन को कम करने वाली औषधियाँ है।तारपीन का तेल, बोरिक अम्ल, फार्मेलिन
12.Carminatives(गैस हर)इस प्रकार की औषधियाँ आमाशय में बनने वाली गैस को बाहर निकालती है या अम्ल के स्त्रवण को कम करती है।हींग, काली मिर्च, इलायची, अदरक
13.Analgesic(पीड़ाहरी)इस प्रकार की औषधियाँ तंत्रिका तंत्र का मंद करके दर्द को कम करती है।एस्प्रिन, लिनीमेंट,कपूर, अमोनिया
14.Norcotic(निद्राकारी)इस प्रकार की औषधियाँ पशु को देने पर तंत्रिका तंत्र शिथिल हो जाता है व पशु को गहरी नींद आ जाती है।क्लोरल हाइड्रेट, भांग, इथर, नाइट्रस ऑक्साइड
15.Sedative(संदमक)इस प्रकार की औषधियाँ में एनाल्जेसिक व नारकोटिक्स दोनों के गुण पाए जाते हैं। यह औषधियाँ शरीर में अतिउत्तेजना को शांत करते है। 
16.Anti Helminthes(कृमिहर)इस प्रकार की औषधियाँ पशु के शरीर में उपस्थित परजीवी को नष्ट करती है तथा वे दवाईयाँ जो बाहर त्वचा पर परजीवी को नष्ट करती है, परजीवीहन (Parasiticids) कहलाते है।कॉपर सल्फेट (CuSO4)
17.Emetics(वमनकारी)इस प्रकार की औषधियाँ उल्टी करवाती है।नीलाथोथा, नमक, कॉपर सल्फेट, जिंक सल्फेट
18.Anti-emetics (प्रति वमनकारी)इस प्रकार की औषधियाँ उल्टी को रोकती है।Metoclopramide, Domperidone

1. Antiseptic (जीवाणुरोधक या जीवाणु प्रतिरोधी):-

यह दवाइयाँ जीवाणुओं को रोकती है परंतु उन्हें पूर्णतया: नष्ट नहीं करती है। जैसे – बोरिक एसिड, डिटॉल, लाल दवा, आयोडीन।

– एन्टीसेप्टिक शरीर के बाहर आयोडीन किए जाते हैं भीतर नहीं।

2. Disinfectant (प्रतिसंक्रामक, रोगाणुनाशक व जीवाणुनाशक) :-

यह दवाइयाँ रोगाणुओं को पूर्णतया नष्ट कर देती है व इनका उपयोग भी शरीर के बाहर किया जाता है।

 जैसे – फिनाईल, चूना, लाइसोल, कार्बोलिक अम्ल (फिनोल)

3. Antibiotic (प्रतिजैविक) :-

यह दवाइयाँ रोगाणुओं को वृद्धि से रोकते भी है व उन्हें नष्ट भी करते हैं।

 जैसे – पेनेसिलीन, स्ट्रेप्टोमाइसीन, क्लोरम फेनिकोल।

– प्रतिजैविक का उपयोग शरीर के भीतर किया जाता है।

4. रेचक (Purgative) :-

जब पशु को कब्ज (Constipation) हो जाता है तो रेचक या विरेचक दवाइयाँ दी जाती है जो मल को बाहर निकालती है। कई बार इनसे दस्त/डायरिया भी हो जाता है।

– रेचक को तीन वर्गों में बाँटा गया है

i. हल्के रेचक/विरेचक (Laxative) :- इन दवाइयों से सामान्य कब्ज या हल्की दस्त होती है।

 जैसे – ईसबगोल, हरा चारा, शिरा आदि।

ii. मृदुरेचक (Simple Purgative) :- यह दवाइयाँ बिना एंठन के तेजी से कब्ज को तोड़ती हैं व इनसे अधिक मात्रा में दस्त हो जाती है।

 जैसे – मैग्नीशियम सल्फेट (MgSO4), सोडियम सल्फेट (Na2SO4), अलसी का तेल, अरण्डी का तेल।

iii.  तीव्ररेचक (Drastic Purgatives)– कई बार सामान्य रेचक व मृदुरेचक से कब्ज नहीं टूटती है तो तीव्र रेचक दिए जाते हैं जिनसे तेज दस्त हो जाती है। इनसे कई बार पशुओं में डिहाइड्रेशन हो जाता है।

 जैसे – क्रोटन का तेल, बेरियम क्लोराइड।

5. स्तम्भक (Astringents/एस्ट्रींजेन्टस) :-

– इस प्रकार की दवाइयाँ रक्त या आंतरिक रक्तस्राव या डायरिया में दी जाती है। यह द्रव के बहाव को रोकती है। जैसे – टिंचर आयोडीन व फिटकरी बाह्य स्तम्भक के रूप में कार्य करती है तथा कत्था, खड़िया, अफीम यह आंतरिक स्तम्भक हैं जो शरीर के अंदर रक्त या द्रव को रक्त वाहिनिकाओं के संकुचन को कम करके इनके बहाव को रोकती है।

6. कफोत्सक (Expectorants) :- एक्सपेक्टोरेन्टस

– यह दवाइयाँ फेफड़े, श्वासनली (ट्रेकिया) व नासागुहा में जमे हुए श्लेष्मा को बाहर निकालती है।

– यह श्लेष्मा को पतला करती है जिससे यह आसानी से बह जाता है।

– जैसे – अमोनिया, वाष्पशील तेल (उड़ने वाले तेल) यह बंद नाक को खोल देते हैं।

7. कफरोधी/प्रतिकफोत्सक (Anti-expectorants) :-

– यह दवाइयाँ श्वासनलिका व नासागुहा में बहने वाले श्लेष्मा व इनके स्त्रवण को रोकने का कार्य करते हैं।

– जैसे – अफीम, बेलाडोना

– मर्दानी तेल (Massatiha oil) – मांसपेशियों में रक्तस्रावण को बढ़ाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

– जैसे – सरसों का तेल, तिल का तेल।

8. एण्टीपाइरेटिक, ज्वर रोधी (Antipuratic) :-

– यह दवाइयाँ ताप को कम करती हैं, जैसे – कुनेन, पेरासिटामोल, एस्प्रिन, सेलिसेलिक अम्ल

– A.C. से (A- एस्प्रिन, C – कुनेन, से – सेलिसेलिक अम्ल)

9. एण्टीडॉटस (Antidots)/विषहन :-

– यह दवाइयाँ विष के प्रभाव को कम करती है।

– जैसे – सायनाइड के जहर को कम करने के लिए लोह लवण (Fe-salt) का उपयोग किया जाता है।

10. एनेस्थीसिया (Anesthesia) निश्चेतक :-

– इस प्रकार की दवाइयाँ शरीर को बेहोश करने में काम आती हैं।

– जैसे – क्लोरोफॉर्म, ईथर, नाइट्रस ऑक्साइड

– नोट – क्लोरोफॉर्म से एक जहरीला पदार्थ फॉस्जीन बनता है जिससे कई बार पशु की मौत हो जाती है। अत: क्लोरोफॉर्म का प्रयोग चिकित्सक सलाह से करना चाहिए।

11. एण्टीजाइमोटिकस (Antizymotics) :-

– जुगाली करने वाले जानवर (रूमिनेंटस) के पेट में एक बड़ी सी टंकीनुमा अंग होता है जिसे रूमन कहा जाता है। इसमें किण्वन प्रक्रिया होती है जिससे पेट दर्द या आफरा को रोकने के लिए दी जाती है।

– जैसे – बोरिक अम्ल, फार्मेलिन

12. गैस हर, वातसरी (Carminatives) – कॉर्मिनेटिवस

– यह दवाइयाँ आमाशय में बनने वाली अधिक गैस को हटाती है या अम्ल के स्रवण को कम करती है। जैसे – सौंफ, हींग, ईथर, जीरा आदि।

13. पीड़ाहारी (Analgesics) :-

– यह दवाइयाँ तंत्रिका तंत्र को शांत करके दर्द को कम करती है। इन्हें शूलशामक (Anodynes) भी कहा जाता है।

– इसमें एस्प्रिन, लिनीमेंट, कपूर, अमोनिया को सम्मिलित किया जाता है।

14. निद्राकारी, संवेदक मंदक (Narcotics) :-

– इन दवाइयों से तंत्रिका तंत्र शिथिल हो जाता है व गहरी नींद आती है।

– इसमें परिसंचरण तंत्र व श्वसन तंत्र भी उदासीन हो जाता है।

– जैसे – क्लोरल हाइड्रेट, भांग, इथर, N2O

15. संदमक (Sedative) :-

– यह वे दवाइयाँ होती हैं जिनमें शूलशामक व निद्राकारी दोनों गुण पाए जाते हैं। यह पशु शरीर की अति उत्तेजना को शांत करते हैं।

– इससे तंत्रिका तंत्र अत्यंत शिथिल हो जाता है जिससे दर्द का अनुभव नहीं होता है व नींद आती है।

16. कृमिहर (एण्टीहेल्मन्थीज) :-

– यह दवाइयाँ शरीर में उपस्थित परजीवी को नष्ट करती है तथा वे दवाइयाँ जो बाहर त्वचा पर परजीवी को नष्ट करती हैं, परजीवीहन (Parasiticids) कहलाते हैं।

– इसमें कॉपर सल्फेट दिया जाता है।

17. वमनकारी (Emetics):-

– यह दवाइयाँ वमन/उल्टिया करवाती हैं।

 जैसे – नीला थोथा, नमक, CuSO4, ZnSO4, फीटकरी

18. उत्तेजक (Stimulant) – वे औषधियाँ या पदार्थ जो शरीर में उत्तेजना का अनुभव करवाते हैं। जैसे – कैफीन, एल्कोहल, कपूर आदि।

19. दाहक (Caustics) – इस प्रकार की औषधियाँ उत्तकों को जलाकर नष्ट कर देती है। जैसे – कॉपर सल्फेट, लाल दवा, ZnSOआदि  

¨ चिकित्सा में उपयोगी दवाइयाँ व रसायन :-

1. प्रतिसंक्रामक (Antiseptic) :-

i. फिनाइल :- यह हल्के भूरे रंग के दानेयुक्त पाउडर होते हैं, जल में मिलाते ही यह सफेद रंग का हो जाता है।

– यह रोगाणुनाशी, गंधहारक के रूप में उपयोग किया जाता है।

– इसमें 1% घोल FMD रोग के पशुओं के खुर धोने में किया जाता है।

– पशुओं के शरीर पर जूँ या बाह्यपरजीवी होने पर फिनाइल का 1-2% घोल बनाकर उपयोग किया जाता है।

– फिनाइल को शरीर के अंदर उपयोग नहीं किया जाता है।

ii. फिनोल (कार्बोलिक अम्ल) :-

– इसे कार्बोलिक अम्ल भी कहा जाता है।

– इसमें OH समूह (एल्कोहल) होने से Antiseptic प्रकृति फिनाइल से अधिक होती है।

– यह सफेद रंग का पदार्थ होता है जिसे जल में घोलकर उपयोग किया जाता है।

– यह पानी, ईथर, एल्कोहल व ग्लिसरीन में घुलनशील है।

– यह शरीर के बाहर जीवाणुनाशक, जीवाणुरोधक के रूप में तथा आंतरिक प्रभाव में यह शामक और निद्राकारी व पेट के कीड़े मारने में उपयोगी होता है।

– इसका 1-2% घोल परजीवी, जूँ, चिचड़े (टिक्स) को मारने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

iii. P.P. Solution (Potassium Permanganate) (लाल दवा) (KMnO4) :-

– यह एक प्रभावी Antiseptc होता है।

– यह बैंगनी रंग के क्रिस्टल होते हैं।

– यह स्वाद में मीठे होते हैं।

– इसका जलीय विलयन लाल हो जाने से इसको लाल दवा भी कहते हैं।

– यह जीवाणुनाशक, जीवाणुरोधक, गंधहारक, कृमिनाशक, कीटनाशक प्रकृति का होता है।

– इसका 2% घोल साँप के काटे गए स्थान पर लगाने से तुरंत आराम आता है।

– यह जहर (विष)का ऑक्सीकरण कर देता है।

– P.P. Solution का 1% घोल पशुशाला की सफाई, घाव को धोने के लिए व आंतरिक परजीवी को नष्ट करने के लिए उपयोग किया जाता है।

iv. लाइसोल :-

– यह गहरे भूरे रंग का द्रव होता है। जिसका जलीय विलयन हल्का भूरा या सफेद हो जाता है।

– इनकी एक विशेष गंध होती है।

– गर्भाशय को धोने के लिए इसका 1-2% घोल उपयोग किया जाता है।

– पशु चिकित्सा या सर्जरी में उपयोगी औजार/उपकरण को रोगाणुरहित करने के लिए इसका 1-2% विलयन काम लिया जाता है।

2. विरेचक औषधियाँ :- यह औषधियाँ पशु में कब्ज को तोड़ने या दस्त को प्रारम्भ करने में सहायक है।

i. MgSO4 (मैग्नीशियम सल्फेट/मेगसल्फा) :-

– यह पाउडर के रूप में उपलब्ध रहता है।

– इसका जलीय विलयन या सीधा पाउडर के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

– इसको जीभ पर रखते ही पशु को ठण्डेपन का अहसास होता है।

– इसका 250g-400g पाउडर पशु का पेट साफ करने के लिए दिया जाता है।

– मैग्नेशियम सल्फेट के साथ समान मात्रा में नमक मिलाकर देने से पशु में दस्त प्रारम्भ हो जाती है जिससे उसकी आंत्र की सफाई हो जाती है।

– इसका उपयोग ज्वररोधी (एण्टीपाइरेटिक) के रूप में भी किया जाता है जिसमें 125g तक MgSO4 देना चाहिए।

ii. अरण्डी तेल :-

– इसे केस्टर का तेल भी कहा जाता है।

– यह प्रबल विरेचक की भांति कार्य करता है व इसकी प्रकृति प्रोटेक्टिव (सुरक्षित) होती है।

– यह पशु के पेट साफ करने के लिए 600ml तक दिया जाता है तथा छोटे पशुओं में 50-125 ml तक दिया जाता है।

– MgSO4 की तुलना में अरण्डी का तेल सुरक्षित होता है व छोटे बछड़ों में कब्ज की समस्या होने पर 10ml अरण्डी का तेल दिन में 2-3 बार देने से बछड़े का पेट साफ हो जाता है।

3. उत्तेजक :-

i. एल्कोहल :-

– यह रंगहीन, विशेष गंध वाला द्रव होता है।

– इसकी प्रकृति वाष्पशील होती है। इसका आंतरिक प्रभाव उत्तेजक व बाह्य प्रभाव रोगाणुनाशक होता है।

– पशुओं में निमोनिया, वायरल बुखार (इन्फ्लूएंजा) के प्रभाव को समाप्त करने के लिए 125-250 ml तक एल्कोहल दिया जाता है।

ii. कपूर (केन्फर) :-

– कपूर की प्रकृति उत्तेजक होती है। यह प्राकृतिक रूप से कपूर के पौधे की लकड़ी से प्राप्त किया जाता है।

– यह जीवाणुरोधक, जीवाणुनाशक प्रकृति का होता है।

– कपूर तथा जैतून का तेल या ईथर को 1:4 में मिलाकर पशु को दिया जाता है, जिसमें सर्दी, बुखार, खाँसी में आराम मिलता है। इसे इंजेक्शन में भी दिया जा सकता है।

– इंजेक्शन में इसकी मात्रा 1.5-2.5 ml दिया जाता है तथा मुँह द्वारा इसकी मात्रा 10-15 gm तक दी जा सकती है।

– कपूर को तुलसी के पत्तों के साथ पीसकर घाव पर लगाने से घाव के कीड़े मर जाते हैं।

– कपूर 100 gm व 400 ml मूँगफली का तेल अच्छे से मिलाकर पैर की मोच या त्वचा में दर्द वाले स्थान पर लगाया जा सकता है।

4. कृमिनाशक :-

i. नीलाथोथा (CuSO4) :-

– इसका रासायनिक सूत्र CuSO4 होता है व इसकी प्रकृति कृमिनाशक होती है।

– यह नीले रंग का छोटे-छोटे कणों के रूप में पाउडर होता है।

– इसका मुख्य उपयोग पशुओं के आंतरिक परजीवी को नष्ट करने में किया जाता है।

– बड़े पशुओं में इसका 1% घोल 250-300 ml तथा छोटे पशुओं में 50-70 ml दिया जाता है।

– इसका 1% विलयन FMD रोगी पशुओं के खुर धोने में भी किया जाता है।

ii. फिनोविस/फीनोथाइजीन :-

– इसे फीनोथाइजीन भी कहा जाता है।

– यह बारीक चूर्ण होता है।

– यह पीले रंग का होता है।

– यह प्रकृति में सुरक्षित होता है।

– छोटे बछड़ों में इसका उपयोग अधिक किया जाता है।

– इसका बड़े पशुओं में 30-45gm तथा छोटे पशुओं में 15-30 gm पानी में घोलकर देने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

5. स्तम्भक/एस्ट्रींजेंटस (Astringents) :-

– यह दवाइयाँ द्रव को ठोस करके उसके बहने को रोकती है।

i. टिंचर आयोडीन :-

– यह मुख्य रूप से आयोडीन व पोटैशियम आयोडाइड के 5gm तथा एल्कोहल व स्प्रिंट के 1000 ml (1 liter) व 10 ml पानी (H2O) उपयोग किया जाता है।

– टिंचर ऑफ आयोडीन के अवयव को अच्छे से मिलाकर स्तम्भक के रूप में बड़े पशुओं में 10 ml तक तथा छोटे पशुओं में 2-4 ml तक उपयोग किया जाता है।

– पशुओं में आंतरिक कीड़े मारने की सर्वोत्तम दवा ‘पाइपेरेजीन (Piperazine)’ है।

ii. फीटकरी (Alum) – यह रंगहीन अथवा हल्का गुलाबी रंग का ठोस पदार्थ होता है तथा यह पानी में घुलनशील है व इसका स्वाद मीठा होता है।

– इसका उपयोग जीवाणु रोधक एवं स्तम्भक के रूप में किया जाता है।

iii. तारपीन का तेल (Turpentine Oil) – इसे चीड़ के वृक्ष से प्राप्त किया जाता है तथा यह रंगहीन एवं स्वच्छ द्रव है।

– यह एल्कोहल, क्लोरोफार्म, ऐसीटिक अम्ल व ईथर में घुलनशील है तथा स्वाद में तीखा व कड़वा होता है।

– इसका उपयोग परजीवी नाशक, एंटीजाइमोटिक, जीवाणुरोधक व गैसहर आदि में किया जाता है।

– आफरा, सूजन व दर्द में इसे काम में लिया जाता है।

– इसका उपयोग निमोनिया तथा प्लूरसी रोगों में काम में लिया जाता है

1 thought on “पशु चिकित्सा में उपयोगी औषधियाँ व रसायन (Medicines and Chemicals Useful in Veterinary Medicine)”

Leave a Comment