मौसम एवं जलवायु

मौसम एवं जलवायु

  • वायुमण्डल में होने वाले अचानक एवं अस्थायी परिवर्तन को मौसम कहते हैं।
  • किसी विशेष समय पर वायुमण्डल की अवस्था को मौसम कहते है।
  • वायुमंडल की अल्पकालिक अवस्था को मौसम कहते हैं; उदाहरण गर्म दिन, शुष्क मौसम, वर्षा का दिन। 
  • मौसम एक छोटे क्षेत्र एवं बहुत कम समय के लिये होता है, जैसे:- एक दिन, सप्ताह, एक माह आदि।
  • जब एक जैसा मौसम अधिक दिनों तक बना रहता है तो उसे ऋतु कहते हैं।

मौसम विज्ञान (Meteorology):-

  • यह एक ग्रीक शब्द है जो मेट्रोक्स से बना है।
  • मेट्रोलॉजी के अंदर मौसम का अध्ययन किया जाता है।
  • IMD (Indian Meteorology Department) की स्थापना वर्ष 1875 में कलकता मुख्यालय के साथ हुई।
  • IMD का वर्तमान मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • राजस्थान में मौसम विज्ञान का प्रमुख कार्यालय जयपुर में स्थित है।
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) जेनेवा स्विट्‌जरलैण्ड में स्थित है तथा इसकी स्थापना वर्ष 1950 में हुई।
  • कृषि मौसम विज्ञान के पिता – D.N. वालिया
  • भारतीय कृषि मौसम विज्ञान के पितामह – L.A. रामदास
  • AMD (Indian Agriculture Meteorology Department) की स्थापना वर्ष 1932 में दिल्ली में हुई।

जलवायु:-

  • वर्ष के विभिन्न महीनों में किसी स्थान के वायुमण्डल में परिवर्तन की अवस्था, तापक्रम, वातावरण में नमी के परिमाण और वर्षा आदि के मिश्रित प्रभाव को जलवायु कहते हैं।
  • किसी निश्चित क्षेत्र के दीर्घकालीन वायुमण्डलीय या मौसम की दशाओं का औसत जलवायु कहलाता है।
  • ग्रीक शब्द Klima (क्लाइमा) – पृथ्वी का ढाल (अक्षाशीय स्थिति), Logos – ज्ञान
  • जलवायु विज्ञान का जनक – कोपेन
  • जलवायु के अन्तर्गत प्रकाश, तापमान, आर्द्रता, वायु, वायुदाब, बायुराशि आदि तत्त्व आते हैं।
  • फसल उत्पादन की दृष्टि से जलवायु का प्रमुख तत्त्व प्रकाश है।
  • WMO ने 31 वर्ष के अध्ययन को जलवायु के लिए उपयुक्त माना है।
  • जलवायु विज्ञान में मौसम में घटित घटनाओं का विश्लेषण किया जाता है।
  • भारतीय मानसून एवं जलवायु की सर्वप्रथम व्याख्या अरबी यात्री अलमसूदी ने की थी।
  • यह विज्ञान जिसके अन्तर्गत भूमि, वायुमण्डल पौधों की वृद्धि के पारस्परिक संबंध का अध्ययन किया जाता है उसे शस्य जलवायु विज्ञान कहते हैं।
  • राजस्थान में सबसे कम वर्षा उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में होती है।
  • सामान्य पौधों में 90 प्रतिशत जल व 10 प्रतिशत शुष्क भार होता है।
  • वायुमण्डल की आर्द्रता जलवायु का निर्माण करती है।
  • यदि वायुमण्डल में से वायु को निकाल दे तो जलवायु में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

जलवायु का वर्गीकरण-

1. कोपेन के अनुसार- 

  • मौसग तत्त्वों के आधार पर विश्व जलवायु को 5 समूहों में विभाजित किया।

2. डी केन्डोले के अनुसार-

  • तापमान और वर्षा के वार्षिक और मासिक औसत के आधार पर।
  • वनस्पति के आधार पर जलवायु का वर्गीकरण किया।

3. ट्रोल के अनुसार –

  • इसका आधार तापमान तथा शुष्क एवं आद्र महीने है।
  • कृषि के उद्देश्य के लिए यह वर्गीकरण महत्त्वपूर्ण है।
  • ICRISAT, हैदराबाद ने भारत में अर्द्धशुष्क उष्णकटिबंधीय वर्गीकरण के लिए इस विधि को अपनाया।

4. थार्नवेट के अनुसार-

  • इसका आधार PE Index तथा सीजन की वर्षा का वितरण है।
  • PE Full form -> (Precipitation of effectiveness)

5. MDI (Moisture deficit index) –

  • AICRP on Dry land (ICAR) द्वारा MD के आधार पर वर्गकिरण अपनाया गया।
  • MDI = P-PET x 100
  •             100
जलवायु के प्रकारMDI मान
उप आद्र (Sub humid)0-33.3
अर्द्ध शुष्क (Semi arid)– 33.3 से 66.6
शुष्क (Arid) 66.6>-66.6

वायुमंडल (Atmosphere):-

  • पृथ्वी के चारों ओर वायु का आवरण, वायुमण्डल कहलाता है
  • 1300 किमी ऊंचाई तक वायुमण्डल उपस्थित है।
क्र.संगैसे मेंआयतन मेंभार में
1.नाइट्रोजन78.088row1 col 4
2.आर्गेन2123.134
3.आर्गेन0.931.282
4.CO20.030.0456

वायुमंडल की परतें (Layers of the atmosphere)-

1. क्षोभ मण्डल (Troposphere):-

  • वायुमण्डल की सबसे निचली परत क्षोभ मंडल कहलाती है।
  • ऊँचाई 8-18 किमी।
  • मौसम की सभी घटनाएँ क्षोभ मंडल में होती है, जैसे बादल बनना, वर्षा, कोहरा, व ओस का गिरना।
  • झोभ मंडल को समताप मण्डल से पृथक् करने वाले स्तर को क्षोभ मंडल सीमा (tropopause) कहते हैं।
  • यह सबसे घनी वायु की परत है। तथा वायुमंडल के कुल भाग का 85% घनत्व इसी मण्डल में स्थित हैं।
ताप हास (lapse rate)एडियाबैटिक हासदर (Adiabatic Lapse Rate)
क्षोभ मण्डल में ऊँचाई के साथ तापमान में 6.5°C/Km गिरावट आती है। जिसे ताप द्वास (lapse rate) कहते है।हवा में वृद्धि या कमी के साथ-साथ तापमान का बदलना एडियाबेटिक हास दर कहलाता हैं
  • शुष्क क्षेत्रों का एडियाबैंटिक ह्रास दर 10°C/Km होता है।

2. समताप मण्डल (Stratosphere):- 

  • ऊंचाई 18-50 किमी.
  • समताप मण्डल के नीचे की परत ओजोन परत (18 से 25 किमी, ऊँचाई तक) है।
  • समताप मण्डल वायुमण्डल की सबसे गर्म परत है क्योंकि ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ इस मण्डल में तापमान बढ़ता है।
  • वायुमण्डल के कुल भार का 15% भार इसी मण्डल में पाया जाता है।
  • समताप तथा मध्य मण्डल को अलग करने वाली परत स्ट्रोप्टोपीज कहलाती है।
  • निचले भाग में 20 किमी, ऊँचाई तक तापमान स्थिर रहता है।
  • समताप मण्डल को ओजीन मण्डल भी कहते हैं।
  • ओजोन परत सूर्य की पराबैगनी किरणों से पृथ्वी के जीवों की रक्षा करती है।
  • ओजोन परत में मुख्य रूप से ओजीन गैस (O3) विद्यमान है।
  • ओजोन गैस का पाया जाना समताप मण्डल में ऊँचाई पर जाने पर तापमान में वृद्धि का कारण है।

3. समता मध्य मण्डल (Mesosphere):- 

  • ऊँचाई – 50-80 किमी.
  • मध्यमण्डल में तापमान ऊँचाई के साथ घटता है। यह ठण्डा क्षेत्र माना जाता हैं।

4. आयन  (lonosphere)

  • आयन मण्डल में रेडियो तरंगें पाई जाती है इसी कारण विश्व की संचार प्रणाली सक्षम है।
  • ऊँचाई – >80 किमी.
  • आयन मण्डल में तापमान ऊँचाई के साथ-साथ बढ़ता है।

5. बाह्य मण्डल (Exo sphere)

  • बाह्य मण्डल में हाइड्रोजन व हीलियम गैसों की प्रधानता होती है।
  • वायुमण्डल के लगभग एक हजार किमी मोटे आवरण का वह भाग जो धरातल पर पड़ता है वायुदाब कहलाता है।
  • किसी क्षेत्र का वायुदाब एवं नमी कम होने पर वर्षा की संभावना मानी जाती है।

प्रकाश दीप्तिकालिता (Photoperiodism) :- 

  • प्रकाश की अवधि का पौधों पर फूल व फल आने पर प्रभाव पड़ता है उसे प्रकाश दीप्तिकालिता (Photoperiodism) कहते हैं।
  • पौधों को पुष्पन के समय जितने प्रकाश अवधि की आवश्यकता होती है प्रकाश दीप्तिकालिता कहलाता है।
  • गारनर एवं एलार्ड ने सर्वप्रथम 1920 में दीप्तिकालिता की परिकल्पना को बताया।
  • प्रकाश की दीप्तिकालिता के आधार पर फसलों को तीन भागों में बाँटा गया है-

1. अल्प प्रकाशी पौधे (Short Day Plant):-–

  • इस प्रकार के पौधों में पुष्पन के लिए अपेक्षाकृत छोटे दिनों की आवश्यकता होती है।
  • ऐसे पादप जिन्हें पुष्पन के लिए 10 घण्टे से कम के दीप्तिकाल (photoperiod) की आवश्यकता होती है।
  • उदाहरण – खरीफ की फसलें (ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, तम्बाकू)

2. दीर्घ प्रकाशी पौधे (Long Day Plant) –

  • इस प्रकार के पौधों में पुष्पन के लिए अपेक्षाकृत लम्बे दिनों की आवश्यकता होती है।
  • ऐसे पादप जिन्हें पुष्पन के लिए 14 घण्टे से अधिक के दीप्तिकाल (photoperiod) की आवश्यकता होती है।
  • उदाहरण – रबी की फसलें (गेहूँ, जौ, बरसीम, मटर, चना, मसूर)

3. दिवस निष्प्रभावी पौधे (Day Natural Plant) –

  • पौधों के पुष्पन क्रिया पर प्रकाश अवधि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • उदाहरण – कपास, सूरजमुखी, टमाटर, मिर्च, बैंगन
  • मध्यवृति प्रदीप्त कालीक पौधे – गन्ना (13 घंटे)
  • अधिकांश पौधे 30-40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान पर अच्छी वृद्धि करते हैं।

मानसून (Monsoon)

  • इस शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द मौसिम से हुई है जिसका अर्थ – Season होता है।
  • भारतीय कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है।
  • जून से सितम्बर तक मानसून का सामान्य समय होता है।

भारत में मानसून दो तरह का आता है-

1. दक्षिण-पश्चिमी मानसून :-

  • भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून (75%) से सबसे ज्यादा वर्षा होती है। इसलिए इसको वर्षाकालीन मानसून भी कहते हैं।
  • दक्षिण-पश्चिमी मानसून 1 जून को केरल के तट पर प्रवेश करता है इस मानसून की आगे बढ़ने की रफ्तार 30 किमी. प्रति घण्टा की होती है।
  • इस मानसून से तमिलनाडु के पूर्वी घाट को छोड़कर समस्त भारत में वर्षा होती है।
  • वर्षा का आगमन राजस्थान में 16 जून से प्रारंभ होता है।
  • इसका उद्गम स्थान हिन्द महासागर है।
  • यह दो शाखाओं में विभाजित हैं-

     (a) अरब सागर शाखा –

     – भारत में सर्वाधिक वर्षा इसी शाखा द्वारा होती है।

     – भारत में 80 प्रतिशत वर्षा अरब सागर शाखा से होती है।

     – अरब सागरीय मानसूनी शाखा राजस्थान में सर्वप्रथम बाँसवाड़ा जिले में प्रवेश करती है। बाँसवाड़ा को ‘राजस्थान का मानसून प्रवेश द्वार’ कहा जाता है।

     – इस शाखा से राजस्थान के बाँसवाड़ा, डूँगरपुर, उदयपुर तथा सिरोही में वर्षा होती है।

     – अरब सागरीय मानसून की राजस्थान में दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व रहती है।

     – राजस्थान में कम वर्षा का कारण – अरावली पर्वतमाला का मानसूनी हवाओं के समानांतर होना है।

     (b) बंगाल की खाड़ी –

     – बंगाल की खाड़ी शाखा राजस्थान के झालावाड़ जिले से प्रवेश करती है तथा राजस्थान के अधिकांश जिलों में लगभग 90% मानसूनी वर्षा करती है।

     – इस मानसून की राजस्थान में दिशा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम है।

     – इस शाखा से थार के मरुस्थल में वर्षा कम होती है। इसका प्रमुख कारण अरावली का ‘वृष्टि छाया’ प्रदेश का होना है।

2. उत्तर-पूर्वी मानसून या चक्रवातीय वर्षा:- 

  • इसको पुनरावृत्ति (लौटता हुआ) मानसून भी कहते हैं।
  • यह देश के दक्षिण भाग आन्ध्रप्रदेश व तमिलनाडु में वर्षा करता हैं।

मौसम का पूर्वानुमान (Weather Forcasting)

क्र.संपूर्वानुमानअवधि
1.लघु अवधि मौसम पूर्वानुमान1–2 दिन
2.मध्य अवधि मौसम पूर्वानुमान3-10 दिन
3.दीर्घ अवधि मौसम पूर्वानुमान>10 दिन

-राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केन्द्र (NCMRWF) – नई दिल्ली – 1988 में

– कम अवधि पूर्वानुमान दिन में दो बार जारी किया जाता है।

मावठ

– उत्तर एवं मध्य भारत में जनवरी-फरवरी माह में होने वाली वर्षा पश्चिमी विक्षोभ के कारण होती है, इस वर्षा को मावठ कहते हैं।

– राज्य में पश्चिमी विक्षोभ से कुल वार्षिक वर्षा की 10% वर्षा होती है।

– यह रबी की फसलों के लिए उपयोगी हैं, इसे ‘गोल्डन ड्रॉप्स या ‘सुनहरी बूँदें कहते हैं।

– राज्य में मानसून पूर्व की वर्षा को ‘दोंगड़ा’ कहते हैं।

– यह वर्षा रबी फसलों (गेहूँ,चना) के लिए अच्छी होती है।

पुरवाई

– पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा में बहने वाली हवा को पुरवाई कहते हैं।

– बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवा है।

बादल

– बादलों का अध्ययन नीफोलॉजी के अंदर किया जाता है।

– बादलों को मापने की इकाई ऑक्टा है।

बादलों के प्रकार–

1. कपासी बादल (कुमुलस बादल) –

– फूलगोभी के समान, गर्मियों में अधिक, में जेस्टीक डॉम के नाम से जाना जाता है।

 2. सीरस बादल (CIRUS) –

– तितरपंखी बादल के नाम से भी जाना जाते हैं।

– ये बादल सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित होते हैं।

– सूर्यास्त व सूर्य उदय के समय दिखाई देने वाले लाल-गुलाबी रंग के बादल होते हैं।

3. निंबो स्ट्रेटस बादल (Nimbo stratus) –

– इन्हें बरसाती बादलों के नाम से भी जाना जाता है।

4. क्यूमुलों निंबस (Cumulo nimbus)–

– थान्ड्रिंग (बिजली व बादल का गरजना) के लिए जिम्मेदार बादल

5. स्ट्रेटस बादल –

– ड्रिजल (बूँदा-बाँदी) के लिए जिम्मेदार बादल

– ये बादल कम ऊँचाई पर स्थित होते हैं।

कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain)

– इसे बादल सीडिंग (Cloud seeding) भी कहते हैं।

– वर्षा को प्रेरित करने के लिए बादलों में बाह्य सामग्री (Foreign) का उपयोग करना बादल सीडिंग कहलाता है।

– कृत्रिम वर्षा की शुरुआत सर्वप्रथम USA से हुई है।

– गर्म बादलों के सीडिंग के लिए सोडियम क्लोराइड (NaCl) का प्रयोग किया जाता है।

– ठण्डे बादलों के सीडिंग के लिए सिल्वर आयोडाइड (AgI) व शुष्क बर्फ (–80°C पर CO2) का प्रयोग किया जाता है।

अम्लीय वर्षा–

– pH – <5.6

– जिम्मेदार गैसें – NO2 व SO2 गैस (HNO3 व H2SO4 अम्ल)

तापमान

– न्यूनतम तापमान – न्यूनतम तापमापी में एल्कोहल भरा होता है।

– न्यूनतम तापमान का मापन सूर्योदय से पहले (4pm) को लिया जाता है।

– न्यूनतम तापमापी में -40 से +50 तक रीडिंग ली जाती है।

– अधिकतम तापमान – अधिकतम तापमापी में पारा भरा होता है।

– अधिकतम तापमान का मापन – 2 बजे किया जाता है।

– अधिकतम तापमापी में –35 से +55°C तक रीडिंग ली जाती है।

बेस तापमान

– जिस तापमान पर पौधे की वृद्धि कम या बंद हो जाये उसे बेस तापमान कहा जाता है।

क्र.सं.फसलबेस तापमान
1.खरीफ10°C
2.रबी4°C
3.गेहूँ4.5°C

वर्षा के रूप–

– वर्षा में बूँदों का आकार – >0.5mm

– फुहार (ड्रिजलिंग)/बूँदा-बाँदी में बूँदों का आकार – <0.5mm

– बरसाती दिन – यदि 24 घण्टे में 2.5 या 2.5mm से ज्यादा वर्षा हो वह दिन बरसाती दिन कहलाता है।

– फसल बरसाती दिन – यदि 24 घण्टे में 5mm या 5mm से ज्यादा वर्षा हो तो फसल बरसाती दिन कहलाता है।

– ओस (Due) – ठण्डी सतहों पर नमी का बूँदों के रूप में संघनित होना औस कहलाता है।

– ओस मापने का यंत्र ड्रोसोमीटर है।

– रेनगेज – वर्षा की मात्रा का मापन

– आकार – 127mm चौड़ाई × 30 सेंटीमीटर गहराई

– वर्षा को मुख्यत: सुबह 8:30 व दोपहर 2 बजे के समय मापा जाता है।

क्र.सं.स्थानऔसत वार्षिक वर्षा (mm) में
1.राजस्थान1000 mm (100 cm)
2.भारत1194mm (120 cm)
3.राजस्थान575 mm (57-58 cm)

आर्द्रता (Humidity)

– वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प को आर्द्रता कहते हैं।

1. निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute humidity) –

– इसे ग्राम/घन सेमी., ग्राम/घन मीटर, एवं ग्राम/घन फीट में मापा जाता है।

– इसे वास्तविक आर्द्रता या सत्य आर्द्रता कहते हैं।

2. सापेक्ष आर्द्रता (Relative humidity) –

– इसे प्रतिशत (%) में मापा जाता है।

– कृषि के लिए सापेक्ष आर्द्रता महत्त्वपूर्ण है।

– फसलोत्पादन के लिए 40-60% सापेक्ष आर्द्रता होनी चाहिए।

3. विशिष्ट आर्द्रता (Specific humidity) –

– इसे ग्राम / किलोग्राम (g/Km) में मापा जाता है।

हरितग्रह प्रभाव (Greenhouse effect)

– प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें – CO2, CH4, CFC, N₂O, ओजोन व जलवाष्प।

गैसमात्रा
N2O6%
CFC14%
CO260%
CH420%
  • सर्वाधिक नुकसानदायक गैसों का क्रम – CFC > N2O > CH4> CO2

समान बिंदुओं को जोड़ने वाली महत्त्वपूर्ण रेखाएँ

1.   कन्टुर – एक समान ऊँचाई के बिंदुओं को जोड़ने वाली काल्पनिक रेखाएँ कन्टुर कहलाती है।

2.   आइसोबार – समान वातावरणीय दाब के बिंदुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ आइसोबार कहलाती हैं।

3.   आइसोहाइट – समान वर्षा की मात्रा के बिंदुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ आइसोहाइट कहलाती हैं।

4.   आइसोबाथ – समान मात्रा में उपस्थित जल के बिंदुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ आइसोबाथ कहलाती हैं।

5.   आइसोहेलस – समान सूर्य की रोशनी वाले समय को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ आइसोहेलस कहलाती हैं।

6.   आइसोथर्म – समान तापमान के बिंदुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ आइसोथर्म कहलाती हैं।

7.   आइसोटैक – समान हवा की गति के बिंदुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ आइसोटैक कहलाती है।

8.   आइसोहैलाइन – समान लवणता के बिंदुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ आइसोहैलाइन कहलाती है।

9.   आइसोफैन – समान मौसमी घटनाओं के अंकों को जोड़ने वाली रेखाएँ आइसोफैन कहलाती है।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु

– भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) – बेंगलुरु

– नेशनल रिमोट सेन्सर एजेन्सी (NRSA) – अहमदाबाद (गुजरात)

– अखिल भारतीय शस्य मौसम विज्ञान सुधार परियोजना (AICRP on AM) – हैदराबाद – 1983

– राजस्थान का सर्वाधिक वर्षा वाला जिला – झालावाड़

– राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान – माउण्ट आबू (सिरोही)

– राजस्थान का सबसे कम वर्षा वाला जिला – जैसलमेर

– राजस्थान में सबसे कम वर्षा व सबसे गर्म स्थान – फलोदी, जोधपुर

– राजस्थान का सबसे गर्म व ठण्डा जिला – चूरू

– भारत में सर्वाधिक वर्षा – मॉसिनराम, चेरापूंजी (मेघालय)

– राजस्थान में औसत वर्षा वाले दिनों की संख्या 29 दिन है।

– राजस्थान में शीतकाल में हाने वाली वर्षा ‘मावठ’ का कारण भूमध्य सागरीय चक्रवात (पश्चिमी विक्षोभ) है।

– ग्रीष्म काल में महाद्वीपों के आन्तरिक भागों के तापमान में अचानक वृद्धि हो जाने के कारण दोपहर पश्चात् पश्चिम की ओर से चलने वाली गर्म एवं शुष्क वायु को ‘लू’ कहते हैं।

– अधिकांशत: चक्रवाती वर्षा शीतकाल में होती है।

– फसलों को पाले से बचाने के लिए 0.1 % H2SO4 का प्रयोग किया जाता है।

– फसलों को पाले से बचाने के लिए शाम के समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

– राजस्थान के सुदूर पश्चिमी भाग में सर्वाधिक वर्षा परिवर्तनीयता पाई जाती है।

– वायु जिस दिशा से वायु आती है उसे विण्डवार्ड साइड तथा जिस दिशा में वायु जाती है उस लीवार्ड साइड कहते हैं।

– वायु की गति एनिमोमीटर से मापी जाती है।

– वायु की दिशा विण्डवेन से मापी जाती है।

– सबसे लम्बा दिन 21 जून को होता है।

– सबसे लम्बी रात 21 दिसम्बर को होती है।

– दिन व रात बराबर 21 मार्च, 23 सितम्बर को होते हैं।

– मृदा में मृदा तापमापी की गहराई 5, 10, 15cm होती है।

– पौधों में प्रकाश संश्लेषण लाल रंग में सर्वाधिक होता है तथा हरे रंग  में सबसे कम प्रकाश संश्लेषण होता है।

– सबसे कम अवशोषण तथा सबसे अधिक परावर्तन सफेद रंग में होता है।

– पौधों में प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश संश्लेषण सक्रिय विकिरण (PAR) 400–700mm (0.4–0.7) होना चाहिए।

– सबसे अधिक एल्बेडो बर्फ (94%) का तथा चारकोल का एल्बेडो सबसे कम (4%) होता है।

– सूर्य से पृथ्वी पर विकिरणों को आने में 8 मिनट 20 सेकण्ड का समय लगता है।

–  सोलर – स्थिरांक (Solar constant) का मान 1.94 cal / cm2/ मिनट होता है।

3 thoughts on “मौसम एवं जलवायु”

Leave a Comment