नदियाँ
अपवाह तंत्र
● राजस्थान की नदियों को सामान्यत: तीन समूहों में बाँटा जाता है–
1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ (23 प्रतिशत)
2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ (17 प्रतिशत)
3. अन्त: प्रवाहित नदियाँ (60 प्रतिशत)
राजस्थान में नदी बेसिन क्षेत्रफल–
● लूणी – 69302 वर्ग किमी. (20 प्रतिशत) है।
● बनास – 47060 वर्ग किमी. (14 प्रतिशत) है।
● चम्बल – 31243 वर्ग किमी. (9 प्रतिशत) है।
● माही – 16611 वर्ग किमी. (5 प्रतिशत) है।
राजस्थान में सर्वाधिक सतही जल वाली नदियाँ–
● चम्बल, बनास, माही, लूणी
सर्वाधिक अपवाह क्षेत्र वाली नदियाँ–
● चम्बल, लूणी, बनास, माही
सर्वाधिक जलग्रहण क्षेत्र वाली नदियाँ–
● बनास, लूणी, चम्बल, माही
बंगाल खाड़ी अपवाह तंत्र–
● बंगाल खाड़ी अपवाह तंत्र की नदियाँ : चम्बल, बनास, कालीसिंध, पार्वती, परवन, बेड़च, गंभीरी, कोठारी व खारी प्रमुख नदियाँ हैं।
चम्बल नदी

● उद्गम – विंध्यचल पर्वत श्रेणी की जानापाव की पहाड़ी मध्य प्रदेश से होता है।
● राजस्थान में चौरासीगढ़ (चित्तौड़गढ़) से प्रवेश करती है, छह जिलों में प्रवाहित होती है, चित्तौड़गढ़, कोटा, बूँदी, सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर जिलों में बहकर यह नदी उत्तर प्रदेश के मुरादगंज (इटावा) के पास यमुना नदी में मिल जाती हैं।
● चम्बल की कुल लम्बाई (965 किमी./1051 किमी.) राजस्थान में इसकी लम्बाई (135 किमी.) है।
विशेषताएँ
● एकमात्र नित्यवाही, कामधेनु, चर्मण्वती, बारहमासी नाम से जाना जाता हैं।
● चम्बल नदी पर चित्तौड़गढ़ में राजस्थान का सबसे ऊँचा जल प्रपात (चूलिया) स्थित है।
● चम्बल अपवाह क्षेत्रों में सर्वाधिक बीहड़ भूमि पाई जाती है धौलपुर, सवाई माधोपुर व करौली जिलों में सर्वाधिक बीहड़ भूमि मिलती हैं।
● चम्बल नदी पर चार बाँध बनाए गए हैं– गाँधी सागर, मंदसौर (मध्य प्रदेश), राणा प्रताप सागर, रावतभाटा (चित्तौड़गढ़), जवाहर सागर, बोरावास (कोटा), कोटा बैराज (कोटा) में स्थित हैं।
चम्बल की सहायक नदियाँ–
● बनास, कालीसिंध, पार्वती, वापनी/ब्राह्मणी, मेज, गंभीरी व कुराल प्रमुख नदियाँ हैं।
कालीसिंध नदी
● कालीसिंध का उद्गम देवास (मध्यप्रदेश) के निकट से होता है, राजस्थान में रायपुर (झालावाड़) से प्रवेश करती है और झालावाड़ और बाराँ जिले में प्रवाहित होकर नानेरा (कोटा) में चम्बल में मिल जाती है।
● कालीसिंध नदी की सहायक नदियाँ – निवाज, उजाड़, आहू और परवन हैं।
पार्वती नदी
● पार्वती नदी का उद्गम सिहोर (मध्यप्रदेश) से होता है राजस्थान में बाराँ, कोटा (राजस्थान व मध्यप्रदेश के बीच सीमा) होते हुए सवाई माधोपुर के निकट पालिया में चम्बल में मिल जाती है।
● पार्वती की प्रमुख सहायक नदियाँ – रेतरी, अहेली, अंधेरी व कूल हैं।
मेज नदी
● मेज नदी का उद्गम भीलवाड़ा से होता है और भीलवाड़ा एवं बूँदी में प्रवाहित होकर सीनपुर (लाखेरी, बूँदी) में चम्बल में मिल जाती है।
वापनी (ब्राह्मणी) नदी
● ब्राह्मणी नदी का उद्गम हरिपुरा गाँव (चित्तौड़गढ़) से होता है और भैंसरोड़गढ़ के पास चम्बल में मिल जाती है।
बनास नदी–
● पूर्णत: राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है।
● उद्गम – खमनौर की पहाड़ियाँ (राजसमंद) से होता है, यह राजस्थान के राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक व सवाई माधोपुर जिलों से प्रवाहित होती हैं।
● यह नदी भीलवाड़ा से बीगोद के पास बेड़च को सम्मिलित करते हुए रामेश्वर घाट के पास (सवाई माधोपुर) में चम्बल में मिल जाती है।
● यह नदी ग्रीष्मकाल में सूख जाती है।
बनास की विशेषताएँ–
● वन की आशा कहा जाता है, बनास की लम्बाई 480/512 किमी. है।
● राजस्थान में यह नदी तीन त्रिवेणी संगम बनाती है–
● बनास – बेड़च – मेनाल (बीगोद, भीलवाड़ा)
● बनास – डाई – खारी (बीसलपुर, टोंक)
● बनास – चम्बल – सीप (रामेश्वर घाट, सवाई माधोपुर)
बनास की सहायक नदियाँ–
● बेड़च, खारी, मेनाल, कोठारी, मानसी, बाण्डी, धुन्ध व मोरेल हैं।
1. बेड़च/आहड़/आयड़ नदी–
● बेड़च नदी का उद्गम गोगुन्दा की पहाड़ियों (उदयपुर) से होता है तथा इसका अपवाह क्षेत्र उदयपुर, चित्तौड़गढ़ व भीलवाडा़ है।
● बेड़च नदी बीगोद, भीलवाड़ा में बनास नदी में मिल जाती है।
● बेड़च नदी का प्रारंभिक नाम आहड़/आयड़ नदी है जो उदयसागर झील (उदयपुर) में मिलने के बाद बेड़च के नाम से जानी जाती है।
● बेड़च नदी के किनारे उदयपुर में आहड़ सभ्यता (ताम्रनगरी) की खोज की गई।
● बेड़च और गंभीरी नदियों के संगम पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित है।
2. मेनाल नदी–
● मेनाल नदी का उद्गम माण्डलगढ़ की पहाड़ियाँ (भीलवाड़ा) से होता है तथा यह बनास नदी में (बीगोद, भीलवाड़ा) में मिल जाती है।
● मेनाल नदी, भीलवाडा़ में मेनाल जलप्रपात का निर्माण करती है।
3. कोठारी नदी
● कोठारी नदी का उद्गम दिवेर की पहाड़ियों से होता है तथा यह नंदराय (भीलवाड़ा) में बनास नदी में मिल जाती है।
● कोठारी नदी के किनारे भीलवाड़ा में बागोर सभ्यता (मध्य पाषाण कालीन) की खोज की गई जहाँ से प्राचीनतम पशुपालन के प्रमाण मिले हैं।
● कोठारी नदी (भीलवाड़ा) पर मेजा बाँध बना हुआ है।
4. खारी नदी
● खारी नदी का उद्गम बिजराल ग्राम की पहाड़ियों से होता है।
● खारी नदी का अपवाह क्षेत्र राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर व टोंक है।
● देवली (टोंक) में खारी नदी बनास में मिल जाती है।
● खारी नदी पर अजमेर में नारायण सागर परियोजना स्थित है।
बाणगंगा नदी- अर्जुन की गंगा/रूण्डित नदी/ताला नदी
● बाणगंगा नदी का उद्गम बैराठ की पहाड़ियों (जयपुर) से होता है।
● बैराठ का प्राचीन नाम-विराट नगर था।
● बाणगंगा नदी के किनारे ही बैराठ सभ्यता विकसित हुई जो कि लौह युगीन सभ्यता थी।
● बाणगंगा नदी का अपवाह क्षेत्र जयपुर, दौसा व भरतपुर हैं। भरतपुर से यह नदी आगरा के फतेहाबाद के निकट यमुना में मिल जाती है।
● भरतपुर में बाणगंगा की सहायक नदी गंभीरी नदी पर अजान बाँध निर्मित है, जिससे भरतपुर जिले को पेयजल व सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।
अरब सागर अपवाह तंत्र
● प्रमुख नदियाँ – लूणी, माही, साबरमती व पश्चिमी बनास हैं।
राजस्थान में अरब सागरीय नदी तंत्र से संबंधित नदियाँ
(1) लूणी नदी

● लूणी नदी का उद्गम नाग पहाड़, पुष्कर (अजमेर) से होता है जहाँ इसका प्रारंभिक नाम सागरमती है।
● गोविन्दगढ़ (पुष्कर) से आने वाली सरस्वती नदी में मिलने के बाद इसे लूणी कहते हैं।
● लूणी नदी की कुल लम्बाई 495 किलोमीटर है जबकि राजस्थान में लूणी नदी की लम्बाई 320 किलोमीटर है।
● अजमेर के नाग पहाड़ से निकलकर नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर तथा जालोर से होते हुए गुजरात के ‘कच्छ के रण’ में चली जाती है।
लूणी की विशेषताएँ
● पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य नदी है, इसके अपवाह क्षेत्र को जालोर में रेल/नेड़ा कहा जाता है।
● मल्लीनाथ पशुमेला तिलवाड़ा (बाड़मेर) लूणी नदी के किनारे लगता है।
● वर्तमान में रंगाई-छपाई उद्योग के कारण लूणी नदी प्रदूषित हो रही है।
● बालोतरा (बाड़मेर) के बाद लूणी नदी का पानी खारा होता है।
लूणी की सहायक नदियाँ
(i) लीलड़ी – अजमेर के जवाजा स्थान से निकलकर पाली जिले में लूणी में मिल जाती है।
(ii) मीठड़ी – अरावली (तहसील, पाली) के निकट से निकलकर पाली-बाड़मेर में बहते हुए पवाला गाँव के निकट लूणी में मिल जाती है।
(iii) बाड़ी – बाड़ी-I अरावली पहाड़ियों से निकलकर यह नदी लालसनी गाँव (पाली) के पास लूणी में मिल जाती है, बाड़ी-II अरावली की पहाड़ियाँ (सिरोही) से निकलकर जालोर में सूकड़ी-III में मिल जाती है।
(iv) सूकड़ी- सूकड़ी-I अरावली से निकलकर सरदार समंद (पाली) में गिरती है और सूकड़ी-II अरावली से निकलकर पाली जिले में बहती है। सूकड़ी-III खारी और जवाई के संगम के पश्चात् सूकड़ी-III के नाम से जानी जाती है, जो बाद में लूणी में मिल जाती है।
(v) जवाई – इसका उद्गम गोरियाग्राम (पाली) से होता है।
● जवाई की सहायक नदी मथाई नदी के किनारे रणकपुर जैन मंदिर बने हुए हैं।
● जवाई नदी बिराना गाँव (जालोर) में यह खारी नदी में मिल जाती है, तत्पश्चात् यह लूणी में मिल जाती है|
(vi) सागी – अरावली की पहाड़ियाँ (सिरोही) से लूणी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी है।
● यह बाड़मेर में लूणी में मिल जाती है।
(vii) जोजड़ी – लूणी की एकमात्र ऐसी सहायक नदी जो लूणी में दायीं ओर से आकर मिलती है, जिसका उद्गम अरावली की पहाड़ी नहीं है। ये नागौर के पोडलू गाँव से निकलती है।
लूणी नदी पर स्थित बाँध
(i) जसवंतसागर बाँध (पिचियाक बाँध)–
● लूणी नदी, बिलाड़ा (जोधपुर)।
(ii) जवाई परियोजना-
● जवाई नदी, सुमेरपुर (पाली)।
● यह वृहद् श्रेणी की सिंचाई परियोजना है, जिसका संबंध पाली व जालोर जिले से हैं।
● जवाई नदी पर पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बाँध जवाई बाँध बना हुआ है।
● जवाई बाँध का निर्माण वर्ष 1946-1956 के मध्य अकाल राहत कार्य के दौरान जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह ने करवाया था।
● जवाई बाँध को मारवाड़ का अमृत सरोवर कहते हैं।
● जवाई बाँध से जलापूर्ति (पेयजल) पाली, जालोर, जोधपुर व सिरोही को होती है।
● जवाई बाँध से सिंचाई जालोर व पाली जिलों में होती हैं।
(iii) हेमावास बाँध-
● बाड़ी नदी, हेमावास (पाली)।
(iv) बांकली बाँध-
● सूकड़ी नदी- बांकली (जालोर में)।
माही नदी
● नदी का उद्गम मध्य प्रदेश की विंध्याचल पर्वत श्रेणी की मेहंद झील से होता है।
● राजस्थान में खादू ग्राम (बाँसवाड़ा) से प्रवेश करती है।
● इसका जल ग्रहण क्षेत्र दक्षिण राजस्थान में बाँसवाड़ा, डूँगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर जिलों में हैं।
● यह नदी खंभात की खाड़ी (गुजरात) में जाकर मिलती है।
माही नदी की विशेषताएँ-
● माही नदी कर्क रेखा (2312% उत्तरी अक्षांश) को दो बार काटती है।
● यह अंग्रेजी के उल्टे U वर्ण का निर्माण करती है।
● राजस्थान की एकमात्र नदी जो दक्षिण से प्रवेश करती है तथा दक्षिण में ही समाप्त होती है।
● बेणेश्वर, डूँगरपुर में माही नदी सोम व जाखम के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है जहाँ प्रत्येक वर्ष की माघ पूर्णिमा को बेणेश्वर मेला भरता है जिसे आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है।
माही नदी की सहायक नदियाँ–
● सोम, जाखम, चाप, अनास, मोरेन व इरू नदियाँ हैं।
● माही नदी में सबसे पहले मिलने वाली सहायक नदी इरू है जो माही बजाज सागर परियोजना से पहले मिलती है।
● राजस्थान में माही नदी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी अनास है जो दक्षिण की ओर से आकर माही में मिलती है।
(i) जाखम नदी-
● माही नदी की मुख्य सहायक नदी जाखम का उद्गम भँवरमाता की पहाड़ियों (जाखमिया ग्राम-प्रतापगढ़) से होता है और यह बेणेश्वर-डूँगरपुर में आकर माही नदी में मिलती है जहाँ सोम नदी भी आकर माही नदी में मिलती है और तीनों मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है जहाँ बेणेश्वर मेला (आदिवासियों का कुंभ) भरता है।
● सरमई तथा करमई जाखम की सहायक नदियाँ हैं। करमई नदी जाखम नदी में प्रतापगढ़ में मिलती है जहाँ जाखम बाँध बना हुआ है तथा सरमई नदी भी प्रतापगढ़ में जाखम नदी से मिलती है जहाँ सीतामाता अभयारण्य बना हुआ है।
(ii) सोम नदी–
● सोम नदी का उद्गम बीछामेड़ा की पहाड़ियाँ (ऋषभदेव, उदयपुर) से होता है और यह बेणेश्वर, डूँगरपुर में आकर माही नदी में मिल जाती है जहाँ सोम-माही-जाखम तीनों मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती हैं।
● गोमती व टीडी सोम नदी की सहायक नदियाँ हैं।
● उदयपुर में सोम नदी पर सोम कागदर परियोजना तथा डूँगरपुर में सोम नदी पर सोम-कमला-अम्बा परियोजना स्थित है।
(iii) इरू नदी–
● माही नदी में सबसे पहले मिलने वाली सहायक नदी है जो माही में उत्तर की ओर से आकर माही बजाज सागर परियोजना से पहले मिलती है। इरू का प्राचीन नाम ऐराव था।
(iv) अनास नदी–
● राजस्थान में माही नदी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी है, जिसका उद्गम आबोर ग्राम की पहाड़ियों (मध्यप्रदेश) से होता है।
● राजस्थान में अनास नदी मेलेडी खेड़ी (बाँसवाड़ा) से प्रवेश करती है और गलियाकोट (डूँगरपुर) में यह माही नदी में मिलती है। (जहाँ दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का उर्स भरता है)
माही नदी तंत्र से संबंधित परियोजनाएँ
1. माही बजाज सागर परियोजना-
● यह राजस्थान और गुजरात की संयुक्त परियोजना है।
● माही नदी पर बोरखेड़ा (बाँसवाड़ा) में माही बजाज सागर बाँध बना हुआ है जो राजस्थान का सबसे लम्बा बाँध (3109 मीटर) है।
2. कागदी पिकअप बाँध-
● माही नदी पर बाँसवाडा़ में कागदी पिकअप बाँध बना हुआ है, जिसके सभी गेट खोलने पर डैम में एक भी बूँद पानी नहीं रहता है।
3. भीखाभाई सागवाड़ा परियोजना–
● सिंचाई लाभ हेतु माही नदी पर साइफन का निर्माण करके भीखाभाई (सागवाड़ा) नहर निकाली गई थी। इस परियोजना से डूँगरपुर के सागवाड़ा क्षेत्र में सिंचाई की जाती है।
● इसका नामकरण वागड़ के स्वतंत्रता सेनानी स्व. भीखाभाई भील के नाम पर किया गया।
4. कड़ाना बाँध–
● कड़ाना बाँध, माही नदी पर गुजरात के महीसागर जिले में माही नदी पर स्थित है।
पश्चिमी बनास नदी–
● पश्चिमी बनास नदी, जिसका उद्गम नया सनवाड़ (सिरोही) के निकट अरावली की पहाड़ियों से होता है।
● सिरोही में प्रवाहित होते हुए पश्चिमी बनास गुजरात के बनास कांठा जिले में प्रवेश करती है और कच्छ की खाडी़ (गुजरात) में विलुप्त हो जाती है।
● इसकी सहायक नदी सूकली (सीपू) है।
● राजस्थान का आबू शहर (सिरोही) व गुजरात का डीसा शहर पश्चिमी बनास के किनारे स्थित है।
साबरमती नदी–
● साबरमती नदी का उद्गम पदराड़ा की पहाड़ियाँ (उदयपुर) से होता है और समाप्ति खंभात की खाड़ी (गुजरात) में होती है।
● साबरमती नदी की कुल लम्बाई 320 किलोमीटर है पर राजस्थान में प्रवाह क्षेत्र मात्र 44 किलोमीटर है।
● गुजरात की राजधानी गाँधीनगर, अहमदाबाद शहर और साबरमती आश्रम-साबरमती नदी के किनारे बसे हैं।
साबरमती नदी की सहायक नदियाँ–
● मानसी, वाकल, सेई, हथमती, मेश्वा, याजम तथा वैतरक साबरमती की सहायक नदियाँ हैं।
मानसी-वाकल परियोजना–
● राजस्थान सरकार व हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की एक संयुक्त परियोजना जिसमें क्रमश: 70:30 की साझेदारी है।
● राजस्थान की सबसे लम्बी जल सुरंग है।
सेई परियोजना–
● साबरमती की सहायक नदी सेई पर उदयपुर में सेई परियोजना निर्मित है, जिसका निर्माण जवाई बाँध में पानी की आवक बनाए रखने हेतु किया गया है।
● यह राजस्थान की पहली जल सुरंग है।
आंतरिक प्रवाह तंत्र से संबंधित राजस्थान की प्रमुख नदियाँ–
(i) घग्घर नदी –शिवालिक नदी/इण्डो ब्रह्म नदी–
● अन्य नाम- दृषद्वती नदी, प्राचीन सरस्वती नदी, मृत नदी
● शिवालिक की पहाड़ियाँ, कालका (हिमाचल प्रदेश) से घग्घर नदी का उद्गम होता है।
● टिब्बी, तहसील (हनुमानगढ़) से यह नदी राजस्थान में प्रवेश करती है।
● अपवाह क्षेत्र- राजस्थान में हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर।
● वर्तमान में नदी के तल को स्थानीय भाषा में नाली कहा जाता है।
● घग्घर नदी में बाढ़ आने पर इसका पानी फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक जाता है और वहाँ इसके प्रवाह क्षेत्र को ‘हकरा’ कहते हैं।
घग्घर नदी की विशेषताएँ-
● घग्घर नदी राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की सबसे लम्बी नदी है।
● घग्घर नदी द्वारा निर्मित मैदान को श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ में ‘पाट’ कहा जाता है।

(ii) काँतली नदी-
● शेखावाटी प्रदेश (चूरू-झुंझुनूँ -सीकर) की मुख्य नदी-कांतली नदी पूर्णत: राजस्थान में बहने वाली आंतरिक प्रवाह की सबसे लम्बी नदी है (100 किलोमीटर)।
● खण्डेला की पहाड़ियों (सीकर) से कांतली नदी का उद्गम होता है।
● सीकर, झुंझुनूँ में बहती हुई चूरू जिले में प्रवेश कर रेतीली भूमि में विलुप्त हो जाती है।
● नीम का थाना-सीकर में काँतली नदी के किनारे गणेश्वर सभ्यता की खोज की गई।
(iii) काकनेय नदी-मसूरदी नदी/काकानी
● कोटड़ी की पहाड़ियों (जैसलमेर) से काकनेय नदी का उद्गम होता है।
● काकनेय नदी राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की सबसे छोटी नदी है।
● काकनेय नदी जैसलमेर में मीठे पानी की बुझ झील का निर्माण करती है।
(iv) साबी नदी-
● सेवर की पहाड़ियों (जयपुर) से साबी नदी का उद्गम होता है।
● अपवाह क्षेत्र- जयपुर, अलवर
● साबी नदी अलवर जिले की मुख्य नदी है।
● जयपुर की सेवर पहाड़ियों से निकल अलवर के बहरोड़, मुण्डावर एवं तिजारा में बहती हुई हरियाणा में प्रवेश कर विलुप्त हो जाती है।
● साबी नदी के किनारे प्राचीन सभ्यता जोधपुरा (जयपुर) प्राप्त हुई।
(v) रूपारेल नदी-रूपनारायण नदी/वराह नदी/लसावरी नदी
● उदयनाथ की पहाड़ियों, थानागाजी (अलवर) से रूपारेल नदी का उद्गम होता है।
● अपवाह क्षेत्र-अलवर से भरतपुर तक हैं।
● रूपारेल नदी पर भरतपुर में मोती झील बाँध निर्मित है जो भरतपुर की जीवन रेखा कहलाता है।
● रूपारेल नदी के किनारे भरतपुर में नोह सभ्यता (लौहयुगीन) के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
(vi) रूपनगढ़ नदी-
● सलेमाबाद (अजमेर) से निकल कर जयपुर जिले में सांभर झील में गिरती है।
● रूपनगढ़ नदी के किनारे सलेमाबाद (अजमेर) में निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ स्थित है।
(vii) मेन्था नदी-
● मदा/मेढ़ा/मथाई नदी, मेन्था नदी के अन्य नाम हैं।
● मनोहरपुरा की पहाड़ियों (जयपुर) से मेन्था नदी का उद्गम होता है।
● अपवाह क्षेत्र-जयपुर (बहते हुए उत्तर की ओर से सांभर झील में गिरती है)
Note- मेढ़ा नदी, रूपनगढ़ नदी, तुरतमंती नदी, खारी नदी व खण्डेला नदी सांभर झील में गिरती हैं।
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