राजस्थान की प्रमुख वेशभूषा एवं आभूषण

राजस्थान की प्रमुख वेशभूषा एवं आभूषण

पुरुषों के वस्त्र

पगड़ियाँ :-

● पगड़ी पुरुषों द्वारा सिर पर बाँधी जाती है। जो मान-सम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक होती है।

● राज्य में पगड़ियों का संग्रहालय – बागोर की हवेली (उदयपुर)

● इस संग्रहालय में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी सुरक्षित है।

● उपनाम – पाग, घुमालो, फेटा, लपेटो, बागा, साफा, पेचा, अमलो, फालियो, सेलो, शिरोत्राण।

● मेवाड़ की पगड़ी और मारवाड़ का साफा प्रसिद्ध हैं।

● मेवाड़ की उदयशाही पगड़ी तथा जोधपुरी साफा कशीदाकारी के लिए प्रसिद्ध हैं।

● जयपुर की झाड़शाही/राजाशाही पगड़ी प्रसिद्ध है।

● पाग – पाग, उस पगड़ी को कहते हैं जो लम्बाई में सर्वाधिक होती है।

● पेचा – जरीदार पगड़ी को पेचा कहा जाता है, पेचा में केवल एक ही रंग होता है यदि बहुरंग हो तो उसे मदील कहा जाता है।

● पगड़ी के सजावट की वस्तुएँ  तुर्र, सरपंच, बालाबन्दी, धुगधुगी, पछेवड़ी, लटकन, फतेपेच आदि का इस्तेमाल होता था।

मेवाड़ की प्रचलित पगड़ियाँ :-

 1. अमरशाही पगड़ी – महाराणा अमरसिंह-I

 2. अरसी शाही पगड़ी – महाराणा अखैसिंह

 3. उदयशाही पगड़ी – महाराणा उदयसिंह

 4. स्वरूपशाही पगड़ी – महाराणा स्वरूपसिंह

 5. भीमशाही पगड़ी – महाराणा भीमसिंह

 6. बरखारमा पगड़ी – मेवाड़ की सर्वाधिक प्रचलित पगड़ी।

मारवाड़ की प्रचलित पगड़ियाँ (साफा) :-

1. जसवन्तशाही साफा – महाराजा जसवन्तसिंह-I

2. सरदारशाही साफा – महाराजा सरदारसिंह

3. उम्मेदशाही साफा – महाराजा उम्मेदसिंह

4. गजशाही साफा – महाराजा गजसिंह

विशेष अवसर की पगड़ियाँ :-

 लहरिया पगड़ी – तीज के त्योहार पर पहनी जाने वाली पगड़ी।

 मंदील पगड़ी – दशहरे के अवसर पर पहनी जाने वाली पगड़ी।

 मोठडे़ की पगड़ी – विवाह/उत्सव के अवसर पर पहनी जाने वाली पगड़ी।

मोटी पट्‌टेदार पगड़ी – बनजारे लोग मोटी पट्टेदार पगड़ी पहनते हैं।

आंटे वाली पगड़ी – सुनार आंटे वाली पगड़ी पहनते हैं।

ऋतुओं के अनुसार पहनी जाने वाली पगड़ियाँ :-

● बसन्त ऋतु – गुलाबी पगड़ी

● ग्रीष्म ऋतु – फूल गुलाबी व बहरीया पगड़ी

● वर्षा ऋतु – मलय गिरी पगड़ी

● शरद ऋतु – गुल-ए-अनार पगड़ी

● हेमन्त ऋतु – मोलिया पगड़ी

● शिशिर ऋतु – केसरिया पगड़ी

● होली के अवसर पर – फूल-पत्ती की छपाई वाली पगड़ी

● मेवाड़ के महाराणाओं की पगड़ी बाँधने वाले व्यक्ति को छाबदार कहा जाता है।

● अकबर के काल में मेवाड़ में ईरानी पद्धति की अटपटी पगड़ी का प्रचलन था।

● जोधपुर में चूंदड़ी का साफा सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है।

● जोधपुर/मारवाड़ में खिड़किया पाग सर्वाधिक प्रसिद्ध रही है लेकिन वर्तमान में इस पाग का प्रयोग गणगौर पर ईसरजी के लिए किया जाता है।

● मारवाड़ की प्रमुख पगड़ियाँ – जसवन्तशाही, चूंडावत शाही, शाहजहाँनी, मांडपशाही, मानशाही, राठौड़ी, विजय शाही आदि।

● रोबिला साफा – मारवाड़ का प्रसिद्ध है।

● जोधपुरी साफा – इसका प्रचलन जसवन्तसिंह-I के काल में हुआ।

● सर प्रतापसिंह ने जोधपुरी साफा को देश-विदेश में विशेष पहचान दिलाई।

● राठौड़ी पेंच – राजस्थान में राजपूतों द्वारा सर्वाधिक पसंद की जाने वाली पगड़ी।

● राजस्थानी लोकगीत “जला” में इस पगड़ी का उल्लेख मिलता है।

● राजशाही पगड़ी या झाड़शाही पगड़ी या जयपुरी पगड़ी – जयपुर में प्रचलित।

● यह पगड़ी लाल रंग के लहरिये से बनी होती है जो केवल राजाओं के द्वारा पहनी जाती थी।

अन्य वस्त्र :-

● जामा – यह वस्त्र गर्दन से लेकर घुटनों तक पहना जाता है।

● मुगलकाल में जामा गर्दन से लेकर पैरों के टखने तक पहना जाता था इसे ‘अकबरी जामा’ कहा जाता था।

● पछेवड़ा – पुरुषों के द्वारा सर्दी में ओढ़ा जाने वाला चद्दरनुमा वस्त्र।

● डौछी – यह जामा वस्त्र की तरह पहना जाता है, सर्वाधिक मेवाड़ में प्रचलित है।

● अंगोछा – पुरुषों के कन्धे पर रखा जाने वाला वस्त्र।

● पायजामा – कमर से लेकर पैरों के टखने तक पहना जाने वाला वस्त्र।

● आतमसुख – यह सर्दियों में पहना जाने वाला वस्त्र।

● घूघी – ऊनी वस्त्र जो सर्दी से बचाव हेतु उपयोग लिया जाता है।

● अंगरखा या अंगरखी या बुगतरी – यह शरीर के ऊपरी भाग पर पहना जाने वाला वस्त्र है।

● अचकन – यह अंगरखी का विकसित रूप है।

● चुगा या चौगा – यह अंगरखी के ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र।

● कमरबन्द या पटका – यह चौगा को कमर से बाँधने वाला वस्त्र जिसमें कटार या तलवार रखी जाती थी।

● धोती – यह सफेद रंग का वस्त्र है जो पुरुष कमर पर पहनते हैं।

● बिरजस या ब्रिचेस – चूड़ीदार पायजामे के स्थान पर प्रयोग किया जाने वाला वस्त्र।

महिलाओं के वस्त्र

● नान्दणा – आदिवासी महिलाओं का सबसे प्राचीन वस्त्र। यह आसमानी रंग की साड़ी होती है।

● जामसाई साड़ी – विवाह के अवसर पर दुल्हन द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र, जिसमें लाल जमीन पर फूल पत्तियों युक्त बेल होती है।

● लूगड़ा या अंगोछा साड़ी – विवाहित स्त्रियों का पहनावा जिसमें सफेद आधार पर लाल बूटे छपे हुए होते हैं।

● कटकी – अविवाहित बालिकाओं की ओढ़नी। इसमें अलंकरण को पावली एवं ओढ़नी को पावली भाँत की ओढ़नी कहते हैं।

● ताराभाँत की ओढ़नी – आदिवासी महिलाओं का सबसे प्रिय वस्त्र। इसमें आधार भूरी-लाल तथा किनारों का छोर काला षट्कोणीय आकृति जैसा होता है।

● ज्वार भाँत की ओढ़नी – सफेद छोटी-छोटी बिन्दी वाले आधार और लाल-काले रंग की बेल-बूटियाँ होती हैं।

● चूनड़ – भीलों की चूनड़ प्रसिद्ध है। यह एक प्रकार की ओढ़नी है।

● केरी भाँत की ओढ़नी – इसकी किनारी केरी तथा आधार में ज्वार भाँत जैसी बिन्दियाँ होती हैं। आदिवासी महिलाओं में प्रचलित। 

● लहर भाँत की ओढ़नी – ज्वार भाँत जैसी बिन्दियों से लहरिया बना होता है।

● कछाबू – आदिवासी महिलाओं द्वारा कमर से घुटनों तक पहनने वाला वस्त्र।

● दामड़ी – यह मारवाड़ क्षेत्र में महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली लाल रंग की ओढ़नी।

● पेसवाज – शरीर के ऊपरी भाग से लेकर नीचे तक ढकने वाला परिपूर्ण वस्त्र।

स्त्रियों के आभूषण

● तिलका – मुस्लिम महिलाओं द्वारा चूड़ीदार पायजामे पर पहना जाने वाला वस्त्र।

राजस्थान के आभूषण

● आभूषण का शाब्दिक अर्थ – गहना, अलंकार।

● राजस्थान में प्राचीन काल से ही मानव सौंदर्य प्रेमी रहा है। कालीबंगा और आहड़ सभ्यता के युग की स्त्रियाँ, मृण्मय तथा चमकीले पत्थरों की मणियों से बने आभूषण पहनती थी। वहीं शुंग काल में स्त्रियाँ मिट्टी के आभूषण प्रयोग में लेती थी। उस समय हाथीदाँत के बने गहनों का भी उपयोग किया जाता था।

● धीरे-धीरे समयानुसार आभूषणों में परिवर्तन आया एवं वर्तमान में सोना, चाँदी, ताँबा आदि धातुओं से निर्मित आभूषणों का चलन है। वर्तमान में मानव द्वारा शरीर को सुंदर एवं आकर्षक बनाने के लिए इन आभूषणों का प्रयोग किया जाता है।

सिर के आभूषण

सुवालळकौ, माँगफूल, माँगटीका, तिलकमणी, चूड़ामण, सिणगारपट्टी, मावटी, फुलगूधर, शीशफूल, मेमंद, बोर, रखड़ी, टिकड़ा, काचर, गेडी, गोफण, चाँद-सूरज, तीबगट्‌टौ, मैण, मोड़ियौ, मोरमींडली, सरकयारौ, मोली, बोरला, टीका, सांकली, तावित, बिंदिया, टिडीभलको, टीकी या बिंदी, सिवतिलक, सोहली आदि।

● शीशफूल- सिर पर पीछे की तरफ सोने की बारीक सांकल जैसा पहना जाने वाला आभूषण।

● बोरला- महिलाओं द्वारा गोल आकार का सिर पर पहना जाने वाला आभूषण।

● मेमंद- यह आभूषण  महिलाओं द्वारा सिर पर धारण किया जाता हैं।

● रखड़ी- सुहाग की प्रतीक बोरला के समान ही सिर का एक आभूषण है।

● गोफण- स्त्रियों के बालों की वेणी में गूँथा जाने वाला आभूषण गोफण कहलाता है।

● टीका- रखड़ी अथवा बोरला के आगे पहना जाने वाला एक फूल की आकृति का आभूषण टीका या तिलक कहलाता है।

● टीडीभलको- ये आभूषण सिर पर धारण किया जाता है।

● बिन्दी/टीकी- सुहागिन स्त्रियाँ ललाट पर लगाती हैं।

● सेलड़ौ –  स्त्रियों की वेणी में गूँथा जाने वाला आभूषण।

● सोहली – ललाट पर धारण करने का स्त्रियों का एक आभूषण।

● मोरमींडली – स्त्रियों के सिर का आभूषण।

● फूलगूधर – शीश पर  गूँथा जाने वाला एक रजत का आभूषण। विशेष।

कान के आभूषण

डुरंगलौ, झेलौ, एरंगपत्तो, बाळा, पासौ, पत्तीसुरलिया, झूटणौ, झाळ, फूलझूमका,  सूरळियो, सुरगवाली, कर्णफूल, पीपलपत्र, लटकन, बाली, टॉप्स, सुरलियाँ, ओगनियाँ, लूंग, टोटी, कोकरूं, कुड़कली, खींटली, गुड़दौ, छेलकड़ी, ठोरियौ, डरगलियौ या डुगरली, बूझली, माकड़ी, मुरकी, वेड़लौ, संदोल, सुरगवाळी आदि।

● झुमकी- सोने या चाँदी का बना आभूषण जिसके नीचे छोटी-छोटी घुँघरियाँ से बनी होती हैं, झुमकी कहलाती है।

● कर्णफूल- कान के निचले भाग का पुष्पाकार आभूषण जिसके बीच में नगीने जड़े होते हैं।

● लौंग- सोने या चाँदी के तार से मसाले के लौंग के आकार का बना आभूषण जिसके ऊपर घूँडीदार नगीना होता है, लौंग कहलाता है।

● मोरूवर- महिलाओें के कान पर यह मोर रूपी आभूषण ‘मोरूवर’ लटकाया जाता है।

● टोटी- गोल चकरी के समान आभूषण, जिसके पीछे डण्डी भी लगी होती है, टोटी कहलाती है।

● ओगनियाँ- कानों के ऊपरी हिस्से पर पान के पत्ते की आकृति के समान सोने व चाँदी का आभूषण।

● झूंटणौ – स्त्रियों के कान का आभूषण।

● छैलकड़ी – कान का एक आभूषण।

● खींटली – स्त्रियों के कान का आभूषण।

नाक के आभूषण

भँवरकड़ी, नथ बिजली लूंग, नथ, बारी, काँटा, भोगली, बुलाक, चोप, कोकौ, खीवण, नकफूल, नकेसर, वेण, वेसरि, लौंग आदि।

● नथ- सोने के तार का बना मोटा छल्ला जिसे नाक में पहना जाता है।

● भँवरा- यह नथ के समान ही एक आभूषण है जिसे अधिकांशत: विश्नोई जाति की महिलाओं द्वारा पहना जाता है।

● बेसरी- इस आभूषण में नाचता हुआ मोर चिह्न अंकित होता है।

दाँत के आभूषण

रखन, चूँप, धाँस,  मेख

● रखन – दाँतों में सोने के पत्तर की खोल बनाकर चढ़ाई जाती है जिसे रखन कहते हैं।

● चूँप –  दाँतों के बीच में सोने की कील जड़वाना चूँप कहलाता है।

● मेख – स्त्री-पुरुष के दाँत में जड़ी सोने की चूँप।

गले के आभूषण

डोरो, तांतणियौ, झालरौ, कंठसरी, निगोदर, निगोदरी, तेड़ियौ, आड़, थाळौ, रूचक, बाड़ली, बाड़लौ, हांस, पाट बंगड़ी, गळपटियौ, गळबंध, तखति, तगतगई, थमण्यो, झालरौ, ठुस्सी, कंठी, नक्कस, निंबोळी, पंचलड़ी, पंचमाणियौ, बजट्टी, पटियौ, तिमणिया, तुलसी, मांदलिया, हाँसली, चंद्रहार, कंठहार, हँसहार, टेवटौ, ताबीज, तेवटियौ, तांतणियौ, मंगलसूत्र, हौदळ, बटण, खींवली, खूंगाळी, छेड़ियौ, हमेल, रामनवमी, चम्पाकली, जुगावली, चोकी, चन्द्रमाला, मटरमाल, हार आदि।

● बाड़लो- यह गले में पहनने वाला आभूषण है।

● बजट्टी- कपड़े की छोटी पट्‌टी पर सोने के खोखले दानों को पिरोकर बनाया आभूषण बजट्‌टी कहलाता है।

● चंद्रहार- शहरी महिलाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय हार है।

● झालरौ – सोने या चाँदी की लड़ियों से बना हार जिसमें घूँघरियाँ लगी होती हैं, ‘झालरा’ कहलाता है।

● हँसली- गाँवों में छोटे बालकों को उनकी हँसली खिसकने से बचाए जाने के लिए धातु के मोटे तार को जोड़कर गोलाकार आभूषण हँसली पहनाया जाता है।

● हार- गोलाकार कई रत्नों से जड़ित सोने का बना आभूषण जिसे महिलाएँ गले में पहनती हैं, हार कहलाता है।

● कंठी- सोने की लड़ से बनी बारीक साँकल जिसमें कोई लॉकेट लगा होता है, ‘कंठी या चैन’ कहलाता है।

● मंगलसूत्र- वर्तमान में सुहाग के प्रतीक के तौर पर काले मोतियों की माला से बना हारनुमा आभूषण ‘मंगलसूत्र’ कहलाता है।

● मादलिया- ताबीज की तरह या छोटे ढोलक के आकार का बना छोटा आभूषण जिसे काले डोरे में पहना जाता है, मादलिया कहलाता है।

● तिमणिया/थमण्यो- सोने का बना आभूषण जो महिलाओं द्वारा गले में पहना जाता है।

● बंगड़ी – एक प्रकार का गले का आभूषण

● पचमाणियौ  – मेवात क्षेत्र में गले का आभूषण

● नक्कस – मेवात क्षेत्र में कंठ का आभूषण

● थाळौ – देवमूर्ति युक्त गले का आभूषण

● तांतणियौ – गले का एक आभूषण

बाजू (भूजा) के आभूषण

बाजूसोसण, बाजूबन्द, बाहुसंगार, बिजायठ, डोडी, डंटकड़ौ, टडौ, खाँच, कातरियौ, अड़कणी, अणत

● बिजायठ – बाँह पर धारण करने वाला आभूषण

● डोडी – भुजा पर धारण करने का कड़ा, आभूषण

● खाँच – बाँह पर धारण करने वाला स्त्रियों का आभूषण

अंगुली के आभूषण

पट्टा बींटी, पवित्री, बींटी,  दामणा, हथपान

● पट्टा बींटी – पाणिग्रहण से पूर्व वर की ओर वधू को पहनाई जाने वाली चाँदी की मुद्रिका।

● पवित्री – ताँबा और चाँदी के मिश्रण से बनी मुद्रिका।

● अंगूथळौ – अंगूठे में पहनने का आभूषण।

हाथ के आभूषण

बंगड़ीदार, लाखीणी, पछेली, धागा, हारपान, ठ्डडा, गजरा, आरत, चूड़ला, नवरतन, चूड़ियाँ, नोगरी, पछेली, गोखरु, पाटला, कंगन, पूंचिया, गजरौ, तॉती, दुड़ी, नवग्रही, पुणची (पौंचा), माठी, मूठियौ, कँकण, चूड़ा, बँगड़ी, चूड़ी, कड़ा, हथफूल, खंजरी, आरसि, चूड़ियाँ, छैलकड़ौ, दुगड़ी, बाजूसोसण, सूतड़ौ, सोवनपान, हाथुली, अंगूठी, मूंदड़ी, बींटी, दामणा, हथपान, बल्लया, छाप आदि।

● बींटी- हाथ की अँगुलियों में पहने जाने वाले गोलाकार, छल्लों को ‘बींठी या बींटी या अँगूठी या मूँदड़ी’ कहा जाता है। तीन आँटों वाली मोटी अँगुठी ‘झोटा’ कहलाती है।

● आरसि- स्त्रियों के हाथ का आभूषण।

● आँवला – स्त्रियों के पैर व हाथों में धारण करने वाला सोने या चाँदी का आभूषण।

● चूड़- चाँदी अथवा सोने का आभूषण जो कलाई में पहना जाता है।

● गजरा- मोतियों से बना आभूषण जो कलाई में पहना जाता है।

● बाजूबंध या उतरणो- हाथ की बाजू (भुजा) में बाँधा जाने वाला सोने के बेल्ट जैसा आभूषण ‘बाजूबंध/उतरणी’ कहलाता है।

● नोगरी- मोतियों की लड़ियों के समूह से बना आभूषण।

● तांती- तांती जो कि गले, कलाई अथवा बाजू पर बाँधी जाती है, यह देवी-देवताओं से सम्बन्धित आभूषण है।

● लाखीणी – दुल्हन के पहनने की लाख की चूड़ी

● बंगड़ीदार – वह चूड़ी जिस पर सोने या चाँदी के पत्तर का बन्द लगा हो।

● छैलकड़ौ – हाथ का एक आभूषण।

कमर के आभूषण

सटकौ, मेखला, तगड़ी, वसन, करधनी, कन्दोरा, सटका, कणकती, जंजीर, चौथ आदि।

● तगड़ी- सोने अथवा चाँदी से बना कमर में पहना जाने वाला आभूषण।

● चौथ- चाँदी से बना आभूषण जो जंजीर के समान होता है, इसे पुरुष एवं महिलाएँ दोनों धारण करते हैं।

पैर के आभूषण

नेवर, पीजंणी, पायल, पादसकळिका, दोलीकियो, तेघड़, तांति, झाँझर, सिंजनी, कंकणी, पायल, पायजेब, (रमझोल), नेवरी, नूपुर, पैंजनिया, टणका, घुँघरू, आँवला, कड़ा, लंगर, झांझर, तोड़ा-छोड़ा, अंगूथळौ, अणोटपोल, कड़लौ, झंकारतन, टणकौ, टोडरौ, तोड़ौ, तोड़ासाट, मकियौ, मसूरियौ, रोळ, लछौ, हीरानामी, बीछियाँ, फोलरी, गोर, पगपान, गोळया, गूठलौ, नखलियौ, छल्ला आदि।

● बिछिया- इसे चूटकी अथवा छल्ला भी कहते हैं, यह सुहाग का प्रतीक है। पैरों की अँगुलियों में केवल विवाहित स्त्रियाँ ही यह आभूषण धारण कर सकती है। बिछिया को पाँव के अंगूठे के पास वाली अँगुली में पहना जाता है।

● फोलरी- तारों से फूलों की आकृति बनाकर पहनी जाने वाली अँगूठी ‘फोलरी’ कहलाती है।

● झाँझर – पायलनुमा आभूषण जिससे रुनझुन की आवाज आती है।

● गोल्या- चाँदी की चौड़ी तथा सादी अंगुठियाँ पैरों की अँगुलियों में पहनी जाती है, ‘गोल्या’ कहलाती है।

● मकियौ – स्त्रियों के पैरों का आभूषण

● नेवरी- पायल की तरह का आँवलों के साथ ही पहना जाने वाला आभूषण ‘नेवरी’ कहलाता है।

● पायल- पायल को ही ‘रमझोल/पायजेब/शकुन्तला’ आदि नामों से जाना जाता है।

● पगपान- पगपान, हथफूल के समान पैर के अँगूठे व अंगुलियों के छल्लों को चैन से जोड़कर पायल की तरह पैर के ऊपर हुक से जोड़कर पाँव में विवाह के अवसर पर पहना जाता है।

● टणका- चाँदी से बना गोलाकार आभूषण जिसको पैरों में पहनने पर टणक-टणक की आवाज आती है।

● लछौ – चाँदी के तारों का पाँव का आभूषण।

● रोळ – स्त्रियों के पैरों का घुँघरूदार आभूषण।

● नखलियौ – स्त्रियों के पाँव की अँगुलियों का आभूषण।

● दोळीकियौ – पैर की अंगुली का एक आभूषण।

● टणको – स्त्रियों के पाँव का चाँदी का आभूषण।

पुरुषों के आभूषण

● चूड़- गोल कड़े के रूप में हाथों में पहना जाने वाला आभूषण।

● कलंगी- साफे पर लगाया जाता है।

● बलेवड़ा – यह पुरुषों के गले में पहना जाने वाला आभूषण।

● सेहरा- शादी के समय वर द्वारा पहना जाने वाला साफा/पगड़ी।

● मुरकियाँ- पुरुषों द्वारा कान में पहना जाने वाला गोलाकार आभूषण।

● चौकी- गले में पहना जाने वाला आभूषण, जिस पर देवताओं का चित्र बना हुआ होता है।

● रखन या चूंप- सोने या चाँदी से निर्मित यह आभूषण दाँतों पर लगाया जाता है, यह आभूषण पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों के द्वारा पहना जाता है।  

● मादीकड़कम – पुरुषों के कान का आभूषण

● माठी – पुरुषों की कलाई पर पहनने के कड़े

● टोडर – पुरुष के पाँवों का स्वर्णभूषण

बच्चों के आभूषण

● नजरिया- लाल कपड़े में सोने का टुकड़ा, मूँग तथा लाल चन्दन बाँधकर तैयार किया गया आभूषण नजरिया कहलाता हैं। यह आभूषण बच्चे को बुरी नजर से बचाने के लिए पहनाया जाता है।

● झाँझरिया या पैंजणी – बच्चों के पैरों में पहनाई जाने वाली पतली साँकली, जिनमें घूँघरियाँ लगी होती हैं, झाँझरिया कहलाती है।

● कड़ो या कंडूल्या- बच्चों के हाथ व पैर में पहनाए जाने वाले आभूषण कड़ो या कंडूल्या कहलाते हैं।

● कुड़क- छोटे बच्चों के कान छेद कर सोने-चाँदी के तार पहनाए जाते हैं, उन्हें कुड़क, लूँग, गुड़दा, मुरकी या बाली कहते हैं।

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