
1. राजस्थान के लोक देवता
● समाज सुधार कार्य, मानव सेवा, वन संरक्षक, पशु धन की रक्षा, गुरुभक्ति, वचन पालन जैसे मूल्यों के लिए, जीवन देने वाले अनेक महापुरुष राजस्थान में लोक देवता एवं संत के रूप में पूजनीय है। सामाजिक एवं धार्मिक कारणों से राजस्थान में लोकदेवताओं का उदय हुआ। ये लोकदेवता साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रणेता थे।
● पीर – वह लोकदेवता जो सभी धर्मों में समान रूप से पूजनीय हो।
पंच पीर
1. गोगाजी | 3 हड़बूजी |
2. पाबूजी | 4.रामदेवजी |
5. मेहाजी मांगलिया |
गोगाजी चौहान

● गोगाजी का जन्म – ददरेवा गाँव (चूरू)
● माता का नाम – बाछल दे
● पिता का नाम – जेवरजी चौहान
● पत्नी का नाम – केलमदे (कोलूमण्ड,फलोदी की राजकुमारी)
● प्रतीक चिह्न – भाला लिए अश्वारोही योद्धा
● सवारी – नीली घोड़ी
● इनकी आराधना में श्रद्धालु सांकल नृत्य करते है। इनका प्रमुख वाद्य यंत्र डेरू है।
● जन्म – बाछल गोरखनाथ की भक्त थी। बाछल (गोगाजी की माता) की सेवा से प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने गूगल धूप से बना सर्प दिया और कहा कि इसे दूध में घोल कर पी जाना। उसके परिणामस्वरूप गोगाजी का जन्म हुआ।
● गोगा राखड़ी – किसान वर्षा के बाद खेत जोतने से पहले हल व बैल को गोगाजी के नाम की राखी गोगा राखड़ी बाँधते हैं।
● गोगाजी का अपने मौसेरे भाइयों अर्जन व सुर्जन ने मुस्लिम आक्रान्ता महमूद गजनवी की मदद से गोगाजी पर आक्रमण कर दिया। गोगाजी वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हुए।
● बिना सिर के ही गोगाजी को युद्ध करते हुए देखकर महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहरपीर (साक्षात पीर) कहा।
● युद्ध करते समय गोगाजी का सिर ददरेवा (चूरू) में गिरा इसलिए इसे शीर्षमेड़ी (शीषमेड़ी) कहते हैं तथा धड़ नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए इसे धड़मेड़ी या धुरमेड़ी या गोगामेड़ी भी कहते हैं।
मुख्य मंदिर –
● धुरमेड़ी या गोगामेड़ी – नोहर, हनुमानगढ़
● गोगामेड़ी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था।
● गोगामेड़ी के मुख्य द्वार पर ‘बिस्मिल्लाह’ लिखा है तथा इसकी आकृति मकबरेनुमा है।
● गोगामेड़ी का वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह की देन है।
● मेला – प्रतिवर्ष गोगानवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी) को गोगाजी की याद में गोगामेड़ी, हनुमानगढ़ में भव्य मेला भरता है।
● ददरेवा, राजगढ़, चूरू व रतनगढ़ आदि क्षेत्रों में गोगाजी के मेले लगते है।
● थान – गोगाजी के थान को गोगामेड़ी कहा जाता है। जो इन्द्रमानगढ़ किले में स्थित है।
● गोगाजी की ओल्डी – सांचौर, जालोर।
● गोगामेड़ी में भाद्रपद मास में हिन्दू पुजारी तथा अन्य मास में मुस्लिम पुजारी (चायल) पूजा करते हैं।
● खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी का थान माना जाता है।
● राजस्थानी कहावत – ‘गाँव-गाँव में खेजड़ी, गाँव–गाँव गोगाजी।
● कवि मेह ने ‘गोगाजी का रसावला’ की रचना की।
पाबूजी राठौड़

● जन्म – 1239 ई.
● जन्म स्थान – कोलूमण्ड गाँव, फलोदी (जोधपुर)
● पिता – धांधल जी राठौड़।
● माता – कमलादे।
● पत्नी – फूलमदे या सोढ़ी (अमरकोट के राजा सूरजमल सोढ़ा की पुत्री)
● अवतार – लक्ष्मण का
● उपनाम – ऊँटों के देवता, गौरक्षक देवता, प्लेग रोग निवारक देवता एवं सर्रा रोग का निवारक देवता
● प्रतीक चिह्न – भाला लिए हुए अश्वारोही।
● मेला – चैत्र अमावस्या
● नृत्य – थाली नृत्य
● पाबू प्रकाश – पाबूजी की जीवनी है जिसके रचयिता आशिया मोडजी थे।
● पाबूजी के पवाड़े या पावड़े – प्रसिद्ध गाथा गीत है, जो माठ वाद्य यंत्र के साथ नायक एवं रैबारी जाति द्वारा गाए जाते हैं।
● पाबूजी की फड़ – ऊँट बीमार होने या मन्नतपूर्ण होने पर नायक जाति के भोपे द्वारा रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँची जाती है।
● यह फड़ सर्वाधिक लोकप्रिय है।
● पाबूजी की घोड़ी – केसर कालमी (यह काले रंग की घोड़ी उन्हें देवल चारणी ने दी)।
● 1276 ई. में जोधपुर के देचू गाँव में देवल चारणी की गायों को अपने बहनोई जींदराव खींची से छुड़ाते हुए पाबूजी वीर गति को प्राप्त हुए।
● पाबूजी के अंग रक्षक – चाँदा, डामा, हरमल, सलजी, साँवतजी
● अर्द्धविवाहित सोढ़ी पाबूजी के साथ सती हो गई।
● मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है।
● ऊँटों की पालक जाति राईका/रेबारी/देवासी के आराध्य देव पाबूजी हैं।
● पाबू धणी री वाचना – थोरी जाति के लोग सारंगी के साथ पाबूजी का यश गाते हैं जिसे राजस्थान की प्रचलित भाषा में पाबू धणी री वाचना कहते हैं।
रामदेवजी
● जन्म – भाद्रपद शुक्ल द्वितीया
● जन्म स्थान – उंडूकाश्मीर या उंडूकासमेर गाँव (शिव-तहसील, बाड़मेर)
● उपनाम – रामसा पीर, रुणेचा रा धणी व पीरां रा पीर, रुणेचा रा श्याम
● अवतार – श्रीकृष्ण का
● उनके बड़े भाई वीरमदेव बलराम का अवतार माना जाता है।
● पिता का नाम – अजमलजी तंवर,
● माता – मैणादे,
● पत्नी – नेतलदे (अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढ़ा की पुत्री थी।)
● सगी बहनें – लाछा बाई, सुगना बाई।
● गुरु – बालीनाथ। (बालीनाथजी का मन्दिर-मसूरिया, जोधपुर में स्थित है।)
● शिष्य – हरजी भाटी।
शिष्या – आईमाता।
● सवारी – लीला (हरा) घोड़ा।
● प्रतीक चिह्न – पगल्यां
● पत्थर पर उत्कीर्ण रामदेवजी के प्रतीक के रूप में दो पैर।
● समाधि – रुणेचा (जैसलमेर) में रामसरोवर की पाल पर 1458 ई. में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को ली।
● धर्म बहन – डाली बाई
● रामदेवजी के लिए नियत समाधि स्थल पर उनकी मुँह बोली बहन डाली बाई ने इनसे पहले जल समाधि ली।
● प्रमुख पूजा स्थल – रामदेवरा (रुणेचा, जैसलमेर)
● इस मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
● मेला – प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को रामदेवरा (जैसलमेर) में बाबा रामदेवजी का भव्य मेला भरता है।
● राजस्थान का यह मेला साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है।
● रामसा पीर उपनाम से प्रसिद्ध बाबा रामदेवजी ने अपने जीवन काल में कई परचे (चमत्कार) दिखाए। उन्होंने मक्का से पधारे पंचपीरों को पंचपीपली नामक स्थान पर भोजन कराते समय उनका कटोरा प्रस्तुत कर उन्हें चमत्कार दिखाया जिससे मक्का के उन पीरों ने कहा कि हम तो केवल पीर हैं, पर आप तो पीरों के पीर हैं।
● नेजा – रामदेवजी की पचरंगी व सफेद ध्वजा।
● जातरू – रामदेवजी के तीर्थ यात्री।
● रिखियां – रामदेवजी के मेघवाल भक्त।
● जम्मा –रामदेवजी के नाम पर भाद्रपद द्वितीया व एकादशी को रात्रि जागरण दिलाया जाता है। उसे जम्मा कहते हैं।
● पर्चा – रामदेवजी के चमत्कारों को पर्चा कहते हैं।
● ब्यावले – भक्तों द्वारा गाए जाने वाले भजन।
● आंण – रामदेवजी के अनुयायी रामदेवजी की सौगंध को आंण कहते हैं।
● बाबेरी बीज (दूज) – भाद्रपद शुक्ल द्वितीया
● पुजारी – तँवर राजपूत
● कामड़िया पंथ – राजस्थान में कामड़िया पंथ के प्रमुख केन्द्र पादरला गाँव (पाली), पोकरण (जैसलमेर) व डीडवाना (नागौर) आदि हैं।
● तेरहताली नृत्य – रामदेवजी के मेले में कामड़िया जाति की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
● फड़ – रामदेवजी की फड़ कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
● चौबीस बाणियाँ – रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोकदेवता थे, जो कवि भी थे उनकी प्रसिद्ध रचना चौबीस बाणियाँ है।
● उन्होंने सामाजिक भेदभाव को कम करने तथा हिन्दू-मस्लिम एकता स्थापित करने का प्रयास किया था।
● अन्य पूजा स्थल – मसूरिया (जोधपुर), बिराठिया (पाली), सूरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़), छोटा रामदेवरा (जूनागढ़, गुजरात)।
● राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश व गुजरात में भी इनकी पूजा की जाती है। इन्होंने जाति प्रथा, मूर्तिपूजा और तीर्थयात्रा का विरोध किया।
हड़बूजी
● जन्म स्थान – भुंडेल, नागौर
● पिता – मेहाजी सांखला (भुंडेल, नागौर)।
● मौसेरे भाई – बाबा रामदेवजी
● गुरु – बालीनाथ।
● सवारी – सियार
● ज्ञाता – शकुन शास्त्र
● पुजारी – साँखला राजपूत
● प्रमुख पूजा स्थल – बैंगटी गाँव
● यहाँ हड़बूजी की गाड़ी (छकड़ा या ऊँट गाड़ी) की पूजा होती है। इस गाड़ी में हड़बूजी विकलांग गायों के लिए दूर-दूर से घास भरकर लाते थे।
● राव जोधा ने इन्हें बेंगटी गाँव (फलौदी) भेंट किया। इसी गाँव में हड़बूजी का मंदिर है जहाँ हड़बूजी की गाड़ी सुरक्षित रखी हुई है, जिसकी पूजा की जाती है।
मेहाजी
● जन्म – कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी)
●सवारी – किरड़ काबरा घोड़ा।
● ये जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
● प्रमुख पूजा स्थल – बापिणी गाँव (ओसियां, जोधपुर) में
● मेला – कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) को मेला भरता है।
● इनका जन्म पंवार क्षत्रिय परिवार में हुआ था किंतु पालन-पोषण अपने ननिहाल में मांगळिया गोत्र में हुआ था। इसलिए मेहाजी मांगळिया के नाम से प्रसिद्ध हुए।
● मण्डोर शासक राव चूंडा के समकालीन थे।
तेजाजी
● जन्म – 1073, माघ शुक्ल चतुर्दशी को।
● जन्म स्थान – खड़नाल या खरनाल (नागौर)
● पिता – ताहड़जी जाट ● माता – राजकुँवरी या रामकुँवरी
● जाति – नागवंशीय जाट
● पत्नी – पेमलदे (पनेर के रामचन्द्र की पुत्री थी।)।
● सवारी – लीलण घोड़ी।
● घोड़ला – तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते हैं।
● उपनाम – काला और बाला के देवता, कृषि कार्य़ों के उपकारक देवता, गौरक्षक देवता।
● प्रतीक चिह्न – तेजाजी को तलवार धारण किए घोड़े पर सवार योद्धा के रूप में दर्शाया जाता है, जिनकी जीह्वा को सर्प डस रहा है।
● तेजा गीत – किसान खेतों में हल जोतते समय तेजाजी के गीत गाते हैं।
● तेजाजी ने लाछा गुजरी की गायों को मेर (वर्तमान आमेर) के मीणाओं से छुड़ाई।
● सेन्दरिया (अजमेर) में जीभ पर साँप काटने से सुरसरा (अजमेर) में तेजाजी की मृत्यु हुई उनकी पत्नी पेमल भी उनके साथ सती हुई।
● अजमेर व नागौर में विशेष पूजनीय।
● मेला – प्रतिवर्ष तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला भरता है।
● प्रमुख पूजा स्थल – सेंदरिया, भावतां, सुरसरा (अजमेर), परबतसर, खरनाल (नागौर) बासी दुगारी (बूँदी) में
● भारतीय डाक विभाग द्वारा वर्ष 2011 में तेजाजी पर डाक टिकट जारी किया गया।
देवनारायणजी
● जन्म – 1243 ई. लगभग ● जन्म स्थान – आसींद, भीलवाड़ा
● पिता – सवाईभोज ● माता – सेढू देवी
● पत्नी – पीपलदे (धारा नगरी में जयसिंह देव परमार की पुत्री पीपलदे)
● घोड़ा – लीलागर ● वास्तविक नाम – उदयसिंह
● जाति – बगड़ावत गुर्जर ● अवतार – विष्णु का
● उपनाम – औषधि का देवता ● मेला – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी
● प्रमुख मंदिर –
(1) सवाईभोज का मंदिर, आसीन्द, भीलवाड़ा
(2) देवधाम मंदिर – जोधपुरिया, टोंक
(3) देवडूँगरी मंदिर – चित्तौड़गढ़
– इस मंदिर का निर्माण राणा सांगा द्वारा करवाया गया।
(4) देवमाली मंदिर – ब्यावर, अजमेर
– इसे बगड़ावतों का गाँव कहा जाता है।
– उन्होंने यहाँ पर अपना अंतिम समय बिताया था।
● देवनारायणजी के जन्म से पूर्व ही इनके पिता सवाईभोज, भिनाय के शासक से संघर्ष करते हुए अपने 23 भाइयों सहित शहीद हो गए। बाद में देवनारायणजी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया, जिसकी गाथा ‘बगड़ावत महाभारत‘ के रूप में प्रसिद्ध है।
● फड़ – गुर्जर जाति के भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
● जंतर वाद्य यंत्र को 100 मंतर (मंत्र) के समान माना गया है।
● सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ (24 हाथ) तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
● देवनारायणजी की फड़ में 335 गीत है। जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ है।
● वर्ष 1992 में भारतीय डाक विभाग ने देवनारायण जी की फड़ पर सर्वप्रथम 5 रु. का डाक टिकट जारी किया गया। भारतीय डाक विभाग द्वारा वर्ष 2010 में देवनारायण जी पर भी डाक टिकट जारी किया गया।
● इनके मन्दिर में मूर्ति की बजाय ईंटों की पूजा नीम की पत्तियों के साथ होती है।
● उन्होंने गायों की रक्षार्थ ही भिनाय के ठाकुर को मारा।
वीर कल्लाजी राठौड़
● जन्म – विक्रम संवत् 1601, दुर्गाष्टमी के दिन (1544 ई.)
● जन्म स्थल- सामियाना मेड़ता (नागौर)
● पिता – आससिंह या आसकरण ● गुरु – भैरवनाथ
● अवतार – शेषनाग का ● कुलदेवी – नागणेची माता
● कल्लाजी, मीराबाई के भतीजे थे।
● सन् 1567 – 68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ आक्रमण के दौरान कल्लाजी ने युद्ध में घायल जयमल को अपने कंधे पर बिठा लिया और दो तलवारें जयमल के हाथों में तथा दो तलवारें स्वयं लेकर युद्ध करने लगे इसी वीरता के कारण उनकी ख्याति चार हाथ (चतुर्भुज देवता), दो सिर वाले देवता के रूप में हुई।
● मान्यता है कि सिर कटने के बाद भी कल्लाजी का धड़ मुगलों से लड़ता हुआ रूण्डेला तक जा पहुँचा था।
● कल्लाजी के सिद्ध पीठ को ‘रनेला‘ कहते हैं।
● चित्तौड़गढ़ किले के भैरवपोल के पास कल्लाजी की छतरी बनी हुई है।
● नोट – डूँगरपुर जिले के सामलिया क्षेत्र में कल्लाजी की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति पर प्रतिदिन केसर तथा अफीम चढ़ाई जाती है।
● कल्लाजी के थान पर भूत-पिशाच ग्रस्त लोगों व रोगी पशुओं का इलाज होता है।
मल्लीनाथजी
● जन्म – 1358 ई. ● पिता – राव सलखा (मारवाड़ के राजा)
● दादा – राव तीड़ा ● माता – ज्याणी दे
● गुरु – उगमसी भाटी
– रानी रूपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी उगमसी भाटी के शिष्य बने।
● प्रमुख मंदिर – तिलवाड़ा, बाड़मेर
● इनका मंदिर लूणी नदी के तट पर बना हुआ है।
● मेला – प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है।
● यहाँ तिलवाड़ा के पास ही मालाजाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मन्दिर है।
● चाचा कान्हड़देव की मृत्यु के बाद वे 1374 ई. में महेवा के स्वामी बन गए। राज्य विस्तार के क्रम में 1378 ई. में फिरोज तुगलक के मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को इन्होंने मार भगाया।
● अपनी रानी रूपादे की प्रेरणा से वे 1389 ई. में उगमसी भाटी के शिष्य बन गए और योग-साधना की दीक्षा प्राप्त की।
● मल्लीनाथजी ने मारवाड़ के सारे संतों को एकत्र करके 1399 ई. में वृह्त हरि-कीर्तन आयोजित करवाया। इसी वर्ष चैत्र शुक्ल द्वितीया को इनका स्वर्गवास हो गया।
● जोधपुर के पश्चिमी परगने का नामकरण इन्हीं के नाम पर ‘मालानी’ किया गया था।
बाबा तल्लीनाथ
● पिता – वीरमदेव
● वास्तविक नाम – गांगदेव राठौड़ ● उपनाम – ओरण के देवता
● धार्मिक मान्यता अनुसार पशुओं के चरने के लिए जो स्थान रिक्त छोड़ा जाता है, उसे ओरण कहते हैं।
● गुरु – जालंधरनाथ
● प्रमुख पूजा स्थल – पाँचोटा गाँव, जालोर
● पाँचोटा गाँव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है।
● मंडोर के राजा राव चूंडा राठौड़ के भाई थे।
● तल्लीनाथ जी ने शेरगढ़ पर राज किया।
● जहरीले जीव के काटने पर तल्लीनाथ की पूजा की जाती है।
● जालोर के प्रसिद्ध लोकदेवता।
इलोजी
● ये ‘छेड़छाड़ वाले अनोखे देवता’ के रूप में प्रसिद्ध है।
● इलोजी की पूजा मारवाड़ में होली के अवसर पर की जाती है तथा इनकी मूर्ति आदमकद नग्न अवस्था में होती है।
● बाड़मेर की पत्थर होली में ईलोजी की बारात भी निकाली जाती है।
देव बाबा
● प्रमुख मंदिर – नगला जहाज गाँव (भरतपुर)
● मेला – भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को मेला भरता है।
● उपनाम – देवबाबा ग्वालों के पालनहार, कष्ट निवारक देवता व पशु चिकित्सक आदि।
रूपनाथ जी या झरड़ा जी
● जन्म स्थान- कोलूमण्ड, जोधपुर
● ये पाबूजी के भतीजे तथा बूढ़ो जी राठौड़ के पुत्र थे।
● इन्हें हिमाचल प्रदेश में बालकनाथ के रूप में पूजा जाता है।
● इन्होंने पाबूजी की मृत्यु का बदला जींदराव खींची को मारकर लिया।
● प्रमुख पूजा स्थल–
– कोलूमण्ड गाँव (जोधपुर)
– सिंभूदड़ा, नौखा (बीकानेर)
वीर फत्ताजी
● जन्म – साथूँ गाँव (जालोर)
● लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए इन्होंने प्राण उत्सर्ग कर दिए।
● मेला – प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को मेला भरता है।
बाबा झूंझारजी
● जन्म – इमलोहा गाँव, सीकर
● मुख्य मंदिर – स्यालोदड़ा गाँव, सीकर ● मेला – रामनवमी
● वे गायों व महिलाओं की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
● बाबा झूंझारजी का स्थान सामान्यतः खेजड़ी के पेड़ के नीचे होता है।
वीर बिग्गाजी
● जन्म – रीडी गाँव (बीकानेर)
● पिता – राव मोहन/महन
● माता – सुल्तानी देवी
● बीकानेर के जाखड़ समाज के कुल देवता
● मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा की
डूँगजी-जवाहरजी
● प्रमुख मंदिर – बाठोठ–पाटोदा, सीकर
● सहयोगी – करणा मीणा व लोहट जाट
● सीकर जिले के लुटेरे लोकदेवता, जो धनवानों व अंग्रेजों से धन लुटकर गरीबों में बाँट देते थे इसलिए उन्हें ‘गरीबों के देवता’ कहते हैं।
● 1857 की क्रांति में सक्रिय भाग लिया एवं उन्होंने नसीराबाद छावनी लूट ली थी।
● उन्होंने जोधपुर एवं बीकानेर की सेनाओं के विरुद्ध युद्ध लड़ा था।
भूरिया बाबा (बाबा गौतमेश्वर)
● मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा की झूठी कसम नहीं खाते।
● इनका मंदिर गौड़वाड़ सिरोही के पर्वतों में स्थित हैं।
● इनका मंदिर सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे पर गुर्जरों द्वारा बनवाया गया जिसे मीणा जाति के लोगों ने पूर्ण करवाया।
हरिराम बाबा
● प्रमुख मंदिर – झोरड़ा (नागौर)
● गुरु – भूरा
● मेला – प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पंचमी
● इन्हें सर्प रक्षक देवता कहते हैं।
● इनके मंदिर में सर्प की बांबी की पूजा की जाती है।
● इन्होंने साँप काटे हुए पीड़ित व्यक्ति को ठीक करने का मंत्र सीखा।
पनराजजी
● जन्म – नगा गाँव (जैसलमेर)
● मुस्लिम लुटेरों से काठौड़ी गाँव के ब्राह्मणों की गायें छुड़ाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
● इनकी स्मृति में पनराजसर गाँव (जैसलमेर) में वर्ष में दो बार मेला भरता है।
केसरिया कुंवरजी
● लोकदेवता गोगाजी के पुत्र
● इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते हैं।
● इनके भोपे सर्पदंश से पीडित व्यक्ति का जहर मुँह से चूसकर बाहर निकाल देते हैं।
भोमियाजी
● गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध।
मामादेव
● उपनाम – वर्षा के देवता तथा खारामामा।
● इनकी मिट्टी एवं पत्थर की मूर्ति नहीं होती है जबकि इनके प्रतीक के रूप में गाँव के बाहर लकड़ी का तोरण होता है।
● इनको प्रसन्न करने के लिए ‘भैंसे की बलि’ दी जाती है अत: इन्हें ‘खारामामा’ भी कहते हैं।
खेतलाजी
● प्रमुख मंदिर – सोनाणा गाँव, पाली
आलमजी
● प्रमुख मंदिर – धोरीमन्ना, बाड़मेर
● यहाँ पर घोड़ों की जात लगती है।
● मालाणी, बाड़मेर में लूणी नदी के किनारे (ढांगी नाम के रेतीले टीले पर) उनका स्थान बना हुआ है जिसे आलम जी का धोरा भी कहते हैं।
● यहाँ भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को मेला भरता है।
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