लोकोक्ति

लोकोक्ति

• किसी भी भाषा को और अधिक प्रभावपूर्ण, सरल और सौन्दर्यपूर्ण बनाने के लिए लोकोक्तियों का प्रयोग किया जाता है अर्थात् लोकोक्तियाँ किसी भाषा में ‘चार चाँद’ लगाने का काम करती हैं।

लोकोक्ति का अर्थ–

• लोकोक्ति का अर्थ ‘लोक में प्रचलित उक्ति अथवा कहावत’ होता है अर्थात् लोकोक्ति वह कहावत है जो वर्षों से चली आ रही उक्ति को व्यवहार में प्रयोग कर भाषा को और अधिक प्रभावशाली बनाने का काम करती है।

क्र.स.लोकोक्ति
1.लोकोक्ति, जनसाधारण में प्रचलित वह उक्ति/कहावत होती है, जिसका प्रयोग उपालम्भ देने, व्यंग्य करने, चुटकी लेने इत्यादि के लिए किया जाता है।
2.लोकोक्ति पूर्ण वाक्य होती है।
3.लोकोक्ति का प्रयोग वाक्य के अंत में ही किया जाता है।
4.लोकोक्ति का प्रयोग वाक्य में ज्यों का त्यों ही होता है।
5.लोकोक्ति के अंत में ‘ना’ का प्रयोग नहीं किया जाता अर्थात् अपवादस्वरूप ‘ना’ प्रयुक्त होता है।
6.लोकोक्ति का प्रयोग किसी भी वाक्य में स्वतंत्र रूप से किया जाता है।
7.लोकोक्ति पूर्ण और सटीक अर्थ का बोध कराती है तथा प्रयोग पर आधारित न होकर अर्थ पर आधारित होती है।

• परिभाषा ग्रामीण परिवेश में प्रचलित कहानियोंजनश्रुतियोंदन्त कथाओं को कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक रोचक ढंग से प्रस्तुत करने का तरीका लोकोक्ति कहलाता है।

अतग्रामीण परिवेश में प्रचलित होने के कारण लोकोक्तियों की भाषा अव्याकरणिकगँवारू होती है। लोकोक्ति मुहावरों की अपेक्षा आकार में बड़ी होती है।

लोकोक्तियाँ–

 अक्ल बड़ी या भैंस शारीरिक बल से बौद्धिक बल अधिक अच्छा होता है।

• अक्ल का अंधा महामूर्ख होना।

• अंगुली पकड़कर पहुँचा पकड़ना सहायता माँगकर अधिकार जमाना।

 अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – समूह के द्वारा किया जा सकने वाला कठिन कार्य अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता।

 अटका बनिया देय उधार स्वार्थी और मजबूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।

 अध जल गगरी छलकत जाए अल्पज्ञ व्यक्ति अपने ज्ञान के बारे में बहुत डींग हाँकता है।

• अन माँगे मोती मिले माँगे मिले  भीख भाग्य का लिखा मिलना।

• अपनीअपनी ढपली अपनाअपना राग अपनी मनमानी करना और एक-दूसरे के साथ ताल-मेल न रखना।

• अपना हाथ जगन्नाथ– स्वयं का काम स्वयं द्वारा ही सम्पन्न करना उपयुक्त है।

• अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना अपनी तारीफ स्वयं करना।

• अपनी करनी पार उतरनी अपना किया कार्य ही फलदायक होता है।

• अपनी पगड़ी अपने हाथ– अपनी इज्जत अपने हाथ।

• अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है– अपने घर में निर्बल भी बलवान होता है।

• अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष– हम में ही कमजोरी हो तो बताने वालों का क्या दोष।

• अपनी नाक कटे तो कटे दूसरे का सगुन तो बिगड़े अपना नुकसान झेलकर भी दूसरे को कष्ट पहुँचाना।                                        

• अशर्फियाँ लूटें और कोयलों पर मुहर– मूल्यवान की उपेक्षा, तुच्छ को महत्त्व देना।

• अब पछताए क्या होत है जब चिड़ियाँ चुग गई खेत हानि हो गई, हानि से बचने का अवसर चले जाने के बाद पश्चाताप करने से कोई लाभ नहीं।

• अभी दिल्ली दूर है लक्ष्य से दूर होना।

• अमीरी तेरे तीन नाम परसीपरसापरशुराम धनवानों का सर्वत्र गुणगान होता है।

• अरहर की टाटी और गुजराती ताला अनमेल प्रबन्ध व्यवस्था।

 अधजल गगरी छलकत जाए– ओछा व्यक्ति ज्यादा इतराता है।

• अन्धा क्या चाहे दो आँख– इच्छित वस्तु की प्राप्ति होना।

• अन्धी पीसे कुत्ता खाय– मूर्ख की कमाई दूसरे ही खाते हैं।

• अन्धे के हाथ बटेर लगना बिना मेहनत के ही उपलब्धि होना।

 अन्धों में काना राजा– मूर्खों के बीच में अल्पज्ञ भी बुद्धिमान माना जाता है।

• अन्धे की लकड़ी– एकमात्र सहारा।

• अंधे के आगे रोवे अपने भी नैन खोवे अपात्र से मदद मांगने का व्यर्थ परिश्रम।

• अंधा बाँटे रेवड़ी फिरफिर अपनों को दे– स्वार्थी द्वारा अपनों को लाभ पहुँचाना।

• अन्धा अन्ध कढ़ावहिं दोनों कूप पडन्त अयोग्य द्वारा अयोग्य को ले डूबना।

• अन्धेर नगरी चौपट राजा– कुप्रशासन और अजागरूक जनता ।

• आँख का अन्धा नाम नैनसुख– गुणों के विपरीत नाम।  

• आँख का अन्धा गाँठ का पूरा मूर्ख किन्तु धनवान।

• आधा तीतर आधा बटेर– अनमेल योग।

• आम के आम गुठलियों के दाम– दुहरा फ़ायदा।

• आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर छोटे कार्य में लग जाना।

• आगे नाथ  पीछे पगहा– पूर्णत: अनियंत्रित।

•  बैल मुझे मार जानबूझकर विपत्ति मोल लेना।

• आधी छोड़ एक को ध्यावेआधी मिले  सारी पावे– लोभ में सहज रूप से उपलब्ध वस्तु को भी त्यागना पड़ सकता है।

• आई मौज फकीर की दिया झोंपड़ा फूँक– सब कुछ नष्ट कर देना।

• आई तो रोजी नहीं तो रोजा आमदनी हुई तो मौज नहीं तो फाके ही सही।

• आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ लाइलाज बीमारी।

• आठ कन्नौजिया नौ चूल्हे– आपसी फूट।

• आँख बची और माल यारों का ध्यान भंग होते ही हानि होना।

• आग लगती झोंपड़ा जो निकले सो लाभ व्यापक विनाश में जो कुछ बचाया जा सकता है वह लाभ ही है।  

• आगे कुआँ पीछे खाई दोनों तरफ संकट होना।

• आसमान से गिरा खजूर में अटका एक आपत्ति के बाद दूसरी आपत्ति का आ जाना।

• आपत्ति काले मर्यादा नास्ति विपत्ति में धर्म-पालन न होना।

• आप काज महा काज अपने हाथ से किया गया कार्य ही अच्छा होता है।

• आप  जावे सासरेऔरन कूँ सिख देय स्वयं अनुसरण न कर उसी का दूसरों को उपदेश देना।  

• आप मरे बिना स्वर्ग  जावे स्वयं करने पर ही कोई काम होना/बिना कष्ट उठाए सफलता न मिलना।

• आबआब कर मर गया सिरहाने रखा पानी भाषा के आडे़ आने पर सुलभ वस्तु का भी अप्राप्य होना।

• इमली के पात पर दण्ड पेलना– सीमित साधनों से बड़ा कार्य करने का प्रयास करना।

• इतनीसी जानगज भर की जुबान बातूनी बालक।

• इधर कुआँ उधर खाई दोहरी मुसीबत।

• इस घर का बाबा आलम ही निराला है सब कुछ विचित्र होना।

• इन तिलों में तेल नहीं किसी भी लाभ की सम्भावना न होना।

•  ईश्वर की मायाकहीं धूप कहीं छाया– संसार में व्याप्त भिन्नता।

• उल्टे बाँस बरेली को– जहाँ जो चीज उपलब्ध हो/पैदा होती हो, उल्टे वहीं पर वह वस्तु पहुँचाना।

• उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई बेशर्म हो जाना।

• उलटी गंगा बहाना परम्परा के विरुद्ध कार्य करना।

• उलटा चोर कोतवाल को डाँटे दोषी द्वारा निर्दोष पर दोषारोपण करना।

• उधार दिया और ग्राहक खोया उधार देने से ग्राहक टूट जाता है।

• ऊँची दुकान फीका पकवान दिखावा ज्यादा और तथ्य कम।  

• ऊँट किस करवट बैठता है ऐसी घटना की प्रतीक्षा जिसका अनुमान लगाना असंभव है।

• ऊँट की चोरी और झूकेझुके– गुप्त न रह सकने वाले कार्य को गुप्त ढंग से करने का प्रयास करना।

• ऊँट के मुँह में जीरा आवश्यकता से बहुत कम मिलना।

• ऊधो का लेना  माधो का देना किसी से कोई मतलब नहीं रखना।

• ऊँट के गले में बकरी बेमेल संयोग।

• एक अनार सौ बीमार वस्तु की पूर्ति की तुलना में माँग अधिक।

• एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है एक बदनाम व्यक्ति अपने साथ के सभी लोगों को बदनाम करवा देता है।

• एक म्यान में दो तलवारें नहीं  सकती एक ही स्थान पर दो समान वर्चस्व के प्रतिद्वन्द्वी नहीं रह सकते।

• एक और एक ग्यारह होते हैं संगठन में ही शक्ति है।

• एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है एक बदनाम आदमी सारी जाति को बदनाम कर देता है।

• एक म्यान में दो तलवारें नहीं  सकती एक स्थान पर दो सक्षम व्यक्ति नहीं रह सकते।

• एक ही थैली के चट्टेबट्टे समान प्रकृति का होना।

• एक तवे की रोटी क्या छोटी क्या मोटी कोई अन्तर नहीं होना।

• एक मुँह दो बात अपनी बात से मुकर जाना।

• एक हाथ से ताली नहीं बजती किसी भी गलती के पीछे दोनों पक्षों का जिम्मेदार होना।

• एक ही लकड़ी से सबको हाँकना समान व्यवहार करना।

• एक पन्थ दो काज– एक प्रयत्न से दो काम हो जाना।

• एक तो करेला और दूसरा नीम चढ़ा– एक साथ दो-दो दोष-प्रतिकूलताएँ।

• ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरे कठिन काम को हाथ में ले लेने पर आनेवाली बाधाओं से विचलित न होना।

• ओछे की प्रीति बालू की भीति दुष्टों की मित्रता क्षणभंगुर होती है।

• ओस चाटे प्यास नहीं बुझती अपर्याप्त वस्तु से आवश्यकताओं की पूर्ति न होना।

• और बात खोटी सही बात रोटी भोजन व्यवस्था का प्रश्न ही सर्वोपरि।

• कर ले सो काम और भज ले सो राम समय पर जो कर लिया जाए वही अपना है।

• कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना जो मिले उसी में सन्तुष्ट रहना/परिस्थितियाँ सदैव अनुकूल नहीं रहती।

• कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा बेमेल वस्तुओं का संग्रह।

• कभी गाड़ी नाव पर कभी नाव गाड़ी पर परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।

• कब्र में पाँव लटकाये बैठना मौत के समीप होना।

• कही खेत कीसुनी खलियान की कुछ का कुछ सुनना।

• कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता बाह्य आडम्बर से किसी के अवगुण नहीं छिपते।

• कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली छोटों की बड़ों से समानता नहीं होती।

• कहाँ रामराम कहाँ टांयटांय बहुमूल्य वस्तु की तुलना नगण्य वस्तु से नहीं की जा सकती।

• कर्महीन खेती करेबैल मरे या सूखा पडे़ दुर्भाग्यवश किसी काम का खराब होते रहना।

• कंगाली में आटा गीला संकट में संकट आना।

• का वर्षा जब कृषि सुखाने– अवसर निकल जाने पर प्राप्त सहायता व्यर्थ है।

• काम का  काज कादुश्मन अनाज का/नाज का ननदोई निकम्मा या कमजोर आदमी।

• कागज की नाव ज्यादा नहीं चलती धोखेबाजी लम्बे समय तक नहीं चलती।

• काठ की हाँडी एक बार ही चढ़ती है धोखेबाजी बार-बार नहीं चलती।

• काबुल में क्या गधे नहीं होते– अपवाद तो सभी जगह होते हैं।

• काजी जी दुबले क्योंसहर का अंदेशा दूसरों के दु:ख से व्यर्थ दु:खी होना।  

• कानि के ब्याह में कौतुक ही कौतुक एक दोष के होने पर अनेक दोषों का आ जाना।

• कागहि कहा कपूर चुगाएस्वान न्हवाए गंग– दुर्जन की प्रकृति खूब प्रयास करने पर भी नहीं बदलती।

• काँख (गोदमें छोरा शहर में ढिंढ़ोरा वस्तु पास में और तलाश दूर-दूर तक।

• किस खेत की मूली है नगण्य समझना।

• कुत्ते को घी नहीं पचता नीच आदमी उच्च पद पाकर इतराने लगता है।

• कुत्तों के भौंकने से हाथी नहीं डरते महापुरुष आलोचकों की परवाह नहीं करते।

• कै हंसा मोती चुगेकै भूखा मर जाए महापुरुष अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता।

• कोयले की दलाली में हाथ काले बुरों के सानिध्य का बुरा परिणाम।

• कोई मरे या जीवे धन्ना घोल बताशा पीवे दीन-दुनिया से बेखबर रहने वाला/मस्तमौला।

• कोऊ नृप होइ हमें का हानी– किसी भी परिवर्तन के प्रति उदासीनता।

• कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवे धनवान हमेशा चिन्तित और गरीब हमेशा मस्त रहता है।

• कोयल होवे  उजली सौ मन साबुन नहाय स्वभाव में बदलाव न होना।

• कौआ चले हंस की चाल– किसी बुरे व्यक्ति द्वारा अच्छे व्यवहार का दिखावा करना।

• कौड़ी नहीं पास चले बाग की सैर साधन न होने पर भी कार्य करना।

• कौन कहे राजाजी नंगे हैं बड़ों की बुराई कोई नहीं करता।

• क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा तुच्छ व्यक्ति से बड़ा काम नहीं हो सकता।

• खग जाने खग ही की भाषा– सब अपने-अपने संपर्क के लोगों का हाल समझते हैं।

• खरबूज़े को देखकर खरबूज़ा रंग बदलता है एक को देखकर दूसरे में परिवर्तन आता है।

• खरी मजूरी चोखा काम– पारिश्रमिक सही देने पर काम भी अच्छा होता है।

• खाक डाले चाँद नहीं छिपता निंदा करने से सत्‌पुरुषों का कुछ नहीं बिगड़ता।

• खाल ओढ़ाए सिंह कीस्यार सिंह नहीं होय ऊपरी बदलाव से अवगुण नहीं छिपते। 

• खाली औरत का नमक में हाथ बेकार आदमी उलटे-सीधे काम करता है।

• खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे लज्जित होकर क्रोध करना।

• खेत खाये यार का गीत गाए खसम के दूसरों से लाभ उठाकर अपनों के गीत गाना।

• खेत खाये गदहा मार खाए जुलाहा अपराधी की सजा निरपराध को मिलना।

• खोदा पहाड़ और निकली चुहिया अधिक परिश्रम पर लाभ कम।

• खुदा गंजे को नाखून नहीं देता अनधिकारी एवं दुर्भावी व्यक्ति को अधिकार नहीं मिलता।

• खुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है ईश्वर जिसको चाहता है उसे मालामाल कर देता है।  

• खूँटे के बल बछड़ा कूदे दूसरे की ताकत के भरोसे अकड़ दिखाना।

• गंगा का आना हुआ और भागीरथ को यश काम तो होना ही था, यश किसी को मिल गया।

• गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास सिद्धान्तहीन अवसरवादी/बिना पेंदे का लोटा।

• गई माँगने पूत खो आई भरतार थोड़े लाभ के चक्कर में गाँठ की पूँजी भी गंवा देना।

• गई साख तो बची राख इज्जत चली जाने पर जीवन का सारहीन होना।

• गरीब की लुगाई सबकी भौजाई मजबूरी का हर कोई लाभ उठाना चाहता है।

• गाड़र (भेड़पाली ऊन को लागी चरन कपास रखा गया लाभ के लिए और करने लगा नुकसान।

• गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की ओर भागता है विनाश काले विपरीत बुद्धि।

• गुदड़ी में लाल नहीं छिपता मूल्यवान वस्तु की पहचान अपने आप हो जाती है।

• गुड़ खाए मर जाए तो ज़हर देने की क्या ज़रूरत यदि शान्तिपूर्वक कार्य हो जाए तो कठोर व्यवहार की आवश्यकता नहीं।

• गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज झूठ और प्रपंच रचना।

• गुड़  ले पर गुड़ की सी बात तो करें मदद न कर सके तो मधुर व्यवहार तो करें।

• गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है सामर्थ्यवानों के साथ कमजोर का भी नुकसान होता है।

• गोद में बैठकर आँख में अंगुली शरण में आकर उत्पात मचाना।

• घर खीर तो बाहर खीर– घर में संपन्नता और सम्मान है तो बाहर के लोगों से भी यही मिल जाता है।

• घर की मुर्गी दाल बराबर सहज सुलभ वस्तु का कोई महत्त्व नहीं होता।

• घर का भेदी लंका ढाए– घर का रहस्य जानने वाला बड़ी हानि पहुँचा सकता है।

• घर की खाँड किरकिरी लागेबनियाँ का गुड़ मीठा अपनी वस्तु की अपेक्षा दूसरे की वस्तु का अच्छा लगना।

• घर आया नाग  पूजिएबाम्बी पूजन जाय– स्वतः आए सुअवसर का लाभ न उठाकर फिर उसको प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना।

• घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने बाह्य प्रदर्शन/झूठा दिखावा।

• घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध परिचितों की उपेक्षा कर दूर के अपरिचितों को (कार्य) अधिक महत्त्व दिया जाता है।

• घायल की गति घायल जाने दु:खी व्यक्ति ही दूसरों का दु:ख जानता है।

• घोड़ा घास से यारी करें तो खाये क्या?– मजदूरी में मुलायजा
(रिश्तेदारी) नहीं चलता।

• घोड़ों को घर कितनी दूर कर्मंवीर व्यक्ति को कोई भी कार्य असम्भव नहीं होता।

• चट मंगनी पट ब्याह तत्काल कार्य होना।

• चढ़ जा बेटा सूली पे भली करेंगे राम बहकावे में आकर विपत्ति में पड़ना।

• चंदन की चुटकी भली गाड़ी भरा  काठ उपयोगी वस्तु थोड़ी ही अच्छी।

• चमड़ी जाए पर दमड़ी  जाए महाकंजूस/मक्खीचूस।

• चलती का नाम गाड़ी– जब तक सफलता मिलती रहे तब तक ही यश और प्रभाव रहता है।

• चन्द्रमा को भी ग्रहण लगता है भले लोगों को भी बदनामी झेलनी पड़ती हैं।

• चंदन की चुटकी भली गाड़ी भरा  काठ– उपयुक्त गुण वाली वस्तु तो थोड़ी-सी भी अच्छी है और गुणरहित वस्तु अधिक मात्रा में भी निरर्थक है।

• चार दिन की चाँदनी फिर अन्धेरी रात– थोड़े समय का सुख, अधिक समय का दुःख।

• चिकने मुँह को सब चाटते हैं बडे़ लोगों की हर कोई खुशामद करता है।

• चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता बेशर्म व्यक्ति पर किसी बात का असर नहीं होता।

• चीटीं के पर निकलना मृत्यु समीप होना।

• चील के घौंसले में मांस कहाँ– कुछ भी शेष न बचना।

• चुपड़ी और दोदो– अच्छी चीज़ और वह भी बहुतायत में।

• चूहे का बच्चा बिल ही खोदता है जन्मजात आदतें नहीं बदलती।

• चोरन कुतिया मिल गई पहरा किसका देय– जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो सुरक्षा कैसी।

• चोर की दाढ़ी में तिनका दोषी के व्यवहार द्वारा दोष का संकेत मिलना।

• चोरचोर मौसेरे भाई समान प्रकृति वालों में मित्रता होना।

• चोर चोरी छोड़ दे पर हेराफेरी नहीं छोड़ता दुष्ट आत्मा कोई न कोई दुष्कर्म अवश्य करते हैं।

• चोर से कहे चोरी कर साहू से कहे जागते रहो दो पक्षों को लड़ाने वाला।

• चोरी और सीना जोरी एक तो अपराध और उस पर भी अकड़ दिखाना।

• चोरी का माल मोरी में– गलत ढंग से कमाया धन यों ही बर्बाद होता है।

• चौबे जी गये छब्बे बनने दुब्बे ही रह गये अधिक लाभ के लालच में स्वयं का सब कुछ गवां बैठना।

• छछूँदर के सिर चमेली का तेल अयोग्य व्यक्ति के पास स्तरीय वस्तु होना।

• छटांक भर आटा पुल पर रसोई छोटे कार्य के लिए बड़े संसाधन/व्यर्थ दिखावा।

• छोटे मियां तो छोटे मियांबड़े मियां शुभान अल्लाह छोटों से अधिक बड़ों का दुर्गुणी होना। 

• छोटा मुँह बड़ी बात अपनी औकात से अधिक बात करना।

• छोटी पूँजी खसम को खाए अपर्याप्त पूँजी के कारण व्यापार ठप्प हो जाता है।

• जल में रहकर मगर से बैर समीपस्थ शक्तिशाली से शत्रुता ठीक नहीं।

• जब तक जीना तब तक सीना जीते जी कुछ तो काम करना ही पड़ता है।

• ज्यों नकटे को आरसी (शीशाहोत दिखाए क्रोध दोषी को दूसरों द्वारा दोष बताए जाने पर क्रोध आता है।

• जस दूल्हातस बनी बराता जैसा खुद वैसे ही साथी।

• जब तक साँस तब तक आस अन्तिम क्षण तक भरोसा रखना।

• ज़र है तो नर है नहीं तो पंछी बेपर है धन की महिमा।

• जंगल में मोर नाचा किसने देखा गुणों का प्रदर्शन करने पर ही पता चलता है।

• जहाँ जाएगी ऊखा वहाँ पड़ेगी सूखा भाग्यहीन व्यक्ति जहाँ जाता है वहीं बुरा होता है।

• जहाँ  पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि– कवि की कल्पना अकल्पनीय होती है।

• जहाँ चाह वहाँ राह इच्छा शक्ति होने पर मंजिल आसान होती है।

• जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या वहाँ सवेरा नहीं होता? – किसी के भरोसे कोई काम नहीं रुकता।

• जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले प्रभावशाली व्यक्ति की बात माननी ही पड़ती है।

• जान बची लाखों पाए जिन्दगी सर्वोपरि है।

• जाकै पाँव  फटीं बिवाई वह क्या जाने पीर पराई दूसरे के दु:ख को भोगी ही समझता है।

• जान मारे बनियाँ पहचान मारे चोर बनियाँ और चोर परिचित को ही अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।

• जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ जितना परिश्रम उतना लाभ।

• जिस थाली में खाना उसी में छेद करना उपकार के बदले कृतघ्नता।

• जितने मुँह उतनी बात भाँति-भाँति की अफवाएँ।

• जिसका काम उसी को साजे जो काम जिसका है वही उसे भली-भाँति कर सकता है।

• जिसकी लाठी उसकी भैंस शक्तिशाली की विजय।

• जीभ भी जली और स्वाद भी नहीं आया परिश्रम का लाभ न मिलना।

• जीती मक्खी नहीं निगली जाती जानबूझकर गलत कार्य स्वीकार नहीं किया जा सकता।

• जूँ के डर से गूदड़ी नहीं फेंकी जाती क्षणिक कठिनाई के कारण महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं छोड़ा जाता।

• जूठा खाय मीठे के लालच स्वार्थवश गलत कार्य करना।

• जैसा देश वैसा भेष देशकाल, परिस्थितियों के अनुरूप आचरण करना।

• जैसी तेरी कौमरी (घूंघरीवैसे मेरे गीत जैसा देना वैसा पाना।

• जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ दोनों एक जैसे।

• जो गरजते हैं वे बरसते नहीं हैं कथनी और करनी में अन्तर।

• झूठ के पाँव नहीं होते झूठ अधिक दिन नहीं चलता।

• झौंपड़ी में रहकर महलों के ख्वाब देखना– अपनी सामर्थ्य से बढ़कर इच्छा रखना।

• टके के लिए मस्जिद तोड़ना थोड़े लाभ के लिए बड़ा नुकसान करना।

• ठंडा लोहा गर्म लोहे को काट देता है– शांत व्यक्ति क्रोधी को नष्ट कर देता है।

• ठोकर लगी पहाड़ से तोड़े घर की सील सामर्थ्यवान से अपमानित होने पर उसका गुस्सा कमजोर पर उतारना।

• ठोकर लगे तब आँख खुलें कुछ खोकर ही अक्ल आती है। 

• डूबते को तिनके का सहारा विपत्ति में थोड़ी मदद ही उबार देती है।

• ढाक के तीन पात सदैव एक-सी स्थिति।

• ढोल में पोल केवल बाह्य दिखावा।

• तबेले की बला बन्दर के सिर किसी एक पर सबका दोष मढ़ देना।

• तलवार का खेत हरा नहीं होता अनीति का फल अच्छा नहीं होता।

• तिनके की ओट में पहाड़ छोटी चीज़ के पीछे बड़े रहस्य का छिपा होना।

• तीन कन्नौजिया तेरह चूल्हे बिखराव की स्थिति।

• तीन में  तेरह में– जिसका कुछ भी महत्त्व न हो।

• तीन लोक से मथुरा न्यारी सबसे भिन्न स्थिति।

• तुम्हारे मुँह में घीशक्कर तुम्हारी बात सच हो।

• तुरन्त दान महा कल्याण– शुभ कार्य में देरी कैसी।

• तू डालडाल मैं पातपात एक से बढ़कर दूसरा चालाक।

• तू सेर मैं सवा सेर एक से बढ़कर दूसरा चालाक। 

• तेते पाँव पसारिए जैती लम्बी सौर अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्यय करना।

• तेल तो तिलों से ही निकलता है दाता से ही याचना की जाती है।

• तेल देखो तेल की धार देखो स्थिति के अनुसार संभावित की प्रतीक्षा करना।

• तेली खसम किया फिर भी रुखा खाया– सामर्थ्यवान की शरण में रहकर दु:ख भुगतना।

• थका ऊँट सराय ताकता है थका व्यक्ति विश्राम चाहता है।

• थोथा चना बाजे घना निकम्मा व्यक्ति अधिक डींग हाँकता है।

• दबने पर चींटी भी चोट करती है कष्ट पहुँचने पर कमजोर में भी बदला लेने की भावना जाग्रत हो जाती है।

• दमड़ी की हाँडी तो गयी पर कुत्ते की जात पहचान ली थोड़ी हानि उठाकर किसी की असलियत जान लेना।

• दबी बिल्ली चूहों से भी कान कटवाती है किसी से दबा हुआ आदमी अपने से कमज़ोर लोगों के भी वश में रहता है।

• दालभात में मूसलचन्द– अवांछित एवं अनुचित हस्तक्षेप करना।

• दादा ले और पोता बरते बहुत मजबूत वस्तु।

• दलाल का दिवाला क्या और मस्जिद में ताला क्या जिसके पास कुछ भी न हो उसकी हानि कैसी।

• दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते उपहार में मिली वस्तु का मूल्य नहीं आका जाता।

• दाल में काला होना कुछ संदेह होना।

• दीवारों के भी कान होते हैं गोपनीय बातचीत बहुत सावधानी से करनी चाहिए क्योंकि उसके औरों को ज्ञात हो जाने की संभावना बनी रहती है।

• दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती हैं जिससे लाभ हो उसकी बुरी बात भी सहनी पड़ती है।

• दुविधा में दोनों गए माया मिली  राम दुविधा में पड़ने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

• दूध का जला छाछ को भी फूँकफूँक कर पीता है एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी रखता है।

• दूर के ढोल सुहावने लगते हैं दूर से वस्तु अच्छी लगती है।

• देशी कुतिया अंग्रेजी बोली देखा देखी परिवर्तन करना।

• दूध का दूधपानी का पानी निष्पक्ष न्याय करना।

• दूर के ढोल सुहावने लगते हैं दूर से वस्तु अच्छी लगती है।

• दोनों हाथों में लड्डू दोहरा लाभ।

• धन का धन गया मीत की मीत गई उधार देने से पैसा तो जाता ही है, मित्रता भी नहीं रहती

• धनवन्ती को कांटा लगे दौड़ें लोग हजार धनी लोगों को क्षणिक कष्ट होने पर ही हजार मददगार हो जाते हैं।

• धोबी का कुत्ता घर का  घाट का द्विपक्षीय व्यक्ति कहीं का नहीं रहता।

• धोबी बस कर क्या करे दिगम्बरों के गाँव असक्षम व्यक्तियों के समूह में स्तरीय वस्तु का व्यापार नहीं होता।

•  ऊधो का लेना  माधो का देना किसी से कोई मतलब नहीं होना।

•  नौ मन तेल होगा राधा नाचेगी किसी कार्य को करने के लिए अव्यावहारिक शर्त लगाना।

•  रहेगा बाँस  बजेगी बाँसुरी– किसी समस्या के मूल कारण को ही नष्ट कर देना।

• नंगा बड़ा परमेश्वर से बेशर्म से सभी डरते हैं।

• नंगा नहाएगा क्यानिचोड़ेगा क्या गरीब के पास खोने के लिए कुछ नहीं होता।

• नक्कार खाने में तूती की आवाज बड़ों के बीच छोटों की बात नहीं सुनी जाती है।

• नटनी जब बाँस चढ़ी तो घूँघट कैसा? – नीच कार्य स्वीकार करने पर शर्म नहीं होती।

• नम़ाज छोड़ने गए रोजे गले पड़े एक मुसीबत से बचने के चक्कर में भारी मुसीबत में पड़ जाना।

• नाक कटी पर घी तो चाटा बेइज्जत होकर लाभ पाना।

• नाच  जाने आँगन टेढ़ा अपनी अयोग्यता के लिए साधनों को दोष देना/काम न जानना और बहाना बनाना।

• नाई की बरात में सब ठाकुर ही ठाकुर नेताओं की भीड़, काम का कोई नहीं।

• नाम बड़े और दर्शन छोटे प्रसिद्धि बहुत किन्तु वास्तविकता में कुछ भी न होना।

• नामी चोर मारा जाय नामी शाह कमा खाय प्रसिद्धि से लाभ और बदनामी से हानि होती है।

• नानी क्वाँरी मर गई नाती के नौनौ ब्याह झूठी प्रशंसा

• नीम हक़ीम खतरे जान अनुभवहीन व्यक्ति खतरनाक होता है।

• नेकी और पूछपूछ भलाई के काम करने में कैसी पूछताछ?

• नेकी कर दरिया में डाल प्रतिदान की आशा न कर शुभ कार्य करना।

• नौ दिन चले अढ़ाई कोस बहुत सुस्ती से काम करना।

• नौ नकद  तेरह उधार यदि लाभ शीघ्र मिल रहा हो तो वह बाद में मिलने वाले अधिक लाभ की तुलना में अच्छा है।

• नौ सौ चूहे खा बिल्ली हज को चली जीवनभर दुष्कर्म कर बुढ़ापे में धर्मात्मा बनना।

• पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं पराधीन व्यक्ति को कभी सुख नहीं मिलता।

• पढ़े फारसी बेचे तेल पढ़कर भी अनपढ़ों जैसा कार्य करना।

• पराया घर थूकने का भी डर दूसरों के घर में संकोच रहता है।

• पंचों का निर्णय सिर माथेपर परनाला यहीं रहेगा दूसरों की सुनकर भी अपनी जिद पूरी करना।

• प्रभुता पाई काहि मद नाहीं– उच्च पद प्राप्त करने पर किसे घमण्ड नहीं होता।

• पानी पीकर जात पूछना सम्बन्ध स्थापित होने के पश्चात् तहक़ीकात करना।

• पाँचों अंगुली घी में चौतरफा लाभ।

• पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं होती सभी इंसान एक जैसे नहीं होते।

• पासा पड़े सो दावराजा करे सो न्याव हर जगह धनवानों और अधिकारियों की बात अधिक मान्य होती है।

• पिया घर नहीं हमें किसी का डर नहीं नियंत्रक के अभाव में मौज उड़ाना।

• पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं– प्रतिभावान बालक के गुण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं।

• फरा सो झराबरा सो बुतना सभी लोग अपने अन्त को प्राप्त होते हैं।

• बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद? – मूर्ख किसी भी अच्छी वस्तु की कद्र नहीं जानता।

• बड़े करें सो लीलाछोटे करें सो पाप सामर्थ्यवानों की गलत बात भी सही मानी जाती है किन्तु कमजोर का सही कार्य भी उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है।

• बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी– जिसका कष्ट पाना तय है वह अन्ततः विपत्ति में पड़ेगा ही।

• बद अच्छा बदनाम बुरा– नुकसान उठाना बेहतर है बजाय बदनामी के।

• बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है सबलों द्वारा निर्बलों को सताया जाता है।

• बहती गंगा में हाथ धोना मौके का फायदा उठाना।

• बहुते जोगी मठ उजाड़ भीड़ से काम खराब होता है।

• बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा भोगा हुआ सत्य ही सत्य होता है।

• बापै पूतपिता पर थोड़ाबहुत नहीं तो थोड़ाथोड़ा पिता के लक्षण थोड़े बहुत पुत्र में अवश्य आते हैं।

• बासी बचे  कुत्ता खाए आवश्यकतानुसार वस्तु की उपलब्धि।

• बांबी में हाथ तू डालमंत्र में पढूँ चतुराई से दूसरों को विपत्ति में डालना।

• बाप  मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज बड़ों से अधिक छोटों द्वारा कर दिखाना।

• बारह बरस बम्बई रहे फिर भी झोंका भाड़ बड़ी जगह रहकर भी कुछ न कर पाना।

• बिन माँगे मोती मिलें माँगे मिले  भीख याचना करने पर तुच्छ वस्तु भी प्राप्त नहीं होती जबकि बिना माँगे भाग्यवश बहुमूल्य वस्तु भी सहज प्राप्य हो जाती है।

• बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती बिना प्रयास के कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

• बिल्ली और दूध की रखवाली भक्षक कभी रक्षक नहीं हो सकता।

• बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना अयोग्य को भी अप्रत्याशित लाभ मिलना।

• बिजली तो पड़ी पर मीठी पड़ी हर घटना के अच्छे बुरे दो पहलू होते है।

• बुढ़िया मरी तो मरीपर आगरा तो देखा हर घटना के अच्छे बुरे दो पहलू होते हैं।

• बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम उम्र के विपरीत शृंगार करना।

• भूख लगी तब घर की सूझी विपत्ति में ही अपनों की याद आती है।

• भेड़ पर ऊन कोई नहीं छोड़ता निर्बल का हर कोई शोषण करता है।

• भेड़ जहाँ जाएगी वहीं मुड़ेगी मूर्ख हर जगह ठगा जाता है।

• भेड़ की लात घुटनों तक कमजोर व्यक्ति अधिक नुकसान नहीं पहुँचाता।

• भैंस के आगे बीन बजाईउसने सोचा सानी (चाराआई मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।

• भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा विरोधी को लालच देकर चुप रहना।

• भेड़ की ऊन कोई नहीं छोड़ता जो कमजोर है उसका हर कोई शोषण कर लेता है।

• भूले बनिया भेड़ खाई अब खाय तो राम दुहाई एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी रखता है।

• मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा प्रेमी की हर वस्तु प्रिय होती है।

• मन चंगा तो कठौती में गंगा मन की पवित्रता सर्वोपरि।

• मन के लड्डुओं से पेट नहीं भरता केवल कल्पना कर लेने से तृप्ति नहीं होती।

• मन में भावे मूंड हिलावे मन में प्राप्ति इच्छा होने पर ऊपर से इंकार करना।

• मरता क्या  करता मजबूर व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।

• मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जलाय किसी वस्तु का बहुतायत में होना उसकी उपयोगिता को कम कर देता है।

• मान  मान मैं तेरा मेहमान जबरदस्ती किसी के गले पड़ना।

• मानों तो देव नहीं तो पत्थर श्रद्धा से विश्वास उत्पन्न होता है।

• मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक सीमित सामर्थ्य होना।

• मुँह में राम बगल में छुरी बाहर से अच्छा व्यवहार किन्तु मन में कपट होना।

• मुँह माँगी तो मौत भी नहीं मिलती मनचाहा कार्य हमेशा नहीं होता।

• मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त जिसका काम हो वह तो आलसी हो और दूसरे सक्रिय हों।

• मूल से प्यारी ब्याजचाहे बच्चे खाओ प्याज– महाकंजूस/मक्खीचूस।

• मेरी बिल्ली मुझको ही म्याऊँ आश्रयदाता को ही आँख दिखाना।

• मेंढकी को जुकाम मामूली आदमी द्वारा अपनी क्षमता का काम करने में भी नखरे करना।

• मोरी की ईंट चौबारे पर तुच्छ व्यक्ति को सम्मान देना।

• यह मुँह और मसूर की दाल अपनी औकात से बढ़कर शेखी बघारना।

• यथा राजा तथा प्रजा जैसा मालिक वैसा नौकर/जैसा नेता वैसी जनता।

• रस्सी जल गयी पर बल नहीं गया– पुराना गौरव समाप्त होने पर भी अकड़ना।

• राजहंस बिन को करे छीरनीर अलगाव– न्यायी के अभाव में न्याय न मिलना।

• राम की माया कहीं धूप कहीं छाया– ईश्वर कहीं दु:ख तो कहीं सुख, कहीं धन तो कहीं निर्धनता देता रहता है।

• राम मिलाई जोड़ीएक अन्धा एक कोढ़ी– समान प्रकृति वालों में मित्रता होना।

• राम नाम जपना पराया माल अपना– ऊपर से महात्मा असल में ठग।

• रोज़ कुआँ खोदना रोज़ पानी पीना– रोज़ कमाना रोज़ खाना।

• लकड़ी के बल बकरी नाचे– भय दिखाकर कार्य करवाना।

• लड्डू कहने से मुँह मीठा नहीं होता– केवल कहने मात्र से काम नहीं बनता।

• लकीर का फकीर होना– पुरातनपन्थी/जैसा चला आ रहा है वैसे ही चलते रहना।

• लिखे ईसा पढ़े मूसा गन्दी लिखावट।

• लातों के भूत बातों से नहीं मानते– काम चोरों से काम करवाने के लिए कड़ाई से पेश आना पड़ता है।

• लेना एक  देना दो– कोई मतलब न रखना।

• वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है वहम सबसे भयानक रोग होता है।

• विनाश काले विपरीत बुद्धि– प्रतिकूल समय आने पर विवेक नष्ट होना।

• विष दे पर विश्वास  दे– चाहे बुरा लग जाए किन्तु स्पष्ट कहना चाहिए न कि विश्वासघात करना।

• शक्ल चुड़ैल की मिज़ाज परियों के– व्यर्थ का नखरा।

• शेरों का मुँह किसने धोया– सामर्थ्यवान के लिए कोई उपाय नहीं।

• सब धान बाईस पंसेरी अज्ञानी के लिए अच्छी­-बुरी सब चीजें एक समान है।

• सइयाँ भये कोतवाल अब डर काहे का– परिचित अधिकारियों के माध्यम से अनुचित लाभ उठाना।

• समय चूक पुनि का पछवाने– अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं।

• समरथ को नहिं दोष गोसाई– सामर्थ्यवान (धनवान, अधिकारी या शक्तिशाली) कुछ भी करे, उस पर कोई दोषारोपण नहीं करता।

• सहज पके सो मीठो होए– समयानुकूल किया कार्य लाभप्रद होता है।

• सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है– वैभव सम्पन्न व्यक्ति को दुनिया खुशहाल दिखाई देती है।

• सावन सूखे  भादो हरे– सदा एक जैसा रहना।

• साँच को आँच नहीं– सच्चे आदमी को कोई खतरा नहीं होता।

• साझे की हाँड़ी चौराहे पर फूटती है साझेदारी जब समाप्त होती है तो सबके सामने उजागर होती है।

• साँप भी मर जाए और लाठी भी  टूटे बिना किसी नुकसान के लक्ष्य प्राप्त करना।

• सिर मुंडवाते ही ओले पड़ना– कार्यारम्भ में ही बाधा आना।

• सूत  कपासजुलाहे से लट्ठमलट्ठा– अकारण विवाद।

• सूरज धूल डालने से नहीं छिपता– अवरोध पैदा करने से महापुरुषों के गुण नहीं छिपते।

• सेर को सवा सेर– एक से बढ़कर दूसरा।

• सोने में सुहागा (सुगन्ध)– गुणों के साथ कोई और विशेषता।

• सौ दिन चोर के एक दिन साह का– दोषी व्यक्ति एक दिन अवश्य पकड़ा जाता है।

• सौ सुनार की एक लुहार की कमजोर आदमी की सौ चोट और बलवान व्यक्ति की एक चोट बराबर होती है।

• हथेली पर सरसों नहीं जमती (उगती)– कोई भी कार्य तत्काल नहीं होता।

• हम आयेंगे क्या दोगेआप आओगे क्या लाओगे– शहरी व्यक्ति केवल लेने का लालची होता है।

• हर मर्ज़ की दवा– प्रत्येक बात का उपाय होना।

• हजारों टाँकी सह कर महादेव बनते– कष्ट सहकर ही आदमी महान बनता है।

• हजाम के आगे सबका सिर झुकता है– समय आने पर मजबूरी में सबको झुकना पड़ता है।

• हलवापुड़ी बीबी खायसिर पिटवाने मियां जाय अपराधी की सजा निरपराध को मिलना।

• हाथ कंगन को आरसी क्या? – प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।

• हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और– कथनी और करनी में अन्तर होना।

• होनहार विरवान के होत चिकने पात– प्रतिभावान बालक के गुण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं।

• हाथ कंगन को आरसी क्या प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता?

One thought on “लोकोक्ति

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